कब्ज CONSTIPATION का स्थायी इलाज । पुरानी कब्ज से हमेशा के लिये छुटकारा ।
( पढ़िए पढ़ाईये । शेयर कीजिये सबको बताईये । लाभ उठाईये )
कब्ज । मलावरोध । मलबन्ध । कोष्ठबद्धता और कांसटीपेशन इत्यादि नामों से जानी जाने वाली यह बीमारी आमाशय की स्वाभाविक परिवर्तन की वह अवस्था है । जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है । या मलक्रिया में कठिनाई होती है । मल कड़ा हो जाता है । उसकी आवृति घट जाती है । मल निष्कासन के समय बल का प्रयोग करना पड़ता है । पेट में गैस बनती है । मल विसर्जन कर्म या रिफ्लेक्स 24 घण्टे या 48 घण्टों में नियमित रुप से एक बार न हो । तो उसे मलावरोध कहा जाता है । सामान्य आवृति और आमाशय की गति व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है । एक सप्ताह में 3 से 12 बार मल निष्कासन की प्रक्रिया सामान्य मानी जाती है ।
कब्ज आज के समय का आम रोग है । यह रोग व्यक्ति के खानपान में असावधानी रखने का ही परिणाम है । अधिक मिर्च मसाले वाला भोजन करना । कब्ज बनाने वाले पदार्थों का सेवन करना । भोजन के बाद अधिक देर तक बैठना । तेल चिकनाई वाले पदार्थों का अधिक सेवन करना आदि । शारीरिक श्रम न करने से मल का त्याग अल्प मात्रा में तथा अनियमित होता है । कभी कभी अत्यधिक कुंथन करने अथवा घण्टों शौच के लिए बैठने पर थोड़ा बहुत बाहर आता है । किसी किसी को तो कई कई दिनों तक मल विसर्जन ही नहीं होता ।
कब्ज होने की असली जड़ भोजन का ठीक प्रकार से न पचना है । यदि पेट रोगों का घर होता है । तो आंत विषैले तत्वों की उत्पत्ति का स्थान होता है । यह बहुत से रोगों को जन्म देता है । जिनमें कब्ज प्रमुख है । कब्ज में अधिक मात्रा में मल का बड़ी आंत में जमा हो जाना । कब्ज के कारण अवरोही आंतों में तरल पदार्थो के अवशोषण में अधिक समय लगने के कारण उनमे शुष्क ( ठंडा ) व कठोर मल अधिक एकत्रित होने लगता है । कब्ज उत्पन्न होने का एक आम कारण है - जीवन में मल त्याग की साधारण क्रिया का रुकना ।
कब्ज पाचनशक्ति के कार्य में किसी बाधा उत्पन्न होने के कारण होता है । इसके होने पर शारीरिक व्यवस्था बिगड़ जाती है । जिसके कारण पेट के कई रोग उत्पन्न हो जाते हैं । इस रोग के कारण शरीर में कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है । शरीर के अन्दर ज़हर भी बन जाता है । जिसके कारण शरीर में अनेक बीमारी पैदा हो सकती है । जैसे - मुंह में घाव । छाले । अफारा । थकान । उदरशूल या पेट मे दर्द । गैस बनना । सिर में दर्द । हाथ पैरों में दर्द । अपच तथा बवासीर आदि । कब्ज बनने पर शौच खुलकर नहीं आती । जिससे पेट में दर्द होता रहता है ।
यदि कब्ज का इलाज जल्दी से न कराया जाए । तो यह फैलकर अन्य रोग उत्पन्न करने का कारण बन सकता है । जब कब्ज काफ़ी बिगड़ जाता है । तो मनुष्य के मलद्वार पर दरारें तक पड़ जाती हैं । और घाव बन जाते हैं । रोग का इलाज जल्दी नहीं कराया गया । तो यह रोग आगे चल कर बवासीर, मधुमेह तथा मिर्गी जैसे रोग को जन्म दे सकता हैं ।
कभी कभी छोटे बच्चे को होने वाले मल में गेंद जैसे गोल गोल तथा छोटे छोटे ढेले होते हैं । इस अवस्था को संस्थम्भी कब्ज कहते हैं । बच्चों को इस अवस्था में बहुत तेज दर्द होता है । जिसके कारण वह मल को रोक लेते हैं । और उन्हें कब्ज की शिकायत हो जाती है । किसी नवजात शिशु को शायद ही कभी कब्ज होती है । परन्तु उसके विकास के पहले वर्ष में उसे मल त्याग क्रिया सिखाई जाती है । जिससे वह मल त्याग क्रिया को प्रतिदिन होने वाली क्रिया के रूप में मानने लगता है ।
रोग का लक्षण - रोगी को शौच साफ़ नहीं होता । मल सूखा और कम मात्रा में निकलता है । मल कुंथन करने या घण्टों बैठे रहने पर निकलता है ।
कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को रोजाना मल त्याग नहीं होता है । कब्ज रोग से पीड़ित रोगी जब मल त्याग करता है । तो उसे बहुत अधिक परेशानी होती है । कभी कभी मल में गांठे बनने लगती हैं । मल त्याग के बाद उसे थोड़ा हल्कापन महसूस होता है ।
रोगी के पेट में गैस अधिक बनती है । पाद में बहुत तेज बदबू आती है । रोगी की जीभ सफेद तथा मटमैली हो जाती है । जीभ मलावृत रहती है । मुँह का स्वाद ख़राब हो जाता है । मुँह से दुर्गन्ध आती है । आंखों के नीचे कालापन हो जाता है । तथा जी मिचलाता रहता है । भूख मर जाती है । पेट भारी रहता है । मीठा मीठा दर्द बना रहता है । शरीर तथा सिर भारी रहता है ।
सिर तथा कमर में दर्द रहता है । शरीर में आलस्य एवं सुस्ती । चिड़चिड़ापन तथा मानसिक तनाव सम्बन्धी लक्षण भी मिलते हैं । बहुत दिनों तक मलावरोध की शिकायत रहने से रोगी को बवासीर इत्यादि रोग भी हो जाता हैं ।
कब्ज रोगी को कई प्रकार के और भी रोग हो जाते हैं । जैसे - पेट में सूजन हो जाना । मुंहासे निकलना । मुंह के छाले । अम्लता । गठिया । आंखों का मोतियाबिन्द तथा उच्च रक्तचाप आदि ।
इन लक्षणों के अतिरिक्त मलावरोध के सम्बन्ध में कुछ प्राचीन बातें भी प्रचलन में है । जैसे मस्तिष्क तथा नाड़ी मण्डल में अवसाद रहता है । मानसिक तथा शारिरिक कार्य शक्ति घट जाती है । अर्थात उसमें स्वाभाविक स्फूर्ति नहीं रहती है । रक्त पर इसका दुष्प्रभाव होने से रक्त दाब बढ जाता है । पाण्डुता नामक रोग होने से शरीर का रंग फीका पड़ जाता है । आंतों में गैस बनने से रोगी को अनिद्रा की भी शिकायत हो जाती है । आंतों में अधिक समय तक मल रुका रहने से अर्श रोग हो जाता है ।
यदि कोष्ठबद्धता किसी अन्य रोग विशेष के कारण नहीं है । तो जीवन शैली में थोड़ा सा परिवर्तन करके बचाव की पद्धति अपनाई जा सकती है । इसके विपरीत यदि मलावरोध का कारण कोई अन्य बीमारी है । तो सर्वप्रथम उस मूल बीमारी का उपचार कराना चाहिए ।
