Friday 25 March 2011

कुछ महत्वपूर्ण लिंक और परिचय

इस चित्र को ध्यान से देखिये
अक्सर इंटरनेट कम्प्यूटर यूजर ब्लागर्स को सर्फ़िंग या कोई कार्य करते समय कुछ परेशानियाँ आ जाती हैं ।
किसी साफ़्टवेयर की आवश्यकता होती है । किसी जानकारी की आवश्यकता होती है । तब समस्या आती है  कि अब क्या किया जाय ? आईये आपको इन सभी समस्याओं से निबटने हेतु कुछ महत्वपूर्ण लिंक और परिचय कराते हैं ..राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ ।

श्री रविशंकर श्रीवास्तव जी Industry: Engineering Occupation: Technical Consultant, Tech Translator Location: Bhopal : M.P. : India
Aren't papier mache cuts the worst ? Is there GOD ? If yes, who created Him ?
ब्लाग..रचनाकार..छींटे और बौछार

श्री आशीष खण्डेलवाल जी Ashish Khandelwal...I am a blogger, and and and...
Industry: Communications or Media Occupation: Journalism Location: जयपुर : राजस्थान : India
ब्लाग..हिन्दी ब्लाग टिप्स

भिलाई इस्पात संयंत्र में सेवारत श्री बी एस पाबला जी Industry: Telecommunications Occupation: नौकरी Service Location: भिलाई Bhilai : छत्तीसगढ़ : India
ब्लाग..ब्लाग बुखार

श्री नवीन प्रकाश जी । Location: खरोरा, रायपुर : छत्तीसगढ़ : India
बस एक कोशिश है । जो थोडी बहुत जानकारियां मुझे हैं । चाहता हूँ कि आप सभी के साथ बाँटी जाए । आप मुझे मेल भी कर सकते हैं । hinditechblog@gmail.com पर .
वेवसाइट..हिन्दी 2 टेक..Hindi Tech - तकनीक हिंदी में

श्री योगेन्द्र पाल जी Industry: Technology Occupation: Software Professional Location: Agra : U.P. : India
ब्लाग..योगेन्द्र पाल की सूचना प्रौद्योगिकी डायरी

श्री मयंक भारद्वाज जी  Location: Haridwar : Uttarakhand : India
मेरे ब्लाग में आपका स्वागत है । इंटरनेट एक ऐसी दुनिया है । जहॉ सब कुछ मिलता है । मैं अपने ब्लाग में आपको इसी दुनिया से कुछ ऐसी वेबसाइटो पर लेकर चलूँगा । जो आपके काम आ सकती है । और कम्पयूटर की थोडी बहुत जानकारी देने की कोशिश करूँगा । जितना मुझे पता है ।
ब्लाग..कम्यूटर दुनियाँ


श्री संजीव तिवारी जी .. Sanjeeva Tiwari..Industry: Law..Occupation: Advocate..Location: Durg - Bhilai : Chhattisgarh : India
छत्‍तीसगढ की कला, संस्‍कृति, भाषा व साहित्‍य के प्रति आत्‍ममुग्‍ध एक गवंइहा मन ...
ब्लाग..आरम्भ

Sunday 20 March 2011

कुछ बेहतरीन लिंक्स आपके लिये ।

इसमें ज्यादातर लिंक्स फ़िल्मी साइटस और ब्लाग्स के हैं । जिनमें फ़िल्मों से संबन्धित हर तरह की भरपूर जानकारी है । 

सेन्स आफ़ सिनेमा
विस्फ़ोट काम
हिन्दी सीखें ।
भारत एक खोज
इंडियन बायस्कोप
चित्रपट
यायावर की फ़िल्मी डायरी
विदाउट बाक्स
स्क्रीन रिसर्च
सत्यम शाट
rogerebert
भारत सरकार प्रकाशन विभाग
पी पीसीसी
फ़िलिस फ़ी उम्स
मूवी देट मेक यू थिंक
 मेमसाब
THE INDIAN MOVIES INDEX
filmiholic
फ़िल्मी गीक
फ़िल्म सिनेमा
दिलीप के दिल से
Digital Library of India
chomsky
बालीवुड स्प्रिट
बालीवुड दीवाना

bollywhat
BOLLYWOOD MEANINGS
bethlovesbollywood
MediaArchive
amazingpics4you
1000petals
filmsite org
फ़ायट क्लब
फ़िल्म स्टडीज फ़ार फ़्री
uk/film
 प्रियंका चौपङा
Blog Directory



