मेरी मित्र राधिका । जो वर्षों से मुझे जानती है । ने कहा । दिव्या तुम बहुत complicated हो ।
मैंने सादगी से कहा । हाँ हूँ । तुम्हारे लिए । क्यूंकि जब प्रश्न हल नहीं हो पाता । तो कठिन कहलाता है । जब अंगूर अप्राप्य हो जाता है । तो खट्टा कहलाता है । और जब कोई किसी की सादगी को समझ पाने में असफल रहता है । तो उसे complicated कहता है ।
राधिका कौन है ?
राधिका कोई एक चरित्र नहीं । बल्कि एक symbolic पात्र है । मेरा किसी से भी जो संवाद होता है । वो राधिका के नाम से लिखती हूँ । और एक ही लेख में बहुत से भिन्नभिन्न व्यक्तियों से हुआ संवाद राधिका के नाम से ही कहा गया है । इसलिए कोई भी स्वयँ को राधिका न समझे । हाँ इसे पढने के बाद आपको अपनी झलक कहीं कहीं राधिका में अवश्य मिलेगी ।
दिव्या कौन है ?
दिव्या एक स्त्री है । जो स्वयँ को सुधारना चाहती है । और अपने साथ साथ पूरे समाज को सुधारना चाहती है । वो एक ऐसी दुनिया की कल्पना करती है । जहाँ स्त्री पुरुष समान अधिकार और सम्मान के साथ जिए । एक समाज जो भृष्टाचार से मुक्त हो । एक परिवेश जिसमें सभी संवेदनशील हो । द्वेषमुक्त हों । तथा अपनापन हो ।
ब्लागिंग से बहुत कुछ सीखा है । इसके कारण मेरे मस्तिष्क के अन्दर नया वसंत आ गया है । रंग बिरंगे फूलों की तरह अनेक सतरंगी विचार आते हैं । और उस पर पाठकों के विचार पूरे उपवन की सुन्दरता को द्विगुणित कर देते हैं ।
लोगों का व्यक्तित्व पढना मेरा शौक भी है । जिसके लिए ब्लागिंग एक सार्थक माध्यम है ।
जीवन एक सफ़र है । जिसमें मुसाफिर मिलते हैं । और एक मकाम आने पर बिछड़ जाते हैं । कारवां बनता और बिखरता है । इसी प्रक्रिया में मोहमाया से गुज़रते हुए एक दिन ये प्राण उस अनंत यात्रा पर निकल जायेंगे ।
एक बार मैंने राधिका से पूछा । तुम मुझे पत्र लिखती हो । मेरे लेखों का इंतज़ार करती हो । शिद्दत से पढ़ती हो । मुझसे कहती हो । मेरा सम्मान भी करती हो । और प्यार भी करती हो । फिर क्यूँ कतराती हो । अपने विचार रखने से मेरे लेखों पर ? राधिका ने जवाब नहीं दिया ।
मैंने राधिका से कहा । Beauty lies in the eyes of beholder । एक बार प्यार से तो देखो । सादगी भी दिखेगी ।
साभार । डा. दिव्या जी के ब्लाग " जील " से । आपके उत्तम विचारों के लिये धन्यवाद दिव्या जी ।
मैंने सादगी से कहा । हाँ हूँ । तुम्हारे लिए । क्यूंकि जब प्रश्न हल नहीं हो पाता । तो कठिन कहलाता है । जब अंगूर अप्राप्य हो जाता है । तो खट्टा कहलाता है । और जब कोई किसी की सादगी को समझ पाने में असफल रहता है । तो उसे complicated कहता है ।
राधिका कौन है ?
राधिका कोई एक चरित्र नहीं । बल्कि एक symbolic पात्र है । मेरा किसी से भी जो संवाद होता है । वो राधिका के नाम से लिखती हूँ । और एक ही लेख में बहुत से भिन्नभिन्न व्यक्तियों से हुआ संवाद राधिका के नाम से ही कहा गया है । इसलिए कोई भी स्वयँ को राधिका न समझे । हाँ इसे पढने के बाद आपको अपनी झलक कहीं कहीं राधिका में अवश्य मिलेगी ।
दिव्या कौन है ?
