आज एक युवा मगर ह्रदय की अतल गहराईयों में छिपी असीम संवेदनाओं की सशक्त भावव्यक्ति करने वाले ब्लागर स्वपनेश चौहान से मिलना हुआ । चलिये । जल्दी से आपको भी इनसे मिलाते हैं ।
टूट रहा हूँ । या तराशा जा रहा हूँ । जैसी वजनदार बात से अपने ह्रदय की गहरी संवेदनाओं को व्यक्त करने वाले स्वपनेश चौहान से आपका परिचय कराते हैं । वैसे स्वपनेश का परिचय देने के लिये मुझे शब्दों का ताना बाना बुनने की जरूरत नहीं है । स्वपनेश अपना परिचय आप ही हैं । स्वपनेश अपने परिचय में कहते हैं - मन की बात - रोज दो आँखों और दो कानों से जो कुछ दिल के समुन्दर तक जाता है । उनमें से जो सतह पर ही रह जाता है । वो तो ज़ुबाँ से बाहर आ जाता है । लेकिन जो समुन्दर की तलहटी में चला जाता है । अक्सर वो ज़ुबाँ से बाहर नहीं आता । और कलम से अक्सर बाहर आ जाता है । जिस तरह से कोई कलश समर्थ नहीं होता कि वो समुन्दर को नाप सके । उसी तरह से ये शब्द भी समर्थ नहीं हैं कि वो पूरी तरह से दिल की भावनाओं को व्यक्त कर सकें । और समर्थ हो भी क्यों ? जिस दिन ये समर्थ हो गये । क्या उस दिन कलम रुक नहीं जाएगी । और कलम का रुक जाना । क्या मेरे लिए धड़कन का रुक जाना नहीं होगा ? खैर.. जब तक धड़कन चल रही है । मेरी कलम भी यहाँ पर चलती रहेगी । और इनका ब्लाग है - आखिरी पथ । ब्लाग पर जाने हेतु क्लिक करें ।
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बाहर निकलूँगा तो फिर उन्हीं हालात से सामना होगा । धूप में नहाई हुई रात से सामना होगा ।
खुद में दबाए हुए जज़बात से सामना होगा । जाने पहचाने मुखौटों में मिलेंगे सारे अजनबी ।
फिर ग़मों का हँसी की बरसात में सामना होगा । बाहर निकलूँगा तो फिर उन्हीं हालात से सामना होगा ।
फिर मुझे अपना अक्स दिखेगा किसी के अन्दर । फिर उमड़ेगा भावनाओं का किसी के लिए दिल में समन्दर । फिर मुझे दिल पे किसी आघात का सामना होगा । बाहर निकलूँगा तो फिर उन्हीं हालात से सामना होगा । दोस्ती में छुपी अदावत से सामना होगा । रोज अपनों की बग़ावत से सामना होगा ।
मंजिल की होड़ में दौड़ती लाशों से सामना होगा । फिर रकीबों से हसीं मुलाकात में सामना होगा ।
बाहर निकलूँगा तो फिर उन्हीं हालात से सामना होगा ।
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जहाँ मेरे शब्द नहीं जाते ।
ऐसी कौन सी जगह जहाँ मेरे शब्द नहीं जाते । जहाँ जहाँ जाता हूँ मैं बस वहीं नहीं जाते ।
मुझे भी आदमियों की अब समझ होने लगी । तभी तो अब हर किसी के करीब हम नहीं जाते ।
तुम्हारी फितरत कि आम तुम कभी बन नहीं सकते । हमारा उसूल कि किसी खास के दर पर हम नहीं जाते । जो जाते हैं तो दिन भर में हजारों बार जाते हैं । नहीं जाते तो ता उमृ किसी के घर नहीं जाते ।
यहाँ पर कौन सी मंजिल को पाने के लिए आया । यहाँ तो दूर दूर तक कहीं रस्ते नहीं जाते ।
