Saturday, 11 July 2015

अथ मूत्रवर्गः

गोमूत्रं कटु तीक्ष्णोष्णं क्षारं तिक्तकषायकम
लघ्वग्निदीपनं मेध्यं पित्तकृत्कफवातहृत 1

शूलगुल्मोदरानाहकण्ड्वक्षिमुखरोगजित
किलासगदवातामवस्तिरुक्कुष्ठनाशनम
कासश्वासापहं शोथकामलापाण्डुरोगहृत 2

कण्डूकिलासगदशूलमुखाक्षिरोगान्गुल्मातिसारमरुदामयमूत्ररोधान
कासं सकुष्ठजठरकृमिपाण्डुरोगान्गोमूत्रमेकमपि पीतमपाकरोति 3

सर्वेष्वपि च मूत्रेषु गोमूत्रं गुणतोऽधिकम
अतोऽविशेषात्कथने मूत्रं गोमूत्रमुच्यते 4

प्लीहोदरश्वासकासशोथवर्चोग्रहापहम 5

शूलगुल्मरुजाऽनाहकामलापाण्डुरोगहृत्
कषायं तिक्ततीक्ष्णं च पूरणात्कर्णशूलहृत 6

नरमूत्रं गरं हन्ति सेवितं तद्र सायनम
रक्तपामाहरं तीक्ष्णं सक्षारलवणं स्मृतम 7

गोऽजाऽविमहिषीणां तु स्त्रीणां मूत्रं प्रशस्यते
खरोष्ट्रेभनराश्वानां पुंसां मूत्रं हितं स्मृतम 8

इति श्रीमिश्रलटकन तनय श्रीमिश्रभाव विरचिते भावप्रकाशे मिश्रप्रकरणे 
एकोनिविंशो मूत्रवर्गः समाप्तः  19 

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