Tuesday, 24 April 2012

हिंदू धर्म में अश्लीलता का प्रचार भ्रामक है - विजय

महा मूर्ख दरबार में । लगा अनोखा केस । फँसा हुआ है मामला । अक्ल बङी या भैंस । अक्ल बङी या भैंस । दलीलें बहुत सी आयीं । महा मूर्ख दरबार की । अब देखो सुनवाई । जी हाँ । ये कहना है इनका । इनका शुभ नाम है - विजय कुमार मिश्रा । इंटरनेट पर धार्मिक लोगों की खोज करना । उनसे जुङना । विचारों का आदान प्रदान करना ही मेरा एकमात्र ध्येय है । इसलिये ऐसे लोगों के मिलने पर खुशी होती हैं । आज हम आपका परिचय करा रहें हैं । ऐसे ही एक श्रेष्ठ भारतीयता के विचारों से ओत प्रोत नवयुवक श्री विजय कुमार मिश्रा जी से । हालांकि मुश्किल ये है कि - विजय जी ने अपने परिचय प्रोफ़ाइल में खास क्या कुछ भी नहीं लिखा है । पर किसी व्यक्ति के विचार ही उसका परिचय होते हैं । विजय जी ने सनातन हिन्दू धर्म । धार्मिकता । और कई अन्य ज्ञानवर्धक विषयों पर पूर्ण बेबाकी और निडरता से लिखा है । इसलिये इन्हें पढने से हमें बहुत सी नामालूम चीजों का भी पता चलता है । और एक रोचकता पूर्ण अहसास का अनुभव करते हुये पाठक इन्हें पढता ही चला जाता है । इनका ब्लाग है - कृष्णा आला रे । ब्लाग नाम पर क्लिक करें ।
और ये हैं । विजय जी की कुछ चुनिंदा रचनायें -


हिंदू धर्म में अश्लीलता का भ्रामक प्रचार का प्रति उत्तर
भारत वर्ष आज धर्मांतरण के रोग की प्रमुख आश्रय स्थली बन चुका है । चीन और उसके पार वाले देश इस विषाणु के लिए अप्रवेश्य हैं । और बाकी दुनिया में भारत वर्ष के पश्चिम में जितना धर्मांतरण हो सकता था । हो चुका है । अब तो बस वहाँ एक शाखा ( ईसाईयत) से दूसरी शाखा ( इस्लाम ) को लपकना । और उनकी छोटी छोटी उप शाखाओं को पकड़ कर झूलने का ही खेल बचा है ।
परंतु भारत में हिन्दू और गैर हिन्दू जनसंख्या का अच्छा खासा मिश्रण मौजूद है । जो अल्लाह या यीशु के मिशन को आगे ले जाने के लिये बड़ी संख्या में संभावित अनुयायी । बड़ी संख्या में दलाल । और समर्थक आधार को पेश करता है । जैसे भारत वर्ष इतिहास के महापुरुषों को जन्म देने के लिए प्रसिद्ध है । वैसे यहाँ की भूमि दगाबाजों को पैदा करने और पालने में भी उतनी ही उर्वरक है । जो आत्म घात में ही गौरव समझते हैं । इस बात का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि - एक राष्ट्रीय शर्म के प्रतीक ( बाबरी मस्जिद )  जिसे एक समलैंगिक । बच्चों के यौन शोषण की विकृति से गृस्त । कत्ले आम में माहिर । और नशे की लत के आदी बाबर ने खड़ा किया था । के विध्वंस की घटना को देश में गौरव का प्रसंग मानने की बजाए उसे एक बड़ी समस्या बना दिया गया है । जिसके पास किसी प्रकार का नियंत्रण ही नहीं

