अंतर्जाल के मकङजाल में किसी चित्र पहेली के भूलभुलैया रास्तों सा इधर उधर भटकते हुये अपना प्लेन मुम्बई के शशि जी के ब्लाग स्पाट पर लैण्ड हुआ । शशि जी कविताओं गजलों के शौकीन हैं । इनका ब्लाग - कवितायें मायाजाल विभिन्न प्रसिद्ध गजल गीतकारों की रचनाओं का संग्रह है । और इनके ही दूसरे ब्लाग - शशि की कवितायें में इनकी खुद की रचनायें प्रकाशित हैं । अगर आप भी कविताओं गजलों गीतों के शौकीन हैं । तो इनके ब्लाग पर तशरीफ़ ले जा सकते हैं । पर क्या है इनके ब्लाग का पता ? खोजिये इसी पेज पर छुपा है । बस माउस से क्लिक करना होगा ।
इनका शुभ नाम है - Shashiprakash Saini और इनकी Industry है - Student और इनकी Location है - mumbai, Maharashtra, India बस इससे ज्यादा इनके बारे में कुछ पता नहीं । क्योंकि इन्होंने लिखा ही नहीं । अच्छे खासे कविता शायरी का शौक रखते हैं शशि जी । पर जाने क्यों अपने बारे में कुछ कहा ही नहीं । खैर..अपने बारे में न कहा । न ही सही । पर शशि जी की कविता । क्या खूब कही । क्या खूब कही । आप भी पढिये । और इनके ब्लाग की तरफ़ बढिये - वो ठंडी पवन का झोंका था । जो तूने हमको रोका था । वो सावन की बरसातें थी । सोंधी सोंधी सी बाते थी । छोटी मोटी जो अनबन
थी । बिजली की फिर जो गर्जन थी । तेरा बाहों में आ जाना । नज़रों का जो वो टकराना । अब तक यादो में ताज़ी है । होठों का जो था टकराना । बाहों में आना । घुलते जाना । अब तक यादे ताज़ी है । तेरा आना तेरा जाना । आँखों में जो प्यार भरा । लफ्जों से कर इज़हार जरा । सब कुछ मैंने अब बोल दिया । तू भी कुछ बतला जाना । अब तू इतना तरसा ना । या तो आना । या तो जाना । ओ बादल बूंदें बरसाना ।
और इनके ब्लाग हैं - कवितायें मायाजाल । शशि की कवितायें । ब्लाग पर जाने हेतु क्लिक करें ।
त'अर्रुफ़ - मजाज़ लखनवी
ख़ूब पहचान लो असरार हूँ मैं । जिन्स ए उल्फ़त का तलबग़ार हूँ मैं ।
इश्क़ ही इश्क़ है दुनिया मेरी । फ़ितना ए अक़्ल से बेज़ार हूँ मैं ।
छेड़ती है जिसे मिज़राब ए अलम । साज़ ए फ़ितरत का वही तार हूँ मैं ।
ऐब जो हाफ़िज़ ओ ख़य्याम में था । हाँ कुछ इसका भी गुनहगार हूँ मैं ।
ज़िन्दगी क्या है गुनाह ए आदम । ज़िन्दगी है तो गुनहगार हूँ मैं ।
मेरी बातों में मसीहाई है । लोग कहते हैं कि बीमार हूँ मैं ।
एक लपकता हुआ शोला हूँ मैं । एक चलती हुई तलवार हूँ मैं ।
साथ चलते आ रहे हैं पास आ सकते नहीं । इक नदी के दो किनारों को मिला सकते नहीं ।
देने वाले ने दिया सब कुछ अजब अंदाज से । सामने दुनिया पड़ी है और उठा सकते नहीं ।
इसकी भी मजबूरियाँ हैं, मेरी भी मजबूरियाँ हैं । रोज मिलते हैं मगर घर में बता सकते नहीं ।
आदमी क्या है गुजरते वक्त की तसवीर है । जाने वाले को सदा देकर बुला सकते नहीं ।
किसने किसका नाम ईंट पे लिखा है खून से । इश्तिहारों से ये दीवारें छुपा सकते नहीं ।
उसकी यादों से महकने लगता है सारा बदन । प्यार की खुशबू को सीने में छुपा सकते नहीं ।
राज जब सीने से बाहर हो गया अपना कहाँ । रेत पे बिखरे हुए आँसू उठा सकते नहीं ।
