BANKING जैसे Occupation से जुङे पर आम आदमी और जन्मभूमि मातृभूमि की वेदना को दिल से महसूस करने वाले उमाशंकर जी से आज आपको मिलवाते हैं ।
अक्सर ब्लागर about me यानी प्रोफ़ायल में मेरे बारे में ..अपना संक्षिप्त परिचय भी नहीं लिखते । इससे जुङने वाले पाठक को एक कमी सी खलती है । खैर..दुर्ग छत्तीसगढ के ब्लागर्स का देश प्रेम । सत्ता व्यवस्था के प्रति आक्रोश । और आम आदमी की वेदना । कुरीतियों पर प्रहार आदि ज्वलंत भावनायें ही उनका असली परिचय है । चलिये आज मिलते हैं । छत्तीसगढ के ऐसे ही ब्लागर उमाशंकर जी से । इनका शुभ नाम है - उमाशंकर मिश्रा UMA SHANKER MISHRA और इनकी Industry है - Banking और इनका Occupation भी है - BANKING और इनकी Location है - DURG, C.G., India और इनका Interests है - WRESTLING, SWIMING और इनकी Favourite Films हैं - GANDHI, PUSHPAK, SHOLEY और इनका Favourite Music है - MUKESH, RAFI, LATA और इनकी Favourite Books हैं - RAMAYAN, SHANTI PATH DARSHAN, VAYAM RAKSHAAMI और ये हैं इनके ब्लाग - उजबक गोठ ujbakgoth ब्लाग पर जाने हेतु नाम पर क्लिक करें ।
और ये हैं । इनके ब्लाग से कुछ रचनायें -
कुंडली
मुट्ठी में सूरज लिए । अंगारों में जान । क्रांति बीज है पल रहा । जाग रहा इंसान ।
जाग रहा इंसान । भृष्टता दूर भगाओ । जनगण हैं तैयार । अनल भर मुट्ठी लाओ ।
धुआँ हो रही आग । पिये हम विष की घुट्ठी । देंगे अब बलिदान । भींचते सब हैं मुट्ठी ।
- ओ.बी.ओ.चित्र काव्य प्रतियोगिता अंक 17 में प्रथम पुरस्कार प्राप्त रचना
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नयन
नयन भेद बृह्मास्त्र सम । महा भेद्य यह तीर । चोट हृदय पर धारती । नयन बहाये नीर ।
नयन करे प्रभु बंदगी । बना मनन को तार । दृश्य अलौकिक देखता । स्वर्ग नयन है द्वार ।
नयन देख पर जग लड़ा । नयन कराये प्रीत । काम नयन जो पी गया । कहें कामना जीत ।
तीन नयन शिव नेत्र हैं । बरसे आगी आँख । नयनों की चिंगारी से । किया काम को राख ।
नयन धार जो नास्तिक । अंधा सर्प समान । इधर उधर है भागते । जब तक न तजे प्रान ।
बंद नयन आलोकती । भीतर घटे प्रकाश । पदमासित विचरण करे । सत कोटी आकाश ।
- ओ.बी.ओ.लाईव महोत्सव में सम्मलित
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चन्द्रमा के चित्र पर आधारित
चंद्र शिव भाल लगाय ।
विष ज्वाला शीतल करन । शिव जी भाल लगाय । अर्ध चन्द्रमा सोहते । औघड़ रूप सजाय ।
औघड़ रूप सजाय । बने थे शिव जी जोगी । तब से वर्षा करे । चन्द्र बन अमृत डोंगी ।
चन्द्र किरण की आब । बने अमृत का प्याला । शरद पूर्णिमा रात । भसम हो विष की ज्वाला ।
- ओ.बी.ओ.महोत्सव में शामिल
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यह हमारे वक्त की सबसे सही पहचान है ।
आदमी को आदमी कहता नहीं इंसान है । भेड़ बकरी की तरह चढ़ रहा परवान है ।
इस सियासत के मुताबिक राज अपना हो गया । हम ही कुचले जा रहे अलफास बे ईमान है ।
लालसा दौलत की लेके वो सियासि कर गये । वोट नोटों पर बिके वो बन गये धनवान है ।
घूस भृष्टाचार सह कर चुप खड़ा है आदमी । किस भरत के भारत को बोला गया महान है ।
नीतियाँ भी बिक गई ईमान भी है बिक गया । यह हमारे वक्त की सबसे सही पहचान है ।
संसद में भी भिं भोरा उस जहर के नाग का । जिस जहर की तड़प से माँ भारती हैरान है ।
अन्याय सह चुप बैठ कर मर गया इंसान है । अर्थियां ही अर्थियां है सब तरफ शमशान है ।
अब जुबां की चोट पर है उठ रही चिंगारियां । जल न जाये ये सियासत वो बड़े हैरान है ।
धर्म का फतवा हुआ उस नाखुदा के नाम पर । खून सडकों पर बहा हिंदू ना मुसलमान है| ।
है फकीरी में यहाँ हर पाक नगमागार है । यह हमारे वक्त की सबसे सही पहचान है ।
देखते अखबार को क़त्ल सरे राह हुवा । सब तमाशाबीन नजरें क्यूं यहाँ अंजान है ।
बो फसल जो पेट भरता भूख से वह मर गया । सूदखोरी बेड़ियों में बंध गया किसान है ।
भर मिलावट से यहाँ हर चीज क्यों है तरबतर । नोट के सौदागरों ने ली हजारों जान है ।
बिक रहा है आदमी रुपयों की झंकार पर । नाचती अबला यहाँ सुन रूपए की तान है ।
चोरियां जो कर रहा है कुर्सियों में बैठ कर । छोड़ दे नालायकी उठती वहाँ अजान है ।
