छत्तीसगढ की आंचलिक बोली के माधुर्य से सजे ब्लाग को देखना और अरुण कुमार निगम से परिचय होना खास कर खङी बोली पढने की आदत वालों को एक नयेपन का अहसास कराता है । पाठकों को कोई असुविधा न हो । इसके लिये अरुण जी अपनी रचना के नीचे शब्दार्थ भी देते हैं । इस तरह आपके शब्द ज्ञान और आंचलिक भाषा ज्ञान में भी अनायास वृद्धि होती है । ब्लागर परिचय की श्रंखला के अंतर्गत आज आपका परिचय छत्तीसगढी ब्लागर - श्री अरुण कुमार निगम से कराते हैं ।
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इनका शुभ नाम है - अरुण कुमार निगम । और इनकी Industry है - Banking और इनकी Location है - DURG, CHHATTISGARH, India अरुण जी ने अपने परिचय में खास प्रोफ़ायल में इससे अधिक कुछ नहीं बताया है । परन्तु इनकी कविताओं गीत गजल से इनके व्यक्तित्व और चरित्र का बखूबी परिचय होता है । जो देश प्रेम और सामाजिक चेतना के उन्नयन की भरपूर भावना से सराबोर है । देखिये - नदिया नरवा डबरी डोंगरी । कर
पार उहाँ अगुवावत हैं । बम बारुद बंदूक संग खेलैं । बइरी दुश्मन ला खेदारत हैं । बीर जंग मा खेलैं होरी असली । देखौ लाल लहू मा नहावत हैं । गोली छाती मा झेलत हैं हँस के । दूध के करजा ला चुकावत हैं । और जैसे ये - तुरते मार भगाव । खूब गरजो ललकारो । आयँ सपड़ - मां उन्हला । पटक पटक के मारो । छत्तीसगढ की आंचलिक भाषा और भावों से सजे इन मधुरता युक्त गीतों का रसास्वादन करने हेतु आपको अरुण जी के ब्लाग पर जाना होगा । और इनके ब्लाग हैं - टैस्ट चर्चा मंच । श्रीमती सपना निगम ( हिंदी ) SIYANI GOTH . mitanigoth . अरुण कुमार निगम ( हिंदी कवितायें ) arun kumar nigam tippani इच्छित ब्लाग पर जाने हेतु उसी ब्लाग नाम पर क्लिक करें ।
और ये हैं । इनके ब्लाग से कुछ रचनायें । वीर सिपाही -
वीर सिपाही फउज के । तुम सब झिन बन जाव । बइरी मन आ जायँ तो । तुरते मार भगाव ।
तुरते मार भगाव । खूब गरजो ललकारो । आयँ सपड़ - मां उन्हला । पटक पटक के मारो ।
विजय तुम्हर हो ही । तुम्हला सब झिन सँहराहीं । नाम कमाओ । बनो फउज के वीर सिपाही ।
- तुम सब फौज के वीर सिपाही बन जाओ । यदि दुश्मन आ जायें । तो उन्हें तुरंत मार भगाओ । खूब गरजो । और ललकारो । यदि पकड़ में आ जायें । तो उन्हें मार डालो । तुम्हारी विजय होगी । तुम्हें सभी सहरायेंगे । फौज के वीर सिपाही बनकर नाम कमाओ ।
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हिंद का स्वर्णिम परब । पंद्रह अगस्त पुनीत आया । नव उमंगें नव तरंगें । सुभग नव संदेश लाया ।
आज ही नूतन हुआ था । बदल कर इतिहास अपना । आज ही के दिन हमारा । था हुआ साकार सपना ।
आज ही टूटे थे बंधन । पर वशा माँ भारती के । आज ही हर घर जले थे । जगमगाते दीप घी के ।
आज ही के दिन हटे थे । विवश होकर के फिरंगी । आज ही नव ललित । लहराई पताका थी तिरंगी ।
आज ही के दिन खिली थी । उन शहीदों की सु टोली । खिल उठा था बाग जलियाँ । खिल उठी थी बार डोली ।