आईये आपको कुछ फ़िल्म स्टार्स से मिलायें ।


आईये आपको कुछ फ़िल्म स्टार्स से मिलायें । जिससे मिलना चाहें । उसी पर क्लिक कर दें बस ।

शिल्पा शेट्टी के फ़ेन्स के लिये ।
रणवीर कपूर के चाहने वालों के लिये
रामगोपाल वर्मा के कदरदानों के लिये ।
प्रियंका चौपङा से मिलिये ।
प्रेम नाम है मेरा । प्रेम चौपङा ।
खलनायक प्राण के हालचाल जानिये ।
कवीर बेदी से मिलिये ।
क्या आप जान इब्राहिम के फ़ैन है ।
बिल्लो रानी कहो तो अपनी जाँ दे दे । बिल्लो रानी यानी बिपाशा बसु । यानी बिप्स ।

रिश्ते में तो हम अभिषेक के बाप लगते हैं । नाम है । अमिताभ बच्चन ।
काजोल हसबेंड यानी अजय देवगन ।
और ये हैं । आमिर खान जी ।

Friday 18 March 2011

आ गया ब्लॉगस्पॉट का एक नया नवेला मजेदार विज़ेट

ब्लॉगर ने अभी अभी एक नया विजेट उपलब्ध कराया है । जिससे आपके ब्लाग के पाठक अपना ई-मेल भर कर उस ब्लॉग की नई जानकारियाँ अपने ईमेल में प्राप्त कर सकता है । ये विजेट इस ब्लाग पर लगा हुआ है । तिरंगे के नीचे देखें ।
मूल तौर पर यह फीडबर्नर की ईमेल सेवा का ही दूसरा स्वरूप है । बस इतना सा काम ब्लागस्पाट ने किया है कि इसे सीधे एक विजेट के रूप में पेश कर दिया है । क्योंकि फीडबर्नर, गूगल की ही सेवा है ।

अगर आपने फीडबर्नर का खाता बनाया हुआ है तो ठीक । अन्यथा इसका उपयोग करने के लिए उस पर एक खाता तो बनाना ही पडेगा । खाता कैसे बनेगा यहाँ देखिये ।


यदि आप इसका उपयोग करना चाहते हैं तो

अपने ब्लॉगर खाते में लॉग-इन करें ।
डिजाईन के अंतर्गत बेसिक पर जाएं ।
गैजेट जोड़ें । पर क्लिक करें ।

दी गई सूची में । ई-मेल से अनुसरण करें । वाल़े विजेट का चुनाव करें ।
सहेजें ।
डेशबोर्ड>डिजायन>एड ए गैजेट> फ़ालो बाई ईमेल न्यू ( सबसे ऊपर ही आता है )>+( पर क्लिक करें )> सेव करें >
सीमित तकनीकी ज्ञान वाले उपयोगकर्ता के लिए यहाँ काफी लाभदायक प्रक्रिया है ।
कुछ मेरी एडिंग के साथ साभार पाबला जी के ब्लाग..ब्लाग बुखार से । आपका धन्यवाद पाबला जी ।

Wednesday 16 March 2011

मैं गीतों की एक कड़ी हूँ । रश्मिप्रभा । परिचय पोस्ट



एक लड़की..
क्या गरीब । क्या अमीर ।
 चंगुल में आ जाये ।
 तो कोई फर्क नहीं होता ।
उसमें और मेमने में..।

शब्दों की यात्रा में शब्दों के अनगिनत यात्री मिलते हैं । शब्दों के आदान प्रदान से भावनाओं का अनजाना रिश्ता बनता है ।
 गर शब्दों के असली मोती भावनाओं की आंच से तपे हैं ।
 तो यकीनन गुलमर्ग  यहीं हैं ।
सिहरते मन को शब्दों से तुम सजाओ । 
हम भी सजायें । यात्रा को सार्थक करें । 

