Monday 15 October 2012

इस प्रकार तो 2 भगवान हो जायेंगे


ब्लागर परिचय श्रंखला में आज - सतसंग ही साधना है ब्लाग से परिचय करिये । 
स्वामी जी का जन्म वि.सं.1960 ( ई.स.1904 ) में राजस्थान के नागौर जिले के माडपुरा गाँव में हुआ था । और उनकी माताजी ने 4 वर्ष की अवस्था में ही उनको संतों की शरण में दे दिया था । आपने सदा परिव्राजक रूप में सदा गाँव गाँव शहरों में भृमण करते हुए गीता का ज्ञान जन जन तक पहुँचाया । और साधु समाज के लिए 1 आदर्श स्थापित किया कि साधु जीवन कैसे त्यागमय । अपरिग्रही । अनिकेत और जल कमलवत होना चाहिए । और सदा 1-1 क्षण का सदुपयोग करके लोगों को अपने में न लगाकर सदा भगवान में लगाकर । कोई आश्रम । शिष्य न बनाकर और सदा अमानी रहकर । दूसरो को मान देकर दृव्य 

संग्रह । व्यक्ति पूजा से सदा कोसों दूर रहकर अपने चित्र की कोई पूजा न करवाकर लोग भगवान में लगें । ऐसा आदर्श स्थापित कर गंगा तट स्वर्गाश्रम हृषिकेश में आषाढ़ कृष्ण द्वादशी वि.सं.2062 (  3-7-2005 )  बृह्म मुहूर्त में भगवद धाम पधारे । संत कभी अपने को शरीर मानते ही नहीं । शरीर सदा मृत्यु में रहता है । और मैं सदा अमरत्व में रहता हूँ । यह उनका अनुभव होता है । वे सदा अपने कल्याणकारी प्रवचन द्वारा सदा हमारे साथ हैं । संतों का जीवन उनके विचार ही होता हैं । ब्लाग - सतसंग ही साधना है 
नित्य योग - 1

श्रोता - भगवान तो प्रत्यक्ष नहीं दिखते । पर धन प्रत्यक्ष दीखता है । तो फिर धन का आश्रय कैसे छोड़ें ?
स्वामी जी - वास्तव में धन है ही नहीं । दीखे कहाँ से ? अभी आपको धन कहाँ दीखता है ? धन का आश्रय हरदम दीखता है । धन हरदम नहीं दीखता । इस बात पर खूब विचार करो । धन आता हुआ दीखता है । अथवा जाता हुआ दीखता है । रहता हुआ नहीं दीखता । धन पहले था नहीं । और बाद में रहेगा नहीं । पर भगवान पहले भी थे । अब भी हैं । और बाद में भी रहेंगे । भगवान आते जाते नहीं । अतः यह कैसे कहा जाय कि भगवान नहीं दीखते । और धन दीखता है ? हाँ ! भगवान नेत्रों से नहीं दीखते । वे तो बुद्धि रूपी नेत्रों से दीखते हैं । आस्तिक भाव से दीखते हैं ।

धन का आश्रय पहले नहीं था । पहले ( छोटी अवस्था में ) माँ का आश्रय था । धन का आश्रय बाद में पकड़ा है । परन्तु भगवान का आश्रय पहले से है । उनके आश्रय से अनन्त बृह्माण्ड चल रहे हैं । उनका आश्रय पहले भी था । अब भी है । और आगे भी रहेगा । उनके आश्रय का कभी अभाव नहीं होता । परन्तु धन का आश्रय सदा रहेगा । यह बात है ही नहीं ।
धन सदा साथ में नहीं रहेगा । हम धन के साथ नहीं रहेंगे । और धन हमारे साथ नहीं रहेगा । परन्तु भगवान सदा हमारे साथ रहेंगे । हम भगवान 

के बिना नहीं रह सकते । और भगवान हमारे बिना नहीं रह सकते । हमारी ताकत नहीं है कि हम भगवान से अलग हो सकें । इतना ही नहीं । भगवान की भी ताकत नहीं है कि - वे हमारे को छोड़कर अलग रह सकें । जिस दिन भगवान हमारे को छोड़कर अलग रहेंगे । उस दिन हम 1 अलग भगवान हो जायेंगे । इस प्रकार 2 भगवान हो जायेंगे । जो कि सम्भव नहीं है । अतः भगवान हमारा साथ छोड़ ही नहीं सकते । इसलिये भगवान का ही आश्रय लेना चाहिये ।
आश्रय उसी का लेना चाहिये । जिसकी स्वतन्त्र सत्ता हो । जिसकी पर तन्त्र सत्ता हो । उसका आश्रय हमें लेना ही नहीं है । भगवान की स्वतन्त्र सत्ता है । अतः हमें भगवान का ही आश्रय लेना चाहिये । वे भगवान कभी हमारे से अलग नहीं होते । हमारे से अलग होने की उनमें सामर्थ्य ही नहीं है । भगवान सर्व व्यापक हैं । सब - देश । काल । वस्तु । व्यक्ति आदि में परिपूर्ण हैं । अतः वे हमें कैसे छोड़ देंगे ? अगर छोड़ देंगे । तो सर्व व्यापक कैसे हुए ? भगवान को छोडकर हम रह ही नहीं सकते । हम रहेंगे । तो उसी में रहेंगे । नहीं रहेंगे । तो उसी में रहेंगे । जन्मेंगे तो उसी में रहेंगे । मरेंगे तो उसी में रहेंगे । और जन्म मरण से रहित ( मुक्त ) हो जायेंगे । तो उसी मे रहेंगे । हम भगवान को छोडकर नहीं रह सकते । और भगवान हमें छोडकर नहीं रह सकते । हम दूसरे का आश्रय लेते हैं । यही बाधा है । ( शेष आगे के ब्लाग में )
कल्याणकारी प्रवचन पुस्तक से
- सभी जानकारी और लेख - सतसंग ही साधना है ब्लाग से साभार ।

Saturday 6 October 2012

भारत में पैदा हुआ मुस्लिम भी हिन्दू है


ब्लागर परिचय श्रंखला में आज आपका परिचय श्री विश्वजीत सिंह जी से होगा ।
सच की 1 छोटी सी चिंगारी झूठ के बडे से बडे पहाड को नष्ट कर देती हैं । यहाँ सच से सम्बन्धित पोस्ट रखी जायेंगी । अतः यह स्थान होगा सच के लिए । यदि आपके हृदय में सच की अग्नि प्रज्वलित हो रही है । और आप सच को निर्भीकता पूर्वक स्वीकार करने की शक्ति रखते हैं । जी हाँ ! इनका नाम है - विश्वजीत सिंह । विश्वजीत जी अपने Introduction में कहते हैं - राष्ट्र धर्म से बडा कोई धर्म नहीं होता । राष्ट्र मेरा धर्म । स्वाध्याय मेरी शिक्षा । और कर्म मेरी पूजा है । मैं जीवन में - सत्य । प्रेम । करूणा । शान्ति । अहिंसा । शौर्य और मानवता पसन्द करता हूँ । स्वदेशी और मातृभाषा का प्रबल समर्थक हूँ । तथा व्यक्तिगत जीवन में भी इसी विचार का अनुकरण करने का प्रयास करता हूँ । सम्प्रति - साम्प्रदायिकता एवं भृष्टाचार के उन्मूलन तथा भारतीय संस्कृति व मानवाधिकार के संरक्षण हेतु प्रगतिशील देश भक्तों के राष्ट्र व्यापी संगठन " साम्प्रदायिकता विरोधी मोर्चा " में राष्ट्रीय महा सचिव हूँ । तथा " अहिंसा सामाजिक व आध्यात्मिक आंदोलन " का संस्थापक अध्यक्ष हूँ । मेरा कार्य ही मेरा परिचय है । और इनका ब्लाग है - sach सच । नाम पर क्लिक करें ।
आगे विश्वजीत जी कहते हैं - मेरे लिए ब्लाग लेखन समय बिताने का साधन न होकर सत्य की अभिव्यक्ति का माध्यम है । और इनकी Industry है - Publishing और इनका Occupation है - Agriculture और इनकी Location है - शिमला । हिमाचल प्रदेश  India और इनका Interests है -All type book redding, New classic science, Writing for occasional and historical events, Ayurveda, Yoga, Sanskrit Language और इनकी Favourite Films हैं -  क्रांति । अर्जुन पंडित । क्रांतिवीर । The Legent Of 