दिव्या एक स्त्री है । जो स्वयँ को सुधारना चाहती है । और अपने साथ साथ पूरे समाज को सुधारना चाहती है । वो एक ऐसी दुनिया की कल्पना करती है । जहाँ स्त्री पुरुष समान अधिकार और सम्मान के साथ जिए । एक समाज जो भृष्टाचार से मुक्त हो । एक परिवेश जिसमें सभी संवेदनशील हो । द्वेषमुक्त हों । तथा अपनापन हो ।
वो एक मुखर स्वीकारात्मक व्यक्तित्व की है । जो अपने सामने आई समस्याओं को no-nonsense तरीके से सुलझाने का प्रयास करती है । वो एक सामान्य व्यक्ति की तरह कुछ कमजोरियों और कुछ अच्छाइयों का मिश्रण है । जो अपने मन के द्वन्द को स्वयँ तक ही सीमित रखती है । और उनके हल ढूँढने के बाद समाजोपयोगी रूप में प्रस्तुत करती है । उस सहानुभूति पसंद नहीं है । क्यूंकि वो उसे कमज़ोर करती है । और कमज़ोर व्यक्तित्व समाजोपयोगी नहीं रह जाते । वो अपने चारों तरफ एक कठोर आवरण बुनकर रखती है । जो अभेद्य कवच की तरह उसकी रक्षा करते हैं । वो अपने मित्रों के साथ कठोरता से straight forward तरीके से पेश आती है । क्यूंकि वो उन्हें भी कमज़ोर नहीं पड़ने देना चाहती । उन्हें strong देखना चाहती है । मित्रों की strength दिव्या की भी ताकत है ।
दिव्या अन्दर से एक कोमल और भावुक व्यक्तित्व की धनी है । लेकिन अपनी भावनाओं का प्रदर्शन नहीं करती । क्यूंकि उसे लगता है कि इस विनाशशील सृष्टि में भावनाओं का कदृ करने वाले विरले ही हैं । कोई चार दिन आपको समझेगा । लेकिन फिर मानवीय दुर्गुण । जैसे पूर्वाग्रह । ईर्ष्या । अहंकार । द्वेष आदि उस पर हावी हो जायेंगे । जो परस्पर सम्बन्धों में दूरी लाते हैं । इसलिए बेहतर है कि हर किसी के साथ एक निश्चित दूरी पर ही रहा जाए ।
आप अच्छे थे पहले अजनबी की तरह । मुझसे मिलते तो थे अपनों की तरह ।
अपना बनकर तो आप बहुत दूर हो गए । अब कुशलक्षेम भी होती है गैरों की तरह ।
एक बार राधिका ने मुझसे कहा । मैंने मित्रों से शर्त लगाई है । तुम्हारी ब्लागिंग छह महीने से ज्यादा नहीं चलेगी । मैंने कहा । हर चीज़ का अंत तयशुदा है । मैं हारूंगी । तो तुम्हारी जीत का जश्न मनाऊँगी ।
कल राधिका ने मुझसे पूछा । तुम ब्लॉगिंग क्यूँ करती हो ? पैसा भी नहीं मिलता । और समय की बर्बादी करती हो । तुम जो कर रही हो । उसे समझने वाले भी बहुत कम हैं ।
मैंने कहा । आज तक समाज ने मुझे बहुत कुछ दिया है । अब मेरी बारी है लौटाने की । मेरा भी छोटा सा योगदान होना चाहिए । उस समाज को जिसमें मैं रहती हूँ । social service
मेरा समय किसी सकारात्मक जगह उपयोग हो । इसलिए लिखती हूँ ।
लिखने के बहाने पढ़ती भी हूँ । जिससे मेरा खुद का ज्ञानार्जन होता है ।
किसी विषय पर दूसरों से सीखती हूँ । और कुछ विषयों पर लगता है । मैं योगदान कर सकती हूँ । कोई भी अपने आप में सम्पूर्ण नहीं है ।