इस शहर में भीड़ है मैय्यत वहीँ पे रोक दो । कब्र पर रहने लगे खाली नहीं शमशान है ।
इंसा खाता था रोटी खा रही हैं रोटियां । यह हमारे वक्त की सबसे सही पहचान है ।
रेत पत्थर कंकडों को अब पचाना सीख लो । पेड़ कटते जा रहे बस मकान ही मकान है ।
- तरही मुशायरा में प्रस्तुत रचना
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जागो जागो ....रे
जागो जागो भारतवासी ये कैसी मंहगाई है । चावल दाल में आग लगी है दीन हीन को खाई है ।
पी.एम.यहाँ विश्व बैंक के पुराने खिदमदगाई है । बढ़ते बढ़ते बढ़ती जाए जैसे मौत की खाई है ।
महंगाई की थाह नहीं है जाने कितना जायेगी । पूछे कौन समुद्र से तुझमें कितनी गहराई है ।
सब्जी भाजी से ना पूछो शर्म लिए कुम्हलाई है । पेट्रोल हुआ कंपनियों का शाह अरब ये भाई है ।
बिजली बिल भी रोता है क्यों शासन करे कमाई है । दैनिक जीवन की हर वस्तु ख्वाबों की परछाई है ।
आई एक दहाड़ मंच से शामत उनकी आई है । समझो समझो खद्दर धारी खुलने लगी कलई है ।
- ओ.बी.ओ.तरही मुशायरा में प्रस्तुत गज़ल
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उजबक वाणी
जन सेवा के नाम पर । वोट मांगने आय । चुनते ही सरकार में । लूट लूट सब खाय ।
मुस्काते मनमोहने । सुरसा डालर आज । मतदाता घायल हुआ । फिर भी करते नाज ।
त्राहि त्राहि है देश में । कौन यहाँ बदनाम । एक ही थैली में घुसे । चट्टे बट्टे नाम ।
धीमा विष महंगाई का । धीमी हो गई साँस । नेतागण बेफिकरा । जन गर्दन में फांस ।
डालर रुपया लड़ रहे । चौसर बिछी बिसात । जनता पांडव लुट गई । शकुनी दे रहा मात ।
माया बन पेट्रोल अब । ठगनी खेले खेल । आम आदमी पिस गया । जीवन ठेलम ठेल ।
उनकी कोठी भर गई । भृष्ट जीभ से चाट । आम आदमी मर गया । आँगन उलटी खाट ।
महंगाई मस्त है । आम आदमी पस्त है ।
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बस्तर की व्यथा -
बस्तर की व्यथा । कोई इतिहास के झरोखों से झांके । अंधेरों में भी दिखेंगी ।
भयातुर मेरी वेदना भरी आँखे । आदिम युग की समेटे वह तस्वीर ।
दिखेगी रोती बिलखती । भूखी अंजान रधिया की तक़दीर ।
मै बस्तरिया अबुझमाड़ की गाथा । वस्त्र विहीन आदिम संस्कृति ।
ढो रहा अभाव में डूबी नग्न पावनता । आते जाते सैलानियों के कैमरों में ।
समा जाता हूँ बन के - कला । मेरे वक्ष से लटकती - माँ ।
आँखों में सूखे उन आंसुओं की छाप । मेरा सब कुछ अजगर बन निगल रहा ।
नक्सली आतंकी सांप । विस्फोंटो में उड़ गया मेरा अभिमन्यु ।
निगल गया मेरे अर्जुन का गांडीव । हवाओं में गोलियों की फुहार ।
मर रहा है बिसेसर । मर रही है रधिया आज । उजड़ रहा है रोज परिवार ।
खामोश हैं सब देश संसद । मेरी निजता नहीं है ना - ताज ।
- मुंबई के होटल ताज पर आतंकी हमला हुआ था । पूरा देश प्रशासन संसद क्रियाशील हो गए थे । आतंकी चाहे बाहर का हो । या अंदर का । है तो आतंकी । जिसे देशद्रोही ही माना जाता है । मुंबई चूँकि संपन्न है । होटल ताज एक संपन्न व्यक्ति की धरोहर है । क्या इसीलिए तुरंत कार्यवाही की गई ?
आज बस्तर कई साल से आतंक से पीड़ित है । क्यों कोई सार्थक पहल अभी तक नहीं हो सकी । क्यों ? क्यों गरीब की मौत मौत नहीं है ?
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जन सेवा मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है । मुझे देश की भावी जनता से प्यार है ।
मुझे कुर्सी दिलाने में इनका हाथ है । मेरी झोपड़ी को महल बनाने में इनका साथ है ।
इनके अहसानों के बदले देता हूँ आश्वासन । बड़े मुश्किल में तैयार किये भाषण ।
कागज के पन्नों में बांटता हूँ राशन । इतने करने में भी ये जनता रोती है ।
किये कराये कर्मों को आसुओं से धोती है । अरे ! मैं मंत्री हूँ ....
कुछ कद्र करो मेरे आश्वासनों की । मेरे मुखार वृन्द से कहे सम्भाषणों की ।
क्या जनसेवक होना छोटी बात है ? तुम हो एक वोट जो तुम्हारी जात है ।
तुम्हारी दिलाई कुर्सी कल छीन जायेगी । हमारा आश्वाशन हमेशा जिन्दा रहेगा ।
अमर रहेगा.....
तुम्हारी रोतीं बिलखती आँखों को धिक्कार है । मुझे तुम्हारे खून के एक एक कतरे से प्यार है ।
जनसेवा मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है । जनसेवा मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है ।