BhagatSingh गदर । पूरब और पश्चिम । शोले । और इनका Favourite Music है - Classical Music, Suffi Music और इनकी Favourite Books हैं - गीता Mopala आनन्दमठ । वेदांत दर्शन । चाणक्य नीति । अग्नि की उङान   Art Of Living
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और ये हैं । इनके ब्लाग से कुछ रचनायें ।
रास बिहारी बोस का पत्र सुभाष के नाम - मेरे प्रिय सुभाष बाबू ! भारत के समाचार पत्र पाकर मुझे यह सुखद समाचार मिला है कि आगामी कांग्रेस सत्र के लिए आप अध्यक्ष चुने गये हैं । मैं हार्दिक शुभकामनायें भेजता हूँ । अंग्रेजों के भारत पर कब्जा करने में कुछ हद तक बंगाली भी जिम्मेदार थे । अतः मेरे विचार से बंगालियों का यह मूल कर्तव्य बनता है कि वे भारत को आजादी दिलाने में अधिक बलिदान करें ।

देश को सही दिशा में ले जाने के लिए आज कांग्रेस को क्रांतिकारी मानसिकता से काम लेना होगा । इस समय यह 1 विकासशील संस्था है - इसे विशुद्ध क्रांतिकारी संस्था बनाना होगा । जब पूरा शरीर दूषित हो तो अंगों पर दवाई लगाने से कोई लाभ नहीं होता । 
अहिंसा की अंधी वंदना का विरोध होना चाहिये । और मत परिवर्तन होना चाहिये । हमें हिंसा अथवा अहिंसा हर संभव तरीके से अपना लक्ष्य प्राप्त करना चाहिये । अहिंसक वातावरण भारतीय पुरूषों को स्त्रियोचित बना रहा है । वर्तमान विश्व में कोई भी राष्ट्र यदि विश्व में आत्म सम्मान के साथ जीना चाहता है । तो उसे अहिंसावादी दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिये । हमारी कठिनाई यह है कि - हमारे कानों में बहुत लम्बे समय से अन्य बातें भर दी गयी हैं । वह विचार पूरी तरह निकाल दिया जाना चाहिये । 
मुसलमान कहते हैं - पीर । अमीर । तथा फकीर । ताकि व्यक्ति दुनिया का सामना कर सके । यदि आप फकीर नहीं बन पाते । तो अमीर बन जायें । और जीवन को जियें । यदि आप अमीर नहीं बन सकते । तो पीर बन जाईये । इसका अर्थ है कि - काफिर को मार डालो । और विश्व के लोग तुम्हें या तुम्हारी कब्र को ईश्वर की भांति पूजेंगे ।

शक्ति आज की वास्तविक आवश्यकता है । इस विषय पर आपको अपनी पूरी शक्ति लगानी चाहिये । डॉ. मुंजे ने अपना मिलेटरी स्कूल स्थापित करके कांग्रेस की अपेक्षा अधिक कार्य किया है । भारतियों को पहले सैनिक बनाया जाना चाहिये । उन्हें अधिकार हो कि वे शस्त्र लेकर चल सकें । अगला महत्वपूर्ण कार्य हिन्दू  भाई चारा है । भारत में पैदा हुआ मुस्लिम भी हिन्दू है । तुर्की । पर्शिया । अफगानिस्तान आदि के मुसलमानों से उनकी इबादत पद्धति भिन्न है । हिन्दुत्व इतना कैथोलिक तो है कि इस्लाम को हिन्दुत्व में समाहित कर ले । जैसा कि पहले भी हो चुका है । सभी भारतीय हिन्दू हैं । हालांकि वे विभिन्न धर्मो में विश्वास कर सकते है । जैसे कि जापान के सभी लोग जापानी है । चाहे वे बौद्ध हों । या ईसाई । 

हमें यह मालूम नहीं है कि - जीवन कैसे जिया जाये । और जीवन का बलिदान कैसे किया जाये ? यही मुख्य कठिनाई है । इस संदर्भ में हमें जापानियों का अनुसरण करना चाहिये । वे अपने देश के लिए हजारों की संख्या में मरने को तैयार है । यही जागृति हममें भी आनी चाहिये । हमें यह जान लेना चाहिये कि - मृत्यु को कैसे गले लगाया जा सकता है । भारत की स्वतंत्रता की समस्या तो स्वतः हल हो जायेगी ।
आपका शुभाकांक्षी । रास बिहारी बोस । 25-1-38 टोकियो
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नेहरू ने नेताजी को ब्रिटेन का युद्ध अपराधी कहा था - जवाहर लाल नेहरू ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली को पत्र लिख कर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को ब्रिटेन का युद्ध अपराधी बताया था । और रूस द्वारा उन्हें पनाह देने को द्रोह और विश्वासघात करार दिया था ।
नेहरू के इस पत्र को विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमलेंदु गुहा ने अपनी पुस्तक - नेताजी सुभाष आइडियो लाजी एंड डाक्ट्रीन .. में प्रकाशित किया है । लेकिन पुस्तक का विमोचन करते हुए पूर्व राष्ट्रपति आर. वेंकटरामन ने पुस्तक में उद्धत इस पत्र पर असहमति जताई थी । उनका मानना था कि - नेहरू की ऐसी भाषा नहीं है । और उन्हें लगता है कि उन्होंने ऐसा पत्र नहीं लिखा होगा । श्री वेंकटरमण ने इस पर भी 

सवाल उठाया था कि - नेहरू का पत्र प्रधानमंत्री के लैटर पैड पर नहीं है । और जब भी कोई प्रधानमंत्री किसी दूसरे देश के प्रधानमंत्री को पत्र भेजता है । तो अधिकारिक रूप से अपने लैटर पैड पर लिखता है । 
नार्वे में ओस्लो स्थित " इंस्टीट्यूट फ़ार एल्टरनेटिव डेवलपमेंट रिसर्च " के निदेशक और इस पुस्तक के लेखक श्री अमलेंदु गुहा ने श्री वंकेटरमन की आपत्ति का उत्तर जोरदार तरीके से देते हुए कहा कि नेहरू ने वास्तव में ऐसा पत्र लिखा था । और यह पत्र लंदन के ब्रिटिश अभिलेखागार में सुरक्षित है । उन्होंने कहा कि - नेहरू ने यह पत्र सादे कागज पर उस समय लिखा था । जब वह प्रधानमंत्री थे ही नहीं । और इसलिए यह सरकारी रिकार्ड में नहीं है ।
विश्व के 6 राष्ट्राध्यक्षों के आर्थिक सलाहकार रह चुके प्रसिद्ध अर्थशास्त्री श्री अमलेंदु गुहा द्वारा लिखित इस पुस्तक