मेरे एहसास इस मंदिर में अंकित हैं । जीवन के हर सत्य को मैंने इसमे स्थापित करने की कोशिश की है । जब भी आपके एहसास दम तोड़ने लगे । तो मेरे इस मंदिर मे आपके एहसासों को जीवन मिले । यही मेरा अथक प्रयास है । मेरी कामयाबी आपकी आलोचना समालोचना में ही निहित है । आपके हर सुझाव मेरा मार्गदर्शन करेंगे । इसलिए इस मंदिर मे आकर जो भी कहना आप उचित समझें । कहें..। ताकि मेरे शब्दों को नए आयाम, नए अर्थ मिल सकें..। रश्मिप्रभा

वास्तव में ईमानदारी से कहूँ । तो मैं रश्मिप्रभा जी से एकदम अपरिचित ही था । पर इनके ब्लाग पर इनकी पसंद । कलात्मकता पूर्ण अभिरुचि । अन्य विचार आदि से चकित ही रह गया । वास्तव में जिन्हें बचपन से ही ऐसी महान हस्तियों का सानिंध्य । सरंक्षण मिला हो । उनके बारे में कुछ भी कहने के लिये थोङे शब्दों से काम नहीं चल सकता । अतः आप खुद ही देखिये रश्मिप्रभा जी क्या कह रहीं हैं । राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ ।
रश्मिप्रभा..मैं गीतों की एक कड़ी हूँ । जो तुमने नहीं कहा । जो उसने नहीं कहा । वो सब कहना चाहती हूँ । गाना चाहती हूँ । मैं अपनी पिटारी के सारे ख्याल तुम्हें देना चाहती हूँ ।..कागजों में 31 अगस्त ।
अमृता का जन्मदिन होता है । मुहब्बत में हर रोज़ । अमृता का जन्मदिन होता है ।

सौभाग्य मेरा कि मैं कवि पन्त की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद की बेटी हूँ । और मेरा नामकरण स्व सुमित्रानंदन पन्त ने किया । और मेरे नाम के साथ अपनी स्वरचित पंक्तियाँ मेरे नाम की..। " सुन्दर जीवन का क्रम रे । सुन्दर सुन्दर जग जीवन ".. शब्दों की पांडुलिपि मुझे विरासत मे मिली है । अगर शब्दों की धनी मैं ना होती । तो मेरा मन । मेरे विचार मेरे अन्दर दम तोड़ देते । मेरा मन जहाँ तक जाता है । मेरे शब्द उसके अभिव्यक्ति बन जाते हैं । यकीनन ये शब्द ही मेरा सुकून हैं । Industry । Business Services । Occupation । Business । Location । पटना । बिहार ।

साभार सभी चित्र सामग्री रश्मिप्रभा जी के ब्लाग्स से आपका बहुत बहुत आभार रश्मिप्रभा जी ।


