Wednesday, 29 August 2012

आत्मा होती भी है कि नहीं होती - कृष्णगोपाल


ब्लागर परिचय की श्रंखला में आपको एक नये ब्लागर से मिलाते हैं । देखिये और जानिये इनके विचार ।
इनका शुभ नाम है - कृष्ण गोपाल । और इनकी Industry है - Government और इनका Occupation है - Retired Gazetted Officer और इनकी Location है  - AGRA U.P. India कृष्ण गोपाल जी अपने Introduction में कहते हैं -  I belong to a middle class family.D.O.B. 15.1.1950.Started service as clerk in Post Office in 1970 and passed examinations and became Gaz.Officer.Retired in2010.I wanted to be in teaching line but could not study after B.A.due to the poorness. और इनका Interests है - Reading, writing, drawing, listening music, visiting places of natural scenes. और इनकी Favourite Films हैं - All good Hindi films.Some are Amar Prem, Amanush, Silsila, Sangam, Umrao jaan etc. और इनका Favourite Music है - Classical music, films music of very good films और इनकी Favourite Books हैं - Keith's books on science and his views on soul, religion etc. और इनका ब्लाग है - AS I THINK ( क्लिक करें )
और ये हैं इनके ब्लाग से कुछ  विचार - 
जैसा कि मैं सोचता हूँ । मैं बिलकुल ज्ञानी नहीं हूँ । मैं तो केवल ज्ञान के जल का प्यासा हूँ । और जब प्यास हो । तो कोई भी कहीं भी खोजता फिरता है । इसी तरह 

मैं अपनी प्यास को बुझाने के लिए विद्वानों की पुस्तकें और समाचार पत्र खास तौर से अंग्रेजी के दैनिक - टाइम्स ऑफ इंडिया के कॉलम “ द स्पीकिंग ट्री ” लंबे समय से पढ़ता  रहा हूँ । लेकिन किसी के विचारों के प्रभाव का दवाब मुझ पर नहीं पड़ा । किसी को भी किसी के विचारों का विना सोचे समझे नहीं मान लेना चाहिए । बल्कि जिसको स्वीकार करने को  आपका मन कहे । वही मानना चाहिए । मैंने किसी के उपदेश या पुस्तक में कोई विचार मूल्यवान और स्वीकार किए जाने योग्य पाया । तो उसे मैंने चुनकर अपने मन में रख लिया । फिर भी मैं यह नहीं कहता हूँ कि - मैंने धर्म और आध्यात्मिकता के ज्ञान के बारे में उच्च स्टार प्राप्त कर लिया है । हाँ मैंने समझने की कोशिश जरूर की है । और इसी कोशिश के आधार पर मैंने अपने विचार व्यक्त करने की कोशिश  की है । मैं पाठकों की अपने इन विचारों के संबंध में प्रतिक्रिया जरूर जानना चाहूँगा ।
मैं दो शब्द अपने बारे में कह दूँ । मैं एक अति सामान्य परिवार से हूँ । कुछ रुचियों में पढ़ने और पढ़ने की रुचि भी थी/है । 1968 में ग्रेजुएशन करने के बाद आगे बाहर पढ़ा पाना मेरे पिताजी के लिए संभव न था । अतः सर्विस के लिए कोशिश करने लगा ।   मास्टर बनना चाहता था । बन गया पोस्ट ऑफिस में 

