ब्लागर परिचय श्रंखला में आज आपका परिचय श्री विश्वजीत सिंह जी से होगा ।
सच की 1 छोटी सी चिंगारी झूठ के बडे से बडे पहाड को नष्ट कर देती हैं । यहाँ सच से सम्बन्धित पोस्ट रखी जायेंगी । अतः यह स्थान होगा सच के लिए । यदि आपके हृदय में सच की अग्नि प्रज्वलित हो रही है । और आप सच को निर्भीकता पूर्वक स्वीकार करने की शक्ति रखते हैं । जी हाँ ! इनका नाम है - विश्वजीत सिंह । विश्वजीत जी अपने Introduction में कहते हैं - राष्ट्र धर्म से बडा कोई धर्म नहीं होता । राष्ट्र मेरा धर्म । स्वाध्याय मेरी शिक्षा । और कर्म मेरी पूजा है । मैं जीवन में - सत्य । प्रेम । करूणा । शान्ति । अहिंसा । शौर्य और मानवता पसन्द करता हूँ । स्वदेशी और मातृभाषा का प्रबल समर्थक हूँ । तथा व्यक्तिगत जीवन में भी इसी विचार का अनुकरण करने का प्रयास करता हूँ । सम्प्रति - साम्प्रदायिकता एवं भृष्टाचार के उन्मूलन तथा भारतीय संस्कृति व मानवाधिकार के संरक्षण हेतु प्रगतिशील देश भक्तों के राष्ट्र व्यापी संगठन " साम्प्रदायिकता विरोधी मोर्चा " में राष्ट्रीय महा सचिव हूँ । तथा " अहिंसा सामाजिक व आध्यात्मिक आंदोलन " का संस्थापक अध्यक्ष हूँ । मेरा कार्य ही मेरा परिचय है । और इनका ब्लाग है - sach सच । नाम पर क्लिक करें ।
आगे विश्वजीत जी कहते हैं - मेरे लिए ब्लाग लेखन समय बिताने का साधन न होकर सत्य की अभिव्यक्ति का माध्यम है । और इनकी Industry है - Publishing और इनका Occupation है - Agriculture और इनकी Location है - शिमला । हिमाचल प्रदेश India और इनका Interests है -All type book redding, New classic science, Writing for occasional and historical events, Ayurveda, Yoga, Sanskrit Language और इनकी Favourite Films हैं - क्रांति । अर्जुन पंडित । क्रांतिवीर । The Legent Of
BhagatSingh गदर । पूरब और पश्चिम । शोले । और इनका Favourite Music है - Classical Music, Suffi Music और इनकी Favourite Books हैं - गीता Mopala आनन्दमठ । वेदांत दर्शन । चाणक्य नीति । अग्नि की उङान Art Of Living
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और ये हैं । इनके ब्लाग से कुछ रचनायें ।
रास बिहारी बोस का पत्र सुभाष के नाम - मेरे प्रिय सुभाष बाबू ! भारत के समाचार पत्र पाकर मुझे यह सुखद समाचार मिला है कि आगामी कांग्रेस सत्र के लिए आप अध्यक्ष चुने गये हैं । मैं हार्दिक शुभकामनायें भेजता हूँ । अंग्रेजों के भारत पर कब्जा करने में कुछ हद तक बंगाली भी जिम्मेदार थे । अतः मेरे विचार से बंगालियों का यह मूल कर्तव्य बनता है कि वे भारत को आजादी दिलाने में अधिक बलिदान करें ।
देश को सही दिशा में ले जाने के लिए आज कांग्रेस को क्रांतिकारी मानसिकता से काम लेना होगा । इस समय यह 1 विकासशील संस्था है - इसे विशुद्ध क्रांतिकारी संस्था बनाना होगा । जब पूरा शरीर दूषित हो तो अंगों पर दवाई लगाने से कोई लाभ नहीं होता ।
अहिंसा की अंधी वंदना का विरोध होना चाहिये । और मत परिवर्तन होना चाहिये । हमें हिंसा अथवा अहिंसा हर संभव तरीके से अपना लक्ष्य प्राप्त करना चाहिये । अहिंसक वातावरण भारतीय पुरूषों को स्त्रियोचित बना रहा है । वर्तमान विश्व में कोई भी राष्ट्र यदि विश्व में आत्म सम्मान के साथ जीना चाहता है । तो उसे अहिंसावादी दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिये । हमारी कठिनाई यह है कि - हमारे कानों में बहुत लम्बे समय से अन्य बातें भर दी गयी हैं । वह विचार पूरी तरह निकाल दिया जाना चाहिये ।