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हाथ का ख़ंज़र नजर आने लगा है ।
अच्छा हुआ कि तेरा बुरा वक्त अब जाने लगा है । कम से कम तेरा असली चेहरा नजर आने लगा है ।
इस सफर के आखिरी दौर तक हमसफ़र बन के जो रहा । छुपा हुआ उसके हाथ का ख़ंज़र नजर आने लगा है । कौन जाने किस जगह कब साथ मेरा छोड़ दे तू । अब तुझे मुझसे हसीं हर हमसफ़र नजर आने लगा है ।
आखिरी वक्त तक जो साथ निभाने का वादा किये थे । हर उस वादे का अब आखिरी वक्त नजर आने लगा है । अपने ख़ूँ से जिस शजर को सींचता आया अभी तक । मेरे ही ख़ूँ का प्यासा अब वो शज़र नज़र आने लगा है । देखना है किसके हक में आएगा अब तेरा फैसला । ऐ ख़ुदा ! इंसान तुझसे
खौफज़द नज़र आने लगा है ।
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विसंगति ।
क्या रिमझिम बरसात हुई है । मिट गए होंगे वो शब्द ।
जो लिखे गए होंगे रेत पर । आसानी से अपनी बात कह सकने के लिए ।
अभी अभी जो बने थे । रेत के घर । हो गए होंगे अस्तित्वहीन ।
रह गए होंगे । केवल वे संवाद । जो लिखे गए होंगे किसी पत्थर पर ।
किसी पत्थर के द्वारा । बच गया होगा केवल उनका अस्तित्व ।
जिनके घर की दीवारें । सक्षम हैं । प्रकृति को । उनके घर के बाहर ही रोक पाने में ।
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जीने वालों के लिए नज़ीर हो गया हूँ ।
तुमसे जितना ज़्यादा मैं दूर हो गया हूँ । खुद के नशे में उतना ही चूर हो गया हूँ ।
तुम साथ होते तो अधूरा ही रहता । तुम्हारे बिन सम्पूर्ण हो गया हूँ ।
अब मुड़ना यहाँ से मुनासिब नहीं है । पीछे वालों के लिए मैं पीर हो गया हूँ ।
कभी जीना भी था मुहाल और अब । जीने वालों के लिए नज़ीर हो गया हूँ ।
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तूफान में अकेला दिया ।
भयंकर तूफान में अकेला दिया मैं जल रहा हूँ । बस इसी कारण हर किसी को ख़ल रहा हूँ ।
हर कदम पे ठोकरें मार देता है ज़माना । बस इसी कारण आज तक मैं चल रहा हूँ ।
एक बस तूने मुझे आज तक ठुकराया नहीं । हर दर से ठोकर खाकर इसीलिए मचल रहा हूँ ।
सफ़र का अन्त तेरे दीदार से करना है मुझे । विष से सिंचित होकर भी इसीलिए तो फल रहा हूँ ।
मौत भी आएगी मुझे हर वादा निभाने के बाद । आज तक मैं अपनी हर बात पर अटल रहा हूँ ।
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सोचकर चले थे कि रस्ता छोटा है ।
मर्ज़ जब लाइलाज़ होता है । तभी क्यों जमकर इलाज़ होता है ?
कश्ती चलाने को बादवाँ* काफी था । नाखुदा* क्यों सवार होता है?
ज़िन्दा रहने पर शोक करते हैं लोग । यहाँ मर जाने पर मल्हार होता है ।
पुकार पुकार के थक गया तुझको । क्या सच है कि खुदा सोता है ?
तुझे और सिर्फ तुझे चाहा किया । तुझे पाकर ये यकीं नहीं होता है ।
ये कैसा मोड़ है ज़िन्दगी तेरा । यहाँ हर आदमी क्यों रोता है ?
