21 जून को प्रथम विश्व योग दिवस के अवसर पर 35 मिनट के पैकेज में पूरा विश्व योग करने वाला है । नरेंद्र मोदी के आह्वान पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ घोषित किया था । यह पहला मौका है । जब पूरा विश्व इस दिन योग दिवस मनाएगा ।
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सर्वप्रथम योग की शुरुआत प्रार्थना अर्थात तीन बार ॐ ध्वनि से होगी । सब प्रार्थना करेंगे कि ..
- हे मनुष्यो ! मिलकर चलो । मिलकर बोलो । और तुम्हारे मन मिलकर ज्ञान प्राप्त करें । अर्थात समान ज्ञान वाले हों ।
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सूर्य नमस्कार 12 स्थितियों से मिलकर बना है । सूर्य नमस्कार के एक पूर्ण चक्र में इन्हीं 12 स्थितियों को क्रम से दो बार दुहराया जाता है ।
12 स्थितियों में से प्रत्येक के साथ एक मंत्र जुड़ा है । मंत्र के दुहराने व निहित भावों का अनुभव करने पर मन पर शक्तिशाली प्रभाव पड़ता है । सुनाई देने वाली अथवा न सुनाई देने वाली ध्वनि तरंगों के द्वारा मन पर सूक्ष्म प्रभाव पड़ने के कारण ऐसा होता है ।
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स्थिति अभ्यास 1 - प्रार्थना की मुद्रा
विधि - प्रार्थना की मुद्रा में पैर के दोनों पंजों को मिलाकर नमस्कार की मुद्रा में सीधे खड़े हो जाईये । पूरे शरीर को शिथिल छोड़ दीजिये ।
श्वास - सामान्य । एकाग्रता - अनाहत चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ मित्राय नमः ।
लाभ - व्यायाम की तैयारी के रूप में एकाग्रता, स्थिरता व शांति प्रदान करता है ।
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स्थिति अभ्यास 2 - हस्त उत्तानासन
विधि - दोनों हाथों ( भुजाओं ) को सिर के ऊपर उठाईये । दोनों हाथ सीधे होंगे । कंधों की चौड़ाई के बराबर दोनों भुजाओं में फासला रखिये । सिर और ऊपरी धड़ को थोड़ा सा पीछे झुकाईये ।
श्वास - भुजाओं को उठाते समय स्वांस लीजिये ।
एकाग्रता - विशुद्ध चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ रवये नमः ( ॐ रविये नमः )
लाभ - आमाशय की अतिरिक्त चर्बी को हटाता है । और पाचन को सुधारता है । इसमें भुजाओं और कंधों की मांसपेशियों का व्यायाम होता है ।
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स्थिति अभ्यास 3 - पादहस्तासन
विधि - सामने दोनों हाथों को यथासंभव जितना हो सके । उतना सामने की ओर झुकाईये । एवं प्रयास करें कि अंगुलियां या हाथ जमीन को पैरों के पंजों के बगल में स्पर्श कर लें । मस्तक को घुटने से स्पर्श कराने की कोशिश करें । अत्यधिक जोर न लगायें । पैरों को सीधा रखें ।
श्वास - श्वास लीजिये । एवं सामने की ओर झुकते समय स्वांस छोड़िये । अधिक से अधिक सांस बाहर निकालने के लिए अन्तिम स्थिति में आमाशय को सिकोड़िये ।
एकाग्रता - स्वाधिष्ठान चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ सूर्याय नमः
लाभ - पेट व आमाशय की समस्याओं को दूर करता है । नष्ट करता है । आमाशय प्रदेश की अतिरिक्त चर्बी को कम करता है । कब्ज को हटाने में सहायक है । रीढ़ को लचीला बनाता एवं रक्त संचार में लाभ प्रदान करता है ।
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स्थिति अभ्यास 4 - अश्व संचालन आसन
विधि - बायें पैर को जितना सम्भव हो सके । पीछे तक ले जाईये । इसी के साथ दायें पैर को मोड़िये । लेकिन पंजा अपने स्थान पर ही रहे । भुजाएं अपने स्थान पर सीधी रहें । इसके बाद शरीर का भार दोनों हाथों, बायें पैर