कारण
खानपान में असावधानी - कब्ज व्यक्तियों में ग़लत खानपान के कारण होता है । भोजन में ऐसे पदार्थों का प्रयोग करना, जिन्हें पाचन तंत्र आसानी से नहीं पचा पाता । जिससे आंत से मल पूर्ण रूप से साफ़ नहीं होता । और अन्दर ही सङने लगता है । मिर्च मसालेदार तथा गरिष्ठ भोजन करने से भी कब्ज बनता है । अधिकतर व्यक्तियों में कब्ज के ऐसे लक्षण होते हैं । जिसमें आंतों की अपने आप क्रियाशीलता तथा कब्ज के रचनात्मक असामान्यताओं की कमियों को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता । वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिदिन भोजन में प्रयोग किये जाने वाले पदार्थो की जांच से पता चला है कि व्यक्ति अपने भोजन में रेशेदार व तरल पदार्थो का प्रयोग नहीं करते । जिससे मिलने वाली प्रोटीन व विटामिन लोगों को नहीं मिल पाता । और जिससे कब्ज उत्पन्न होता है । वैज्ञानिकों के अनुसार सभी व्यक्तियों को प्रतिदिन 10 से 12 ग्राम रेशेदार शाक सब्जियां तथा 1 से 2 गिलास तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए । साथ ही खाने के बाद या किसी भी समय मल त्याग करने का अनुभव हो । तो आलस्य के कारण उसे टालना नहीं चाहिए । मलत्याग की इच्छा होने पर मल त्याग जरुर करें ।
संरचनात्मक असामान्यताएं - आंतों में उत्पन्न घाव आदि के कारण मल त्याग के मार्ग में रुकावट उत्पन्न होती है । जिससे मल त्यागते समय ज़ोर लगाने से दर्द उत्पन्न होता है । दर्द के कारण मल का त्याग न करने से मल आंतों में सड़कर कब्ज पैदा करता है ।
व्यवस्थाग्रस्त बीमारी - आंत्रिक नली की तंत्रिकाओं की कुप्रणाली । पेशियों की ख़राबी । इंडोक्राइन विसंगतियों तथा विद्युत अपघटय की असामान्यतायें आदि उत्पन्न होकर आंतों में कब्ज बनाते हैं ।
मनुष्य की पाचन क्रिया मन्द पड़ना । कम मात्रा में मल आना । सुबह के समय में मल करने में आलस्य करना । कम मात्रा में भोजन करने से मल न बनना । भूख न लगना आदि कारणों से यह रोग मनुष्य को हो जाता है ।
मल तथा पेशाब के वेग को रोकने । व्यायाम तथा शारीरिक श्रम न करने के कारण । घर में बैठे रहना । शैय्या पर बहुत समय तक विश्राम करना । शरीर में ख़ून की कमी तथा अधिक सोने के कारण भी कब्ज रोग हो जाता है ।
मल त्याग की प्रेरणा की अवहेलना करने से मलाशय में मल के आ जाने पर भी मल त्याग के लिए नहीं जाना । इससे धीरे धीरे मालाशय में मल के प्रवेश से उत्पन्न होने वाली संवेदना या बेचैनी की प्रतीत उत्तरोत्तर हल्की पड़ती है । जिससे मलाशय में मल जमा होकर खुश्क हो जाता है ।
महिलाओं में गर्भावस्था के कारण । चिन्ता । भय । शोक इत्यादि उद्दीपनों के कारण । यकृत के रोग । मलाशय की वातिक निर्बलता ।
कम रेशायुक्त भोजन का सेवन करना । बासी भोजन का सेवन करने और समय पर भोजन न करने के कारण भी कब्ज रोग हो सकता है ।
तली हुई चीजों का अधिक सेवन करने । ग़लत तरीके से खानपान के कारण और मैदा तथा चोकर के बिना भोजन खाने के कारण कब्ज का रोग हो सकता है । उच्च प्रकार की रिफाइण्ड अथवा निम्न कोटि के फाइवर युक्त भोजन तथा द्रव पदार्थों के अधिक सेवन से ।
ठंडी चीजें जैसे - आइसक्रीम । पेस्ट्री । चाकलेट तथा ठंडे पेय पदार्थ खाने । कम पानी पीने के कारण और तरल पदार्थों का सेवन अधिक करने के कारण भी कब्ज रोग हो सकता है ।
दर्दनाशक दवाइयों का अधिक सेवन और अधिक धूम्रपान तथा नशीली दवाइयों का प्रयोग करने के कारण भी कब्ज रोग हो सकता है । रात्रि जागरण । तेज काफी । चाय और विभिन्न नशीले पदार्थों का सेवन करने से ।
विटामिन B की न्यूनता से आंत की प्रेरक शक्ति मन्द पड़ जाती है । जिससे मल बन्ध हो जाता है ।
थॉयरायड का कम बनना । कैल्सियम और पोटैशियम की कम मात्रा होना । कंपवाद ( पार्किंसन बीमारी ) होना ।
शरीर में मेद वृद्धि हो जाने पर अथवा पाण्डु रोग होने पर या किसी तेज ज्वर के बाद अथवा क्षय रोग में या मधुमेह में तथा वृद्घावस्था के कारण भी आँतों का निर्बल हो जाना स्वाभाविक है । जिससे रोगी को मल बन्ध रहता है । इसे एटानिक या कोलोनिक कांस्टीपेशन कहते हैं ।
पित्ताशय । एपेण्डिक्स । गुदा तथा गर्भाशय में शोथ होने पर बड़ी आंत में स्तम्भ होकर मलबन्ध हो जाता है । बवासीर के मस्सों के सूज जाने तथा प्रोस्टेट ग्रन्थि में शोथ होने पर भी बड़ी आंत में स्तम्भ होकर मल बन्ध हो जाता है । बड़ी आंत में घाव या चोट के कारण यानि बड़ी आंत में कैंसर होना पर बारबार शौच जाने की आदत पड़ जाती है । परन्तु मल त्याग अधूरा ही रहता है ।
पथरीली चट्टानों अथवा पथरीली मैदानी भूमि का जिसमें चूने का पानी रहता है । जल पीने से आंतो में कैल्शियम काबोर्नेट अधिक मात्रा में पहुँच जाता है । जिसके शोषक होने से भी मल बन्ध हो जाता है । इसके अतिरिक्त जिस स्थान का पानी भारी होता है । वहाँ भी लोगों में अधिकांशतः मलबन्ध की शिकायत बनी रहती है ।
कब्ज रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार - रोग का उपचार करने के लिए कभी भी दस्त लाने वाली औषधि का सेवन नहीं करना चाहिए । बल्कि रोग होने के कारणों को दूर करना चाहिए । और फिर प्राकृतिक चिकित्सा से इसका उपचार कराना चाहिए ।