में प्रकाशित पत्र के अनुसार पंडित नेहरू ने लिखा कि - नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को रूस ने अपने यहां प्रवेश करने की इजाजत देकर द्रोह और विश्वासघात किया है । पत्र के अनुसार उन्होंने लिखा था कि रूस चूंकि ब्रिटिश । अमेरिकियों का मित्र राष्ट्र है । इसलिए रूस को ऐसा नहीं करना चाहिए । पत्र में लिखा था कि इस पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए । 
श्री गुहा ने पुस्तक की प्रस्तावना में लिखा है कि पंडित नेहरू के मन में नेताजी के लिए व्यक्तिगत नापसंदगी थी । और वह ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को नेताजी के बारे में गोपनीय सूचना देने में नहीं हिचके । प्रस्तावना में कहा गया है कि पंडित नेहरू ने यह पत्र डिक्टेट कराया था । आसफ अली के विश्वस्त स्टेनो शामलाल ने अपने हलफनामे में इसकी पुष्टि भी की है । श्री गुहा ने कहा कि उन्होंने जो लिखा है । उस पर वह कायम है ।
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राजद्रोही शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी - 1924 में ब्रिटेन के युवराज प्रिंस आफ वेल्स भारत आए थे । तो भारत की आम जनता ने उनके भारत आगमन का बहिष्कार कर दिया । ब्रिटिश सरकार परेशान हो गई । क्योंकि वो चाहती थी कि भारत की जनता श्रद्धा भक्ति के साथ युवराज का आदर  सम्मान करे । ब्रिटिश सरकार यह भली भाति जानती थी कि भारत की धर्म परायण जनता अपने धर्माचार्यो के आदेशों का पालन करने को हमेशा तत्पर रहती है । अतः ब्रिटिश सरकार की ओर से पत्र द्वारा पुरी के शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ से अनुरोध किया गया कि वह राजा को भगवान विष्णु का प्रतिनिधि मानने के हिन्दू धर्म के सिद्धांत के अनुसार राजकुमार वेल्स को सम्मान देने का आदेश अपने अनुयायियों को दें । शंकराचार्य जी ने पत्र पढ़ा । तथा निर्भय होकर उत्तर दिया- अंग्रेज विदेशी लुटेरे हैं । वे प्रजा पालक नहीं हैं । जिन्होंने हमारी मातृभूमि को छल कपट से गुलाम बना रखा है । उन्हें विष्णु का प्रतिनिधि कैसे घोषित किया जा सकता है ?  साम्राज्यवादी ब्रिटिश शासन उनके उत्तर से क्रोधित हो गया । शंकराचार्य को कारागार में बंद करके उन पर राजद्रोह का अभियोग चलाया गया । लेकिन शंकराचार्य  अपनी राष्ट्र भक्ति कर अडिग रहे ।
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कब तक रहेगा - इंडिया । दैट इज भारत - किसी भारतीय भाषी से हमारे देश का नाम पूछिये । तो वह कहेगा - भारत । मैं भी कहूंगा - भारत । लेकिन किसी अंग्रेजीदां से पूछ कर देखिए । वह कहेगा - INDIA । लेकिन क्या किसी देश के 2-2 नाम होते हैं ? अमेरिका के कितने नाम हैं ? और ब्रिटेन के ? क्या श्रीलंका का कोई अंग्रेजी नाम भी है ? स्वाधीनता से पूर्व श्रीलंका को " सीलोन " तथा म्यांमार को " बर्मा " के नाम से जाना जाता था । लेकिन जब उनमें राष्ट्रीयता का बोध जागा । तो उन्होंने अपना नाम बदल लिया । आज उन्हें उनके पूर्व नामों से कोई नहीं जानता है । न लिखता है । और न बोलता है । और अब सारी दुनियां उन्हें श्रीलंका और म्यांमार के नाम से जानती है । यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि - हम अभी भी 2-2 नाम ढो रहे हैं । हम अपने को भारत मानते हैं । लेकिन दुनियां हमें INDIA कहती है । और भारत सरकार आज भी अपने को GOV OF INDIA लिखती है ।
ब्रिटिश शासकों के चंगुल से तो INDIA मुक्त हो गया । किन्तु तब तक यह आर्यावर्त तो किसी तरह रह ही नहीं गया था । भारतवर्ष अथवा हिन्दुस्तान भी नहीं बन पाया । क्योंकि सत्ता हस्तांतरण के समय हमारे स्वदेशी शासन का सूत्र संचालन जिन तथाकथित कर्णधारों ने येन केन प्रकारेण अपने हाथों में लिया । वे भारतीय

संस्कृति । भाषा । साहित्य । धर्म । दर्शन व परंपरा । विज्ञान । इतिहास और जीवन मूल्यों के प्रति हीन भावना की मनोग्रन्थि से ग्रस्त थे । वे केवल नाम और शरीर से भारतीय थे । उन्होंने 1 ऐसे समाज के निर्माण की नीव डाली । जो भारतीयता से 0 थी । और इस देश को INDIA । दैट इज भारत बना दिया । पिछले 65 वर्षो में उसमें से भी भारत तो लुप्त ही होता जा रहा है । क्योंकि INDIA उसको पूर्ण रूप से निगलता जा रहा है । शकों । हूणों । तुर्को । मुगलों । अरबों । अफगानों के बर्बर जेहादी आक्रमण और शासन जिसका स्वरूप विकृत नहीं कर सके । उसे केवल 200 वर्षो की ब्रिटिश शासकों की कुसंगति और शिक्षा पद्धति ने आपाद मस्तक रूपांतरित कर दिया ।
स्वतंत्रा प्राप्ति से पूर्व जो युवा पीढ़ी देश में थी । उसकी सारी शक्ति संचित रूप से 1 महान लक्ष्य को समर्पित थी । वह लक्ष्य था - पराधीनता की बेड़ियों को तोड़ कर देश को विदेशियों की दासता से मुक्त करना । अपनी सारी शक्ति से वह पीढ़ी अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये दृढ़ संकल्प थी । और अंततः वह सफल भी हो गई । किन्तु विडम्बना यह है कि युवा पीढ़ी के उस बलिदान का श्रेय तत्कालीन स्वार्थान्ध किन्तु चतुर नेताओं ने अपनी झोली में समेट कर पूरी पीढ़ी को घोर चाटुकारिता नपुंसकता के पर्यायवाची गीत ' दे दी । हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल.. की लय पर नचा दिया । न केवल इतना अपितु तिल तिल कर अपने प्राणों की आहुति देने वाले महाराणा प्रताप । छत्रपति शिवाजी । गुरू गोविन्द सिंह । गोकुल सिंह । रामप्रसाद बिस्मिल । भगत सिंह । पं. नाथूराम गोडसे । मदन लाल ढिंगरा । वीर सावरकर जैसे वीरों की नितांत अवहेलना कर उन्हें लांक्षित किया । 
स्वाधीनता प्राप्ति से पूर्व और पश्चात की स्थिति का विश्लेषण करने पर जो दुर्भाग्य पूर्ण तथ्य प्रकट होता है । वह यह है कि पहले तो अभारतीय अर्थात अहिन्दू ही भारत तथा भारतीयता को नष्ट करने में संलग्न थे । किन्तु 

आज भारतीय और हिन्दुओं के द्वारा ही भारतीयता तथा हिन्दुत्व को नष्ट करने का कार्य किया जा रहा है । भारतीय जीवन पद्धति के 16 संस्कारों में से अधिकांश तो भुला दिये गए हैं । शेष भी शीघ्र भुला दिये जाने की स्थिति में है । विवाह जैसे महत्वपूर्ण संस्कार पंजीयक के कार्यालय में सम्पन्न होने लगे हैं । वैदिक विधि से सम्पन्न होने वाले विवाहों में भी केवल परिपाटी का ही परिचलन किया जाने लगा है । जन्म दिन तो बहुत पहले से ही  बर्थडे के रंग में रंग गए हैं । जिनकी जीवन ज्योति को जलाया नहीं । बल्कि बुझाया जाता है । पारिवारिक संबोधन और संबंध - मम्मी । डैडी । आंटी । अंकल । मदर । फादर । कजन । बृदर आदि में परिवर्तित हो गए है । सामाजिक समारोह । संस्कारों आदि के अवसर पर निमंत्रण पत्रों को संस्कृत । हिन्दी अथवा अन्य भारतीय भाषाओं में मुद्रित कराना । उनकी दृष्टि में स्वयं को पिछड़ा सिद्ध करना है ।
सत्ता लोलुप अधिकांश नेता सत्ता हस्तांतरित होते ही देश प्रेम को भुल कर जो कुछ त्याग तप करने का नाटक उन्होंने किया था । उससे सहस्र गुणा अधिक समेटने के लिए आतुर हो उठे । उभरती हुई युवा पीढ़ी और देश के पुर्ननिर्माण की बात भूल कर वे अपने निर्माण में जुट गए । पाश्चात्य सभ्यता में आकण्ठ डूबे होने के कारण वे 