मुसलमान कहते हैं - पीर । अमीर । तथा फकीर । ताकि व्यक्ति दुनिया का सामना कर सके । यदि आप फकीर नहीं बन पाते । तो अमीर बन जायें । और जीवन को जियें । यदि आप अमीर नहीं बन सकते । तो पीर बन जाईये । इसका अर्थ है कि - काफिर को मार डालो । और विश्व के लोग तुम्हें या तुम्हारी कब्र को ईश्वर की भांति पूजेंगे ।
शक्ति आज की वास्तविक आवश्यकता है । इस विषय पर आपको अपनी पूरी शक्ति लगानी चाहिये । डॉ. मुंजे ने अपना मिलेटरी स्कूल स्थापित करके कांग्रेस की अपेक्षा अधिक कार्य किया है । भारतियों को पहले सैनिक बनाया जाना चाहिये । उन्हें अधिकार हो कि वे शस्त्र लेकर चल सकें । अगला महत्वपूर्ण कार्य हिन्दू भाई चारा है । भारत में पैदा हुआ मुस्लिम भी हिन्दू है । तुर्की । पर्शिया । अफगानिस्तान आदि के मुसलमानों से उनकी इबादत पद्धति भिन्न है । हिन्दुत्व इतना कैथोलिक तो है कि इस्लाम को हिन्दुत्व में समाहित कर ले । जैसा कि पहले भी हो चुका है । सभी भारतीय हिन्दू हैं । हालांकि वे विभिन्न धर्मो में विश्वास कर सकते है । जैसे कि जापान के सभी लोग जापानी है । चाहे वे बौद्ध हों । या ईसाई ।
हमें यह मालूम नहीं है कि - जीवन कैसे जिया जाये । और जीवन का बलिदान कैसे किया जाये ? यही मुख्य कठिनाई है । इस संदर्भ में हमें जापानियों का अनुसरण करना चाहिये । वे अपने देश के लिए हजारों की संख्या में मरने को तैयार है । यही जागृति हममें भी आनी चाहिये । हमें यह जान लेना चाहिये कि - मृत्यु को कैसे गले लगाया जा सकता है । भारत की स्वतंत्रता की समस्या तो स्वतः हल हो जायेगी ।
आपका शुभाकांक्षी । रास बिहारी बोस । 25-1-38 टोकियो
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नेहरू ने नेताजी को ब्रिटेन का युद्ध अपराधी कहा था - जवाहर लाल नेहरू ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली को पत्र लिख कर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को ब्रिटेन का युद्ध अपराधी बताया था । और रूस द्वारा उन्हें पनाह देने को द्रोह और विश्वासघात करार दिया था ।
नेहरू के इस पत्र को विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमलेंदु गुहा ने अपनी पुस्तक - नेताजी सुभाष आइडियो लाजी एंड डाक्ट्रीन .. में प्रकाशित किया है । लेकिन पुस्तक का विमोचन करते हुए पूर्व राष्ट्रपति आर. वेंकटरामन ने पुस्तक में उद्धत इस पत्र पर असहमति जताई थी । उनका मानना था कि - नेहरू की ऐसी भाषा नहीं है । और उन्हें लगता है कि उन्होंने ऐसा पत्र नहीं लिखा होगा । श्री वेंकटरमण ने इस पर भी
सवाल उठाया था कि - नेहरू का पत्र प्रधानमंत्री के लैटर पैड पर नहीं है । और जब भी कोई प्रधानमंत्री किसी दूसरे देश के प्रधानमंत्री को पत्र भेजता है । तो अधिकारिक रूप से अपने लैटर पैड पर लिखता है ।
नार्वे में ओस्लो स्थित " इंस्टीट्यूट फ़ार एल्टरनेटिव डेवलपमेंट रिसर्च " के निदेशक और इस पुस्तक के लेखक श्री अमलेंदु गुहा ने श्री वंकेटरमन की आपत्ति का उत्तर जोरदार तरीके से देते हुए कहा कि नेहरू ने वास्तव में ऐसा पत्र लिखा था । और यह पत्र लंदन के ब्रिटिश अभिलेखागार में सुरक्षित है । उन्होंने कहा कि - नेहरू ने यह पत्र सादे कागज पर उस समय लिखा था । जब वह प्रधानमंत्री थे ही नहीं । और इसलिए यह सरकारी रिकार्ड में नहीं है ।