अधिकारी । मैं 1970 में क्लर्क भर्ती हुआ । और कुछ परीक्षाएँ पास करके राजपत्रित अधिकारी बन गया । और 2010 में रिटायर हुआ । पोस्ट ऑफिस में बहुत कार्य रहता है । ऑफिस में काम करने के बाद प्रायः घर पर भी काम लाना पड़ता था । अतः विभाग की किताबें पढ़ने के बाद अन्य किताबें पढ़ने का समय नहीं मिलता था । यह दिक्कत रिटायरमेंट के बाद खत्म हो गयी । और समय था । और मैं किताब की दुकान पर जाता । तो कोई न कोई किताब जरूर ले आता हूँ ।
काफी समय से मैं देखता आ रहा था कि - समाज में बहुत सारी पुस्तकें ऐसी हैं । जो ज्ञान देने की बजाय अज्ञानता दे रहीं हैं । और जो सस्ती कीमत की कुछ पुस्तकें  बस या ट्रेन में बेची जाती हैं । उन्होंने तो व्यक्तियों की सोच बिलकुल खोखली करके अंधविश्वासी बना दिया है । और बना रहीं हैं । क्योंकि उनमें लिखी बातों को ज्ञान विज्ञान कि कसौटी पर परखे विना । उन बातों का सही अर्थ जाने विना । सहर्ष स्वीकार किया जाता रहा है । और किया जा रहा है । इससे सामाजिक धार्मिक और आध्यात्मिक ढांचा विघटित हुआ जा रहा है । हमें चलने के लिए पैर दिये हैं । पर हममें से कुछ विचारों से लँगड़े हो गए हैं । देखने के लिए आँखें दी गयी हैं । पर अंधविश्वा्सों का मोतियाबिद छा गया है  । सुनने के लिए कान दिये गये हैं । लेकिन सही बात 

सुनाई नहीं पड़ती है । सोचने समझने के लिए दिमाग दिया गया है । लेकिन किंकर्तव्यविमूढ़ हो चुके हैं ।
जिसने जो कह दिया । सही गलत में फर्क किए विना वही सही मान लेते हैं । कुछ इसी तरह की आधारहीन  बातों का विरोध करने का मेरा मन तभी से होता रहा है । लेकिन कोई प्लेटफार्म नहीं मिल पा रहा था ।
ब्लॉग स्पॉट के माध्यम से यह कार्य उचित  प्रतीत  हुआ । अतः विचार ब्लॉग - जैसा कि मैं सोचता हूँ .. में  प्रस्तुत हैं । लेखों ( आर्टिकल ) के माध्यम से । कुछ आर्टिकल हिन्दी में हैं । कुछ अँग्रेजी में भी हैं ।
मेरे विचारों में और अन्य लोगों के विचारों में फर्क है । जिसका मुख्य विषय है “ आत्मा ” । क्या आत्मा है । होती है ? क्या मरने के बाद भी कोई संसार है ? क्या आत्मा शरीर से निकलकर  दूसरे शरीर में प्रवेश कर 

जाती है ? क्या जब दूसरा शरीर नहीं मिलता है । तो क्या कुछ समय के लिए भूत प्रेत बनकर रहती है ? क्या पूर्व जन्म के अच्छे कर्मों और मरने के समय इच्छा रहित होने पर आत्मा जीवन मरण के चक्कर से मुक्त होकर ईश्वर में विलीन होकर शरीर धारी जो मर चुका है । मोक्ष पा जाता है आदि आदि । आत्मा की विचार धारा एक ऐसी धुरी है । जिसके  चारो ओर ये उपरोक्त विचार घूमते हैं । जैसे कि भगवान का सशरीर होना । अस्तित्व । उसे पाने के लिए तरह तरह के अतर्कपूर्ण कर्मकांड करना । जन्म से मृत्यु तक । और मृत्यु के बाद तक भी अनेक कर्म कांड करना ।
इन सब बातों को अपनी नन्ही बुद्धि के द्वारा । प्राप्त किए गए ज्ञान के आधार पर । मैंने विभिन्न लेखों को । ब्लॉग पर अपने विचार पोस्ट करके । बताने की कोशिश की है । मेरा 