संसार में हमारा जन्म किसी विशेष प्रयोजन से होता है । उसे पहचानना है । और उसे अंजाम देना है । हर कार्य का पुरस्कार धन नहीं होता । कुछ कार्य अपने आत्मिक संतोष के लिए निस्वार्थ भाव से भी किया जाता है ।दिव्या अन्दर से एक कोमल और भावुक व्यक्तित्व की धनी है । लेकिन अपनी भावनाओं का प्रदर्शन नहीं करती । क्यूंकि उसे लगता है कि इस विनाशशील सृष्टि में भावनाओं का कदृ करने वाले विरले ही हैं । कोई चार दिन आपको समझेगा । लेकिन फिर मानवीय दुर्गुण । जैसे पूर्वाग्रह । ईर्ष्या । अहंकार । द्वेष आदि उस पर हावी हो जायेंगे । जो परस्पर सम्बन्धों में दूरी लाते हैं । इसलिए बेहतर है कि हर किसी के साथ एक निश्चित दूरी पर ही रहा जाए ।
आप अच्छे थे पहले अजनबी की तरह । मुझसे मिलते तो थे अपनों की तरह ।
अपना बनकर तो आप बहुत दूर हो गए । अब कुशलक्षेम भी होती है गैरों की तरह ।
एक बार राधिका ने मुझसे कहा । मैंने मित्रों से शर्त लगाई है । तुम्हारी ब्लागिंग छह महीने से ज्यादा नहीं चलेगी । मैंने कहा । हर चीज़ का अंत तयशुदा है । मैं हारूंगी । तो तुम्हारी जीत का जश्न मनाऊँगी ।
कल राधिका ने मुझसे पूछा । तुम ब्लॉगिंग क्यूँ करती हो ? पैसा भी नहीं मिलता । और समय की बर्बादी करती हो । तुम जो कर रही हो । उसे समझने वाले भी बहुत कम हैं ।
मैंने कहा । आज तक समाज ने मुझे बहुत कुछ दिया है । अब मेरी बारी है लौटाने की । मेरा भी छोटा सा योगदान होना चाहिए । उस समाज को जिसमें मैं रहती हूँ । social service
मेरा समय किसी सकारात्मक जगह उपयोग हो । इसलिए लिखती हूँ ।
लिखने के बहाने पढ़ती भी हूँ । जिससे मेरा खुद का ज्ञानार्जन होता है ।
किसी विषय पर दूसरों से सीखती हूँ । और कुछ विषयों पर लगता है । मैं योगदान कर सकती हूँ । कोई भी अपने आप में सम्पूर्ण नहीं है ।
ब्लागिंग से बहुत कुछ सीखा है । इसके कारण मेरे मस्तिष्क के अन्दर नया वसंत आ गया है । रंग बिरंगे फूलों की तरह अनेक सतरंगी विचार आते हैं । और उस पर पाठकों के विचार पूरे उपवन की सुन्दरता को द्विगुणित कर देते हैं ।
लोगों का व्यक्तित्व पढना मेरा शौक भी है । जिसके लिए ब्लागिंग एक सार्थक माध्यम है ।
जीवन एक सफ़र है । जिसमें मुसाफिर मिलते हैं । और एक मकाम आने पर बिछड़ जाते हैं । कारवां बनता और बिखरता है । इसी प्रक्रिया में मोहमाया से गुज़रते हुए एक दिन ये प्राण उस अनंत यात्रा पर निकल जायेंगे ।
एक बार मैंने राधिका से पूछा । तुम मुझे पत्र लिखती हो । मेरे लेखों का इंतज़ार करती हो । शिद्दत से पढ़ती हो । मुझसे कहती हो । मेरा सम्मान भी करती हो । और प्यार भी करती हो । फिर क्यूँ कतराती हो । अपने विचार रखने से मेरे लेखों पर ? राधिका ने जवाब नहीं दिया ।
मैंने राधिका से कहा । Beauty lies in the eyes of beholder । एक बार प्यार से तो देखो । सादगी भी दिखेगी ।
साभार । डा. दिव्या जी के ब्लाग " जील " से । आपके उत्तम विचारों के लिये धन्यवाद दिव्या जी ।