विश्व के 6 राष्ट्राध्यक्षों के आर्थिक सलाहकार रह चुके प्रसिद्ध अर्थशास्त्री श्री अमलेंदु गुहा द्वारा लिखित इस पुस्तक
में प्रकाशित पत्र के अनुसार पंडित नेहरू ने लिखा कि - नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को रूस ने अपने यहां प्रवेश करने की इजाजत देकर द्रोह और विश्वासघात किया है । पत्र के अनुसार उन्होंने लिखा था कि रूस चूंकि ब्रिटिश । अमेरिकियों का मित्र राष्ट्र है । इसलिए रूस को ऐसा नहीं करना चाहिए । पत्र में लिखा था कि इस पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए ।
श्री गुहा ने पुस्तक की प्रस्तावना में लिखा है कि पंडित नेहरू के मन में नेताजी के लिए व्यक्तिगत नापसंदगी थी । और वह ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को नेताजी के बारे में गोपनीय सूचना देने में नहीं हिचके । प्रस्तावना में कहा गया है कि पंडित नेहरू ने यह पत्र डिक्टेट कराया था । आसफ अली के विश्वस्त स्टेनो शामलाल ने अपने हलफनामे में इसकी पुष्टि भी की है । श्री गुहा ने कहा कि उन्होंने जो लिखा है । उस पर वह कायम है ।
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राजद्रोही शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी - 1924 में ब्रिटेन के युवराज प्रिंस आफ वेल्स भारत आए थे । तो भारत की आम जनता ने उनके भारत आगमन का बहिष्कार कर दिया । ब्रिटिश सरकार परेशान हो गई । क्योंकि वो चाहती थी कि भारत की जनता श्रद्धा भक्ति के साथ युवराज का आदर सम्मान करे । ब्रिटिश सरकार यह भली भाति जानती थी कि भारत की धर्म परायण जनता अपने धर्माचार्यो के आदेशों का पालन करने को हमेशा तत्पर रहती है । अतः ब्रिटिश सरकार की ओर से पत्र द्वारा पुरी के शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ से अनुरोध किया गया कि वह राजा को भगवान विष्णु का प्रतिनिधि मानने के हिन्दू धर्म के सिद्धांत के अनुसार राजकुमार वेल्स को सम्मान देने का आदेश अपने अनुयायियों को दें । शंकराचार्य जी ने पत्र पढ़ा । तथा निर्भय होकर उत्तर दिया- अंग्रेज विदेशी लुटेरे हैं । वे प्रजा पालक नहीं हैं । जिन्होंने हमारी मातृभूमि को छल कपट से गुलाम बना रखा है । उन्हें विष्णु का प्रतिनिधि कैसे घोषित किया जा सकता है ? साम्राज्यवादी ब्रिटिश शासन उनके उत्तर से क्रोधित हो गया । शंकराचार्य को कारागार में बंद करके उन पर राजद्रोह का अभियोग चलाया गया । लेकिन शंकराचार्य अपनी राष्ट्र भक्ति कर अडिग रहे ।
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कब तक रहेगा - इंडिया । दैट इज भारत - किसी भारतीय भाषी से हमारे देश का नाम पूछिये । तो वह कहेगा - भारत । मैं भी कहूंगा - भारत । लेकिन किसी अंग्रेजीदां से पूछ कर देखिए । वह कहेगा - INDIA । लेकिन क्या किसी देश के 2-2 नाम होते हैं ? अमेरिका के कितने नाम हैं ? और ब्रिटेन के ? क्या श्रीलंका का कोई अंग्रेजी नाम भी है ? स्वाधीनता से पूर्व श्रीलंका को " सीलोन " तथा म्यांमार को " बर्मा " के नाम से जाना जाता था । लेकिन जब उनमें राष्ट्रीयता का बोध जागा । तो उन्होंने अपना नाम बदल लिया । आज उन्हें उनके पूर्व नामों से कोई नहीं जानता है । न लिखता है । और न बोलता है । और अब सारी दुनियां उन्हें श्रीलंका और म्यांमार के नाम से जानती है । यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि - हम अभी भी 2-2 नाम ढो रहे हैं । हम अपने को भारत मानते हैं । लेकिन दुनियां हमें INDIA कहती है । और भारत सरकार आज भी अपने को GOV OF INDIA लिखती है ।