। ऐसे अत्यंत निर्बल नेतृत्व ने यह बिलकुल सरल कर दिया है कि - अन्य कोई अज़मल कसाब या अफ़ज़ल आराम से अपनी इच्छा और ज़रुरत अनुसार अपने लोग । पैसे । आर डी एक्स लाकर हिन्दुओं की संख्या को आसानी से कम कर सकें ।
अनेक कारण दिए जा सकते हैं । लेकिन यह इस लेख का प्रयोजन नहीं है । संक्षेप में । भारत वर्ष किसी भी विदेशी मत के फ़लने फूलने के लिए पोषक वातावरण मुहैया कराता है । धर्मांतरण ने अब एक चतुर खेल की शक्ल अख्तियार कर ली है । एक ही मत प्रसार के लिए अनेक प्रकार के उपायों का प्रचुर दाव । पेचों के साथ उपयोग किया जा रहा है । व्यापक स्तर पर धर्मांतरण करने के लिए जो हिन्दुओं को सिर्फ इस्लाम में शामिल करना चाहते हैं । या जो चाहते हैं कि - हिन्दू बाइबल को 


ही गले लगायें । उनकी प्रमुख कूट चाल है  । हिन्दुत्व को दुनिया के समक्ष सर्वाधिक अश्लील धर्म के रूप में प्रस्तुत करना । वैसे यह इनके मत प्रसार का कोई नवीनतम उपाय भी नहीं है । परंतु आज के संदर्भ में यह हथकंडा कई कारणों से महत्वपूर्ण हो जाता है । जिसकी चर्चा यहां स्थान अभाव की वजह से करना प्रासंगिक नहीं होगा ।
यह बहुत ही हास्यास्पद है कि - बाइबल या कुरान और हदीसों के आशिक हिंदुत्व पर अश्लीलता से भरे होने का आरोप लगाते हैं । क्योंकि अंतिम अक्षर तक सर्वाधिक अश्लील किताबों की फ़ेहरिस्त में इन किताबों ( बाइबल । कुरान । हदीस ) ने चरम स्थान हासिल कर रखा है ।

jesusallah.wordpress.com और बहुत सी अन्य साइटस पर आप इससे संबंधित अनगिनत लेख पाएंगे । किन्तु ये धर्मांतरण के विषाणु इतने बेशर्म हैं कि - आम जनता का छलावा करके पतित करने की प्रवृत्ति से उनकी आंखें तनिक भी झपकती नहीं हैं । तभी तो वे लोग अधिक से अधिक जनता को किसी भी तरीके से खींचते हैं । ताकि उनको जन्नत में ज्यादा से ज्यादा ऐशो आराम और हूरें मिलें ।
पर आज यह बेहद गंभीर मसला बन चुका है । भारी संख्या में अपने सत्य धर्म से अनजान हिन्दू । आतंरिक और बाहरी चालबाजियों का शिकार बन रहें हैं । और अंततः इस अप प्रचार में फंस कर भ्रान्तिवश अपने धर्म से नफ़रत करना शुरू कर देते हैं । उनके लिए हिंदुत्व का मतलब । राधा-कृष्ण के अश्लील प्रणय दृश्य । शिव लिंग के रूप में पुरुष

जननेंद्रिय की पूजा । शिव का मोहिनी पर रीझना । विष्णु और शिव द्वारा स्त्रियों का सतीत्व नष्ट करना । बृह्मा का अपनी पुत्री सरस्वती पर आसक्त होना इत्यादि इत्यादि से ज्यादा और कुछ नहीं रह जाता ।
हमारी जानकारी में ऐसे कई पत्रक pamphlets भारत भर में वितरित किए जा रहे हैं । और उनमें हिन्दुओं से अपील की जा रही है कि - वे सच्चे ईश्वर और सच्ची मुक्ति को पाने के लिए विदेशी मज़हबों को अपनाएं । बहुत से हिन्दू अपनी बुनियाद से घृणा भी करने लगे हैं । और जो हिंदुत्व के चाहने वाले हैं । वे निश्चित नहीं कर पाते हैं कि - कैसे इन कहानियों का स्पष्टीकरण दिया जाए । और अपने धर्म को बचाया जाए । छदम धर्म निरपेक्षता वादी कम्युनिस्ट इसको हवा देने में लगे हुए हैं ।
इस लेख का प्रयोजन इन सभी आरोपों को सही परिपेक्ष्य में रखना । और सभी धर्म प्रेमियों के हाथ में ऐसी कसौटी प्रदान करना है । जिससे वे न केवल सत्य का रक्षण ही कर सकें । बल्कि इस मिथ्या प्रचार पर तमाचा भी जड़ सकें ।