Blogger Mukesh Kumar Sinha said...
Rashmi di...ko kahin bhi dekh kar khushhi milti hai...:)
13 February 2011 20:57
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Blogger रश्मि प्रभा... said...
मेरा परिचय और आपकी कलम ... इस सम्मान के लिए मैं शुक्रगुज़ार हूँ
13 February 2011 21:01
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Blogger सदा said...
रश्मि दी के लिये जितना भी कहा जाये कम है ...ब्‍लाग जगत में आपकी स्‍नेहिल छवि हो या मेरी भावनायें पर प्रस्‍तुत आपकी कवितायें जीवन को एक नई दिशा देती आपके सवालों का जवाब कब बन जाती हैं आप स्‍वयं ही नहीं जान पाते, आपके लेखन की बात हो या वटवृक्ष के संचालन की आत्‍मचिंतन पर आपके विचारों की कडि़या जीवन का एक सच कहती सी लगती हैं आपका बहुत-बहुत आभार इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये और रश्मि दी को बधाई ।
13 February 2011 21:03
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Blogger Meenu Khare said...
बहुत बहुत बधाइयाँ.बड़ी प्यारी तस्वीर आई है.मज़ा आ गया पढ़ कर. --- मीनू
13 February 2011 22:32
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Blogger Meenu Khare said...
pl include my blogs also having following addresses: http://meenukhare.blogspot.com/ http://entertainingscience.blogspot.com/
13 February 2011 22:37
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Blogger mridula pradhan said...
bahut achcha laga rashmi jee ke baare men padhkar.
13 February 2011 22:43
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Blogger Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...
जबसे ब्लॉग जगत में सक्रिय हुआ हूँ, रश्मिदी की रचनाओं का लुत्फ़ उठा रहा हूँ ... जीवन में कई संघर्षों का सामना करके भी उनमें जीवट की कमी नहीं है ... आपका आभार कि आप अपने इस मंच पर अच्छे रचनाकारों को स्थान दे रहे हैं ...
13 February 2011 23:03
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Blogger नरेन्द्र व्यास said...
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने रश्मि दी के बारे में. जब मैंने आखर कलश शुरू किया तो सर्वप्रथम जो स्नेह, मार्गदर्शन और हौसला दीदी से मिला, मैं कभी भुला नहीं पाऊंगा. दीदी की सबसे बड़ी खूबी है कि इतनी बड़ी शक्शियत होने के बाद भी वे इतनी सहज और स्नेहिल है कि मन स्वतः उनके प्रति श्रद्धा में अपना सर झुका देता है. वर्तमान दौर में जब हर कोई सिर्फ और सिर्फ अपने को ही भुनाने में लगा है ऐसे दौर में सिर्फ एक ही नाम मिला जिसकी वात्सल्य रश्मियों से समूचा ब्लॉग जगत रोशन हो रहा है, और वो नाम है- रश्मि प्रभा ! कितना सही नाम दिया है कविवर पन्त जी ने 'रश्मि प्रभा' यथा नाम तथा गुण. जिस प्रकार सूरज की स्वर्णिम रश्मियाँ बिना किसी भेदभाव के सभी सभी का मार्ग प्रशस्त करती है ठीक उसी प्रकार दीदी भी अपने स्नेहिल सानिध्य से हम सभी का मार्ग प्रशस्त करने के साथ-साथ हौसला भी बढ़ाती हैं. दीदी की कविताओं से काफी कुछ सीखा है मैंने. कई नए आयाम मिले हैं, पहचान मिली है. पन्त जी का अलौकिक प्रेम, माँ सरस्वती की कृपा और संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. समूचा साहित्य और हिंदी ब्लॉग जगत आपके वृहद् व्यक्तित्व और कृतित्व का सदा ऋणी रहेगा. हम आपको नमन करतके हैं..!
13 February 2011 23:57
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Blogger संगीता स्वरुप ( गीत ) said...
रश्मि जी को पढ़ना हमेशा सुकून देता है ...
14 February 2011 01:57
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Blogger दर्शन कौर धनोए said...
रश्मि जी से मेरा परिचय कुछ दिनों का ही हे --हम साथ साथ प्यारी माँ के लिए लिखते हे --राजीव जी की पांचवीं पोस्ट के लिए उन्हें ढेर सारी बधाइयाँ |
14 February 2011 01:57
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Blogger ZEAL said...
Rashmi ji is a sweet and loving person.
14 February 2011 02:49
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Blogger Patali-The-Village said...
सही नाम दिया है कविवर पन्त जी ने 'रश्मि प्रभा' यथा नाम तथा गुण|पन्त जी का अलौकिक प्रेम, माँ सरस्वती की कृपा और संस्कार आपको विरासत में मिले हैं|बाकी रश्मि जी के बारे में जितना कहा जाए काम है|आभार इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये|
14 February 2011 11:08
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Blogger रजनी मल्होत्रा नैय्यर said...
Rashmi didi ko padhna kafi achha lagta hai .....aur unki tippnai se prerna bhi....
22 February 2011 00:31
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Tuesday 15 March 2011