के पंजे, बायें घुटने व दायें पैर की अंगुलियों पर रहेगा । अंतिम स्थिति में सिर पीछे को उठाईये । कमर को धनुषाकार बनाने का प्रयास और दृष्टि ऊपर की तरफ रखिये ।
श्वास - बाएं पैर को पीछे ले जाते समय स्वांस लीजिये ।
एकाग्रता - आज्ञा चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ भानवे नमः
लाभ - आमाशय के अंगों की मालिश कर कार्यप्रणाली को सुधारता है । पैरों की मांसपेशियों को शक्ति मिलती है । मजबूती मिलती है ।
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स्थिति अभ्यास 5 - पर्वतासन
विधि - दाँयें पैर को सीधा करके बायें पंजे के पास रखिये । नितम्बों को ऊपर उठाईये । और सिर को भुजाओं के बीच में लाईये । अन्तिम स्थिति में पैर और भुजाएं सीधी रहें । इस स्थिति में एड़ियों को जमीन से स्पर्श कराने का प्रयास कीजिये ।
स्वांस - दायें पैर को सीधा करते एवं धड़ को उठाते समय स्वांस छोड़िये ।
एकाग्रता - विशुद्ध चक्र पर ।
मंत्र- ऊँ खगाय नमः
लाभ - भुजाओं एवं पैरों के स्नायुओं एवं मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है । अभ्यास 4 के विपरीत आसन के रूप में रीढ़ को उल्टी दिशा में झुकाकर उसे लचीला बनाता है । रीढ़ के स्नायुओं के दबाव को सामान्य बनाता है । तथा उनमें ताजे रक्त का संचार करने में सहायक है ।
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स्थिति अभ्यास 6 - अष्टांग नमस्कार
विधि - शरीर को भूमि पर इस प्रकार झुकाइये कि अन्तिम स्थिति में दोनों पैरों की अंगुलियां, दोनों घुटने, सीना, दोनों हाथ तथा ठुड्डी भूमि का स्पर्श करें । नितम्ब व आमाशय जमीन से थोड़े ऊपर उठे रहें ।
स्वांस - स्थिति 5 में छोड़ी हुई स्वांस को बाहर ही रोके रखिये ।
एकाग्रता - मणिपुर चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ पूष्णे नमः
लाभ - पैरों और भुजाओं की मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है ।
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स्थिति अभ्यास 7 - भुजंगासन
विधि - हाथों को सीधे करते हुए शरीर को कमर से ऊपर उठाईये । सिर को पीछे की ओर झुकाईये । यह अवस्था भुजंगासन की अन्तिम स्थिति के समान ही है ।
स्वांस - कमर को धनुषाकार बनाकर उठते हुए स्वांस लीजिये ।
एकाग्रता - स्वाधिष्ठान चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ हिरण्यगर्भाय नमः
लाभ - आमाशय पर दबाव पड़ता है । यह आमाशय के अंगों में जमे हुए रक्त को हटाकर ताजा रक्त संचार करता है । बदहजमी व कब्ज सहित यह आसन पेट के सभी रोगों में उपयोगी है । रीढ़ को धनुषाकार बनाने से उसमें व उसकी मांसपेशियों में लचीलापन आता है । एवं रीढ़ के प्रमुख स्नायुओं को नयी शक्ति मिलती है ।
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स्थिति अभ्यास 8 - पर्वतासन
यह स्थिति 5 की आवृत्ति है ।
दायें पैर को सीधा करके बायें पंजे के पास रखिये । नितम्बों को ऊपर उठाईये । और सिर को भुजाओं के बीच में लाईये । अन्तिम स्थिति में पैर और भुजाएं सीधी रहें । इस स्थिति में एड़ियों को जमीन से स्पर्श कराने का प्रयास कीजिये ।
स्वांस - दायें पैर को सीधा करते एवं धड़ को उठाते समय श्वास छोड़िये ।
एकाग्रता - विशुध्दि चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ मरीचये नमः