कब्ज से बचने के लिए जब व्यक्ति को भूख लगे । तभी खाना खाना चाहिए । रोग को ठीक करने के लिए चोकर सहित आटे की रोटी तथा हरी पत्तेदार सब्जियां चबा चबाकर खानी चाहिए । रेशे वाली ( उच्च सेलूलोज ) जैसे भूसी । फल । शाक इत्यादि का नियमित प्रयोग करें । प्रतिदिन कम से कम आठ दस गिलास पानी पियें । अधिक से अधिक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए । अंकुरित अन्न का अधिक सेवन करने से रोगी व्यक्ति को बहुत लाभ मिलता है । गेहूं का रस अधिक मात्रा में पीने से कब्ज से पीड़ित रोगी का रोग बहुत जल्दी ठीक हो जाता है । कब्ज न बनने देने के लिए भोजन को अच्छी तरह से चबाकर खाएं । तथा ऐसा भोजन करें । जिसे पचाने में आसानी हो । रोगी व्यक्ति को मैदा । बेसन । तली भुनी तथा मिर्च मसालेदार चीजों आदि का सेवन नहीं करना चाहिए । कोष्ठबद्धता के रोगी को कम चिकनाई वाले आहार जैसे गाय का दूध । पनीर । सूखा फुल्का लेना चाहिए ।
रोगी व्यक्ति को अधिक से अधिक फलों का सेवन करना चाहिए । ये फल इस प्रकार है - पपीता । संतरा । मौसम्मी । खजूर । नारियल । अमरूद । अंगूर । सेब । खीरा । गाजर । चुकन्दर । बेल । अखरोट । अंजीर आदि । नींबू पानी । नारियल पानी । फल तथा सब्जियों का रस पीने से कब्ज से पीड़ित रोगी को बहुत फ़ायदा मिलता है । कच्चे पालक का रस प्रतिदिन सुबह तथा शाम पीने से कब्ज रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है । नींबू का रस गर्म पानी में मिलाकर रात के समय पीने से शौच साफ़ आती है । भोजन में दाल की अपेक्षा सब्जी । बथुआ । पालक आदि शाक का अधिक से अधिक सेवन करना चाहिए । उबली हुई गाजर तथा पके हुए अमरुद का सेवन सर्वोत्तम होता है ।
रोगी व्यक्ति को रात के समय में 25 ग्राम किशमिश को पानी में भिगोने के लिए रख देना चाहिए । रोजाना सुबह के समय इस किशमिश को खाने से पुराने से पुराना कब्ज रोग ठीक हो जाता है । कब्ज से पीड़ित रोगी को सुबह तथा शाम 10-12 मुनक्का खाने से बहुत लाभ होता है ।
कब्ज के रोग को ठीक करने के लिए त्रिफला चूर्ण को प्रतिदिन सेवन करना चाहिए ।
शौच लगने पर शौच न जाने अथवा शौच के वेग को रोकने से भी कब्ज बनती है । अधिक काम करने तथा मानसिक थकान के कारण भी कब्ज बनता है ।
ऐसे रोगी जिनका मेदा बहुत सख्त होता है । उन्हें शौच बहुत कठिनाई से आता है । उन्हें रात्रि में एक बड़ा गिलास गर्म दूध में 50-60 ग्राम देशी गुड़ मिलाकार पी लेने से चमत्कारी लाभ होता है । यह कोष्ठबद्ध रोगी के लिए लिक्विड थेरापी का कार्य करता है ।
कब्ज का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को अपने पेट पर 20 से 25 मिनट तक मिट्टी की या कपड़े की पट्टी करनी चाहिए । यह क्रिया प्रतिदिन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है । इसके बाद रोगी व्यक्ति को कटिस्नान करना चाहिए । तथा एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ़ करना चाहिए ।
कब्ज दूर करने के लिए सुबह सूर्य निकलने से पहले उठकर खुली हवा में प्रतिदिन टहलना चाहिए । इससे शरीर स्फूर्तिदायक और तरोताजा रहता है । और कब्ज आदि से भी बचाता है ।
कब्ज को दूर करने के लिए रात को सोते समय एक बर्तन में पानी रख दें । और सुबह सूर्य निकलने से पहले उठकर उस पानी को 2-4 गिलास पी लें । फिर टहलने के बाद शौच जाने से शौच खुलकर आती है । और कब्ज दूर होता है । कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में तांबे के बर्तन में पानी को रखकर सुबह के समय में पीने से शौच खुलकर आती है । और कब्ज नहीं बनती है । आंतों में खुश्की न हो । इसके लिए रोगी को आहार के अतिरिक्त 3-4 लीटर जल प्रतिदिन लेना चाहिए ।
कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को शाम के समय में हरे रंग की बोतल का सूर्यतप्त पानी पीना चाहिए । इसके बाद ईसबगोल की भूसी ली जा सकती है । लेकिन इसमें कोई खाद्य पदार्थ नहीं होना चाहिए ।
कोष्ठबद्धता के रोगी को दोनों समय नियमित रुप से मल त्याग के लिए जाना चाहिए । मल त्याग के पूर्व एक प्याला चाय या दूध लेने से सुविधा होगी । मल त्याग का समय कभी बदलना नहीं चाहिए । शीर्षासन या सर्वांगासन करने से पेल्विक कोलन में हरकत होकर मल त्याग की संवेदना होती है । प्रातःकाल पेट तथा मूलाधार की मांसपेशियों का गति प्रदान करने वाली व्यायाम करने चाहिए ।
कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को भोजन करने के बाद लगभग 5 मिनट तक व्रजासन करना चाहिए । यदि सुबह के समय में उठते ही व्रजासन करें । तो शौच जल्दी आ जाती है ।
कब्ज रोग को ठीक करने के लिए पानी पीकर कई प्रकार के आसन करने से कब्ज रोग ठीक हो जाता हैं - सर्पासन । कटि-चक्रासन । उर्ध्वहस्तोत्तोनासन । उदराकर्षासन तथा पादहस्तासन आदि ।
यदि किसी व्यक्ति को बहुत समय से कब्ज हो । तो उसे सुबह तथा शाम को कटिस्नान करना चाहिए और सोते समय पेट पर गर्म सिंकाई करनी चाहिए । और प्रतिदिन कम से कम 6 गिलास पानी पीना चाहिए ।
कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को 1 चम्मच आंवले की चटनी गुनगुने दूध में मिलाकर लेने तथा रात को सोते समय एक गिलास गुनगुना पानी पीने से बहुत अधिक लाभ मिलता है ।
कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सुबह के समय में 2 सेब दांतों से काटकर छिलके समेत चबा चबाकर खाना चाहिए । इससे रोगी का रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है ।
सप्ताह में 1 बार गर्म दूध में 1 चम्मच एरण्डी का तेल मिलाकर पीने से कब्ज का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है ।
कब्ज दूर करने की चिकित्सा - कब्ज को दूर करने के लिए विभिन्न नियमों का पालन करना चाहिए । तथा कब्ज को दूर करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा चिकित्सा करनी चाहिए । कब्ज को दूर करने के लिए व्यक्ति को सबसे पहले ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए । इसके लिए प्राकृतिक चिकित्सा का प्रयोग करना चाहिए । इससे शारीरिक शक्ति बनी रहता है । और कब्ज जल्दी दूर होता है । साथ ही प्राकृतिक चिकित्सा का शरीर पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता ।