अपने तुच्छ स्वार्थो की पूर्ति और तुष्टि के लिये उन्होंने भावी भारत की निर्मात्री पीढ़ी के भविष्य के साथ साथ देश के भविष्य पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया । 
ऐसी स्थिति में अब वर्तमान पीढ़ी को ही भारत को INDIA के चंगुल से मुक्त कर उसे पुन विश्व की महा शक्ति बनाने व जगदगुरू पद पर प्रतिष्ठित करने का दायित्व लेना होगा । इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये भारतीय शिक्षा प्रणाली को पुर्नजीवित करना होगा । संविधान में संसोधन करा INDIA शब्द की बजाय भारत का प्रावधान कराना होगा । तथा देश की किशोर व युवा पीढ़ी को राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना के साथ जोड़ना होगा ।
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प्रिय राष्ट्र प्रेमियों ! आपको यह जानकर हर्ष होगा कि - वैदिक राष्ट्र वादी चिंतन के अनुसार साम्प्रदायिकता एवं भ्रष्टाचार के उन्मूलन तथा भारतीय संस्कृति व मानवाधिकार के संरक्षण हेतु प्रगतिशील देश भक्तों के राष्ट्रव्यापी संगठन ' साम्प्रदायिकता विरोधी मोर्चा ( रजिस्टर्ड ) द्वारा भारतीय संस्कृति के संरक्षण व सम्वर्धन हेतु देश के संविधान से अपमान जनक शब्द INDIA को हटाकर भारत की पुर्नस्थापना हेतु जन आन्दोलन तथा गौ गुरूकुल परियोजना का प्रारम्भ किया जा 

रहा है । सहयोगी राष्ट्र भक्त बंधु संस्था के ईमेल svmbharat@gmail.com पर या हमारे फोन नम्बर 0 94124 58954 पर काल कर अधिक जानकारी ले सकते है । वन्दे मातरम ।  जय माँ भारती । आपका - विश्वजीत सिंह ' अनंत '
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वैदिक दण्ड विधान और लोकपाल विधेयक - वेद के अनुसार जिस गलती को 1 आम आदमी करता है । और उसी गलती को प्रथम श्रेणी का आदमी करता है । तो आम आदमी के मुकाबले पर प्रथम श्रेणी के आदमी को 8 गुणा दण्ड अधिक मिलना चाहिये । जैसे जिस समय द्वापर काल ( अबसे लगभग 5 200 वर्ष पूर्ण ) में युवराज युधिष्ठिर व युवराज दुर्योधन में से राजा चुनने हेतु पात्रता परीक्षा का आयोजन हुआ । तो प्रश्न रखा गया था कि - 4 मानव हैं । उनमें 1 ब्राह्मण । 1 क्षत्रिय । 1 वैश्य । और 1 शुद्र है । उन्होंने 1 निरपराध मानव की हत्या कर दी है । तो उनको दण्ड देने की प्रक्रिया किस प्रकार की जाये । इसके उत्तर हेतु सर्वप्रथम दुर्योधन को आमंत्रित किया गया । दुर्योधन ने उत्तर में कहा कि - चारों को समान रूप में दण्ड दिया जाये । फिर युधिष्ठिर को आमंत्रित किया गया । तो वैदिक दण्ड विधान को जानने वाले युधिष्ठिर ने अपने उत्तर में कहा कि - इन चारों अपराधियों में से शुद्र को 4 वर्ष का दण्ड देना चाहिये । क्योंकि इसका ज्ञान कम है । फिर वैश्य के प्रति कहा कि यह शुद्र से अधिक ज्ञानवान है । तथा व्यापार । कृषि व पशु पालन में कुशल है । इसको 8 वर्ष का दण्ड देना चाहिये । फिर 

कृम क्षत्रिय का आता है । इसमें युधिष्ठिर ने कहा कि - क्षत्रिय पर जनता की रक्षा का दायित्व होता है । इसने अपने दायित्व का उलंघन कर अनुचित कदम उठाया है । इसलिये इसको 16 वर्ष का दण्ड देना चाहिये । फिर कृम ब्राह्मण का आता है । इसमें युधिष्ठिर ने कहा कि - ब्राह्मण का कार्य सर्व समाज को शिक्षा देना है । ब्राह्मण गुरू होता है । और जैसा गुरू होता है । वैसा ही शिष्य अर्थात समाज बनता है । अतः इस ब्राह्मण को 32 वर्ष का दण्ड देना चाहिये । इसी प्रकार मंत्री को 1 000 गुणा । और राजा को सबसे अधिक दण्ड देना चाहिये ।
इसी प्रकार लोकपाल में दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिये । चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी को प्रारंभिक दण्ड दिया जाना चाहिये । तथा प्रथम श्रेणी के कर्मचारीयों ( I A S व राजनेताओं आदि ) को अधिक दण्ड दिया जाना चाहिये । जो जितने महत्वपूर्ण पद पर है । उसको उतना अधिक दण्ड दिना चाहिये । वर्तमान भारत में प्रधानमंत्री की राजा के समान सर्वोच्च मान्यता है । अगर वो कोई गलत कार्य करता है । तो वो सबसे अधिक दण्ड पाने का अधिकारी है । क्योंकि कहा गया है कि - यथा 

राजा तथैव प्रजा । इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री को स्वयं लोकपाल विधेयक के दायरे में आना स्वीकार कर लेना चाहिये ।
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बाबर की मजार बनाम बाबरी मस्जिद - जब इस्लाम अफगानिस्तान में पहुँचा । तो अफगानिस्तान के लोग अरब साम्राज्यवादी शक्तियों द्वार छल प्रपंच से किये गये युद्ध में हार गये । लेकिन उन्होंने अपने पूर्वजों को विस्मृत नहीं किया था । आज जो अफगानिस्तान में तालिबान है । सारे बुद्ध की प्रतिमा तोड़ रहे हैं । ये तालिबान तो वैश्विक अरब साम्राज्यवादी मानसिकता और पाकिस्तान से प्रशिक्षित होकर कट्टरपंथी बन गये हैं । वहां के अफगानों में इतने दिनों तक यह नहीं था । लेकिन वहाँ का अफगान क्या सोचता है ? मोहनदास गांधी की पुत्र वधु ( मोहनदास गांधी के दत्तक पुत्र फिरोज खान गांधी की पत्नी । ) श्रीमती इन्दिरा गांधी जब अफगानिस्तान गयी । तो वहाँ पर उनको लगा कि - यहाँ बाबर की मजार है । उन्होंने कहा कि इतना बड़ा सम्राट हुआ । साम्राज्य संस्थापक हुआ । चलो उसकी मजार पर पुष्प चक्र चढ़ाना चाहिए । उन्होंने कहा - मैं बाबर की मजार पर पुष्प 

चढ़ाना चाहती हूँ । अफगानिस्तान की सरकार बड़ी घबरायी । कभी सोचा भी नहीं था । कोई आकर पुष्प चक्र चढ़ायेगा । पता लगाया । तो 1 कब्रिस्तान में 1 कोने में उसकी मजार थी । इतनी टूटी फूटी अवस्था में थी कि झाड़ झंखाड़ खड़े हो गये थे । भारत की प्रधानमंत्री आने वाली हैं । इसलिए उन्होंने उसे साफ करके देखने लायक बनाया । प्रधानमंत्री गयीं । वही पुष्प चक्र चढ़ाया । जब जाने लगी । तो उनके साथ 1 अधिकारी था । उसने वहाँ के कब्रिस्तान के प्रमुख से पूछा - बाबर इतने बड़े 1 साम्राज्य का संस्थापक हुआ । और उसकी मजार इतनी टूटी फूटी अवस्था में ? तो उसका उत्तर था - वह कौन अफगान था । वह अफगान नहीं था । तो हम उसकी चिन्ता क्यों करें ? अफगानिस्तान का मुसलमान । मुसलमान होते हुए भी बाबर को अपना नहीं समझता । दुर्भाग्य की

बात है कि - अपने देश भारत में मुसलमानों का 1 वर्ग बाबर को अपना पुरखा मानता है । और उनके वोटों के लालची राजनीतिज्ञ भी बाबर को अपना पुरखा मानते हैं । इसलिये उसने राम मन्दिर तोड़कर वहाँ पर जो मस्जिद रूपी ढ़ाँचा बनाया था । उसको बाबरी मस्जिद कहते है । 
Email : vishwajeetsingh1008@gmail.com
फ़ालोवर ( समर्थक ) बनकर हमारा उत्साह वर्द्धन एवं मार्गदर्शन करें । आपका हार्दिक स्वागत है ।
- सभी जानकारी और लेख वि्श्वजीत सिंह के ब्लाग - sach सच से साभार । ब्लाग पर जाने हेतु क्लिक करें ।