हर एक आँख का निशाना है जो । वो आँख खोलकर आज सोता है ।
मृग मरीचिकाओं से हूँ घिरा हुआ । अब मेरी आँख भी एक धोखा है ।
नए दौर में हो जाएगा नीलाम । सम्भाल कर रखना जो सिक्का खोटा है ।
बहुत दूर निकल आए अपने घर से हम । सोचकर चले थे कि रस्ता छोटा है ।
बादवाँ - पाल ( जिससे हवा के सहारे नाव चलती है ) नाखुदा - नाविक
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कागज़ पे बिखर जाता हूँ ।
नक्श ए इमरोज* से आगे जब निगाह दौड़ाता हूँ । खुद को फैला हर जगह और खुद में सिमटा हुआ पाता हूँ । जब कभी आज के हालात पर निगाह उठाता हूँ । खुद को तन्हा दूर बहुत दूर तलक पाता हूँ ।
और जब अतीत के दरवाजे से गुजर आता हूँ । खुद के टुकड़े जोड़कर कागज़ पे बिखर जाता हूँ ।
इमरोज - वर्तमान
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क्या मैं भी बस होने के लिए हूँ ।
क्या मैं भी बस होने के लिए हूँ ?
इस जहाँ के सुख में हँसने । और । दुःख में रोने के लिए हूँ ?
क्या मैं भी बस होने के लिए हूँ ?
क्या आजीविका कमाने और । खाने पीने सोने के लिए हूँ ?
क्या मैं भी बस होने के लिए हूँ ?
अतीत की फसलें काटने । और नई बोने के लिए हूँ ?
क्या मैं भी बस होने के लिए हूँ ?
इस समूचे संसार के । एक अदद कोने के लिए हूँ ?
क्या मैं भी बस होने के लिए हूँ ?
जि़न्दगी की भागदौड़ में । अपने अस्तित्त्व को । अंततः खोने के लिए हूँ ?
क्या मैं भी बस होने के लिए हूँ ? क्या मैं भी बस होने के लिए हूँ ?
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क्या खूब तेरी मेरी दासताँ ।
क्या खूब तेरी मेरी दासताँ रही । तू सामने रहा फिर भी दूरियाँ रहीं ।
मिलते रहे हमेशा पर मिल ना सके कभी । ना जाने कैसी तेरी मज़बूरियाँ रहीं ?
हम तो हमेशा ही से तुम्हारे करीब रहे । तुम्हारे ऐनक ही में कुछ कमजोरियाँ रहीं ।
जब भी मिले वो हमसे तो दूर ही से मिले । दुनिया की नज़रों में हमेशा करीबियाँ रहीं ।
हम बखूबी जानते हैं उनके बोलने का मतलब । दुनियावी शिष्टाचारों की बेडि़याँ रहीं ।
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अज़ब कि तू मुझसे रू ब रू है ।
जहाँ तक आरजू जाती है मेरी । वहाँ तक सिर्फ तेरी आरज़ू है ।
जितनी राहें तुझ तक जा रही हैं । वहाँ पर सिर्फ तेरी जुस्तज़ू है ।
अजब ये तुझसे मेरी गुफ्तगू है । मेरे हर लफ़्ज़ में छिपा सिर्फ तू है ।
हुआ ना मैं कभी रू ब रू खुद से । अज़ब कि तू मुझसे रू ब रू है ।
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जि़न्दगी की नदी में ।
जि़न्दगी की नदी में । हर एक तट से । अलग । रहना पड़ेगा । हाँ ! तुम्हें बहना पड़ेगा ।
हम करेंगे । भला क्या अर्पण ? हाँ ! तटों के । विसर्जन भार को । उमृ भर । सहना पड़ेगा ।
हाँ ! तुम्हें बहना पड़ेगा ।
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कच्चे पारे की मूरत ।
लाख कोशिशें कर लो । वो । किसी के । हाथ । नहीं आएगी ।
वो । कच्चे पारे की । मूरत है । जितना । पकड़ना चाहोगे । टूटती ही जाएगी । बिखरती ही जाएगी ।
इसलिए । बेहतर है कि । उसका दीदार । दूर से ही करो ।
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सच्चा मित्र ।
शब्द ही बताता है । कि । किसी मित्र ने । सरेशाम ।
लूट ली होगी । मित्रता की इज्जत । भरे बाजार में ।
घोप दिया होगा । छुरा । चुपके से । मित्र की । पीठ में ।
वरना । मित्र का मतलब ही । सच्चा । हुआ करता था ।
कभी…।
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