लाभ - भुजाओं एवं पैरों के स्नायुओं एवं मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है ।
अभ्यास 4 के विपरीत आसन के रूप में रीढ़ को उल्टी दिशा में झुकाकर उसे लचीला बनाता है । रीढ़ के स्नायुओं के दबाव को सामान्य बनाता है । तथा उनमें ताजे रक्त का संचार करने में सहायक है ।
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स्थिति अभ्यास 9 - अश्व संचालनासन
यह स्थिति 4 की आवृत्ति है ।
विधि - बायें पैर को जितना सम्भव हो सके । पीछे फैलाईये । इसी के साथ दायें पैर को मोड़िये । लेकिन पंजा अपने स्थान पर ही रहे । भुजाएं अपने स्थान पर सीधी रहें । इसके बाद शरीर का भार दोनों हाथों, बायें पैर के पंजे, बायें घुटने व दायें पैर की अंगुलियों पर रहेगा । अंतिम स्थिति में सिर पीछे को उठाईये । कमर को धनुषाकार बनाईये । और दृष्टि ऊपर की तरफ रखिये ।
स्वांस - बाएं पैर को पीछे ले जाते समय स्वांस लीजिये ।
एकाग्रता - आज्ञा चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ आदित्याय नमः
लाभ - आमाशय के अंगों की मालिश कर कार्यप्रणाली को सुधारता है । पैरों की मांसपेशियों को शक्ति मिलती है ।
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स्थिति अभ्यास 10 - पादहस्तासन
यह स्थिति 3 की आवृत्ति है ।
सामने की ओर झुकते जाईये । जब तक कि अंगुलियां या हाथ जमीन को पैरों के सामने तथा बगल में स्पर्श न कर लें । मस्तक को घुटने से स्पर्श कराने की कोशिश कीजिये । जोर न लगायें । पैरों को सीधे रखिये ।
स्वांस - सामने की ओर झुकते समय स्वांस छोड़िये । अधिक से अधिक सांस बाहर निकालने के लिए अन्तिम स्थिति में आमाशय को सिकोड़िये ।
एकाग्रता - स्वाधिष्ठान चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ सवित्रे नमः
लाभ - पेट व आमाशय के दोषों को रोकता तथा नष्ट करता है । आमाशय प्रदेश की अतिरिक्त चर्बी को कम करता है । कब्ज को हटाने में सहायक है । रीढ़ को लचीला बनाता एवं रक्तसंचार में तेजी लाता है । रीढ़ के स्नायुओं के दबाव को सामान्य बनाता है ।
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स्थिति अभ्यास 11 - हस्त उत्तानासन
यह स्थिति 2 की आवृत्ति है ।
विधि - दोनों भुजाओं को सिर के ऊपर उठाईये । कंधों की चौड़ाई के बराबर दोनों भुजाओं में फासला रखिये । सिर और ऊपरी धड़ को थोड़ा सा पीछे झुकाईये ।
स्वांस - भुजाओं को उठाते समय स्वांस लीजिये ।
एकाग्रता - विशुद्ध चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ अर्काय नमः
लाभ - आमाशय की अतिरिक्त चर्बी को हटाता और पाचन को सुधारता है । इसमें भुजाओं और कंधों की मांसपेशियों का व्यायाम होता है ।
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स्थिति अभ्यास 12 - प्रार्थना की मुद्रा ( नमस्कार मुद्रा )
यह अन्तिम स्थिति प्रथम स्थिति की आवृत्ति है ।
विधि - प्रार्थना की मुद्रा में पंजों को मिलाकर सीधे खड़े हो जाईये । पूरे शरीर को शिथिल छोड़ दीजिये ।
स्वांस - सामान्य ।
एकाग्रता - अनाहत चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ भास्कराय नमः
लाभ - पुन- एकाग्र एवं शान्त अवस्था में लाता है ।
साभार - Balweer Lodha
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सर्वप्रथम योग की शुरुआत प्रार्थना अर्थात तीन बार ॐ ध्वनि से होगी । सब प्रार्थना करेंगे कि ..