शास्त्रों में कहा गया है - मरणं बिन्दुपातेनजीवनं बिन्दु धारणत । अर्थात अधिक वीर्य स्खलन से शरीर की ऊर्जा शक्ति । तेज । ओजस धीरे धीरे समाप्त हो जाते हैं । इससे सभी स्नायुओं में कमज़ोरी और चिड़चिड़ापन उत्पन्न होता है । वीर्य स्खलन से पाचन क्रिया ख़राब होती है । और जठराग्नि मन्द पड़ जाती है । जिससे भोजन ठीक से पच नहीं पाता । और अपच हुआ पदार्थ मल के रूप में आतों में ही सड़ता रहता है । आतों में मल सड़ने से पेट में गैस पैदा होती है । और ख़ून दूषित होता है । अत: अपने आप पर संयम रखे बिना उपचार से कोई लाभ नहीं होता ।
एनिमा ( डूस ) क्रिया - विभिन्न कारणों से जब मल आंतों में जम जाता है । तो वह धीरे धीरे सूखकर कब्ज को पैदा करता है । अत: कब्ज को दूर करने के लिए आंतों को साफ़ करना आवश्यक होता है । आंतों को साफ़ करने के लिए जल चिकित्सा में बतायी गई विधि से ठंडे पानी का एनिमा लें । यदि कब्ज अधिक बन गई हो । तो रोगी को हल्के गर्म पानी का एनिमा दिया जा सकता है । यदि एनिमा गर्म पानी का दिया जा रहा हो । तो गर्म पानी का एनिमा देने के बाद ठंडे पानी का भी एनिमा दें । इससे कब्ज में जल्द लाभ मिलता है ।
पेड़ू पर ठंडे पानी की पट्टी - एनिमा क्रिया करने के बाद रोगी को अपने पेडू पर ठंडे पानी में भिगोया तौलिया कम से कम 8 मिनट तक रखना चाहिए । जिसके फलस्वरूप कब्ज में लाभ मिलता है । और आंतों को शक्ति मिलती है ।
गीली मिट्टी की पुल्टिश - रोगी के पेड़ू पर नाभि के 4 अंगुली नीचे मिट्टी की 1 इंच मोटी लेप करने से कब्ज दूर होता है । इससे आंतें शक्तिशाली होती है । और कब्ज के कारण उत्पन्न होने वाले अन्य रोग अपने आप समाप्त हो जाते हैं ।
व्यायाम द्वारा चिकित्सा - कब्ज दूर करने के लिए व्यायाम करना भी लाभकारी होता है । व्यायाम से पेट की क्रिया सुधरती है । और कब्ज दूर होता है । व्यायाम के लिए पहले पीठ के बल लेट जाएं । और दोनों पैरों को उठाकर शरीर के समकोण तक लाकर धीरे धीरे पुन: नीचे लाएं । इस तरह प्रतिदिन व्यायाम करने से आंत और पेट की स्नायु क्रिया ठीक होती है । और कब्ज आदि रोग दूर होते हैं ।
सावधानी - ऊपर बताई गई सारी चिकित्सा करने के साथ भोजन आदि पर ध्यान दें । अधिक तली हुई चीजें । मिर्च मसालेदार । अधिक गर्म भोजन न करें । भोजन में सावधानी रखने पर कब्ज रोग में लाभ जल्द मिलता है । कब्ज बनने पर कामवासना आदि पर नियंत्रण रखें ।
विशेष - कब्ज होने पर बताए गए नियमों को पालन करें । इन नियमों का पालन करने से कब्ज दूर हो जाती है । और इसके नियम बनाए रखने से कभी कब्ज नहीं होती है । यदि कब्ज तब भी उत्पन्न हो जाए । तो सावधानी पूर्वक प्राकृतिक चिकित्सा से कब्ज दूर करें ।
यौगिक क्रिया के द्वारा रोग की चिकित्सा - कब्ज को खत्म करने के लिए प्रतिदिन योग क्रिया का अभ्यास करना चाहिए । इससे किसी भी कारण से उत्पन्न होने वाली कब्ज समाप्त हो जाता है ।
षटक्रिया ( हठयोग क्रिया ) - अग्निसार क्रिया या नौली व वस्ति क्रिया का अभ्यास करें ।
पेट से सम्बंधित सभी कारणों तथा पेट की मांसपेशियों को शक्तिशाली बनाने के लिए यौगिक क्रिया -
आसन - सूर्य नमस्कार । पवन मुक्तासन । त्रिकोणासन । हलासन । ताड़ासन । कटि चक्रासन । मत्स्यासन और अर्ध मत्स्यासन का अभ्यास करें
प्राणायाम - भस्त्रिका प्राणायाम के साथ कुंभक करें । अर्थात सांस को रोकने का अभ्यास करें ।
बंध - इस रोग में उडि्डया बन्ध व महाबंध का अभ्यास करें ।
समय - इस यौगिक क्रियाओ का अभ्यास प्रतिदिन 20 मिनट तक करें ।
प्रेक्षा - प्राणायाम व बंध के बाद दीर्घ श्वास प्रेक्षा का अभ्यास करें ।
अनुप्रेक्षा ( मन की भावना ) - सांस क्रिया करते हुए मन में विचार करें - मेरे अन्दर का कब्ज रोग दूर हो गया है । और मैं स्वस्थ हो रहा हूं । मेरा मन और मस्तिष्क शुद्ध हो गया है ।
मन में ऐसी भावना करनी चाहिए ।
भोजन - इस रोग में हल्का तथा आसानी से पचने वाला भोजन करें । सलाद व सब्जियां रोजाना खायें । पर्याप्त मात्रा में पानी व फलों का रस पीना चाहिए । आधे से ज़्यादा चोकर मिलाकर गेहूँ तथा जौ की रोटी खाएं ।
परहेज - स्टार्च युक्त पदार्थो का सेवन न करें । तथा नमक कम मात्रा में उपयोग करें । ऐसे पदार्थ का सेवन न करें । जो कब्ज पैदा करें ।
विशेष - सभी योग क्रियाओं का अभ्यास सावधानी पूर्वक करें । षटक्रिया का अभ्यास योग चिकित्सक के कहे अनुसार जरूरत पड़ने पर करें । अन्य योग क्रियाओं का अभ्यास प्रतिदिन करें । अभ्यास हमेशा ख़ाली पेट ही करें ।
चुम्बक द्वारा उपचार - रोगी को दिन में 3 बार अपने पैर के तलुओं पर शक्तिशाली चुम्बकों को लगाना चाहिए । तथा दिन में 3 बार चुम्बकित जल दवाई की मात्रानुसार लेना चाहिए ।
अन्य उपाय - कब्ज से बचने के लिए छोटे बच्चों को सुबह के समय में मल करने की आदत डालनी चाहिए । इससे बच्चों में मल क्रिया का स्वस्थ विकास होता है । बड़े लोगों को भी रोजाना सुबह के समय में मल करने की आदत डालनी चाहिए । इस क्रिया में कभी भी लापरवाही नहीं करनी चाहिए । क्योंकि शरीर की अधिकतर बीमारी पेट की पाचन क्रिया की गड़बड़ी के कारण ही होती है । भोजन में गूदेदार पदार्थो का अधिक प्रयोग करना चाहिए । जल तथा अन्य तरल पदाथों का भी सेवन करना चाहिए । सुबह के समय में उठकर एक गिलास पानी पीना चाहिए । इससे मल साफ़ आता है । ज़्यादा समस्या आने पर चिकित्सक से सलाह लेना चाहिए ।
नोट - चिकित्सकीय परामर्श आवश्यक है.