अभिप्राय किसी भी व्यक्ति की धार्मिक और आध्यात्मिक भावनाओं को रत्ती भर भी ठेस पहुंचाना नहीं है । क्योंकि न तो मैं नास्तिक हूँ । और न ही कोई प्रवचन कर्ता हूँ । मेरा केवल और केवल मक़सद है कि - जो धार्मिक पुस्तकें जिनके तथ्य आधारहीन हैं । जो विज्ञान सम्मत नहीं है । उनको दुबारा ज्ञान/तर्क के चश्मे को लगाकर पढ़ें । और उसी तरह सोचने के लिए रुकें । मनन करें । और आगे अपने गंतव्य पर जाएँ । जैसे कि रोड पर लाल बत्ती दिखाई पड़ने पर हम  बाहन  को रोकते हैं । दूसरा ट्रेफिक निकल जाने  के लिए पीली बत्ती रहने तक रुकते हैं । और हरी बत्ती होने पर अपने गंतव्य पर जाने के लिए बाहन स्टार्ट करके चले जाते हैं ।
वास्तव में तथाकथित ज्ञान को हममें से ज़्यादातर लोगों ने एक लोहे के बॉक्स में रख रक्खा था/है । जिसमें 

अंधविश्वासों की नमीं से पर्त दर पर्त इतनी जंग लग चुकी है कि बॉक्स को खोलने पर लोहा हाथों में घुसने की सम्भाबना से टिटनेस सेप्टिक होने का दर बना रहता है । जरूरत है । लोहे के बॉक्स को हटाकर स्टेनलेस स्टील के बॉक्स में रक्खें । ताकि पुनः जंग न लगे । हमें जानना चाहिए कि - वास्तव में भगवान का क्या रूप है ? आत्मा है भी । होती भी है कि नहीं । हम अंधविश्वासों के जिस अंधे कुएं में सदियों से गिरे पड़े हैं । उससे बाहर आकर तो देखें । तब हमें लगेगा कि कुएं के बाहर दुनियाँ कितनी सुंदर है । कितना उजाला ही उजाला है । अगर हम हमेशा सकारात्मक सोच बनाए रखने की आदत बना लें । तो यह संसार । हाँ यही संसार । जिसमे हम रो धोकर किसी तरह जीवन को बोझ 

समझकर धो रहे हैं । वही जीवन वास्तविक लगेगा । और वाकई सब चीजें जैसे - स्वर्ग । नरक । आत्मा । मोक्ष । जीवन के बाद भी जीवन आदि सब काल्पनिक अवास्तविक लगने  लगेंगे । हम अपने अमूल्य जीवन का बहुत सारा अमूल्य समय व्यर्थ की सोच में । अंधविश्वासों । कर्मकांडों में खर्च कर देते है । जो हमें नहीं करना चाहिए । इसी के साथ अपना निवेदन खत्म करता हूँ ।
लेख - क्या ईश्वर है ? 
यदि दुनियाँ में कुछ बिषय विवाद और भृम के हैं । तो उनमे यह भी एक अति विवादास्पद विषय है । कुछ लोग मानते हैं कि - ईश्वर होता है । या है । कुछ मानते हैं कि नहीं हैं । इस बारे में मैंने विस्तार पूर्वक चर्चा अपने अँग्रेजी के लेख Does God Exist में की है । वह लेख बहुत लंबा है । अतः उसकी पुनरावृति करना उचित नहीं समझा । इस लेख को पढ़ने से 

पहले उपरोक्त वर्णित लेख को पढ़ें । उसी संदर्भ में यहाँ कुछ घटनाएँ जो समाचार पत्र में छपीं । उन पर विचार किया जा रहा है । 
घटना जो 19.6.12 को अखवार में छपी ।
19.6.12 को एक घटना छपी कि - एक परिवार में दो ऐसी बच्चियाँ हैं । जिनके सिर आपस में जुड़े हुए हैं । जन्म के समय से ही । कुछ बरसों तक माँ बाप ने मानसिक कष्ट उठाया । और उनमे तथा दोनों बच्चियों में  हीनता की भावना आ गयी । क्योंकि बहुत भारी खर्चे का ऑपरेशन करना उनके लिए संभव नहीं था । किसी तरह बहुत बरसों  के बाद उन्होने ऑपरेशन कराया । डाक्टरों ने सफलता पा ही ली । उनके सिर अलग अलग हो गए । माँ बाप की खुशियों का कोई ठिकाना न 