1 अश्लीलता के प्रत्येक आरोप पर विचार करने से पहले यह तय किया जाना जरूरी है कि - क्या ये धर्म की परिधि में आता भी है ? हिंदुत्व में धर्म की अवधारणा । कुरान और बाइबल की अंध विश्वासों की व्यवस्था से पूर्णतः भिन्न है । हिंदुत्व के सभी वर्गों में स्वीकृत की गई । धर्म की सार्वभौमिक व्याख्या । मनुस्मृति 6 । 92 में प्रतिपादित धर्म के 11 लक्षण हैं । अहिंसा । धृति ( धैर्य ) क्षमा । इन्द्रिय निग्रह । अस्तेय ( चोरी न करना ) शौच ( शुद्धि ) आत्म संयम । धी: ( बुद्धि ) अक्रोध । सत्य । और विद्या प्राप्ति ।
Vedic Religion in Brief में इन्हें विस्तार से समझाया गया है । जो इन 11 लक्षणों का उल्लंघन करे । या इनको दूषित करे । वह हिंदुत्व या हिन्दू धर्म नहीं है ।
2 धर्म की दूसरी कसौटी हैं - वेद । सभी हिन्दू ग्रंथ सुस्पष्ट और असंदिग्धता से वेदों को अंतिम प्रमाण मानते हैं । अतः कुछ भी । और सब कुछ जो वेदों के विपरीत है । धर्म नहीं है ।
मूलतः ऊपर बताई गई दोनों कसौटियां । अपने आपमें एक ही हैं । किन्तु थोड़े से अलग अभिगम से ।
3 योग दर्शन में यही कसौटी थोड़ी सी भिन्नता से यम और नियमों के रूप में प्रस्तुत की गई है ।
यम - अहिंसा । सत्य । अस्तेय । बृह्मचर्य ( आत्म संयम और शालीनता ) अपरिग्रह ( अनावश्यक संग्रह न करना )
नियम - शौच ( शुद्धि ) संतोष । तप ( उत्तम कर्तव्य के लिए तीवृ और कठोर प्रयत्न ) स्वाध्याय या आत्म 


निरीक्षण । ईश्वर प्रणिधान (ईश्वर के प्रति समर्पण )
पिनाक - भगवान शंकर का यह नाम कैसे पड़ा ?
दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य की माता का नाम कल्याणी था । जिसके कारण वे दैत्य गुरु बन गए थे । तथा विष्णु को अपना सबसे बड़ा शत्रु मान लिया था । विष्णु को शाप देने के कारण उनका सारा तपोबल नष्ट हो गया था । शुक्राचार्य फिर से तपोबल अर्जित करने के लिए यज्ञ करने लगे । विष्णु का सर्वनाश करना उनके जीवंन का एक मात्र लक्ष्य था ।
भगवान शंकर ने गुरु शुक्राचार्य को समझाने और ऐसा न करने के लिये गंगा को उनके पास भेजा । गंगा ने उनके पास आकर उन्हें बहुत समझया । किन्तु वे तब भी नहीं माने । तत पश्चात शंकर ने नंदी के नेतृत्व में 


अपनी सेना भेजी । जो उन्हें समझाने गए थे कि वे इस प्रतिशोध की भावना को त्याग दें । पर शुक्राचार्य को क्रोध के आगे कुछ नहीं दिख रहा था । उन्होंने नंदी समेत पूरी सेना को घायल कर वहां से भगा दिया ।
यह सब देखने के पश्चात शंकर को बहुत अधिक क्रोध आया । उन्होंने निश्चय कर लिया कि अब वो शुक्राचार्य का संहार कर देंगे । शंकर को अपने समक्ष देख शुक्राचार्य अत्यंत भयभीत हो गए । शंकर ने क्रोध के कारण अपना तीसरा नेत्र खोल लिया । तथा अत्यंत विकराल और बड़ा रूप धारण कर लिया । डर के मारे शुक्राचार्य शंकर के त्रिशूल के नीचे से उसमें घुस गए । शंकर ने अपने त्रिशूल को धनुष की भाँति मोड़ लिया । और शुक्राचार्य को अपने उदर में समा लिया । इस प्रकार शंकर ने गुरु शुक्राचार्य को अपने उदर में समेट कर उनका मान मर्दन किया ।