साभार - घरेलू नुस्खे सरल उपचार
( पढ़िए पढ़ाईये । शेयर कीजिये सबको बताईये । लाभ उठाईये )
कब्ज । मलावरोध । मलबन्ध । कोष्ठबद्धता और कांसटीपेशन इत्यादि नामों से जानी जाने वाली यह बीमारी आमाशय की स्वाभाविक परिवर्तन की वह अवस्था है । जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है । या मलक्रिया में कठिनाई होती है । मल कड़ा हो जाता है । उसकी आवृति घट जाती है । मल निष्कासन के समय बल का प्रयोग करना पड़ता है । पेट में गैस बनती है । मल विसर्जन कर्म या रिफ्लेक्स 24 घण्टे या 48 घण्टों में नियमित रुप से एक बार न हो । तो उसे मलावरोध कहा जाता है । सामान्य आवृति और आमाशय की गति व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है । एक सप्ताह में 3 से 12 बार मल निष्कासन की प्रक्रिया सामान्य मानी जाती है ।
कब्ज आज के समय का आम रोग है । यह रोग व्यक्ति के खानपान में असावधानी रखने का ही परिणाम है । अधिक मिर्च मसाले वाला भोजन करना । कब्ज बनाने वाले पदार्थों का सेवन करना । भोजन के बाद अधिक देर तक बैठना । तेल चिकनाई वाले पदार्थों का अधिक सेवन करना आदि । शारीरिक श्रम न करने से मल का त्याग अल्प मात्रा में तथा अनियमित होता है । कभी कभी अत्यधिक कुंथन करने अथवा घण्टों शौच के लिए बैठने पर थोड़ा बहुत बाहर आता है । किसी किसी को तो कई कई दिनों तक मल विसर्जन ही नहीं होता ।
कब्ज होने की असली जड़ भोजन का ठीक प्रकार से न पचना है । यदि पेट रोगों का घर होता है । तो आंत विषैले तत्वों की उत्पत्ति का स्थान होता है । यह बहुत से रोगों को जन्म देता है । जिनमें कब्ज प्रमुख है । कब्ज में अधिक मात्रा में मल का बड़ी आंत में जमा हो जाना । कब्ज के कारण अवरोही आंतों में तरल पदार्थो के अवशोषण में अधिक समय लगने के कारण उनमे शुष्क ( ठंडा ) व कठोर मल अधिक एकत्रित होने लगता है । कब्ज उत्पन्न होने का एक आम कारण है - जीवन में मल त्याग की साधारण क्रिया का रुकना ।
कब्ज पाचनशक्ति के कार्य में किसी बाधा उत्पन्न होने के कारण होता है । इसके होने पर शारीरिक व्यवस्था बिगड़ जाती है । जिसके कारण पेट के कई रोग उत्पन्न हो जाते हैं । इस रोग के कारण शरीर में कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है । शरीर के अन्दर ज़हर भी बन जाता है । जिसके कारण शरीर में अनेक बीमारी पैदा हो सकती है । जैसे - मुंह में घाव । छाले । अफारा । थकान । उदरशूल या पेट मे दर्द । गैस बनना । सिर में दर्द । हाथ पैरों में दर्द । अपच तथा बवासीर आदि । कब्ज बनने पर शौच खुलकर नहीं आती । जिससे पेट में दर्द होता रहता है ।
यदि कब्ज का इलाज जल्दी से न कराया जाए । तो यह फैलकर अन्य रोग उत्पन्न करने का कारण बन सकता है । जब कब्ज काफ़ी बिगड़ जाता है । तो मनुष्य के मलद्वार पर दरारें तक पड़ जाती हैं । और घाव बन जाते हैं । रोग का इलाज जल्दी नहीं कराया गया । तो यह रोग आगे चल कर बवासीर, मधुमेह तथा मिर्गी जैसे रोग को जन्म दे सकता हैं ।
कभी कभी छोटे बच्चे को होने वाले मल में गेंद जैसे गोल गोल तथा छोटे छोटे ढेले होते हैं । इस अवस्था को संस्थम्भी कब्ज कहते हैं । बच्चों को इस अवस्था में बहुत तेज दर्द होता है । जिसके कारण वह मल को रोक लेते हैं । और उन्हें कब्ज की शिकायत हो जाती है । किसी नवजात शिशु को शायद ही कभी कब्ज होती है । परन्तु उसके विकास के पहले वर्ष में उसे मल त्याग क्रिया सिखाई जाती है । जिससे वह मल त्याग क्रिया को प्रतिदिन होने वाली क्रिया के रूप में मानने लगता है ।
रोग का लक्षण - रोगी को शौच साफ़ नहीं होता । मल सूखा और कम मात्रा में निकलता है । मल कुंथन करने या घण्टों बैठे रहने पर निकलता है ।
कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को रोजाना मल त्याग नहीं होता है । कब्ज रोग से पीड़ित रोगी जब मल त्याग करता है । तो उसे बहुत अधिक परेशानी होती है । कभी कभी मल में गांठे बनने लगती हैं । मल त्याग के बाद उसे थोड़ा हल्कापन महसूस होता है ।
रोगी के पेट में गैस अधिक बनती है । पाद में बहुत तेज बदबू आती है । रोगी की जीभ सफेद तथा मटमैली हो जाती है । जीभ मलावृत रहती है । मुँह का स्वाद ख़राब हो जाता है । मुँह से दुर्गन्ध आती है । आंखों के नीचे कालापन हो जाता है । तथा जी मिचलाता रहता है । भूख मर जाती है । पेट भारी रहता है । मीठा मीठा दर्द बना रहता है । शरीर तथा सिर भारी रहता है ।
सिर तथा कमर में दर्द रहता है । शरीर में आलस्य एवं सुस्ती । चिड़चिड़ापन तथा मानसिक तनाव सम्बन्धी लक्षण भी मिलते हैं । बहुत दिनों तक मलावरोध की शिकायत रहने से रोगी को बवासीर इत्यादि रोग भी हो जाता हैं ।
कब्ज रोगी को कई प्रकार के और भी रोग हो जाते हैं । जैसे - पेट में सूजन हो जाना । मुंहासे निकलना । मुंह के छाले । अम्लता । गठिया । आंखों का मोतियाबिन्द तथा उच्च रक्तचाप आदि ।
इन लक्षणों के अतिरिक्त मलावरोध के सम्बन्ध में कुछ प्राचीन बातें भी प्रचलन में है । जैसे मस्तिष्क तथा नाड़ी मण्डल में अवसाद रहता है । मानसिक तथा शारिरिक कार्य शक्ति घट जाती है । अर्थात उसमें स्वाभाविक स्फूर्ति नहीं रहती है । रक्त पर इसका दुष्प्रभाव होने से रक्त दाब बढ जाता है । पाण्डुता नामक रोग होने से शरीर का रंग फीका पड़ जाता है । आंतों में गैस बनने से रोगी को अनिद्रा की भी शिकायत हो जाती है । आंतों में अधिक समय तक मल रुका रहने से अर्श रोग हो जाता है ।
यदि कोष्ठबद्धता किसी अन्य रोग विशेष के कारण नहीं है । तो जीवन शैली में थोड़ा सा परिवर्तन करके बचाव की पद्धति अपनाई जा सकती है । इसके विपरीत यदि मलावरोध का कारण कोई अन्य बीमारी है । तो सर्वप्रथम उस मूल बीमारी का उपचार कराना चाहिए ।