शहर में रहते हुए हमको जमाना हो गया । कौन रहता है कहाँ कुछ भी बता सकते नहीं ।
पत्थरों के बर्तनों में आँसू को क्या रखें । फूल को लफ्जों के गमलों में खिला सकते नहीं ।
- सभी जानकारी और सामग्री शशिप्रकाश सैनी जी के ब्लाग से साभार । इनके ब्लाग पर जाने हेतु इसी लाइन पर क्लिक करें ।
इनका शुभ नाम है - Shashiprakash Saini और इनकी Industry है - Student और इनकी Location है - mumbai, Maharashtra, India बस इससे ज्यादा इनके बारे में कुछ पता नहीं । क्योंकि इन्होंने लिखा ही नहीं । अच्छे खासे कविता शायरी का शौक रखते हैं शशि जी । पर जाने क्यों अपने बारे में कुछ कहा ही नहीं । खैर..अपने बारे में न कहा । न ही सही । पर शशि जी की कविता । क्या खूब कही । क्या खूब कही । आप भी पढिये । और इनके ब्लाग की तरफ़ बढिये - वो ठंडी पवन का झोंका था । जो तूने हमको रोका था । वो सावन की बरसातें थी । सोंधी सोंधी सी बाते थी । छोटी मोटी जो अनबन
थी । बिजली की फिर जो गर्जन थी । तेरा बाहों में आ जाना । नज़रों का जो वो टकराना । अब तक यादो में ताज़ी है । होठों का जो था टकराना । बाहों में आना । घुलते जाना । अब तक यादे ताज़ी है । तेरा आना तेरा जाना । आँखों में जो प्यार भरा । लफ्जों से कर इज़हार जरा । सब कुछ मैंने अब बोल दिया । तू भी कुछ बतला जाना । अब तू इतना तरसा ना । या तो आना । या तो जाना । ओ बादल बूंदें बरसाना ।
और इनके ब्लाग हैं - कवितायें मायाजाल । शशि की कवितायें । ब्लाग पर जाने हेतु क्लिक करें ।
त'अर्रुफ़ - मजाज़ लखनवी
ख़ूब पहचान लो असरार हूँ मैं । जिन्स ए उल्फ़त का तलबग़ार हूँ मैं ।
इश्क़ ही इश्क़ है दुनिया मेरी । फ़ितना ए अक़्ल से बेज़ार हूँ मैं ।
छेड़ती है जिसे मिज़राब ए अलम । साज़ ए फ़ितरत का वही तार हूँ मैं ।
ऐब जो हाफ़िज़ ओ ख़य्याम में था । हाँ कुछ इसका भी गुनहगार हूँ मैं ।
ज़िन्दगी क्या है गुनाह ए आदम । ज़िन्दगी है तो गुनहगार हूँ मैं ।
मेरी बातों में मसीहाई है । लोग कहते हैं कि बीमार हूँ मैं ।
एक लपकता हुआ शोला हूँ मैं । एक चलती हुई तलवार हूँ मैं ।
साथ चलते आ रहे हैं पास आ सकते नहीं । इक नदी के दो किनारों को मिला सकते नहीं ।
देने वाले ने दिया सब कुछ अजब अंदाज से । सामने दुनिया पड़ी है और उठा सकते नहीं ।
इसकी भी मजबूरियाँ हैं, मेरी भी मजबूरियाँ हैं । रोज मिलते हैं मगर घर में बता सकते नहीं ।
आदमी क्या है गुजरते वक्त की तसवीर है । जाने वाले को सदा देकर बुला सकते नहीं ।
किसने किसका नाम ईंट पे लिखा है खून से । इश्तिहारों से ये दीवारें छुपा सकते नहीं ।
उसकी यादों से महकने लगता है सारा बदन । प्यार की खुशबू को सीने में छुपा सकते नहीं ।
राज जब सीने से बाहर हो गया अपना कहाँ । रेत पे बिखरे हुए आँसू उठा सकते नहीं ।
शहर में रहते हुए हमको जमाना हो गया । कौन रहता है कहाँ कुछ भी बता सकते नहीं ।
पत्थरों के बर्तनों में आँसू को क्या रखें । फूल को लफ्जों के गमलों में खिला सकते नहीं ।
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