उसी समय प्रकट होकर बृह्मा ने शंकर को आशीर्वाद दिया कि त्रिशूल को धनुष का आकार देने के कारण आज से आपको संसार में पिनाक के नाम से भी बुलाया जायेगा । तबसे शंकर को पिनाक के नाम से भी जाना जाता है
हिन्दुत्व सभी धर्मों का मूलाधार
हिन्दुत्व को प्राचीन काल में सनातन धर्म कहा जाता था । हिन्दुओं के धर्म के मूल तत्त्व - सत्य । अहिंसा । दया । क्षमा । दान आदि हैं । जिनका शाश्वत महत्त्व है । अन्य प्रमुख धर्मों के उदय के पूर्व इन सिद्धान्तों को प्रतिपादित कर दिया गया था । इस प्रकार हिन्दुत्व सनातन धर्म के रूप में सभी धर्मों का मूलाधार है । क्योंकि सभी धर्म सिद्धान्तों के सार्वभौम आध्यात्मिक सत्य के विभिन्न पहलुओं का इसमें पहले से ही समावेश कर लिया गया था । मान्य ज्ञान जिसे विज्ञान कहा जाता है । प्रत्येक वस्तु या विचार का गहन मूल्यांकन कर रहा है । और इस प्रक्रिया में अनेक विश्वास । मत । आस्था और सिद्धांत धराशायी हो रहे हैं । वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आघातों से हिन्दुत्व को भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है । क्योंकि इसके मौलिक सिद्धान्तों का तार्किक आधार तथा शाश्वत प्रभाव है ।

आर्य समाज जैसे कुछ संगठनों ने हिन्दुत्व को आर्य धर्म कहा है । और वे चाहते हैं कि - हिन्दुओं को आर्य कहा जाय । वस्तुत: आर्य शब्द किसी प्रजाति का द्योतक नहीं है । इसका अर्थ केवल - श्रेष्ठ है । और बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य की व्याख्या करते समय भी यही अर्थ ग्रहण किया गया है । इस प्रकार आर्य धर्म का अर्थ उदात्त अथवा श्रेष्ठ समाज का धर्म ही होता है । प्राचीन भारत को आर्यावर्त भी कहा जाता था । जिसका तात्पर्य श्रेष्ठ जनों के निवास की भूमि था । वस्तुत: प्राचीन संस्कृत और पालि ग्रन्थों में हिन्दू नाम कहीं भी नहीं मिलता । यह माना जाता है कि परस्य ( ईरान ) देश के निवासी सिन्धु नदी को हिन्दु कहते थे । क्योंकि वे 'स' का उच्चारण 'ह' करते थे । धीरे धीरे वे सिन्धु पार के निवासियों को हिन्दू कहने लगे । भारत से बाहर हिन्दू शब्द का उल्लेख 'अवेस्ता' में मिलता है । विनोबा जी के अनुसार हिन्दू का मुख्य लक्षण उसकी अहिंसा प्रियता है ।