ब्रिटिश शासकों के चंगुल से तो INDIA मुक्त हो गया । किन्तु तब तक यह आर्यावर्त तो किसी तरह रह ही नहीं गया था । भारतवर्ष अथवा हिन्दुस्तान भी नहीं बन पाया । क्योंकि सत्ता हस्तांतरण के समय हमारे स्वदेशी शासन का सूत्र संचालन जिन तथाकथित कर्णधारों ने येन केन प्रकारेण अपने हाथों में लिया । वे भारतीय
संस्कृति । भाषा । साहित्य । धर्म । दर्शन व परंपरा । विज्ञान । इतिहास और जीवन मूल्यों के प्रति हीन भावना की मनोग्रन्थि से ग्रस्त थे । वे केवल नाम और शरीर से भारतीय थे । उन्होंने 1 ऐसे समाज के निर्माण की नीव डाली । जो भारतीयता से 0 थी । और इस देश को INDIA । दैट इज भारत बना दिया । पिछले 65 वर्षो में उसमें से भी भारत तो लुप्त ही होता जा रहा है । क्योंकि INDIA उसको पूर्ण रूप से निगलता जा रहा है । शकों । हूणों । तुर्को । मुगलों । अरबों । अफगानों के बर्बर जेहादी आक्रमण और शासन जिसका स्वरूप विकृत नहीं कर सके । उसे केवल 200 वर्षो की ब्रिटिश शासकों की कुसंगति और शिक्षा पद्धति ने आपाद मस्तक रूपांतरित कर दिया ।
स्वतंत्रा प्राप्ति से पूर्व जो युवा पीढ़ी देश में थी । उसकी सारी शक्ति संचित रूप से 1 महान लक्ष्य को समर्पित थी । वह लक्ष्य था - पराधीनता की बेड़ियों को तोड़ कर देश को विदेशियों की दासता से मुक्त करना । अपनी सारी शक्ति से वह पीढ़ी अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये दृढ़ संकल्प थी । और अंततः वह सफल भी हो गई । किन्तु विडम्बना यह है कि युवा पीढ़ी के उस बलिदान का श्रेय तत्कालीन स्वार्थान्ध किन्तु चतुर नेताओं ने अपनी झोली में समेट कर पूरी पीढ़ी को घोर चाटुकारिता नपुंसकता के पर्यायवाची गीत ' दे दी । हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल.. की लय पर नचा दिया । न केवल इतना अपितु तिल तिल कर अपने प्राणों की आहुति देने वाले महाराणा प्रताप । छत्रपति शिवाजी । गुरू गोविन्द सिंह । गोकुल सिंह । रामप्रसाद बिस्मिल । भगत सिंह । पं. नाथूराम गोडसे । मदन लाल ढिंगरा । वीर सावरकर जैसे वीरों की नितांत अवहेलना कर उन्हें लांक्षित किया ।
स्वाधीनता प्राप्ति से पूर्व और पश्चात की स्थिति का विश्लेषण करने पर जो दुर्भाग्य पूर्ण तथ्य प्रकट होता है । वह यह है कि पहले तो अभारतीय अर्थात अहिन्दू ही भारत तथा भारतीयता को नष्ट करने में संलग्न थे । किन्तु
आज भारतीय और हिन्दुओं के द्वारा ही भारतीयता तथा हिन्दुत्व को नष्ट करने का कार्य किया जा रहा है । भारतीय जीवन पद्धति के 16 संस्कारों में से अधिकांश तो भुला दिये गए हैं । शेष भी शीघ्र भुला दिये जाने की स्थिति में है । विवाह जैसे महत्वपूर्ण संस्कार पंजीयक के कार्यालय में सम्पन्न होने लगे हैं । वैदिक विधि से सम्पन्न होने वाले विवाहों में भी केवल परिपाटी का ही परिचलन किया जाने लगा है । जन्म दिन तो बहुत पहले से ही बर्थडे के रंग में रंग गए हैं । जिनकी जीवन ज्योति को जलाया नहीं । बल्कि बुझाया जाता है । पारिवारिक संबोधन और संबंध - मम्मी । डैडी । आंटी । अंकल । मदर । फादर । कजन । बृदर आदि में परिवर्तित हो गए है । सामाजिक समारोह । संस्कारों आदि के अवसर पर निमंत्रण पत्रों को संस्कृत । हिन्दी अथवा अन्य भारतीय भाषाओं में मुद्रित कराना । उनकी दृष्टि में स्वयं को पिछड़ा सिद्ध करना है ।
