Saturday 1 September 2012

बापू यहीं पर आपसे चूक और नादानी हो गयी



मैंने बहुत कोशिश की । पर मुझसे कविता नहीं लिखी गयी । मेरी प्रेमिका ने एक बार लगभग रूठ कर कहा - देखो तुम कोई कविता क्यों नहीं लिखते । और मैंने देखो । तुम्हारे लिये कितनी सुन्दर कविता लिखी है - जब तुम आओगे प्रिय । परांठे आलू के बनाऊँगी । फ़िर । धनिये की चटनी और दही से खिलाऊँगी । मैंने कहा - गजब की कवियत्री है तू तो । एक तीर से कई निशाने । प्रेम प्यार । खाना पीना सब एक साथ निबटा दिया । फ़िर उसने भी जिद की । मैं भी कुछ लिखूँ । और मैंने लिखा - किनारा पा गया था तेरे आने से डूब गया । अच्छा खासा मूड तेरी बातों से ऊब गया ।,,अब आप समझ सकते हो । उसने मुझे कैसे बङिया आलू के परांठे खिलाये होंगे ? चलिये । आज आपका परिचय कराते हैं । ब्लागर धीरेन्द्र भदौरिया जी से ।
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क्यों था उङने को व्याकुल मेरा मन । वह नव बसंत का आगमन था । जी हाँ इनका शुभ नाम है - श्री धीरेन्द्र भदौरिया । और इनका Occupation है - कृषि । और इनकी Location है - वेंकट नगर । अनुपपुर । मध्य प्रदेश । पिन - 484113 India धीरेन्द्र जी अपने Introduction में कहते हैं - बर्तमान में ( म.प्र. ) के जिला अनुपपुर में किसान कांग्रेस कमेटी का जिला अध्यक्ष हूँ । शेष कुछ खास नहीं । अगर फ़ोन करना चाहो । तो मेरा

मोबाइल नम्बर ये है - 97526 85538 और इनका Interests है - राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना । कवितायें लिखना । और इनकी Favourite Films हैं - मदर इंडिया । मिलन । गाइड आदि । और इनका Favourite Music है  - गजल । भजन । लोक संगीत आदि । और इनकी Favourite Books हैं - गोदान । गोरा । चंद्रकांता आदि । और ये है । इनकी कविता की झलक - तब दोस्त हम थे और दुश्मन तुम थे । लोग कश्तियाँ बदलते थे । तुम हमसफ़र बदलते थे । और इनके ये 3 ब्लाग्स हैं - मेरा मन मन की फ़ुहार काव्यांजलि । जिस ब्लाग पर जाना हो । उसी नाम पर क्लिक करें ।
और ये हैं इनकी कुछ रचनायें -  
पुराने रास्ते -
मंजर भी वही था रास्ते अलग थे । मंजिल वही थी पर हमसफ़र अलग थे ।
कहानी वही थी पर सपने अलग थे । आवाज़ वही थी पर कदम अलग थे ।

चाँद भी आराम पे था रास्ता भी सुनसान था । पीछे से आवाज़ आयी मैं कुछ हैरान था ।
मैं कुछ चौंका मैं कुछ ठिठका । मन में कुछ खटका हाथ से मते कुछ चटका ।
तुम कहाँ चले ? हमें था इतंजार तेरा । बेशर्मो की तरह चले जा रहे हो । 
मंजिल की तरफ बढे जा रहे हो । मैं वही हूँ रास्ता पुराना तेरा । 
मैं वही हूँ  हमसफ़र पुराना तेरा । अब मैं क्या कहूँ साथी मेरे । 
हम तो दुनिया से अलग थे । मंजिल मेरे यार तो अब और तब भी वही थी ।
तब दोस्त हम थे और दुश्मन तुम थे । लोग कश्तियाँ बदलते थे । तुम हमसफ़र बदलते थे ।
नसीब तो मेरे साथ नहीं था । पर तुम मेरे साथ कहाँ थे ।
मंजर भी वही था रास्ते अलग थे ।  मंजिल वही थी पर हमसफ़र अलग थे ।
प्यार का सपना -

शाम होते उनका इन्तजार होता है । तकरार में भी उनका प्यार होता है ।
नीचे झुका लेते है हम अपनी नजरें । सपने में जब उनका दीदार होता है ।
अश्क जब आते हैं उनकी आँखों में । नजारा बिलकुल झील जैसा होता है ।
रख लेते जब उन्हें अपने दामन में । तो दामन सोने सा सुनहरा होता है ।
मांझी की नहीं जरूरत होगी हमको । उनका साथ ही किनारे जैसा होता है ।
शाहजहाँ मुमताज ताज महल जैसा । चाँद सितारों सा अपना प्यार होता है ।
पाँच सौ के नोट में -
वाह गांधी । पहन कर खादी । क्या चली तुम्हारे नाम की आंधी ।
आजादी के सपने दिखा कर । असहयोग आंदोलन कराकर । सत्य और अहिंसा का पाठ पढाया ।
15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से । हिन्दुस्तान आजाद कराया । 
बापू ? यहीं पर हो गयी चूक । आपसे हो गयी नादानी ।
बेकार गयी । लक्ष्मीबाई भगत सिंह जैसे । अमर शहीदों की कुर्बानी ।
देश तो आजाद हो गया पर हमने । और हमारे देश ने क्या पाया ?

पाया सिर्फ - आतंक, गरीबी, अत्याचार । महंगांई, नेता, भ्रष्टाचार
इनके बारे में । आपके क्या है विचार ।
अपने तीन बंदरों की तरह । आँख कान मुँह बंद किये । क्यों बैठे हो ?
कुछ करते क्यों नहीं । कुछ बोलते क्यों नहीं । जरूर दाल में काला है ।
लगता है परदे में ? मुन्ना भाई से दोस्ती कर । 
अपने आपको भृष्टाचार के । दलदल में फँसा डाला है ।
इसीलिये आप मौन हैं । जिंदगी भर संघर्ष किया । एक लाठी और लंगोट में
और आजकल । बैठे दिखाई पड रहे हो । पांच सौ के नोट में ।
- धीरेन्द्र भदौरिया 

आवश्यक सूचना

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