- हे मनुष्यो ! मिलकर चलो । मिलकर बोलो । और तुम्हारे मन मिलकर ज्ञान प्राप्त करें । अर्थात समान ज्ञान वाले हों ।
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सूर्य नमस्कार 12 स्थितियों से मिलकर बना है । सूर्य नमस्कार के एक पूर्ण चक्र में इन्हीं 12 स्थितियों को क्रम से दो बार दुहराया जाता है ।
12 स्थितियों में से प्रत्येक के साथ एक मंत्र जुड़ा है । मंत्र के दुहराने व निहित भावों का अनुभव करने पर मन पर शक्तिशाली प्रभाव पड़ता है । सुनाई देने वाली अथवा न सुनाई देने वाली ध्वनि तरंगों के द्वारा मन पर सूक्ष्म प्रभाव पड़ने के कारण ऐसा होता है ।
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स्थिति अभ्यास 1 - प्रार्थना की मुद्रा
विधि - प्रार्थना की मुद्रा में पैर के दोनों पंजों को मिलाकर नमस्कार की मुद्रा में सीधे खड़े हो जाईये । पूरे शरीर को शिथिल छोड़ दीजिये ।
श्वास - सामान्य । एकाग्रता - अनाहत चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ मित्राय नमः ।
लाभ - व्यायाम की तैयारी के रूप में एकाग्रता, स्थिरता व शांति प्रदान करता है ।
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स्थिति अभ्यास 2 - हस्त उत्तानासन
विधि - दोनों हाथों ( भुजाओं ) को सिर के ऊपर उठाईये । दोनों हाथ सीधे होंगे । कंधों की चौड़ाई के बराबर दोनों भुजाओं में फासला रखिये । सिर और ऊपरी धड़ को थोड़ा सा पीछे झुकाईये ।
श्वास - भुजाओं को उठाते समय स्वांस लीजिये ।
एकाग्रता - विशुद्ध चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ रवये नमः ( ॐ रविये नमः )
लाभ - आमाशय की अतिरिक्त चर्बी को हटाता है । और पाचन को सुधारता है । इसमें भुजाओं और कंधों की मांसपेशियों का व्यायाम होता है ।
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स्थिति अभ्यास 3 - पादहस्तासन
विधि - सामने दोनों हाथों को यथासंभव जितना हो सके । उतना सामने की ओर झुकाईये । एवं प्रयास करें कि अंगुलियां या हाथ जमीन को पैरों के पंजों के बगल में स्पर्श कर लें । मस्तक को घुटने से स्पर्श कराने की कोशिश करें । अत्यधिक जोर न लगायें । पैरों को सीधा रखें ।
श्वास - श्वास लीजिये । एवं सामने की ओर झुकते समय स्वांस छोड़िये । अधिक से अधिक सांस बाहर निकालने के लिए अन्तिम स्थिति में आमाशय को सिकोड़िये ।
एकाग्रता - स्वाधिष्ठान चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ सूर्याय नमः
लाभ - पेट व आमाशय की समस्याओं को दूर करता है । नष्ट करता है । आमाशय प्रदेश की अतिरिक्त चर्बी को कम करता है । कब्ज को हटाने में सहायक है । रीढ़ को लचीला बनाता एवं रक्त संचार में लाभ प्रदान करता है ।
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स्थिति अभ्यास 4 - अश्व संचालन आसन
विधि - बायें पैर को जितना सम्भव हो सके । पीछे तक ले जाईये । इसी के साथ दायें पैर को मोड़िये । लेकिन पंजा अपने स्थान पर ही रहे । भुजाएं अपने स्थान पर सीधी रहें । इसके बाद शरीर का भार दोनों हाथों, बायें पैर
के पंजे, बायें घुटने व दायें पैर की अंगुलियों पर रहेगा । अंतिम स्थिति में सिर पीछे को उठाईये । कमर को धनुषाकार बनाने का प्रयास और दृष्टि ऊपर की तरफ रखिये ।
