गर्भस्थ बच्ची की हत्या का आँखों देखा विवरण - अमेरिका में सन 1984 में एक सम्मेलन हुआ था नेशनल राइटस टू लाइफ कनवेन्शन ।
इस सम्मेलन के एक प्रतिनिधि ने डा. बर्नार्ड नेथेनसन के द्वारा गर्भपात की बनायी गयी एक
अल्ट्रासाउण्ड फिल्म ‘साइलेण्ट स्क्रीम’ ( गूँगी चीख ) का जो विवरण दिया था ।
वह इस प्रकार है - गर्भ की वह मासूम बच्ची अभी दस सप्ताह की थी । व काफी चुस्त थी ।
हम उसे अपनी माँ की कोख में खेलते । करवट बदलते व अंगूठा चूसते हुए देख रहे थे । उसके दिल की धड़कनों को भी हम देख पा रहे थे । और वह उस समय 120 की साधारण गति से धड़क रहा था । सब कुछ बिलकुल सामान्य था । किन्तु जैसे ही पहले औजार ( सक्सन पम्प ) ने गर्भाशय की दीवार को छुआ । वह मासूम बच्ची डर से एकदम घूमकर सिकुड़ गयी । और उसके दिल की धड़कन काफी बढ़ गयी ।
हालांकि अभी तक किसी औजार ने बच्ची को छुआ तक भी नहीं था । लेकिन उसे अनुभव हो गया था कि कोई चीज उसके आरामगाह उसके सुरक्षित क्षेत्र पर हमला करने का प्रयत्न कर रही है । हम
दहशत से भरे यह देख रहे थे कि किस तरह वह औजार उस नन्हीं मुन्नी मासूम गुड़िया सी बच्ची के टुकड़े टुकड़े कर रहा था । पहले कमर फिर पैर आदि के टुकड़े ऐसे काटे जा रहे थे । जैसे वह जीवित प्राणी न होकर कोई गाजर मूली हो । और वह बच्ची दर्द से छटपटाती हुई सिकुड़कर घूम घूमकर तड़पती हुई इस हत्यारे औजार से बचने का प्रयत्न कर रही थी । वह इस बुरी तरह डर गयी थी कि एक समय उसके दिल की धड़कन 200 तक पहुँच गयी । मैंने स्वयं अपनी आँखों से उसको अपना सिर पीछे झटकते व मुँह खोलकर चीखने का प्रयत्न करते हुए देखा । जिसे डा. नेथेनसन ने उचित ही ‘गूँगी चीख’ या ‘मूक पुकार’ कहा है । अंत में हमने वह नृशंस वीभत्स दृश्य भी देखा । जब संडसी उसकी खोपड़ी को तोड़ने के लिए तलाश रही थी । और फिर दबाकर उस कठोर खोपड़ी को तोड़ रही थी । क्योंकि सिर का वह भाग वगैर तोड़े सक्शन ट्यूब के माध्यम से बाहर नहीं निकाला जा सकता था ।
हत्या के इस वीभत्स खेल को सम्पन्न करने में करीब पन्द्रह मिनट का समय लगा । और इसके दर्दनाक दृश्य का अनुमान इससे अधिक और कैसे लगाया जा सकता है कि जिस डाक्टर ने यह गर्भपात किया था । और जिसने मात्र कौतूहलवश इसकी फिल्म बनवा ली थी । उसने जब स्वयं इस फिल्म को देखा । तो वह अपना क्लीनिक छोड़कर चला गया । और फिर वापस नहीं आया ।
आपका एक शेयर किसी अजन्मी बच्ची - लडकी की जान बचा सकता है ।
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अल्ट्रासाउण्ड फिल्म ‘साइलेण्ट स्क्रीम’ ( गूँगी चीख ) का जो विवरण दिया था ।
वह इस प्रकार है - गर्भ की वह मासूम बच्ची अभी दस सप्ताह की थी । व काफी चुस्त थी ।
हम उसे अपनी माँ की कोख में खेलते । करवट बदलते व अंगूठा चूसते हुए देख रहे थे । उसके दिल की धड़कनों को भी हम देख पा रहे थे । और वह उस समय 120 की साधारण गति से धड़क रहा था । सब कुछ बिलकुल सामान्य था । किन्तु जैसे ही पहले औजार ( सक्सन पम्प ) ने गर्भाशय की दीवार को छुआ । वह मासूम बच्ची डर से एकदम घूमकर सिकुड़ गयी । और उसके दिल की धड़कन काफी बढ़ गयी ।
हालांकि अभी तक किसी औजार ने बच्ची को छुआ तक भी नहीं था । लेकिन उसे अनुभव हो गया था कि कोई चीज उसके आरामगाह उसके सुरक्षित क्षेत्र पर हमला करने का प्रयत्न कर रही है । हम
दहशत से भरे यह देख रहे थे कि किस तरह वह औजार उस नन्हीं मुन्नी मासूम गुड़िया सी बच्ची के टुकड़े टुकड़े कर रहा था । पहले कमर फिर पैर आदि के टुकड़े ऐसे काटे जा रहे थे । जैसे वह जीवित प्राणी न होकर कोई गाजर मूली हो । और वह बच्ची दर्द से छटपटाती हुई सिकुड़कर घूम घूमकर तड़पती हुई इस हत्यारे औजार से बचने का प्रयत्न कर रही थी । वह इस बुरी तरह डर गयी थी कि एक समय उसके दिल की धड़कन 200 तक पहुँच गयी । मैंने स्वयं अपनी आँखों से उसको अपना सिर पीछे झटकते व मुँह खोलकर चीखने का प्रयत्न करते हुए देखा । जिसे डा. नेथेनसन ने उचित ही ‘गूँगी चीख’ या ‘मूक पुकार’ कहा है । अंत में हमने वह नृशंस वीभत्स दृश्य भी देखा । जब संडसी उसकी खोपड़ी को तोड़ने के लिए तलाश रही थी । और फिर दबाकर उस कठोर खोपड़ी को तोड़ रही थी । क्योंकि सिर का वह भाग वगैर तोड़े सक्शन ट्यूब के माध्यम से बाहर नहीं निकाला जा सकता था ।
हत्या के इस वीभत्स खेल को सम्पन्न करने में करीब पन्द्रह मिनट का समय लगा । और इसके दर्दनाक दृश्य का अनुमान इससे अधिक और कैसे लगाया जा सकता है कि जिस डाक्टर ने यह गर्भपात किया था । और जिसने मात्र कौतूहलवश इसकी फिल्म बनवा ली थी । उसने जब स्वयं इस फिल्म को देखा । तो वह अपना क्लीनिक छोड़कर चला गया । और फिर वापस नहीं आया ।
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