था । अगर पैसों की व्यवस्था न हो पाती । तो माँ बाप और दोनों बेटियाँ जीवन भर मानसिक कष्ट उठाते रहते । यधपि माँ बाप मानसिक परेशानी से तो उबर गए । लेकिन जो पैसे बेटियों के विवाह में काम आते । बे खर्च हो गए । यहाँ प्रश्न यह उठता है कि क्या ईश्वर है ? कैसे ? लोग कहते हैं कि - ईश्वर बड़ा दयालु है । मगर कैसे ? क्या कोई भी - रचनाकार  । चित्रकार । कुम्हार । जो चित्र । खिलौने । बर्तन आदि बनाता है । क्या वह बदसूरत बनाएगा ? मेरे विचार से नहीं बनायेगा । तो फिर ईश्वर जिसके बारे में असंख्य पन्नों में लिखा गया है कि - दयालु है । क्या अपने द्वारा बनाई गयी कृति । खिलौने ( नवजात शिशु ) को बदसूरत बनाएगा ?  नहीं नहीं । दो जुड़े सिर वाले बच्चे जो न चल सकते है । न स्वयं कपड़े पहन सकते हैं । 

और दैनिक क्रियाओं को स्वयं कर सकते हैं ( कैसे लेट्रिन जा सकते हैं ) अर्थात जीवन विहीन जीवन बिताने को मजबूर हैं । इससे स्पष्ट है कि - इस दुनियाँ में जो कुछ हुआ है । हो रहा है । और आगे होगा । इसमे किसी का कोई दखल नहीं है । हाँ ! इंसान ने अपने द्वारा अर्जित विज्ञान आधारित ज्ञान के आधार पर अपने ( इंसान ) और जानवरों के जीवन में कष्टों को दूर करने के लिए उपाय किए । कर रहा है । और करता रहेगा । इस जुड़वां सिर की बच्चियों के मामले में तथाकथित ईश्वर ने तो जीवन जीवन रहित बना ही दिया । लेकिन डॉक्टरों  के दल ने ( इतना कोंपलीकेटिड ऑपरेशन करना एक डॉक्टर के लिए संभव नहीं है ) अपने प्रयासों से सिर अलग करके उनके जीवन को जीवनमय बनाने की कोशिश करके अलग कर दिये ( चाहे बाद में उनमे से एक या दोनों बच्चियों  मर भी सकती हैं )  यहाँ सोचने वाली बात यह है कि - जिस ईश्वर को हमने देखा नहीं । फिर भी हम कहते हैं कि - जो कुछ अच्छा करता है । ईश्वर ही करता है । और जो खराब होता है 

। वो कौन करता है ? कहा जाता है कि - यह उस व्यक्ति के पूर्व जन्म के खराब कर्मों का फल हैं । कहा जाता है कि पूर्व जन्म के लाखों  सतकर्मों  के कारण मानव योनि मिलती है । तो सतकर्मों से जब मानव रूप मिला । तो फिर पूर्व जन्म के खराब फल बीच में कहाँ से आ गए ? और इस वर्तमान जन्म में इन बच्चियों ने कौन से बुरे कर्म कर लिए ? बच्चे तो स्वयं भगवान के रूप होना बताए जाते है । इससे तो बे डॉक्टर्स ही भगवान हैं । उन्हें हमने देखा तो है कि उन्होने कई कई वर्षों तक दिन रात एक करके डाक्टरी पढ़ कर अर्जित ज्ञान के आधार पर ईश्वर की मर्जी के खिलाफ जाकर ( ईश्वर कि मर्जी थी कि बे दोनों बच्चियाँ ज़िंदगी भर तड़प तड़प कर जीयें । उनके जुड़े सिर अलग करके उनके बदसूरत जीवन को  सुंदर बना दिया । यहाँ मेरा कहने का अभिप्राय यह नहीं है कि - हम ईश्वर को माने ही नहीं । ईश्वर इस रूप में तो विलकुल नहीं है । जिस रूप में हम सब 