श्वास - बाएं पैर को पीछे ले जाते समय स्वांस लीजिये ।
एकाग्रता - आज्ञा चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ भानवे नमः
लाभ - आमाशय के अंगों की मालिश कर कार्यप्रणाली को सुधारता है । पैरों की मांसपेशियों को शक्ति मिलती है । मजबूती मिलती है ।
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स्थिति अभ्यास 5 - पर्वतासन
विधि - दाँयें पैर को सीधा करके बायें पंजे के पास रखिये । नितम्बों को ऊपर उठाईये । और सिर को भुजाओं के बीच में लाईये । अन्तिम स्थिति में पैर और भुजाएं सीधी रहें । इस स्थिति में एड़ियों को जमीन से स्पर्श कराने का प्रयास कीजिये ।
स्वांस - दायें पैर को सीधा करते एवं धड़ को उठाते समय स्वांस छोड़िये ।
एकाग्रता - विशुद्ध चक्र पर ।
मंत्र- ऊँ खगाय नमः
लाभ - भुजाओं एवं पैरों के स्नायुओं एवं मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है । अभ्यास 4 के विपरीत आसन के रूप में रीढ़ को उल्टी दिशा में झुकाकर उसे लचीला बनाता है । रीढ़ के स्नायुओं के दबाव को सामान्य बनाता है । तथा उनमें ताजे रक्त का संचार करने में सहायक है ।
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स्थिति अभ्यास 6 - अष्टांग नमस्कार
विधि - शरीर को भूमि पर इस प्रकार झुकाइये कि अन्तिम स्थिति में दोनों पैरों की अंगुलियां, दोनों घुटने, सीना, दोनों हाथ तथा ठुड्डी भूमि का स्पर्श करें । नितम्ब व आमाशय जमीन से थोड़े ऊपर उठे रहें ।
स्वांस - स्थिति 5 में छोड़ी हुई स्वांस को बाहर ही रोके रखिये ।
एकाग्रता - मणिपुर चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ पूष्णे नमः
लाभ - पैरों और भुजाओं की मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है ।
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स्थिति अभ्यास 7 - भुजंगासन
विधि - हाथों को सीधे करते हुए शरीर को कमर से ऊपर उठाईये । सिर को पीछे की ओर झुकाईये । यह अवस्था भुजंगासन की अन्तिम स्थिति के समान ही है ।
स्वांस - कमर को धनुषाकार बनाकर उठते हुए स्वांस लीजिये ।
एकाग्रता - स्वाधिष्ठान चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ हिरण्यगर्भाय नमः
लाभ - आमाशय पर दबाव पड़ता है । यह आमाशय के अंगों में जमे हुए रक्त को हटाकर ताजा रक्त संचार करता है । बदहजमी व कब्ज सहित यह आसन पेट के सभी रोगों में उपयोगी है । रीढ़ को धनुषाकार बनाने से उसमें व उसकी मांसपेशियों में लचीलापन आता है । एवं रीढ़ के प्रमुख स्नायुओं को नयी शक्ति मिलती है ।
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स्थिति अभ्यास 8 - पर्वतासन
यह स्थिति 5 की आवृत्ति है ।
दायें पैर को सीधा करके बायें पंजे के पास रखिये । नितम्बों को ऊपर उठाईये । और सिर को भुजाओं के बीच में लाईये । अन्तिम स्थिति में पैर और भुजाएं सीधी रहें । इस स्थिति में एड़ियों को जमीन से स्पर्श कराने का प्रयास कीजिये ।
स्वांस - दायें पैर को सीधा करते एवं धड़ को उठाते समय श्वास छोड़िये ।
एकाग्रता - विशुध्दि चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ मरीचये नमः