हिंसया दूयते चित्तं तेन हिन्दुरितीरित: । एक अन्य श्लोक में कहा गया है - ॐकार मूलमंत्राढ्य: पुनर्जन्म दृढ़ाशय: । गोभक्तो भारतगुरु: हिन्दुर्हिंसनदूषक: । ॐकार जिसका मूल मंत्र है । पुनर्जन्म में जिसकी दृढ़ आस्था है । भारत ने जिसका प्रवर्तन किया है । तथा हिंसा की जो निन्दा करता है । वह हिन्दू है ।
स्वामी विवकानंद के गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस
स्वामी विवकानंद के गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस का नाम दुनिया भर में सुविख्यात है । रामकृष्ण परमहंस के विषय में कहा जाता है कि - वे जिस काली मंदिर के पुजारी थे । वहाँ की काली की मूर्ति साक्षात प्रकट होकर परमहंस जी के हाथों से भोजन ग्रहण करती थीं । और उनसे बातचीत भी करती थी । इस चमत्कार के पीछे अटूट श्रृद्धा थी ।
ऐसी ही एक घटना महान भक्त रैदास के जीवन की है । संत रैदास चर्मकार थे । तथा मोची का व्यवसाय करते थे । चमड़े के जूते चप्पल बनाने के काम को वे पूरे दिल से मेहनत लगाकर करते थे । उनके मन में अपने कार्य या व्यवसाय को लेकर कोई शर्म संकोच नहीं था । वे पूरे समय अपने कर्तव्य को ईमानदारी से निभाने में लगे रहते थे । सभी से प्रेम पूर्वक व्यवहार करना । सच्चे मन से सभी का भला चाहना । तथा समय पर काम करके अपने ग्राहक को प्रसन्न रखना ही उनकी रोज की दिनचर्या थी ।
दशहरे का पर्व था । गाँव के मंदिर के साधु बृह्म मुहूर्त में ही स्नान करने के लिये घर से निकले । रैदास की

झोंपड़ी से गुजरते समय उन्होंने रैदास से पूछा - आज दशहरा है । स्नान रकने नहीं चलोगे क्या ? रैदास  ने प्रणाम करते हुए कहा कि - गंगा स्नान करना शायद मेरी किस्मत में नहीं है । क्योंकि मुझे आज ही ग्राहक के जूते बनाकर देना है भाई । साधु से प्रार्थना करते हुए रैदास बोले कि - महाराज यह सिक्का लेते जाईये । मेरी तरफ से इसे गंगा को भेंट चढ़ा देना ।
सिक्का लेकर साधु चल दिये । पूजा पाठ और स्नान करके वापस लौटने लगे । भक्ति भाव में ऐसे डूबे कि - यह भूल ही गए कि रैदास ने गंगा के लिये भेंट भेजी थी । साधु तो रैदास की बात भूल कर चल दिये । लेकिन पीछे से स्त्री की सी कोई दिव्य आवाज आई - रुको । रैदास द्वारा मेरे लिये भेजा गया उपहार तो देते जाओ । और एक दिव्य स्त्री मूर्ति 


के रूप में गंगा प्रकट हो गईं । इस अद्भुत घटना से साधु आश्चर्य चकित रह गए । उन्होंने जल्दी से वह सिक्का निकाल कर देवी के हाथों में रख दिया । यह घटना इतनी अद्भुत थी कि साधु की आंखें फटी की फटी रह गईं । इस घटना के बाद से उनका जीवन ही बदल गया । उन्हें समझ में आ गया कि - भक्ति का असली मतलब क्या होता है । उन्होंने रैदास को अपना गुरु बना लिया ।
आओ फरिश्तों से कुछ बात करें
बहुत उदास है ये रात । कोहरे के लिहाफ ओढ़ कर शायद तुम हो जो झांकती हो मुंडेरों से अभी ।
चाँद की बिंदी लगा लो अपने माथे पर । समझ लो तुम सुहागिन हो ।
तुम्हारी मांग में शफक सिन्दूर भर कर खोगई है भोर में । मैं लौट के आऊँगा देख लेना ।
तन्हाईयों में गूंजती रुबाईयों जैसा । धूप में सूखती रजाईयों जैसा । मैं लौट के आऊँगा देख लेना ।
हादसे में हाँफते सुबह के अखबार में सिमटा । देख लो तुम्हारी गोद में सर रखे सूरज सा लेटा हूँ मैं ।
एक रोशन सच चरागों से चुरा लाया हूँ मैं । तुम्हारी आँख में काजल लगा दूँ रात का ।