कारण
खानपान में असावधानी - कब्ज व्यक्तियों में ग़लत खानपान के कारण होता है । भोजन में ऐसे पदार्थों का प्रयोग करना, जिन्हें पाचन तंत्र आसानी से नहीं पचा पाता । जिससे आंत से मल पूर्ण रूप से साफ़ नहीं होता । और अन्दर ही सङने लगता है । मिर्च मसालेदार तथा गरिष्ठ भोजन करने से भी कब्ज बनता है । अधिकतर व्यक्तियों में कब्ज के ऐसे लक्षण होते हैं । जिसमें आंतों की अपने आप क्रियाशीलता तथा कब्ज के रचनात्मक असामान्यताओं की कमियों को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता । वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिदिन भोजन में प्रयोग किये जाने वाले पदार्थो की जांच से पता चला है कि व्यक्ति अपने भोजन में रेशेदार व तरल पदार्थो का प्रयोग नहीं करते । जिससे मिलने वाली प्रोटीन व विटामिन लोगों को नहीं मिल पाता । और जिससे कब्ज उत्पन्न होता है । वैज्ञानिकों के अनुसार सभी व्यक्तियों को प्रतिदिन 10 से 12 ग्राम रेशेदार शाक सब्जियां तथा 1 से 2 गिलास तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए । साथ ही खाने के बाद या किसी भी समय मल त्याग करने का अनुभव हो । तो आलस्य के कारण उसे टालना नहीं चाहिए । मलत्याग की इच्छा होने पर मल त्याग जरुर करें ।
संरचनात्मक असामान्यताएं - आंतों में उत्पन्न घाव आदि के कारण मल त्याग के मार्ग में रुकावट उत्पन्न होती है । जिससे मल त्यागते समय ज़ोर लगाने से दर्द उत्पन्न होता है । दर्द के कारण मल का त्याग न करने से मल आंतों में सड़कर कब्ज पैदा करता है ।
व्यवस्थाग्रस्त बीमारी - आंत्रिक नली की तंत्रिकाओं की कुप्रणाली । पेशियों की ख़राबी । इंडोक्राइन विसंगतियों तथा विद्युत अपघटय की असामान्यतायें आदि उत्पन्न होकर आंतों में कब्ज बनाते हैं ।
मनुष्य की पाचन क्रिया मन्द पड़ना । कम मात्रा में मल आना । सुबह के समय में मल करने में आलस्य करना । कम मात्रा में भोजन करने से मल न बनना । भूख न लगना आदि कारणों से यह रोग मनुष्य को हो जाता है ।
मल तथा पेशाब के वेग को रोकने । व्यायाम तथा शारीरिक श्रम न करने के कारण । घर में बैठे रहना । शैय्या पर बहुत समय तक विश्राम करना । शरीर में ख़ून की कमी तथा अधिक सोने के कारण भी कब्ज रोग हो जाता है ।
मल त्याग की प्रेरणा की अवहेलना करने से मलाशय में मल के आ जाने पर भी मल त्याग के लिए नहीं जाना । इससे धीरे धीरे मालाशय में मल के प्रवेश से उत्पन्न होने वाली संवेदना या बेचैनी की प्रतीत उत्तरोत्तर हल्की पड़ती है । जिससे मलाशय में मल जमा होकर खुश्क हो जाता है ।
महिलाओं में गर्भावस्था के कारण । चिन्ता । भय । शोक इत्यादि उद्दीपनों के कारण । यकृत के रोग । मलाशय की वातिक निर्बलता ।
कम रेशायुक्त भोजन का सेवन करना । बासी भोजन का सेवन करने और समय पर भोजन न करने के कारण भी कब्ज रोग हो सकता है ।
तली हुई चीजों का अधिक सेवन करने । ग़लत तरीके से खानपान के कारण और मैदा तथा चोकर के बिना भोजन खाने के कारण कब्ज का रोग हो सकता है । उच्च प्रकार की रिफाइण्ड अथवा निम्न कोटि के फाइवर युक्त भोजन तथा द्रव पदार्थों के अधिक सेवन से ।
ठंडी चीजें जैसे - आइसक्रीम । पेस्ट्री । चाकलेट तथा ठंडे पेय पदार्थ खाने । कम पानी पीने के कारण और तरल पदार्थों का सेवन अधिक करने के कारण भी कब्ज रोग हो सकता है ।
दर्दनाशक दवाइयों का अधिक सेवन और अधिक धूम्रपान तथा नशीली दवाइयों का प्रयोग करने के कारण भी कब्ज रोग हो सकता है । रात्रि जागरण । तेज काफी । चाय और विभिन्न नशीले पदार्थों का सेवन करने से ।
विटामिन B की न्यूनता से आंत की प्रेरक शक्ति मन्द पड़ जाती है । जिससे मल बन्ध हो जाता है ।
थॉयरायड का कम बनना । कैल्सियम और पोटैशियम की कम मात्रा होना । कंपवाद ( पार्किंसन बीमारी ) होना ।
शरीर में मेद वृद्धि हो जाने पर अथवा पाण्डु रोग होने पर या किसी तेज ज्वर के बाद अथवा क्षय रोग में या मधुमेह में तथा वृद्घावस्था के कारण भी आँतों का निर्बल हो जाना स्वाभाविक है । जिससे रोगी को मल बन्ध रहता है । इसे एटानिक या कोलोनिक कांस्टीपेशन कहते हैं ।
पित्ताशय । एपेण्डिक्स । गुदा तथा गर्भाशय में शोथ होने पर बड़ी आंत में स्तम्भ होकर मलबन्ध हो जाता है । बवासीर के मस्सों के सूज जाने तथा प्रोस्टेट ग्रन्थि में शोथ होने पर भी बड़ी आंत में स्तम्भ होकर मल बन्ध हो जाता है । बड़ी आंत में घाव या चोट के कारण यानि बड़ी आंत में कैंसर होना पर बारबार शौच जाने की आदत पड़ जाती है । परन्तु मल त्याग अधूरा ही रहता है ।
पथरीली चट्टानों अथवा पथरीली मैदानी भूमि का जिसमें चूने का पानी रहता है । जल पीने से आंतो में कैल्शियम काबोर्नेट अधिक मात्रा में पहुँच जाता है । जिसके शोषक होने से भी मल बन्ध हो जाता है । इसके अतिरिक्त जिस स्थान का पानी भारी होता है । वहाँ भी लोगों में अधिकांशतः मलबन्ध की शिकायत बनी रहती है ।
कब्ज रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार - रोग का उपचार करने के लिए कभी भी दस्त लाने वाली औषधि का सेवन नहीं करना चाहिए । बल्कि रोग होने के कारणों को दूर करना चाहिए । और फिर प्राकृतिक चिकित्सा से इसका उपचार कराना चाहिए ।