i m mechanical engineer अनूप जोशी । ब्लाग..कशमकश । परिचय पोस्ट ।

जब मैंने नयी नयी ब्लागिंग शुरू की थी । लगभग उसी समय अनूप जोशी जी से मेरा परिचय हो गया था । अनूप जी की रचनाओं में समाज की विसंगतियों अव्यवस्था ऊँचनीच भेदभाव आदि तमाम बुराईयों के प्रति इंसानियत के दृष्टिकोण से । इंसानियत के पैमाने से..एक आक्रोशित युवा की झलक थी । उन्हें भगवान से भी बहुत शिकायत थी । और इस बात से होना ये चाहिये था कि मेरा उनसे प्रेमभाव न होता । लेकिन इसके विपरीत मैं उनके आक्रोश को । और अनूप जी मेरे टेक्नीकल भक्तियोग लेखन को पसन्द करते थे । खैर ..अनूप जी पिछले 11 अक्टूबर को " पापा " बने हैं । उन्हें इसकी बहुत बहुत बधाई के साथ । इस परिचय पोस्ट में उनकी तीन रचनायें पढिये ।
पापा..मैं पापा बन गया ।
11 अक्टूबर की रात में । कोई नहीं था । साथ में ।
अचानक । बीबी का फ़ोन आया । फ़ोन में खबर सुनी तो । मैं घबराया ।
पत्नी को । पेट में दर्द सता रहा था । और मैं ऑफिस में था । इसलिए घबरा रहा था ।
पत्नी के साथ कोई नहीं था । क्योंकि । डिलीवरी डेट । 2 नवम्बर की थी ।
और काफी दिन पहले । दर्द हो रहा था । ये बात बहुत भयंकर थी ।
मैं कमरे में जाने को तुरंत निकला । कठोर दिल मेरा । मोम जैसा पिघला ।
कुछ कोस की दूरी मुझे । कई मील की लग रही थी ।
कई कुछ गलत न हो जाये । ये भावना अन्दर चुभ रही थी ।
घर पहुँचते ही मैं । पत्नी को लेकर । अस्पताल गया ।
डॉक्टर के कमरे में जाते-जाते । मेरी आँखों में आंसू का सैलाब बहा ।
फिर अपने आपको । संभाल कर । डॉक्टर की बात को सुना ।
वो बोली । आपके होने वाले बच्चे के लिए । बिधाता ने । आज का दिन है चुना ।
फिर इन्तजार करते-करते । वो घडी आई ।
सबसे पहले नर्स बाहर आकर । मुझे देख मुस्कराई ।
भगवान के द्वारा । हमें  भेजा उपहार । बच्चे के रूप में डॉक्टर । बाहर लायी ।
मेरे हाथ में पकड़ा कर बोली । बधाई हो बधाई ।
मेरी आँखे खुशी से छलक आई ।
आज आपसे मैंने । अपनी । उस दिन की । बात की है ।
और अपनी पत्नी अंजलि को । धन्यबाद देने के लिए । ये कविता सौगात दी है ।


खुमार
 कुछ नया करना चाहते हैं हम । पुराना हटाकर ।
84 करोड़ देवता तो याद नहीं । ढोंगी बाबा की तस्वीर लगाते हैं । पूजा में सटाकर।
पुण्य कमा लेते हैं । अंधे व्यक्ति को सड़क पार कराकर ।
पर बजट बिगड़ जाता है । माँ के चश्मे का बिल भराकर ।
माँ के हाथ का खाना खाने में हीख इन्हें आती है ।
और बासी बर्गर पिज्जा देखकर ही भूख इन्हें सताती है ।
बगल के किसन चाचा की दूकान जाने में शर्म इन्हें आती है ।
और मल्टीप्लेक्स में अपनी चोरों के जैंसे जांच कराकर महंगा खरीदने में कोई आफत नहीं आती है ।
कुएं के पानी को गन्दा कहते हैं ।
और जो पिए रसायन युक्त मिनरल वाटर उसे बन्दा कहते है ।
घरवालों के लिए टाइम नहीं । पर अमेरिका में चैटिंग से बिना देखे दोस्त की सुध लेते है ।
भुज के भूकंप में सिर्फ अफ़सोस और शाहरुख की अमेरिका में चेकिंग में दुःख लेते है ।
घर के बने खाकी सूती कपडे ख़राब । और ब्रैंड सही हैं ।
लडकियों के 10 बॉयफ्रेंड हैं । टोकने में कहती है । यही ट्रेंड है ।
क्या लिखे जोशी  ( मैं ) पुराना मिटाकर ।
कुछ नया करना चाहते है हम । पुराना हटाकर ।