आज जनता हिंद की । मन में नहीं फूली समाती । आज तिलक सुभाष गाँधी के सुमंगल गान गाती ।
आज अपने देश का । होगा यही बस एक नारा । अमर हो स्वाधीनता । फूले फले भारत हमारा ।
शीघ्र कर दें दूर मिलकर । हिंद की सारी व्यथाएँ । प्रेरणा देती रहें । हमको शहीदों की कथाएँ ।
- जनकवि स्व.कोदूराम “ दलित ”
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सब सूतत हैं उन जागत हैं । जाड़ घाम मा मुचमुचावत हैं ।
तज दाई ददा भईया भउजी । जाके जंग मा जान गँवावत हैं ।
कोनों किसिम के बिपदा के घड़ी । कोनों गाँव गली कभू आवत हैं ।
नदिया नरवा डबरी डोंगरी । कर पार उहाँ अगुवावत हैं ।
बम बारुद बंदूक संग खेलैं । बइरी दुश्मन ला खेदारत हैं ।
बीर जंग मा खेलैं होरी असली । देखौ लाल लहू मा नहावत हैं ।
गोली छाती मा झेलत हैं हँस के । दूध के करजा ला चुकावत हैं ।
मोर बीर बहादुर भारत के । जय हिंद के गीत सुनावत हैं ।
शब्दार्थ : सूतत - सो रहे । उन - वे । जागत - जाग रहे । जाड़ घाम - ठंड धूप । मुचमुचावत हैं - मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं । दाई ददा - माता पिता । कोनों किसिम के - किसी प्रकार की । नरवा - नाला । डोंगरी - पहाड़ी । उहाँ - वहाँ । अगुवावत - आगे आना । बइरी -
बैरी । खेदारत - भगाना ।
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गज़ल - उँगलियाँ मत उठे ।
उँगलियों पर न सबको नचाया करो । टेढ़ी उँगली न घी में डुबाया करो ।
जान ले न कहीं ये अदा मद भरी । उँगली दाँतो तले मत दबाया करो ।
सीखते हैं सभी थाम कर उँगलियाँ । नन्हें बच्चों को चलना सिखाया करो ।
काम ऐसे करो उँगलियाँ मत उठे । उँगलियों से सदा गुदगुदाया करो ।
अंगुली मार जाने है किस भेष में । उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो ।
- ओबीओ लाइव तरही मुशायरा । अंक - 26 में सम्मिलित मेरी दूसरी गज़ल ।
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खुद हँसो दूसरों को हँसाया करो । ज़िंदगी हँसते गाते बिताया करो ।
हैं फरिश्ते नहीं ये तो इंसान हैं । गलतियाँ गर करें भूल जाया करो ।
कुछ हैं कमजोरियाँ कुछ हैं नादानियाँ । हर किसी को गले से लगाया करो ।
संग के शहर में काँच का आशियाँ । है मेरा मशवरा मत बनाया करो ।
गलतियाँ देखना तो बुरी बात है । उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो ।
- ओबीओ लाइव तरही मुशायरा । अंक - 26 में सम्मिलित मेरी गज़ल ।
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मेरी टिप्पणी -
अपना घर खुद फूँक कर चला चाँद की ओर । मंगल जीवन ढूँढ्ता क्यों दिल मांगे मोर ।
क्यों दिल मांगे मोर कौन सी यहाँ कमी है । पंच तत्व उपलब्ध यहीं पर धूप नमी है ।
यहीं बसा ले स्वर्ग यहीं पूरा कर सपना । चला चाँद की ओर फूँक कर घर खुद अपना ।
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- अरुण कुमार निगम । आदित्य नगर । दुर्ग ( छत्तीसगढ़ ) विजय नगर । जबलपुर ( म.प्र. )
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