कब्ज से बचने के लिए जब व्यक्ति को भूख लगे । तभी खाना खाना चाहिए । रोग को ठीक करने के लिए चोकर सहित आटे की रोटी तथा हरी पत्तेदार सब्जियां चबा चबाकर खानी चाहिए । रेशे वाली ( उच्च सेलूलोज ) जैसे भूसी । फल । शाक इत्यादि का नियमित प्रयोग करें । प्रतिदिन कम से कम आठ दस गिलास पानी पियें । अधिक से अधिक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए । अंकुरित अन्न का अधिक सेवन करने से रोगी व्यक्ति को बहुत लाभ मिलता है । गेहूं का रस अधिक मात्रा में पीने से कब्ज से पीड़ित रोगी का रोग बहुत जल्दी ठीक हो जाता है । कब्ज न बनने देने के लिए भोजन को अच्छी तरह से चबाकर खाएं । तथा ऐसा भोजन करें । जिसे पचाने में आसानी हो । रोगी व्यक्ति को मैदा । बेसन । तली भुनी तथा मिर्च मसालेदार चीजों आदि का सेवन नहीं करना चाहिए । कोष्ठबद्धता के रोगी को कम चिकनाई वाले आहार जैसे गाय का दूध । पनीर । सूखा फुल्का लेना चाहिए ।
रोगी व्यक्ति को अधिक से अधिक फलों का सेवन करना चाहिए । ये फल इस प्रकार है - पपीता । संतरा । मौसम्मी । खजूर । नारियल । अमरूद । अंगूर । सेब । खीरा । गाजर । चुकन्दर । बेल । अखरोट । अंजीर आदि । नींबू पानी । नारियल पानी । फल तथा सब्जियों का रस पीने से कब्ज से पीड़ित रोगी को बहुत फ़ायदा मिलता है । कच्चे पालक का रस प्रतिदिन सुबह तथा शाम पीने से कब्ज रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है । नींबू का रस गर्म पानी में मिलाकर रात के समय पीने से शौच साफ़ आती है । भोजन में दाल की अपेक्षा सब्जी । बथुआ । पालक आदि शाक का अधिक से अधिक सेवन करना चाहिए । उबली हुई गाजर तथा पके हुए अमरुद का सेवन सर्वोत्तम होता है ।
रोगी व्यक्ति को रात के समय में 25 ग्राम किशमिश को पानी में भिगोने के लिए रख देना चाहिए । रोजाना सुबह के समय इस किशमिश को खाने से पुराने से पुराना कब्ज रोग ठीक हो जाता है । कब्ज से पीड़ित रोगी को सुबह तथा शाम 10-12 मुनक्का खाने से बहुत लाभ होता है ।
कब्ज के रोग को ठीक करने के लिए त्रिफला चूर्ण को प्रतिदिन सेवन करना चाहिए ।
शौच लगने पर शौच न जाने अथवा शौच के वेग को रोकने से भी कब्ज बनती है । अधिक काम करने तथा मानसिक थकान के कारण भी कब्ज बनता है ।
ऐसे रोगी जिनका मेदा बहुत सख्त होता है । उन्हें शौच बहुत कठिनाई से आता है । उन्हें रात्रि में एक बड़ा गिलास गर्म दूध में 50-60 ग्राम देशी गुड़ मिलाकार पी लेने से चमत्कारी लाभ होता है । यह कोष्ठबद्ध रोगी के लिए लिक्विड थेरापी का कार्य करता है ।
कब्ज का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को अपने पेट पर 20 से 25 मिनट तक मिट्टी की या कपड़े की पट्टी करनी चाहिए । यह क्रिया प्रतिदिन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है । इसके बाद रोगी व्यक्ति को कटिस्नान करना चाहिए । तथा एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ़ करना चाहिए ।
कब्ज दूर करने के लिए सुबह सूर्य निकलने से पहले उठकर खुली हवा में प्रतिदिन टहलना चाहिए । इससे शरीर स्फूर्तिदायक और तरोताजा रहता है । और कब्ज आदि से भी बचाता है ।
कब्ज को दूर करने के लिए रात को सोते समय एक बर्तन में पानी रख दें । और सुबह सूर्य निकलने से पहले उठकर उस पानी को 2-4 गिलास पी लें । फिर टहलने के बाद शौच जाने से शौच खुलकर आती है । और कब्ज दूर होता है । कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में तांबे के बर्तन में पानी को रखकर सुबह के समय में पीने से शौच खुलकर आती है । और कब्ज नहीं बनती है । आंतों में खुश्की न हो । इसके लिए रोगी को आहार के अतिरिक्त 3-4 लीटर जल प्रतिदिन लेना चाहिए ।
कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को शाम के समय में हरे रंग की बोतल का सूर्यतप्त पानी पीना चाहिए । इसके बाद ईसबगोल की भूसी ली जा सकती है । लेकिन इसमें कोई खाद्य पदार्थ नहीं होना चाहिए ।
कोष्ठबद्धता के रोगी को दोनों समय नियमित रुप से मल त्याग के लिए जाना चाहिए । मल त्याग के पूर्व एक प्याला चाय या दूध लेने से सुविधा होगी । मल त्याग का समय कभी बदलना नहीं चाहिए । शीर्षासन या सर्वांगासन करने से पेल्विक कोलन में हरकत होकर मल त्याग की संवेदना होती है । प्रातःकाल पेट तथा मूलाधार की मांसपेशियों का गति प्रदान करने वाली व्यायाम करने चाहिए ।
कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को भोजन करने के बाद लगभग 5 मिनट तक व्रजासन करना चाहिए । यदि सुबह के समय में उठते ही व्रजासन करें । तो शौच जल्दी आ जाती है ।
कब्ज रोग को ठीक करने के लिए पानी पीकर कई प्रकार के आसन करने से कब्ज रोग ठीक हो जाता हैं - सर्पासन । कटि-चक्रासन । उर्ध्वहस्तोत्तोनासन । उदराकर्षासन तथा पादहस्तासन आदि ।
यदि किसी व्यक्ति को बहुत समय से कब्ज हो । तो उसे सुबह तथा शाम को कटिस्नान करना चाहिए और सोते समय पेट पर गर्म सिंकाई करनी चाहिए । और प्रतिदिन कम से कम 6 गिलास पानी पीना चाहिए ।
कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को 1 चम्मच आंवले की चटनी गुनगुने दूध में मिलाकर लेने तथा रात को सोते समय एक गिलास गुनगुना पानी पीने से बहुत अधिक लाभ मिलता है ।
कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सुबह के समय में 2 सेब दांतों से काटकर छिलके समेत चबा चबाकर खाना चाहिए । इससे रोगी का रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है ।
सप्ताह में 1 बार गर्म दूध में 1 चम्मच एरण्डी का तेल मिलाकर पीने से कब्ज का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है ।
कब्ज दूर करने की चिकित्सा - कब्ज को दूर करने के लिए विभिन्न नियमों का पालन करना चाहिए । तथा कब्ज को दूर करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा चिकित्सा करनी चाहिए । कब्ज को दूर करने के लिए व्यक्ति को सबसे पहले ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए । इसके लिए प्राकृतिक चिकित्सा का प्रयोग करना चाहिए । इससे शारीरिक शक्ति बनी रहता है । और कब्ज जल्दी दूर होता है । साथ ही प्राकृतिक चिकित्सा का शरीर पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता ।