मैं खो जाऊंगा तह किये कपड़ों में रखे स्नेह के सुराग सा । मैं याद आऊँगा सूनी मांग से सिन्दूर के संवाद सा । तुम्हारी आँख में काजल लगा दूं रात का । मैं जाता हूँ सितारों ने बुलाया है दूर से मुझको ।
ओढ़ लो कोहरे की चादर । बहुत सर्द है रात । राजीव चतुर्वेदी ।
आज का श्रवण कुमार - मातृ भक्ति की जीती जागती मिसाल
एक युवक अपनी माँ को कांवड़ में बिठाकर पिछले 14 साल से पैदल तीर्थ यात्रा करा रहा है । कलयुग में इस श्रवण कुमार को देखकर लोग हैरान हैं । और इसके संकल्प की सराहना भी कर रहे हैं । यह श्रवण कुमार हैं । मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर के कैलाश ।
इन्होने अब तक द्वारिका । रामेश्वरम और कई अन्य तीर्थ स्थल पैदल ही अपने कंधे पर अपने माँ और पिता को लेकर घुमा चुके है । जब ये गुजरात आये थे । तो जगह जगह इनका स्वागत हुआ । कई लोगो ने इनके जज्बे को देखर गाड़ी देने का प्रस्ताव रखा । लेकिन इन्होने ठुकरा दिया । बदरीनाथ धाम में दर्शन के बाद अब वे अपनी मां को लेकर केदारनाथ की यात्रा पर निकले हैं । मातृ देवो भव: । पित्र देवो भव: ।  गुरु देवो भव: ।
राम सेतु के कुछ रोचक तथ्य
जैसा कि रामायण में वर्णित है कि सेतु धनुष आकर का बनाया गया था । राम सेतु धनुष आकार में ही है ।
रामायण के अनुसार यह रामेश्वरम से शुरू होकर लंका तक जाता है । वर्तमान राम सेतु की स्थति बिलकुल यही है ।


रामायण कहती है कि राम सेतु 100 योजन लम्बा । और 10 योजन चौडा था । आज हमें नहीं पता कि योजन कितना होता है ? लेकिन ये तो पता चल ही जाता है । इस बात से कि राम सेतु का अनुपात 1:10 का था । जो कि खोजे गए राम सेतु का भी अनुपात है । अनेक शोध कार्यो से ये भी सिद्ध हुआ है कि - राम सेतु मानव निर्मित ही है ।
मुझे गर्व है कि मैं एक सनातनी हिन्दू हूँ । सनातन हिन्दू धर्म को जानिए ।
1 सनातन हिन्दू धर्म उदार वादी है । मुस्लिम सा कट्टर नहीं । 2 सनातन हिन्दू धर्म मानवता वादी है । वर्ग वादी नहीं । 3 सनातन हिन्दू धर्म विकास वादी है । जड़ वादी नहीं । 4 सनातन हिन्दू धर्म विज्ञान सम्मत है । अवैज्ञानिक नहीं । 5 सनातन हिन्दू धर्म सर्व मंगलकारी है । सम्प्रदाय वादी नहीं । 6 सनातन हिन्दू धर्म लोकतान्त्रिक है । अधिनायक वादी नहीं । इसलिए अज्ञान के अन्धकार से निकल कर हिंदुत्व की और चलें ।
विश्व को शांतिमय और आनंदमय बनायें । और गर्व से कहें कि - हम सनातनी हिन्दू हैं । वन्दे मातरम । बोलिए जय सियाराम ।
अक्ल बङी या भैंस ?
महा मूर्ख दरबार में । लगा अनोखा केस । फँसा हुआ है मामला । अक्ल बङी या भैंस ।
अक्ल बङी या भैंस । दलीलें बहुत सी आयीं । महा मूर्ख दरबार की । अब देखो सुनवाई ।
मंगल भवन अमंगल हारी । भैंस सदा ही अकल पे भारी । भैंस मेरी जब चर आये चारा । पाँच सेर हम दूध निकारा ।
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