बिभूति नारायण राय ने । " छिनाल " शब्द का । प्रयोग कर दिया । और रातों रात ।
अपने आपको । प्रसिद्ध कर दिया । पहली बार टीवी में । राहुल महाजन नहीं बल्कि ।
साहित्य में चर्चा हो रही थी । कुछ महिलाएं ।  न्यूज़ चैनेल में रो रही थी ।
कि इस राय ने । बहुत घृणित काम किया है । अपने एक लेख में । औरतों को एक ।
नया नाम दिया है । हमने सोचा लो । एक छोटे से शब्द ने । राय को काबिल बना दिया ।
अक्ष के छितिज को । साहिल बना दिया । अब अगर प्रसिद्ध होना है । तो तुम गालियाँ लिखो ।
और जितना चाहते हो उतना । साहित्य के बाज़ार में बिको । पर भाई हम चांसलर नहीं है ।
जो किसी पत्रिका में । लेख लिख सके । और ना ही ब्लागस्पाट में । मेरे इतने पढने वाले हैं ।
जो हम भी । चर्चामंच में दिख सके । हमें तो कमेन्ट भी तब मिलते हैं जब । हम दूसरो को दे आते है
और क्या पता वो भी ? हमारा बदला चुकाने को । बिना पढ़े " बहुत सुन्दर " । लिखकर चले जातें हैं ।
Anoop Joshi । Industry । Engineering । Occupation । Private । Location । dehradun । uttarakhand । India ।
साभार श्री अनूप जोशी जी के ब्लाग कशमकश से । आपका बहुत बहुत धन्यवाद अनूप जी

Sunday 13 March 2011

..आओ मेरे राम बसो । देवेन्द्र मिश्रा । परिचय पोस्ट

*** श्री देवेन्द्र मिश्रा जी ने अभी गत फ़रवरी से ही ब्लागिंग शुरू की है । और मुझे खुशी है कि वे जीवन की बारीकियों और संवेदनशील पक्षों को सूक्ष्मता से महसूस करते हैं । आध्यात्म की तरफ़ भी उनका रुझान है ।
तो आईये । श्री मिश्रा जी का भावभीना स्वागत करते हुये उनके चिंतन पर आधारित ये भक्ति रचना पढें..राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ ।

आओ मेरे राम बसो । मेरे इस हृदयाँगन में ।

चरण रजों से तारी अहिल्या । केवट को गले लगाया ।
पिता वचन पालने हेतु । त्यागा मुकुट एक पल में ।
आओ मेरे राम बसो । मेरे इस हृदयाँगन में ।

निश्छल प्रेम भरत भाई से । विह्वल गले लगाया ।
चरण पादुका दे दी अपनी । भाई के मान मनौव्वल में ।
आओ मेरे राम बसो । मेरे इस हृदयाँगन में ।

निर्भय किया दारुकारण्य को । खर-दूषण का नाश किया ।
अभय किये यती सन्यासी । लेकर बाण-धनुष भुजदंडो में ।
आओ मेरे राम बसो । मेरे इस हृदयाँगन में ।

पर्णकुटी और कुश की शैय्या । भोजन कन्दमूल फल पाया ।
शबरी के जूठे फल खाये । प्रेम भक्ति वत्सलता में ।
आओ मेरे राम बसो । मेरे इस हृदयाँगन में ।



रावण ने मायामृग छल से । सीता का अपहरण किया ।
नदी, नार, वन कहाँ न ढूँढा । प्रेम-विरह व्याकुलता में ।
आओ मेरे राम बसो ।   मेरे इस हृदयाँगन में ।

भक्त प्रवर हनुमत से मिलकर । सुग्रीव को गले लगाया ।
पत्थर भी पानी पर तैरा । रामनाम की शक्ति में ।
आओ मेरे राम बसो । मेरे इस हृदयाँगन में ।

वानरसेना संग करी चढाई । महायुद्ध का शंखनाद किया ।
अंत किया रावण सेना का । अभिषेक मित्र का लंका में ।
आओ मेरे राम बसो ।  मेरे इस हृदयाँगन में ।