शास्त्रों में कहा गया है - मरणं बिन्दुपातेनजीवनं बिन्दु धारणत । अर्थात अधिक वीर्य स्खलन से शरीर की ऊर्जा शक्ति । तेज । ओजस धीरे धीरे समाप्त हो जाते हैं । इससे सभी स्नायुओं में कमज़ोरी और चिड़चिड़ापन उत्पन्न होता है । वीर्य स्खलन से पाचन क्रिया ख़राब होती है । और जठराग्नि मन्द पड़ जाती है । जिससे भोजन ठीक से पच नहीं पाता । और अपच हुआ पदार्थ मल के रूप में आतों में ही सड़ता रहता है । आतों में मल सड़ने से पेट में गैस पैदा होती है । और ख़ून दूषित होता है । अत: अपने आप पर संयम रखे बिना उपचार से कोई लाभ नहीं होता ।
एनिमा ( डूस ) क्रिया - विभिन्न कारणों से जब मल आंतों में जम जाता है । तो वह धीरे धीरे सूखकर कब्ज को पैदा करता है । अत: कब्ज को दूर करने के लिए आंतों को साफ़ करना आवश्यक होता है । आंतों को साफ़ करने के लिए जल चिकित्सा में बतायी गई विधि से ठंडे पानी का एनिमा लें । यदि कब्ज अधिक बन गई हो । तो रोगी को हल्के गर्म पानी का एनिमा दिया जा सकता है । यदि एनिमा गर्म पानी का दिया जा रहा हो । तो गर्म पानी का एनिमा देने के बाद ठंडे पानी का भी एनिमा दें । इससे कब्ज में जल्द लाभ मिलता है ।
पेड़ू पर ठंडे पानी की पट्टी - एनिमा क्रिया करने के बाद रोगी को अपने पेडू पर ठंडे पानी में भिगोया तौलिया कम से कम 8 मिनट तक रखना चाहिए । जिसके फलस्वरूप कब्ज में लाभ मिलता है । और आंतों को शक्ति मिलती है ।
गीली मिट्टी की पुल्टिश - रोगी के पेड़ू पर नाभि के 4 अंगुली नीचे मिट्टी की 1 इंच मोटी लेप करने से कब्ज दूर होता है । इससे आंतें शक्तिशाली होती है । और कब्ज के कारण उत्पन्न होने वाले अन्य रोग अपने आप समाप्त हो जाते हैं ।
व्यायाम द्वारा चिकित्सा - कब्ज दूर करने के लिए व्यायाम करना भी लाभकारी होता है । व्यायाम से पेट की क्रिया सुधरती है । और कब्ज दूर होता है । व्यायाम के लिए पहले पीठ के बल लेट जाएं । और दोनों पैरों को उठाकर शरीर के समकोण तक लाकर धीरे धीरे पुन: नीचे लाएं । इस तरह प्रतिदिन व्यायाम करने से आंत और पेट की स्नायु क्रिया ठीक होती है । और कब्ज आदि रोग दूर होते हैं ।
सावधानी - ऊपर बताई गई सारी चिकित्सा करने के साथ भोजन आदि पर ध्यान दें । अधिक तली हुई चीजें । मिर्च मसालेदार । अधिक गर्म भोजन न करें । भोजन में सावधानी रखने पर कब्ज रोग में लाभ जल्द मिलता है । कब्ज बनने पर कामवासना आदि पर नियंत्रण रखें ।
विशेष - कब्ज होने पर बताए गए नियमों को पालन करें । इन नियमों का पालन करने से कब्ज दूर हो जाती है । और इसके नियम बनाए रखने से कभी कब्ज नहीं होती है । यदि कब्ज तब भी उत्पन्न हो जाए । तो सावधानी पूर्वक प्राकृतिक चिकित्सा से कब्ज दूर करें ।
यौगिक क्रिया के द्वारा रोग की चिकित्सा - कब्ज को खत्म करने के लिए प्रतिदिन योग क्रिया का अभ्यास करना चाहिए । इससे किसी भी कारण से उत्पन्न होने वाली कब्ज समाप्त हो जाता है ।
षटक्रिया ( हठयोग क्रिया ) - अग्निसार क्रिया या नौली व वस्ति क्रिया का अभ्यास करें ।
पेट से सम्बंधित सभी कारणों तथा पेट की मांसपेशियों को शक्तिशाली बनाने के लिए यौगिक क्रिया -
आसन - सूर्य नमस्कार । पवन मुक्तासन । त्रिकोणासन । हलासन । ताड़ासन । कटि चक्रासन । मत्स्यासन और अर्ध मत्स्यासन का अभ्यास करें
प्राणायाम - भस्त्रिका प्राणायाम के साथ कुंभक करें । अर्थात सांस को रोकने का अभ्यास करें ।
बंध - इस रोग में उडि्डया बन्ध व महाबंध का अभ्यास करें ।
समय - इस यौगिक क्रियाओ का अभ्यास प्रतिदिन 20 मिनट तक करें ।
प्रेक्षा - प्राणायाम व बंध के बाद दीर्घ श्वास प्रेक्षा का अभ्यास करें ।
अनुप्रेक्षा ( मन की भावना ) - सांस क्रिया करते हुए मन में विचार करें - मेरे अन्दर का कब्ज रोग दूर हो गया है । और मैं स्वस्थ हो रहा हूं । मेरा मन और मस्तिष्क शुद्ध हो गया है ।
मन में ऐसी भावना करनी चाहिए ।
भोजन - इस रोग में हल्का तथा आसानी से पचने वाला भोजन करें । सलाद व सब्जियां रोजाना खायें । पर्याप्त मात्रा में पानी व फलों का रस पीना चाहिए । आधे से ज़्यादा चोकर मिलाकर गेहूँ तथा जौ की रोटी खाएं ।
परहेज - स्टार्च युक्त पदार्थो का सेवन न करें । तथा नमक कम मात्रा में उपयोग करें । ऐसे पदार्थ का सेवन न करें । जो कब्ज पैदा करें ।
विशेष - सभी योग क्रियाओं का अभ्यास सावधानी पूर्वक करें । षटक्रिया का अभ्यास योग चिकित्सक के कहे अनुसार जरूरत पड़ने पर करें । अन्य योग क्रियाओं का अभ्यास प्रतिदिन करें । अभ्यास हमेशा ख़ाली पेट ही करें ।
चुम्बक द्वारा उपचार - रोगी को दिन में 3 बार अपने पैर के तलुओं पर शक्तिशाली चुम्बकों को लगाना चाहिए । तथा दिन में 3 बार चुम्बकित जल दवाई की मात्रानुसार लेना चाहिए ।
अन्य उपाय - कब्ज से बचने के लिए छोटे बच्चों को सुबह के समय में मल करने की आदत डालनी चाहिए । इससे बच्चों में मल क्रिया का स्वस्थ विकास होता है । बड़े लोगों को भी रोजाना सुबह के समय में मल करने की आदत डालनी चाहिए । इस क्रिया में कभी भी लापरवाही नहीं करनी चाहिए । क्योंकि शरीर की अधिकतर बीमारी पेट की पाचन क्रिया की गड़बड़ी के कारण ही होती है । भोजन में गूदेदार पदार्थो का अधिक प्रयोग करना चाहिए । जल तथा अन्य तरल पदाथों का भी सेवन करना चाहिए । सुबह के समय में उठकर एक गिलास पानी पीना चाहिए । इससे मल साफ़ आता है । ज़्यादा समस्या आने पर चिकित्सक से सलाह लेना चाहिए ।
नोट - चिकित्सकीय परामर्श आवश्यक है.
साभार - घरेलू नुस्खे सरल उपचार