Friday 5 October 2012

गमों का दौर भी आये तो मुस्करा के जियो


ब्लागर परिचय श्रंखला में आज आपका परिचय श्री पंकज राजपूत से ।
इनका शुभ नाम है - पंकज सिंह राजपूत । और इनकी  Industry है - Non-Profit और इनका Occupation है - Volunteer Bharat Swabhiman Trust और इनकी Location है - नजफगढ़ ।  नई दिल्ली India पंकज जी अपने Introduction में कहते हैं - ॐ असतो मा सदगमय । तमसो मा ज्योतिर्गमय । मृत्योर्मामृतं गमय । ॐ शांति: । शांति: । शांति: । Lead us from unreal to Real. Lead us from darkness to Light. Lead us from the fear of death, To knowledge of Immortality. May all have peace अर्थशास्त्र परा स्नातक विद्यार्थी । इस बृह्माण्ड के कारण रुपी सत्य को जानने के लिए अति उत्सुक । अति उत्साही । और अति जिज्ञासु Bharat Swabhiman Volunteer, Student, B.Com from Delhi University in 2010 enrolled for Master in Economics ( MEC ) fully inspired by works of Swami Vivekananda and now Swami Ramdev और इनका Interests है - Social Work  बस 1 ही धुन जय जय भारत । और इनके ब्लाग हैं - सत्य की खोज और भारतीय दर्शन आध्यात्मिक राष्ट्रवादभारत स्वाभिमान आंदोलन । नाम पर क्लिक करें ।
और इनकी Favourite Films है - देशभक्ति । और इनका Favourite Music है  - ना सर झुका के जियो । और ना मुँह छुपा के जियो । गमों का दौर भी आये तो मुस्करा के जियो । और इनकी Favourite Books हैं - Philosophy

History Yoga Health International and Domestic Economics Politics, Business Opportunities. Much more Spiritual and Patriotic.
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और ये हैं । इनके ब्लाग से कुछ रचनायें । इन रचनाओं के सिर्फ़ अंश ही यहाँ दिये गये हैं । पूरे लेख के लिये ब्लाग पर जायें ।
ॐ असतो मा सदगमय । तमसो मा ज्योतिर्गमय । मृत्योर्मामृतं गमय । ॐ शांति: । शांति: । शांति: ।
सत्य ! यह 1 ऐसा तथ्य है । जिसमें बड़े बड़े ज्ञानी भी भृमित हो जाते हैं । जीवन का आरम्भ क्यों होता है ? और उसका अंत क्यों होता है ? अर्थात मृत्यु क्यों होती है ? इसी तथ्य को जानना सांसारिक सत्य है । संसार के सभी धर्म इसी सत्य को जानने का प्रयास कर रहें हैं । भौतिक स्तर पर हमें जीवन मृत्यु और जीवन चक्र ही सत्य प्रतीत होता है । परन्तु आध्यात्मिक स्तर पर सत्य जीवन - मृत्यु से परे की वस्तु है । जिसे केवल अनुभव किया जा सकता है । सम्पूर्ण बृह्माण्ड में केवल हम पदार्थ ( भिन्न भिन्न अवस्थाओं में ) और ऊर्जा को ही प्रत्यक्ष रूप से और परोक्ष रूप से भी अनुभव करते हैं । परन्तु इस पदार्थ और ऊर्जा का नियंता । कारण कौन है ? मेरे मत से वही कारण ही सत्य है । आईये इस प्रार्थना से

आरम्भ करते हुए मेरे साथ चलिए । उस सत्य की खोज में -  ॐ असतो मा सदगमय । तमसो मा ज्योतिर्गमय । मृत्योर्मामृतं गमय । ॐ शांति: । शांति: । शांति: ।
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भिखारी का ज्ञानोपदेश । ईशावास्योपनिषद - यह प्राचीन काल के 2 ऋषियों से सम्बंधित वृतांत है । उस प्राचीन युग में शौनक कापी और अभिद्रतारी 2 ऋषि थे । दोनों 1 ही आश्रम में रहते हुए बृह्मचारियों को शिक्षा दीक्षा दिया करते थे । दोनों ऋषियों के आराध्य देव वायु देवता थे । वे उन्हीं की उपासना करते थे । 1 बार दोनों ऋषि दोपहर का भोजन करने बैठे । तभी 1 भिक्षुक अपने हाथ में भिक्षा पात्र लिए उनके पास आया । और बोला - हे ऋषिवर ! मैं कई दिनों से भूखा हूँ । कृपा करके मुझे भी भोजन दे दीजिए । भिखारी की बात सुन कर दोनों ऋषियों ने उसे घूरकर देखा । और बोले - हमारे पास यहीं भोजन है । यदि हम अपने भोजन में से तुझे भी भोजन दे देंगें । तो हमारा पेट कैसे भरेगा । चल भाग यहाँ से । 
उनकी ऐसी बातें सुनकर उस भिखारी ने कहा - हे ऋषिवर ! आप लोग तो ज्ञानी हैं । और ज्ञानी होकर भी ये कैसी 

बातें करते हैं ? क्या आप जानते नहीं कि - दान श्रेष्ठ कर्म । भूखे को भोजन कराना । प्यासे को पानी देना महान पुण्य का कर्म है । इन कर्मों को करने से मनुष्य महान बन जाता है । यह शास्त्रों का कथन है ।  इसलिए कृपा करके मुझ भूखे को भी कुछ खाने को दीजिए । और पुण्य कमाईए ।
ऋषियों ने उसे विस्मित नजरों से देखते हुए सोचा । बड़ा ही विचित्र व्यक्ति है । हमारे मना करने पर भी भोजन मांग रहा है । दोनों ऋषि उसे कुछ पलों तक घूरते रहे । फिर स्पष्ट शब्दों में बोले - हम तुझे अन्न का 1 दाना भी नहीं देंगे । फिर भी वह भिखारी वहाँ से नहीं हिला । और बोला - किन्तु मेरे प्रश्नों का उत्तर देने में तो आपकों कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए ।
- हाँ हाँ पूछो पूछो ! दोनों ऋषियों ने सम्मिलित स्वर में उत्तर दिया ।  तब उसने पूछा - आपके आराध्य देव कौन हैं ? ऋषियों ने उत्तर दिया - वायु देवता हमारे आराध्य देव हैं । वही वायु देवता जिन्हें प्राण तथा श्वास भी कहते हैं । तब भिखारी ने कहा - तब तो तुम्हें यह भी ज्ञात होगा कि - वायु सृष्टि के कण कण में व्याप्त है । क्योंकि वही प्राण है ।  
- हम जानते हैं । दोनों ऋषियों ने 1 स्वर में कहा । फिर भिखारी ने पूछा - अच्छा ये बताओ कि तुम भोजन करने से पूर्व भोजन किस देवता को अर्पण करते हो ? बड़े अटपटे से भाव में ऋषियों ने कहा - यह भी कोई पूछने की

बात है । हम भोजन वायु देवता को अर्पित करते हैं । और हमने अब भी किया है । क्योंकि वायु ही प्राण हैं । जो सम्पूर्ण बृह्माण्ड में व्याप्त है ।
भिखारी ने लंबी गहरी श्वांस ली । और शांत भाव से बोला - यहीं मैं तुम्हारे मुँह से सुनने को उत्सुक था । जब तुम प्राण को भोजन अर्पित करते हो । और प्राण पूरे विश्व में समाये हैं । तो क्या मैं उस बृह्माण्ड ( विश्व ) से अलग हूँ ।  क्या मुझमें भी वही प्राण नहीं हैं ?
- हमें पता है । ऋषियों ने झल्लाकर कहा । इस पर भिखारी बोला - जब तुम्हें मालूम है । तो मुझे भोजन क्यों नहीं देते ।  संसार को पालने वाला ईश्वर ही है । वही सबका प्रलय रूप भी है ।  फिर भी तुम ईश्वर की कृपा क्यों नहीं समझते ? लगता है । तुम सर्व शक्तिमान से अनभिज्ञ हो ।  यदि तुम्हें ज्ञात होता कि - ईश्वर क्या है ? तो मुझे भोजन को मना न करते । 

