आईये पूनम जी के बारे में कुछ जानते हैं -
पूनम जी अपने बारे में कहती हैं - पुराने पन्नों से मेरी हर कविता हर नज़्म तुम्हीं से शुरू और तुम पर ही ख़त्म होती है । कभी मेरे ख्यालों से दूर जाओ । तो कुछ और भी लिखने की सोचूँ ? जब मैंने लिखना शुरू किया । यही पहली कुछ लाइनें थी मेरी । तब नहीं सोचा कि इतना कुछ लिखने लगूँगी । तबसे अब तक अच्छा बुरा जो लिखा । प्रत्यक्ष और परोक्ष में वो मौजूद है । मेरे साथ । मेरे पास । उसे हर समय । हर जगह महसूस किया । अच्छे बुरे हर समय वो मेरे साथ था । तब भी । और आज भी । ज़िन्दगी में जो भी पाया । उसी ने दिया । आज जैसी भी हूँ । पूरी की पूरी उसी की creation हूँ । कच्ची उम्र की रचनाएँ शायद कच्ची ही थीं । जो उमृ समय और परिस्थितियों के साथ परिपक्व होती गईं । शायद ये मेरा अपना ख्याल हो सकता है । पर सबकी सब मेरे दिल के बहुत नज़दीक हैं । हकीकत की तरह । जिस दिन लिखना शुरू किया था । उस दिन भी बस यूँ ही लिखना शुरू कर दिया था । जब ब्लॉग पर लिखना शुरू किया । उस दिन भी बस यूँ ही लिखना शुरू कर दिया । शायद इसीलिए..इनका ब्लाग - तुम्हारे लिये
और ये पढिये । पूनम जी की कविता -
ढाये चाहत ने सितम हम पे हैं । कुछ इस तरह । रोते रोते भी हँस दिए हैं । हम कुछ इस तरह ।
चाहा कि तुझको छुपा लूँ मैं । कहीं इस तरह । मैं ही मैं देखूं । जमाने से छुपाकर इस तरह ।
तू था खुशबू की तरह बिखरा । जो फिर छुप न सका । बस मेरे दिल में रहे । ये भी तो तुझसे हो न सका ।
रूह से अपनी जुदा । सोचा कभी कर दूँ तुझे । बन हया चमका जो । नजरों में मेरी छुप न सका ।
चाह बन करके मेरी । ये चाह कभी रह न सकी । गुफ्तगू तुझसे की । जो चाहा छुपे छुप न सकी ।
तेरे सीने पे सिर रखकर । कभी मैं रो न सकी । तेरे आगोश में आकर । कभी मैं सो न सकी ।
आज है वो रात । मैं हूँ कहाँ । और तू है कहाँ । बदले हालात हैं और । बदल गए दोनों जहाँ ।
साथ न रह के भी तू । साथ मेरे मेरे सनम । दो बदन हम नहीं । एक रूह हैं । एक जान हैं हम ।
सभी विवरण पूनम जी के ब्लाग से साभार । ब्लाग पर जाने हेतु क्लिक कीजिये ।
पूनम जी अपने बारे में कहती हैं - पुराने पन्नों से मेरी हर कविता हर नज़्म तुम्हीं से शुरू और तुम पर ही ख़त्म होती है । कभी मेरे ख्यालों से दूर जाओ । तो कुछ और भी लिखने की सोचूँ ? जब मैंने लिखना शुरू किया । यही पहली कुछ लाइनें थी मेरी । तब नहीं सोचा कि इतना कुछ लिखने लगूँगी । तबसे अब तक अच्छा बुरा जो लिखा । प्रत्यक्ष और परोक्ष में वो मौजूद है । मेरे साथ । मेरे पास । उसे हर समय । हर जगह महसूस किया । अच्छे बुरे हर समय वो मेरे साथ था । तब भी । और आज भी । ज़िन्दगी में जो भी पाया । उसी ने दिया । आज जैसी भी हूँ । पूरी की पूरी उसी की creation हूँ । कच्ची उम्र की रचनाएँ शायद कच्ची ही थीं । जो उमृ समय और परिस्थितियों के साथ परिपक्व होती गईं । शायद ये मेरा अपना ख्याल हो सकता है । पर सबकी सब मेरे दिल के बहुत नज़दीक हैं । हकीकत की तरह । जिस दिन लिखना शुरू किया था । उस दिन भी बस यूँ ही लिखना शुरू कर दिया था । जब ब्लॉग पर लिखना शुरू किया । उस दिन भी बस यूँ ही लिखना शुरू कर दिया । शायद इसीलिए..इनका ब्लाग - तुम्हारे लिये
और ये पढिये । पूनम जी की कविता -
ढाये चाहत ने सितम हम पे हैं । कुछ इस तरह । रोते रोते भी हँस दिए हैं । हम कुछ इस तरह ।
चाहा कि तुझको छुपा लूँ मैं । कहीं इस तरह । मैं ही मैं देखूं । जमाने से छुपाकर इस तरह ।
तू था खुशबू की तरह बिखरा । जो फिर छुप न सका । बस मेरे दिल में रहे । ये भी तो तुझसे हो न सका ।
रूह से अपनी जुदा । सोचा कभी कर दूँ तुझे । बन हया चमका जो । नजरों में मेरी छुप न सका ।
चाह बन करके मेरी । ये चाह कभी रह न सकी । गुफ्तगू तुझसे की । जो चाहा छुपे छुप न सकी ।
तेरे सीने पे सिर रखकर । कभी मैं रो न सकी । तेरे आगोश में आकर । कभी मैं सो न सकी ।
आज है वो रात । मैं हूँ कहाँ । और तू है कहाँ । बदले हालात हैं और । बदल गए दोनों जहाँ ।
साथ न रह के भी तू । साथ मेरे मेरे सनम । दो बदन हम नहीं । एक रूह हैं । एक जान हैं हम ।
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