लाभ - भुजाओं एवं पैरों के स्नायुओं एवं मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है ।
अभ्यास 4 के विपरीत आसन के रूप में रीढ़ को उल्टी दिशा में झुकाकर उसे लचीला बनाता है । रीढ़ के स्नायुओं के दबाव को सामान्य बनाता है । तथा उनमें ताजे रक्त का संचार करने में सहायक है ।
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स्थिति अभ्यास 9 - अश्व संचालनासन
यह स्थिति 4 की आवृत्ति है ।
विधि - बायें पैर को जितना सम्भव हो सके । पीछे फैलाईये । इसी के साथ दायें पैर को मोड़िये । लेकिन पंजा अपने स्थान पर ही रहे । भुजाएं अपने स्थान पर सीधी रहें । इसके बाद शरीर का भार दोनों हाथों, बायें पैर के पंजे, बायें घुटने व दायें पैर की अंगुलियों पर रहेगा । अंतिम स्थिति में सिर पीछे को उठाईये । कमर को धनुषाकार बनाईये । और दृष्टि ऊपर की तरफ रखिये ।
स्वांस - बाएं पैर को पीछे ले जाते समय स्वांस लीजिये ।
एकाग्रता - आज्ञा चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ आदित्याय नमः
लाभ - आमाशय के अंगों की मालिश कर कार्यप्रणाली को सुधारता है । पैरों की मांसपेशियों को शक्ति मिलती है ।
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स्थिति अभ्यास 10 - पादहस्तासन
यह स्थिति 3 की आवृत्ति है ।
सामने की ओर झुकते जाईये । जब तक कि अंगुलियां या हाथ जमीन को पैरों के सामने तथा बगल में स्पर्श न कर लें । मस्तक को घुटने से स्पर्श कराने की कोशिश कीजिये । जोर न लगायें । पैरों को सीधे रखिये ।
स्वांस - सामने की ओर झुकते समय स्वांस छोड़िये । अधिक से अधिक सांस बाहर निकालने के लिए अन्तिम स्थिति में आमाशय को सिकोड़िये ।
एकाग्रता - स्वाधिष्ठान चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ सवित्रे नमः
लाभ - पेट व आमाशय के दोषों को रोकता तथा नष्ट करता है । आमाशय प्रदेश की अतिरिक्त चर्बी को कम करता है । कब्ज को हटाने में सहायक है । रीढ़ को लचीला बनाता एवं रक्तसंचार में तेजी लाता है । रीढ़ के स्नायुओं के दबाव को सामान्य बनाता है ।
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स्थिति अभ्यास 11 - हस्त उत्तानासन
यह स्थिति 2 की आवृत्ति है ।
विधि - दोनों भुजाओं को सिर के ऊपर उठाईये । कंधों की चौड़ाई के बराबर दोनों भुजाओं में फासला रखिये । सिर और ऊपरी धड़ को थोड़ा सा पीछे झुकाईये ।
स्वांस - भुजाओं को उठाते समय स्वांस लीजिये ।
एकाग्रता - विशुद्ध चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ अर्काय नमः
लाभ - आमाशय की अतिरिक्त चर्बी को हटाता और पाचन को सुधारता है । इसमें भुजाओं और कंधों की मांसपेशियों का व्यायाम होता है ।
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स्थिति अभ्यास 12 - प्रार्थना की मुद्रा ( नमस्कार मुद्रा )
यह अन्तिम स्थिति प्रथम स्थिति की आवृत्ति है ।
विधि - प्रार्थना की मुद्रा में पंजों को मिलाकर सीधे खड़े हो जाईये । पूरे शरीर को शिथिल छोड़ दीजिये ।
स्वांस - सामान्य ।
एकाग्रता - अनाहत चक्र पर ।
मंत्र - ऊँ भास्कराय नमः
लाभ - पुन- एकाग्र एवं शान्त अवस्था में लाता है ।
साभार - Balweer Lodha