सत्ता लोलुप अधिकांश नेता सत्ता हस्तांतरित होते ही देश प्रेम को भुल कर जो कुछ त्याग तप करने का नाटक उन्होंने किया था । उससे सहस्र गुणा अधिक समेटने के लिए आतुर हो उठे । उभरती हुई युवा पीढ़ी और देश के पुर्ननिर्माण की बात भूल कर वे अपने निर्माण में जुट गए । पाश्चात्य सभ्यता में आकण्ठ डूबे होने के कारण वे
अपने तुच्छ स्वार्थो की पूर्ति और तुष्टि के लिये उन्होंने भावी भारत की निर्मात्री पीढ़ी के भविष्य के साथ साथ देश के भविष्य पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया ।
ऐसी स्थिति में अब वर्तमान पीढ़ी को ही भारत को INDIA के चंगुल से मुक्त कर उसे पुन विश्व की महा शक्ति बनाने व जगदगुरू पद पर प्रतिष्ठित करने का दायित्व लेना होगा । इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये भारतीय शिक्षा प्रणाली को पुर्नजीवित करना होगा । संविधान में संसोधन करा INDIA शब्द की बजाय भारत का प्रावधान कराना होगा । तथा देश की किशोर व युवा पीढ़ी को राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना के साथ जोड़ना होगा ।
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प्रिय राष्ट्र प्रेमियों ! आपको यह जानकर हर्ष होगा कि - वैदिक राष्ट्र वादी चिंतन के अनुसार साम्प्रदायिकता एवं भ्रष्टाचार के उन्मूलन तथा भारतीय संस्कृति व मानवाधिकार के संरक्षण हेतु प्रगतिशील देश भक्तों के राष्ट्रव्यापी संगठन ' साम्प्रदायिकता विरोधी मोर्चा ( रजिस्टर्ड ) द्वारा भारतीय संस्कृति के संरक्षण व सम्वर्धन हेतु देश के संविधान से अपमान जनक शब्द INDIA को हटाकर भारत की पुर्नस्थापना हेतु जन आन्दोलन तथा गौ गुरूकुल परियोजना का प्रारम्भ किया जा
रहा है । सहयोगी राष्ट्र भक्त बंधु संस्था के ईमेल svmbharat@gmail.com पर या हमारे फोन नम्बर 0 94124 58954 पर काल कर अधिक जानकारी ले सकते है । वन्दे मातरम । जय माँ भारती । आपका - विश्वजीत सिंह ' अनंत '
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वैदिक दण्ड विधान और लोकपाल विधेयक - वेद के अनुसार जिस गलती को 1 आम आदमी करता है । और उसी गलती को प्रथम श्रेणी का आदमी करता है । तो आम आदमी के मुकाबले पर प्रथम श्रेणी के आदमी को 8 गुणा दण्ड अधिक मिलना चाहिये । जैसे जिस समय द्वापर काल ( अबसे लगभग 5 200 वर्ष पूर्ण ) में युवराज युधिष्ठिर व युवराज दुर्योधन में से राजा चुनने हेतु पात्रता परीक्षा का आयोजन हुआ । तो प्रश्न रखा गया था कि - 4 मानव हैं । उनमें 1 ब्राह्मण । 1 क्षत्रिय । 1 वैश्य । और 1 शुद्र है । उन्होंने 1 निरपराध मानव की हत्या कर दी है । तो उनको दण्ड देने की प्रक्रिया किस प्रकार की जाये । इसके उत्तर हेतु सर्वप्रथम दुर्योधन को आमंत्रित किया गया । दुर्योधन ने उत्तर में कहा कि - चारों को समान रूप में दण्ड दिया जाये । फिर युधिष्ठिर को आमंत्रित किया गया । तो वैदिक दण्ड विधान को जानने वाले युधिष्ठिर ने अपने उत्तर में कहा कि - इन चारों अपराधियों में से शुद्र को 4 वर्ष का दण्ड देना चाहिये । क्योंकि इसका ज्ञान कम है । फिर वैश्य के प्रति कहा कि यह शुद्र से अधिक ज्ञानवान है । तथा व्यापार । कृषि व पशु पालन में कुशल है । इसको 8 वर्ष का दण्ड देना चाहिये । फिर