जानते हैं । और मानते हैं । ईश्वर तो एक विना रूप का अर्थात निराकार ( फोर्मलेस ) है । और एक परम शक्ति है । जो हमें उसी तरह नियंत्रण करता है । जिस तरह सयुंक्त परिवार में दादा जी ( ग्रांड फादर ) होते हैं । उनसे सब डरते हैं । जबकि वो परिवार के किसी सदस्यों के कार्यों में कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं  करते हैं ( करें तो मॉडर्न समय के बच्चे मानेगे भी नहीं ) बल्कि देखते रहते है कि किसी का अनर्थ न हो । और अगर ऐसा देखते हैं । तो सदमार्ग बताते हैं । बे किसी सदस्य को दंड नहीं देते हैं । मारपीट नहीं करते हैं । फिर भी सब उनसे डरते हैं । सम्मान करते हैं । और यही चाहते हैं कि - इनका साया हमारे ऊपर हमेशा बना रहे । अगर बे दंड दें । मारपीट करें । तो क्या कोई उनका सम्मान करेगा ? सब चाहेंगे कि बुढ्ढा कब मरे । कब 

हम आज़ाद हों । हमको हमेशा अपने को उस परम शक्ति से डरना चाहिए । इसलिये नहीं कि - वो हमें दंड दे सकती है । बल्कि इसलिये कि हम निरंकुश न हो जाएँ । निरंकुशता अति खराब स्थित है । अभी हाल में कई मुस्लिम देशों के निरंकुश /तानाशाहों की अति का हश्र /परिणाम देख चुके हैं । अतः हमे परम शक्ति /प्रकृति/नेचर को मानना चाहिए । और ध्यान रखना चाहिए कि अगर हम निरंकुश हुए ( जैसे जंगल और पेड़ों को निरंकुश होकर काट काट कर हम खत्म कर रहे हैं । तो प्रकृति भी हमारी निरंकुशता का परिणाम/दंड  रेगिस्तान /सूखा /पर्यावरण में अत्यधिक बदलाओ के रूप में दे रही है ।
25.6.2012  की घटना पर  विचार - समाचार पत्र में पढ़ा कि - कश्मीर में 200 वर्ष पुरानी  दरगाह जिसमें काफी हिस्सा लकड़ी से बना था । बिजली के शार्ट सर्किट के कारण जल गयी । हिंदुओं के मंदिर भी  चपेट  में आ गए । विचारणीय है कि मंदिरों और 

मस्जिदों में हम इतनी श्रद्धा से सुरक्षा और खुशहाल जीवन के लिए जाते हैं । वहाँ की शक्ति कोई करिश्मा करके ( हम करिश्माओ के किस्से बहुत सुनते/पढ़ते है ) वहाँ उसमें जलकर और झुलस कर मरने वालों को /घायलों की रक्षा करके बचाती क्यों नहीं ? तमाम धार्मिक कहानियों में सुनने को मिलता है कि - कोई अनर्थ होने से पहले “आकाशवाणी” हुआ करती थी । लेकिन अब क्यों नहीं होती है कि - यह स्थान कुछ ही देर में जलने वाला है । मौजूदा लोग तुरन्त भाग जाय । फिर वही प्रश्न उठता है कि - क्या ईश्वर है ? है । तो हम उसे कहाँ और किस रूप में देखते हैं ? कहाँ ढूंढते हैं ? उससे मिलने की चाहत में बाहर क्यों भागते फिरते हैं । जबकि वह एक परम शक्ति के रूप में है । हमारे ही अंदर ।

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