जब ईश्वर ने वायु रूप प्राण से भी जीवों की रचना की है । तब तुम आचार्य होकर भी क्यों उसकी रचना में भेद कर रहे हो । जो प्राण तुममे समाये हैं । वही प्राण मुझमें भी हैं । फिर तुम्हारी तरह मुझे भोजन क्यों नहीं मिलना चाहिए ? क्यों तुम मुझे भोजन से वंचित रखना चाहते हो ?
1 भिखारी के द्वारा ऐसी ज्ञान भरी बातें सुनकर । दोनों ऋषि आश्चर्य चकित रह गए । और विस्मित दृष्टि से उसे देखने लगे ।  वे समझ गए कि - यह कोई बहुत ही ज्ञानवान पुरुष हमें उपदेश देने आया है । वे बोले - हे भद्र ! ऐसा नहीं है । कि हमें उस परम पिता परमेश्वर का ज्ञान नहीं है ।  हम जानते हैं कि - जिसने सृष्टि की रचना की है । वह ही प्रलय काल में स्व रचित सृष्टि को लील भी जाता है ।  साथ ही हमें यह भी मालूम है कि - स्थूल रूप से दृष्टि गोचर वस्तु । अंत में सूक्ष्म रूप से उसी परमात्मा में विलीन हो जाती है ।  किन्तु हे भद्र ! उस परम पिता को हमारी तरह भूख नहीं लगती है । और न ही वो हमारी तरह भोजन करता है । जब उसे भूख लगती है । तब वह इस सृष्टि को 

ही भोजन रूप में ग्रहण कर लेता है ।  विद्वान मनुष्य उसी परम पिता की आराधना करते हैं । इस संवाद के बाद ऋषियों ने भिखारी को अपने साथ बिठाया । और भोजन कराया । और बाद में उस भिखारी से शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया ।
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ईशावास्योपनिषद -
ईशा वास्यं इदं सर्वं यत किं च जगत्यां जगत । तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृध: कस्य स्विद धनम ।
- संसार में ऐसा तो कुछ है ही नहीं । और न ही कोई ऐसा है । जिसमें ईश्वर का निवास न हो । तुम त्याग पूर्वक भोग करो । अपने पास अतिरिक्त संचय न करो । लोभ में अंधे न बनो । पैसा किसी का हुआ नहीं है । इसलिए धन से परोपकार करो । ओम शांति: शांति: शांति:
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होरी खेलत संत सुजान । आत्म ज्ञान से । छिन छिन पल पल घङी घड़ी होरी निसि दिन आठों जाम से । होरी खेलत संत सुजान । आत्म ज्ञान से ।
पंडित खेलै पोथी पत्रा से । मुल्ला किताब कुरान से । जोगी खेले जोग जुगत से । अभिमानी खेले अभिमान से । होरी खेलत संत सुजान । आत्म ज्ञान से । 
छिन छिन पल पल घङी घड़ी होरी निसि दिन आठों जाम से । होरी खेलत संत सुजान । आत्म ज्ञान से । 
कामी खेलै कामिनि के संग । लोभी खेलत दाम से । पतिवृता खेलै अपने पति संग । वैश्या सकल जहान से ।
होरी खेलत संत सुजान । आत्म ज्ञान से । छिन छिन पल पल घङी घड़ी होरी निसि दिन आठों जाम से । 
होरी खेलत संत सुजान । आत्मज्ञान से ।
अति प्रचंड तेज माया को । तकि तकि मारत बान से । कोटिन माहि बचे कोई बिरला । कहे कबीर गुरु ज्ञान से । होरी खेलत संत सुजान । आत्म ज्ञान से ।

छिन छिन पल पल घङी घड़ी होरी निसि दिन आठों जाम से । होरी खेलत संत सुजान । आत्म ज्ञान से ।
ƸӜƷƸӜƷƸӜƷ
आनंद स्रोत बह रहा पर तू उदास है । अचरज है जल में रह के भी मछली को प्यास है ।
आनंद स्रोत बह रहा पर तू उदास है । अचरज है जल में रह के भी मछली को प्यास है । 
फूलों में जो सुवास  ईख में मिठास है । भगवान का तो  विश्व के  कण कण में वास है ।
आनंद स्रोत बह रहा पर तू उदास है । अचरज है जल में रह के भी मछली को प्यास है ।
ƸӜƷƸӜƷƸӜƷ
सर्व बंधनों और दुखों के मूल कारण - महर्षि पतंजलि के योग दर्शन के अनुसार सर्व बंधनों और दुखों के मूल कारण 5 क्लेश हैं - अविद्या । अस्मिता । राग । द्वेष । और अभिनिवेश । अब इन कारणों को समझते हैं ।
अविद्या - अनित्य में नित्य । अशुद्ध में शुद्ध । दुःख में सुख । अनात्म में आत्म समझना अविद्या है । इस अविद्या रुपी क्षेत्र में ही अन्य चारों कलेशों का जन्म होता है ।

अस्मिता - चित्त जड़ रूप है । और चेतन पुरूष चिति कहा जाता है । इस अविद्या के कारण जड़ चित्त और  चेतन पुरुष चिति में भेद नहीं रहता । यह अविद्या से उत्पन्न हुआ चित्त और चिति में अविवेक अस्मिता कलेश कहलाता है ।
ƸӜƷƸӜƷƸӜƷ
मानव से महा मानव बनने के लिए - जगत के मिथ्या होने का प्रतिपादन । पिछली पोस्ट में आपने जगत की भृम रूपता के विषय में पढ़ा कि - किस प्रकार यह संसार न होते हुए भी इन्द्रियों के द्वारा दृश्यमान होता है । और अनुभव में आता है । इस प्रकार 1 स्वाभाविक प्रश्न स्वतः ही जन्म ले लेता है कि - फिर यहाँ किया हुआ पाप पुण्य सब अच्छा बुरा आत्मा परमात्मा सब भृम रूप ही हैं ।
परन्तु संसार को मिथ्या समझने पर कर्म विहीनता और पलायन की स्थिति उत्पन्न होगी । जो समाज के लिए हितकर नहीं । भारतीय दर्शन पलायन का नहीं । अपितु कर्म का दर्शन है । ऐसे में महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित शास्त्र और श्रीराम को भगवान बनाने वाला संवाद भला पलायन की अनुमति कैसे दे सकता है ।

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जगत की भृम रूपता - यह जगत संकल्प के निर्माण । मनो राज्य के विलास । इंद्रजाल द्वारा रचित पुष्पहार । कथा कहानी के अर्थ के प्रतिभास । वात रोग के कारण प्रतीत होने वाले भूकंप । बालक को डराने के लिए कल्पित पिशाच । निर्मल आकाश में कल्पित मोतियों के ढेर । नाव के चलने से तथा प्रतीत होने वाली वृक्षों की गति । स्वपन में देखे गए नगर । अन्यत्र देखे गए फूलों के स्मरण से । आकाश से आकाश में कल्पित हुए पुष्प की भांति । भृम द्वारा निर्मित हुआ है । मृत्यु काल में पुरुष स्वयं अपने हृदय में इसका अनुभव करता है ( यहाँ मृत्यु से अभिप्राय शरीरांत नहीं है )
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खरबूजा - चाक़ू । चाक़ू  - खरबूजा । आज देश करवट ले रहा है । नई सोच का वक्त चल रहा है । चिंतन । मनन ।

