Monday, 15 October 2012

इस प्रकार तो 2 भगवान हो जायेंगे


ब्लागर परिचय श्रंखला में आज - सतसंग ही साधना है ब्लाग से परिचय करिये । 
स्वामी जी का जन्म वि.सं.1960 ( ई.स.1904 ) में राजस्थान के नागौर जिले के माडपुरा गाँव में हुआ था । और उनकी माताजी ने 4 वर्ष की अवस्था में ही उनको संतों की शरण में दे दिया था । आपने सदा परिव्राजक रूप में सदा गाँव गाँव शहरों में भृमण करते हुए गीता का ज्ञान जन जन तक पहुँचाया । और साधु समाज के लिए 1 आदर्श स्थापित किया कि साधु जीवन कैसे त्यागमय । अपरिग्रही । अनिकेत और जल कमलवत होना चाहिए । और सदा 1-1 क्षण का सदुपयोग करके लोगों को अपने में न लगाकर सदा भगवान में लगाकर । कोई आश्रम । शिष्य न बनाकर और सदा अमानी रहकर । दूसरो को मान देकर दृव्य 

संग्रह । व्यक्ति पूजा से सदा कोसों दूर रहकर अपने चित्र की कोई पूजा न करवाकर लोग भगवान में लगें । ऐसा आदर्श स्थापित कर गंगा तट स्वर्गाश्रम हृषिकेश में आषाढ़ कृष्ण द्वादशी वि.सं.2062 (  3-7-2005 )  बृह्म मुहूर्त में भगवद धाम पधारे । संत कभी अपने को शरीर मानते ही नहीं । शरीर सदा मृत्यु में रहता है । और मैं सदा अमरत्व में रहता हूँ । यह उनका अनुभव होता है । वे सदा अपने कल्याणकारी प्रवचन द्वारा सदा हमारे साथ हैं । संतों का जीवन उनके विचार ही होता हैं । ब्लाग - सतसंग ही साधना है 
नित्य योग - 1

श्रोता - भगवान तो प्रत्यक्ष नहीं दिखते । पर धन प्रत्यक्ष दीखता है । तो फिर धन का आश्रय कैसे छोड़ें ?
स्वामी जी - वास्तव में धन है ही नहीं । दीखे कहाँ से ? अभी आपको धन कहाँ दीखता है ? धन का आश्रय हरदम दीखता है । धन हरदम नहीं दीखता । इस बात पर खूब विचार करो । धन आता हुआ दीखता है । अथवा जाता हुआ दीखता है । रहता हुआ नहीं दीखता । धन पहले था नहीं । और बाद में रहेगा नहीं । पर भगवान पहले भी थे । अब भी हैं । और बाद में भी रहेंगे । भगवान आते जाते नहीं । अतः यह कैसे कहा जाय कि भगवान नहीं दीखते । और धन दीखता है ? हाँ ! भगवान नेत्रों से नहीं दीखते । वे तो बुद्धि रूपी नेत्रों से दीखते हैं । आस्तिक भाव से दीखते हैं ।

धन का आश्रय पहले नहीं था । पहले ( छोटी अवस्था में ) माँ का आश्रय था । धन का आश्रय बाद में पकड़ा है । परन्तु भगवान का आश्रय पहले से है । उनके आश्रय से अनन्त बृह्माण्ड चल रहे हैं । उनका आश्रय पहले भी था । अब भी है । और आगे भी रहेगा । उनके आश्रय का कभी अभाव नहीं होता । परन्तु धन का आश्रय सदा रहेगा । यह बात है ही नहीं ।
धन सदा साथ में नहीं रहेगा । हम धन के साथ नहीं रहेंगे । और धन हमारे साथ नहीं रहेगा । परन्तु भगवान सदा हमारे साथ रहेंगे । हम भगवान 

के बिना नहीं रह सकते । और भगवान हमारे बिना नहीं रह सकते । हमारी ताकत नहीं है कि हम भगवान से अलग हो सकें । इतना ही नहीं । भगवान की भी ताकत नहीं है कि - वे हमारे को छोड़कर अलग रह सकें । जिस दिन भगवान हमारे को छोड़कर अलग रहेंगे । उस दिन हम 1 अलग भगवान हो जायेंगे । इस प्रकार 2 भगवान हो जायेंगे । जो कि सम्भव नहीं है । अतः भगवान हमारा साथ छोड़ ही नहीं सकते । इसलिये भगवान का ही आश्रय लेना चाहिये ।
आश्रय उसी का लेना चाहिये । जिसकी स्वतन्त्र सत्ता हो । जिसकी पर तन्त्र सत्ता हो । उसका आश्रय हमें लेना ही नहीं है । भगवान की स्वतन्त्र सत्ता है । अतः हमें भगवान का ही आश्रय लेना चाहिये । वे भगवान कभी हमारे से अलग नहीं होते । हमारे से अलग होने की उनमें सामर्थ्य ही नहीं है । भगवान सर्व व्यापक हैं । सब - देश । काल । वस्तु । व्यक्ति आदि में परिपूर्ण हैं । अतः वे हमें कैसे छोड़ देंगे ? अगर छोड़ देंगे । तो सर्व व्यापक कैसे हुए ? भगवान को छोडकर हम रह ही नहीं सकते । हम रहेंगे । तो उसी में रहेंगे । नहीं रहेंगे । तो उसी में रहेंगे । जन्मेंगे तो उसी में रहेंगे । मरेंगे तो उसी में रहेंगे । और जन्म मरण से रहित ( मुक्त ) हो जायेंगे । तो उसी मे रहेंगे । हम भगवान को छोडकर नहीं रह सकते । और भगवान हमें छोडकर नहीं रह सकते । हम दूसरे का आश्रय लेते हैं । यही बाधा है । ( शेष आगे के ब्लाग में )
कल्याणकारी प्रवचन पुस्तक से
- सभी जानकारी और लेख - सतसंग ही साधना है ब्लाग से साभार ।

आवश्यक सूचना

इस ब्लाग में जनहितार्थ बहुत सामग्री अन्य बेवपेज से भी प्रकाशित की गयी है, जो अक्सर फ़ेसबुक जैसी सोशल साइट पर साझा हुयी हो । अतः अक्सर मूल लेखक का नाम या लिंक कभी पता नहीं होता । ऐसे में किसी को कोई आपत्ति हो तो कृपया सूचित करें । उचित कार्यवाही कर दी जायेगी ।