लखन सहित, संग में सीता । निज घर को प्रस्थान किया ।
गदगद हुए अयोध्यावासी । रामराज की बधाई में ।
आओ मेरे राम बसो । मेरे इस हृदयाँगन में ।

साभार श्री देवेन्द्र मिश्रा जी के ब्लाग..
शिवमेवम सकलम जगत..से । ऐसी उत्तम भक्ति रचना के लिये आपका बहुत बहुत आभार मिश्रा जी ।

अवचेतन मन की सूक्ष्मदृष्टि । देवेन्द्र मिश्रा । परिचय पोस्ट

*** श्री देवेन्द्र मिश्रा जी ने अभी गत फ़रवरी से ही ब्लागिंग शुरू की है । और मुझे खुशी है कि वे जीवन की बारीकियों और संवेदनशील पक्षों को सूक्ष्मता से महसूस करते हैं । आध्यात्म की तरफ़ भी उनका रुझान है । तो आईये । श्री मिश्रा जी का भावभीना स्वागत करते हुये उनके चिंतन पर आधारित ये रचना पढें..राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ ।

**विचारों की प्रबलता व उनके निरंतर अंधङ व शोर के कारण हमारे अवचेतन मन की सूक्ष्मदृष्टि क्षमता जाया जाती है । प्रभातबेला में पक्षियों का कलरव । चलती हवा में पत्तों की सरसराहट । सूर्य की बालकिरणों में चमकती ओस की बूँदें । बगीचे में कलियों से खिलते पुष्प । य़ा अलसाये से व अर्धनिदृत से स्कूल के लिये प्रस्थान करते मासूम बच्चे । इन मनोहरतम अद्भुत ध्वनियों व दृश्यों पर तो हमारा ध्यान भी नही पहुँच पाता ।
हमारे अवचेतन की सूक्ष्मदृष्टि जो एकमात्र इन मनोहरतम अद्भुत ध्वनियों को सुनने व देखने में सक्षम है । वह हमारे अन्दर चल रहे विचारों के अंधङ में इस तरह फँसी और दबी रहती है कि उसे तो रंचमात्र यह आभास भी नही मिल पाता कि हमारे चारों ओर निरंतर कितनी सुन्दर व शुभ ध्वनियाँ । दृश्य व घटनायें निरंतर घट रही हैं । वस्तुतः इन सुन्दर व शुभ ध्वनियाँ और दृश्यों को बिना अवचेतन की सूक्ष्मदृष्टि की शक्ति व जाग्रत अवस्था के देखना व सुनना सम्भव ही नही है ।
विगत कुछ दिनों से एक छोटी सी पर बडी रोचक घटना मेरे स्वयं के साथ घटित हुई है । पाँच-छह दिन पहले शाम को ऑफिस से घर लौटते वक्त । घर के रास्ते से थोडा सा पहले एकाएक ध्यान कोयल की मीठी कूक की ओर गया । जब पलट कर निगाह उस मधुर आवाज की दिशा में गयी । तो इस शाम के धुँधलके में भी सडक के किनारे के बगीचे में पास के छोटे पेङ पर । एक साधारण सी टहनी पर पत्तों के आधे  झुरमुट में सहजता से बैठी इस कोयल की एक झलक सी मिली । सङक पर सरकती गाडी में बैठा मैं तो आगे बढ गया । किन्तु मन तो पलट-पलट कर उतावले बच्चे सा उसी मीठी ध्वनि की ओर भागा जा रहा था । वहाँ से दूर तलक घर के बिल्कुल पास भी वह मिठास भरी । हालाँकि बहुत धीमी ही । आवाज अब भी आ रही थी । घर के अन्दर आ गया । तो यहाँ आवाज का आभास तो अनुपस्थित था । किन्तु उस आवाज के प्रति मन की उत्सुकता व उतावलापन अब भी वैसा ही था । और मन की यही उत्सुकता मुझे घर के पीछे वाली बालकनी तक ले गयी । और सामने की झील के उस पार । सडक के नजदीक के उसी बगीचे से अब भी वह धीमी और मीठी आवाज कुछ-कुछ अंतराल पर आती सुनाई पड रही थी । और मन भी अब अपनी चंचलता व उतावलापन छोड बडे ध्यान व शान्त भाव से उस आवाज को सुनने में विभोर था । ऐसा महसूस हो रहा था । जैसे यह आवाज कहीं बाहर से न आकर । कहीं अपने अंतर्मन की प्रतिध्वनि से ही आ रही हो । अब तो हर रोज ही शाम को उस स्थान से गुजरते मन उसी मीठी आवाज की तलाश में पीछे छूट जाता है । कुछ ऐसा ही होता है । जब मन की सूक्ष्मदृष्टि किसी चीज के प्रति जागृत हो जाती है ।
पिछले वर्ष प्रबंधन की पढाई हेतु जब मैं IIMB परिसर में रह रहा था । तो वहाँ भी प्रायः इसी तरह की अनुभूति होती थी । उस हरे-भरे विभिन्न प्रकार के व सुरुचिपूर्ण रूप से स्थापित पेड पौधों और सुन्दर पुष्पों से सज्जित  परिसर में प्रभात और संध्या सैर के दौरान जब कभी अचानक ध्यान पक्षी कलरव या पेडों-झुरमुटों के बीच बैठे गुनगुनाते । चीं-चूँ करते कीडों मकोडों की ओर ध्यान चला जाता । तो उस समय जरूर मन की इस सूक्ष्मता का रंच आभाष मिलता था । वरना तो इस इर्दगिर्द फैले आंतरिक व वाह्य दोनों ओर के शोर के बीच यह मन की इस सूक्ष्मता इतनी दबी सी रहती है कि हमें रंच अनुभूति भी नही हो पाती कि हमारे आसपास परिवेश में कितनी ही अद्भुत ध्वनियाँ व दृश्य निरंतर प्रगट हो रहे हैं । हमारे मन की सजगता यदाकदा यदि जाग्रत हुई भी तो कुछ पल के लिये इस सुन्दरता की झलक मिलती तो है । किन्तु फिर वही निरंतर चल रहे विचारों के वेग व धारा में सब तिरोहित हो जाता है ।