विचार । विमर्श न जाने और भी क्या क्या हो रहा है । क्या क्या ? से मतलब जानने से पहले । यह समझना अत्यावश्यक है । इतिहास गवाह है । जब भी बड़े अत्याचार का खात्मा हुआ है । बड़े ने अपने स्वयं के अंत से पहले मातहतों का अंत कराया है । रावण । कंस । कौरव । किसी भी वंश के इतिहास को पढ़ लें । लगभग 1 सी कहानी नज़र आयेगी । पुनः लेख की पहली पंक्ति पर आता हूँ । वर्तमान भी ऊहापोह मचा रहा है । वर्तमान " वंश " के कई मातहत भी हवा हवाई हो रहे हैं । हाँ मातहतों की फेहरिस्त बड़ी लम्बी है ( रावण के कुल जमा 2 भाई और थे । उनमें से भी 1 शरणागत हो गया । परन्तु दुर्योधन के 99 भाई और थे । इनमें से भी 1 ही शरणागत हुआ था ) वर्तमान वंश या यूं कहें - कुनबा । बहुत बहुत बहुत लम्बा है । समय तो लगेगा ही । चिल - पौं भी कुछ ज्यादा भी होगी । होनी भी चाहिए । कुनबा जो बड़ा है । हाँ इनकी ताक झांक से क्षणिक परेशानियां भी आयेंगी । हंसी भी आयेगी । गुस्सा भी आयेगा । रोना सब कुछ होगा । लेकिन याद रखें । रात अंधेरी बाद चांदनी आती है । धूप निकलते देख नींद उड़ जाती है । ध्यान रखें । वर्तमान कुनबे में से कोई " शरणागत " न आ जाय । अभी कई " हिसार " पार करने हैं । कई हरियाणा । बिहार । आंध्र । महाराष्ट्र फतह करने हैं । देखिये फतह तो करने ही पड़ेंगे । क्योंकि साफ़ नज़र आ रहा है कि - वर्तमान कहीं भी सुधरता नहीं दिख रहा । जब बिगाड़ आता है । तो सागर के हिलोरे की तरह सब तरफ एकमेक ही हो जाता है । अब इसमें मीडिया हो । या आम जन । हिलोरे तो 1 जैसे ही लगते हैं । भृमित करना ही तो एकमात्र लक्ष्य है । भृम जाल से निकालना भी " वर्तमान " का ही तो काम है ।

हाँ शीर्षक की बात । चाकू के अवतार में तो हमेशा हमेशा " जनता " ही अवतरित होगी । और खरबूजा रूपी रावण का ही अंत होगा । वैसे कुनबे का सपरिवार जाना न केवल श्रेयकर है । बल्कि भविष्य के लिए हितकर भी है । और ठीक उसी तरह जा भी रहा है । लिखने वाले का नाम -  जुगल किशोर सोमाणी । जयपुर । ईमेल -  jugalkishoresomani@yahoo.co.in
स्थान - जयपुर । समय - Thursday October 20, 2011 2:2
http://www.bharatswabhimantrust.org/bharatswa/DailyBlog.aspx
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मैं खुदा हूँ । इस्लाम और वैदिक अद्वैत वाद ( सूफीवाद के परिपेक्ष्य में )
सूफीवाद में समय समय पर कुछ हिला देने वाले विचारक भी पैदा हुए । जिन्होंने इस्लाम में वैदिक अद्वैत को

पुष्ट करने की कोशिश की । सूफी परम्परा का आरम्भ हसन ( 642-728 ) जो कि बसरा ( इराक ) में हुए । उनके द्वारा हुआ । हसन उम्मया शासकों के खिलाफ थे । और उनकी शान शौकत भरी जीवन शैली से नफ़रत करते थे । हसन के बाद 1 मशहूर नाम अबू हाशिम ( मृत्यु 776 ) का है । जो कूफा ( इराक ) में रहते थे । बायजीद बिस्तामी ( मृत्यु  874 ) ने इस्लामिक नेताओं को । और पैगम्बर के नाम पर मौज करने वालों को खुली चुनौती दे दी । उन्होंने तौहीद Monotheism एकेश्वरवाद को 1 क्रांतिकारी रूप दे दिया । उनके तौहीद के सिद्धांत में प्रेमी और प्रेमिका दोनों 1 हो गए । उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि - इब्राहीम । मूसा । और मुहम्मद मैं हूँ । और जो भी ईश्वर के प्रेम में डूब कर फना ( मिट ) हो गया । वही ईश्वर है । 
इस प्रकार बायजीद ने उपनिषदों के सार को इस्लाम के सम्मुख रखा । परन्तु डरे हुए और लोभी इस्लामिक नेताओं ने उनकी बातों को सिरे से नकार दिया । इस विषय पर कबीर का भी मत है कि - यदि आप उस अलख ( जो दीखता नहीं है ) उसे देखना चाहते हो । तो उसे संतों के रूप में देखो । क्योंकि वह अपने भक्तों के ह्रदय में

बसता है । सबसे अधिक चौंका देने वाला । साहस की सीमायें तोडने वाला । और इस्लामी क़ानून को चुनौती देने वाला । 1 प्रसिद्ध नाम है - हुसैन बिन मनसूर अल-हल्लाज AL-HALLAJ का ।
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वेदों में गूढ़ विज्ञान सम्बन्धी सामग्री विस्तृत मात्रा में संचित है । जिसमें से बहुत ही अल्प मात्रा में अब तक जानकारी हो सकी है । कारण यह है कि वैज्ञानिक सामग्री ऋचाओं में अलंकारिक भाषा में है । जिसका शाब्दिक अर्थ या तो सामान्य सा दिखाई पड़ता है । या वर्तमान सभ्यता के संदर्भ में प्रथम दृष्टतया कुछ तर्क संगत नहीं दिखलाई पड़ता । जबकि उसी पर गहन विचार करनें के पश्चात उसका कुछ अंश जब समझ में आता है । तो बहुत ही आश्चर्य होता है कि - वेद की छोटी छोटी ऋचाओं ( सूत्रों ) के रूप में कितने गूढ़ एवं कितने उच्च स्तर के वैज्ञानिक रहस्य छिपे हुए हैं । कुछ ही समय पूर्व साइंस रिपोर्टर नामक अंग्रेजी पत्रिका जो नेशनल इंस्टीटयूट आफ साइंस कम्युनिकेशन्स एण्ड इन्फार्मेशन रिसोर्सेज NISCAIR /CSIR डा. के. यस. कृष्णन मार्ग नई दिल्ली 110012 द्वारा प्रकाशित हुई थी । में माह मई 2007 के अंक में 1 लेख ANTIMATTER The ultimate fuel के नाम के शीर्षक से छपा था । इस लेख के लेखक श्री डी. पी. सिह एवं सुखमनी कौर ने यह लिखा है कि - सर्वाधिक कीमती वस्तु संसार में - हीरा । यूरेनियम । प्लैटिनम । यहाँ तक कि कोई पदार्थ भी नहीं है । बल्कि अपदार्थ । या प्रति पदार्थ अर्थात ANTIMATTER है । वैज्ञानिकों ने लम्बे समय तक किये गये अनुसंधानों एवं सिद्धांतों के आधार यह माना है कि - बृह्मांड में पदार्थ के साथ साथ अपदार्थ या प्रति पदार्थ भी समान रूप से मौजूद है । इस सम्बन्ध में वेदों में ऋग्वेद के अन्तर्गत नासदीय सूक्त जो संसार

में वैज्ञानिक चिंतन में उच्चतम श्रेणी का माना जाता कि - 1 ऋचा में लिखा है कि -
तम आसीत्तमसा गू हमग्रे प्रकेतं सलिलं सर्वमा इदम । 
तुच्छेच्येनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिनाजायतैकम । ऋग्वेद 10 ।129 ।3
अर्थात सृष्टि से पूर्व प्रलय काल में सम्पूर्ण विश्व मायावी अज्ञान ( अन्धकार ) से ग्रस्त था । सभी अव्यक्त और सर्वत्र 1 ही प्रवाह था । वह चारो ओर से सत असत MATTER AND ANTIMATTER से आच्छादित था । वही 1 अविनाशी तत्व तपश्चर्या के प्रभाव से उत्पन्न हुआ । वेद की उक्त ऋचा से यह स्पष्ट हो जाता है कि - बृह्मांड के प्रारम्भ में सत के साथ साथ असत भी मौजूद था ( सत का अर्थ है पदार्थ )