कृम क्षत्रिय का आता है । इसमें युधिष्ठिर ने कहा कि - क्षत्रिय पर जनता की रक्षा का दायित्व होता है । इसने अपने दायित्व का उलंघन कर अनुचित कदम उठाया है । इसलिये इसको 16 वर्ष का दण्ड देना चाहिये । फिर कृम ब्राह्मण का आता है । इसमें युधिष्ठिर ने कहा कि - ब्राह्मण का कार्य सर्व समाज को शिक्षा देना है । ब्राह्मण गुरू होता है । और जैसा गुरू होता है । वैसा ही शिष्य अर्थात समाज बनता है । अतः इस ब्राह्मण को 32 वर्ष का दण्ड देना चाहिये । इसी प्रकार मंत्री को 1 000 गुणा । और राजा को सबसे अधिक दण्ड देना चाहिये ।
इसी प्रकार लोकपाल में दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिये । चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी को प्रारंभिक दण्ड दिया जाना चाहिये । तथा प्रथम श्रेणी के कर्मचारीयों ( I A S व राजनेताओं आदि ) को अधिक दण्ड दिया जाना चाहिये । जो जितने महत्वपूर्ण पद पर है । उसको उतना अधिक दण्ड दिना चाहिये । वर्तमान भारत में प्रधानमंत्री की राजा के समान सर्वोच्च मान्यता है । अगर वो कोई गलत कार्य करता है । तो वो सबसे अधिक दण्ड पाने का अधिकारी है । क्योंकि कहा गया है कि - यथा
राजा तथैव प्रजा । इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री को स्वयं लोकपाल विधेयक के दायरे में आना स्वीकार कर लेना चाहिये ।
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बाबर की मजार बनाम बाबरी मस्जिद - जब इस्लाम अफगानिस्तान में पहुँचा । तो अफगानिस्तान के लोग अरब साम्राज्यवादी शक्तियों द्वार छल प्रपंच से किये गये युद्ध में हार गये । लेकिन उन्होंने अपने पूर्वजों को विस्मृत नहीं किया था । आज जो अफगानिस्तान में तालिबान है । सारे बुद्ध की प्रतिमा तोड़ रहे हैं । ये तालिबान तो वैश्विक अरब साम्राज्यवादी मानसिकता और पाकिस्तान से प्रशिक्षित होकर कट्टरपंथी बन गये हैं । वहां के अफगानों में इतने दिनों तक यह नहीं था । लेकिन वहाँ का अफगान क्या सोचता है ? मोहनदास गांधी की पुत्र वधु ( मोहनदास गांधी के दत्तक पुत्र फिरोज खान गांधी की पत्नी । ) श्रीमती इन्दिरा गांधी जब अफगानिस्तान गयी । तो वहाँ पर उनको लगा कि - यहाँ बाबर की मजार है । उन्होंने कहा कि इतना बड़ा सम्राट हुआ । साम्राज्य संस्थापक हुआ । चलो उसकी मजार पर पुष्प चक्र चढ़ाना चाहिए । उन्होंने कहा - मैं बाबर की मजार पर पुष्प
चढ़ाना चाहती हूँ । अफगानिस्तान की सरकार बड़ी घबरायी । कभी सोचा भी नहीं था । कोई आकर पुष्प चक्र चढ़ायेगा । पता लगाया । तो 1 कब्रिस्तान में 1 कोने में उसकी मजार थी । इतनी टूटी फूटी अवस्था में थी कि झाड़ झंखाड़ खड़े हो गये थे । भारत की प्रधानमंत्री आने वाली हैं । इसलिए उन्होंने उसे साफ करके देखने लायक बनाया । प्रधानमंत्री गयीं । वही पुष्प चक्र चढ़ाया । जब जाने लगी । तो उनके साथ 1 अधिकारी था । उसने वहाँ के कब्रिस्तान के प्रमुख से पूछा - बाबर इतने बड़े 1 साम्राज्य का संस्थापक हुआ । और उसकी मजार इतनी टूटी फूटी अवस्था में ? तो उसका उत्तर था - वह कौन अफगान था । वह अफगान नहीं था । तो हम उसकी चिन्ता क्यों करें ? अफगानिस्तान का मुसलमान । मुसलमान होते हुए भी बाबर को अपना नहीं समझता । दुर्भाग्य की
बात है कि - अपने देश भारत में मुसलमानों का 1 वर्ग बाबर को अपना पुरखा मानता है । और उनके वोटों के लालची राजनीतिज्ञ भी बाबर को अपना पुरखा मानते हैं । इसलिये उसने राम मन्दिर तोड़कर वहाँ पर जो मस्जिद रूपी ढ़ाँचा बनाया था । उसको बाबरी मस्जिद कहते है ।
Email : vishwajeetsingh1008@gmail.com
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