हमें मन की इस सजगता को विचार-शून्यता के प्रयास से जगाना चाहिये । मन की सजगता की अवस्था में इसकी सूक्ष्मदृष्टि अवचेतन मन की ऊपरी सतह पर आकर इन अनोखे व अद्भुत ध्वनियों व अपने परिवेश में घटित हो रहे सुन्दर प्राकृतिक दृश्यों..जैसे प्रभात की सूर्य-किरणें व उनसे चमकती ओस की बूँदें । बाग में खिलते फूल । तितलियों का उङता झुंड । उङते पंक्षी । पेड पर बैठे उनका कलरव । या शाम की झुलफुलाहट में घासों के बीच बैठे टिड्डे की गुर्राहट । कीडे-मकोडों का टें-टें । या कहें तो बरसात के दिनों में यदाकदा दिख जाने वाला इंद्रधनुष का सप्तरंगी दृश्य को अनुभव कर पाती है ।
मेरी आध्यात्म क्षेत्र की जानकारी तो बहुत सीमित है । किन्तु जो भी किंचित आत्मिक अनुभूति है । उस आधार पर मेरा मत है कि यह सूक्ष्मदृष्टि की जागृत स्थिति हमें स्वयं के शारीरिक व मानसिक धरातलों में निरंतर परिवर्तनशीलता की संवेदनाओं हमारे परिवेश में घटित हो रहे परिवर्तन चक्र के चलचित्र का सहज आभास दिलाने लगती हैं । और इस तरह हमारा दृष्टाभाव । स्वयं के प्रति । अपने परिवेश के प्रति । और ईश्वर की इस अद्भुत रचना जगत के प्रति स्थापित होने लगता है । और यही दृष्टाभाव ही हमारे अंदर योगत्व लाता है । कृष्ण ने गीता में यही तो कहा है ।
यो मां पश्यति सर्वत्र , सर्वं च मयि पश्यति । तस्याहं न प्रणयस्यामि, स च मे न प्रणस्यति ।
साभार श्री देवेन्द्र मिश्रा जी के ब्लाग..
शिवमेवम सकलम जगत..से । ऐसी उत्तम पोस्ट के लिये आपका बहुत बहुत आभार मिश्रा जी

आवश्यक सूचना

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