यह कितने आश्चर्य का विषय है कि - वर्तमान युग में वैज्ञानिकों द्वारा अनुसंधान पर अनुसंधान करने के पश्चात कई वर्षों में यह अनुमान लगाया गया कि - विश्व में पदार्थ एवं अपदार्थ । प्रति पदार्थ Matter and Antimatter समान रूप से उपलब्ध है । जबकि ऋग्वेद में 1 छोटी सी ऋचा में यह वैज्ञानिक सूत्र पहले से ही अंकित है । उक्त लेख में यह भी कहा गया है कि Matter and Antimatter जब पूर्ण रूप से मिल जाते हैं । तो पूर्ण ऊर्जा में बदल जाते है । वेदों में भी यही कहा गया है कि - सत और असत का विलय होने के पश्चात केवल परमात्मा की सत्ता या चेतना बचती है । जिससे कालान्तर में पुनः सृष्टि ( बृह्मांड ) का निर्माण होता है । छान्दोग्योपनषद में भी बृह्म एवं सृष्टि के बारे में यह उल्लेख आता है कि - आदित्य ( केवल वर्तमान अर्थ सूर्य नहीं । बल्कि व्यापक अर्थ में ) बृह्म है । उसी की व्याख्या की जाती है । तत्सदासीत - वह असत शब्द से कहा जाने वाला तत्व । उत्पत्ति से पूर्व स्तब्ध । स्पन्दन रहित । और असत के समान था । सत यानी कार्याभिमुख होकर कुछ प्रवृति पैदा होने से सत हो गया । फिर उसमें भी कुछ स्पन्दन प्राप्त कर वह अकुरित हुआ । वह 1 अण्डे में परणित हो गया । वह कुछ समय पर्यन्त फूटा । वह अण्डे के दोनों खण्ड रजत एवं सुवर्ण रूप हो गये । फिर उससे जो 

उत्पन्न हुआ । वह यह आदित्य है । उससे उत्पन्न होते ही बड़े जोरों का शब्द हुआ । तथा उसी से सम्पूर्ण प्राणी और सारे भोग पैदा हुए हैं । इसी से उसका उदय और अस्त होने पर दीर्घ शब्द युक्त घोष उत्पन्न होते हैं । तथा सम्पूर्ण प्राणी और सारे भोग भी उत्पन्न होते हैं ।
अथ यत्तदजायत सोऽसावादित्यस्ततं जायमानं घोषा । उलूलवोऽनुदतिष्ठन्त्सर्वाणि च भूतानि सर्वे च । 
कामास्तस्मात्तस्योदयं प्रति प्रत्या यनं प्रति घोषा । उलूलवोऽनुत्तिष्ठन्ति सर्वाणि च भूतानि सर्वे च कामाः ।
छान्दग्योपनिषद शंकर भाष्यार्थ खण्ड 19 । 3 ।
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1 सैल ( कोशिका ) से लेकर पूरा पिण्ड ( शरीर ) व 1-1 परमाणु से लेकर पूरा बृह्माण्ड एनर्जी ( ऊर्जा ) के सिद्धांत पर कार्य करता है । योग । प्राणायाम । ध्यान । यज्ञ । जड़ी बूटियों के सेवन से हमारे भीतर 1 सकारात्मक शक्ति का सृजन होता है । तथा रोग । नशा । समस्त अशुभ विचार । अज्ञान । अविद्या । कलेश । शरीर । इन्द्रियों व मन आदि के सब दोष नष्ट हो जाते हैं । और मानव महा मानव बन जाता है । जैसे मोबायल की बैटरी 30 मिनट में चार्ज होने के बाद । हम पूरा दिन मोबायल पर बात कर सकते हैं । वैसे ही प्रतिदिन - योग । प्राणयाम । ध्यान द्वारा शरीर । मन व आत्मा को चार्ज कर सकते हैं ।
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Thursday 4 October 2012

बाकी क्या बतायें लगे हुए हैं


ब्लागर परिचय में आज आपका परिचय फ़रीदाबाद हरियाणा के कवि और ब्लागर प्रभात परवाना से ।
इनका शुभ नाम है - प्रभात परवाना । और इनकी Industry है - Non Profit और इनका
Occupation है - crime reporter और इनकी Location है - faridabad, harayana, India प्रभात जी अपने Introduction में कहते हैं - हिंदी साहित्य की तरफ रुझान शुरू से ही था । प्रारम्भिक और माध्यमिक शिक्षा ग्रहण करते हु्ये साहित्यिक झुकाव प्रबल होता गया । टूटी फूटी कलम से टूटा फूटा लिख लेता था । और जब टूट कर लिखता था । उस पर टूट कर पड़ते थे लोग । कालेज के दिनों में समाज सेवा में कदम रखा । कलम भी परिपक्व होती गयी । लोगों का इतना प्यार

मिला कि - देश भर के बड़े बड़े मंचो पर मौका मिला । बाकी क्या बतायें ? लगे हुए हैं । चल पड़े हैं । तो मंजिल को पा जायेंगे । और इनका Interests है - to remove corruption from india और to create a peaceful india और to serve society और to aware people about right to information act और to aware people about human rights और इनकी Favourite Films हैं - जो संस्कृति का ज्ञान देती हो और इनका ब्लाग है - सिर्फ़ दीवानों के लिये । ब्लाग पर जाने हेतु नाम पर क्लिक करें ।
और इनका Favourite Music है - जो आध्यात्म से भरा हो । और इनकी Favourite Books हैं - गीता । मैं कौन हूँ ?
- आगे बढ़ने से पहले चेतावनी - मैं 18 वर्ष का हूँ / मैं 18 वर्ष की हूँ । और पूर्णता परिपक्व हूँ । और अपने पूरे होश ओ हवास में यह कबूल करता/करती हूँ कि - इस ब्लाग को पढने का निर्णय मैं खुद अपनी इच्छा से ले रहा/रही हूँ । यदि इस ब्लॉग को पढने के बाद के बाद मुझे किसी अपने की याद आती है । या मेरी मानसिक स्थिति में कोई बदलाव आता है । तो इसका जिम्मेदार मैं खुद होऊँगा/ होऊँगी । ध्यान रहे । ये ब्लाग उन सभी के लिये है । जिन्होंने अपने जीवन में किसी से भी दिल से प्यार किया है । चाहे वो देश हो । समाज हो । या कोई प्रेमिका । 
- मुझे ये कसमें क्यों खानी पड़ रही है ? हुआ ये कि - ब्लाग को लगभग 80 000 लोगों ने पढ़ा । अब एकाध किसी ऐसी लड़की ने पढ़ लिया । जिसका मित्र जिसे आजकल की भाषा में शायद बाय फ्रैंड कहते हैं । उसने उसे छोड़ दिया था । पता नहीं । उस लड़की ने ऐसी कौन सी कविता पढ़ ली । वो बीमार हो गयी ।

उसके किसी मित्र का मेरे पास फ़ोन आया । बोला - आपकी वजह से हुआ है ? अब बताओ । मेरा क्या कसूर ? ये तो वही बात हुई ना कि - बाबा रामदेव की दवाई खाकर एक व्यक्ति का गला जाम हो गया । अरे भाई ! लाखो लोग ठीक हुये । वो कुछ नहीं । यहाँ ब्लॉग पर 80 000 लोग आये । अब 1 को कुछ हो गया । तो मेरे ऊपर नाम डाल दिया । तो सबसे अच्छा लगा ये तरीका कि - पहले आप कसमें खाईये । तब आगे जाईये । कल को मुझ पर नाम ना आये । वैसे आप लोगों का इतना प्यार पाकर खुद को धन्य महसूस करता हूँ । आप लोगों से 1 शिकायत है । भाई ! 1 साल में हज़ारों लोगों ने ब्लाग पढ़ा । लेकिन अपने कीमती समय में से 2 मिनट फोलो करने के लिए नहीं निकाले । आपसे अनुरोध करता हूँ । ब्लॉग फोलो और अपने दोस्तों से भी शेयर किया करो । अच्छा अब आप लोग ब्लाग पर जाओ ।
ज्यादा जानकारी के लिए वेबसाइट देखे - http://www.prabhatkumarbhardwaj.webs.com/
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आवश्यक सूचना

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