Friday 30 September 2011

मैं समझ सकती हूँ तुम्हारी चाहतें - प्रीती

आईये प्रीती जी के बारे में जानते हैं -
देहरादून और दिल्ली । भारत की रहने वाली प्रीति स्नेह जी बहुत बङी बात को आसानी से कहती हैं । ह्रदय के भावों को शब्दों द्वारा व्यक्त करना बहुत बङी जरूरत ही है । इनकी कवितायें भी नारी ह्रदय की कोमलता और मजबूती दोनों को मिश्रित अंदाज में प्रतिबिम्बित करती हैं । देखिये इन चुनौती देते शब्दों को - तुम्हारे स्नेह में । होता है छल । रिश्ते तोड़ने में । नहीं  गंवाते पल । बता देते हो । छोटी छोटी कमी ।  स्वयँ पर नजर । न डालते कभी । हाँ है चाल । तुम्हारी सबल सक्षम । पर नहीं मिला पाते । मुझसे कदम । तुम्हारे व्यंग्य तोड़ते हैं । विश्वास दृणता मेरी । ऐसे ही सशक्त विचारों से अपनी जुझारू उपस्थिति महसूस कराने वालीं प्रीति जी अपने बारे में कहती हैं - ह्रदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना । शायद ह्रदय की ही आवश्यकता है । Giving words to heart felt is the need of felt-heart . A simple down to earth individual trying to be 'Human' always. Feet firmly on ground but looking at the rainbow in the sky, soaring in the skies while keeping an eye on the ground. इनका ब्लाग - प्रीति
और ये पढिये । प्रीति जी की कविता -
अधूरापन - मेरा अधूरापन


हाँ  नहीं  दौड़  सकती । पकड़ने  तितली ।  चढ़  नहीं  सकती । पहाड़ी  पगडण्डी । नहीं  लगा  सकती ।  मैं  लम्बी  छलांगें ।  कूदकर  पकड़  न  सकूँ । तरु  की  ऊँची  बाहें । पर  समझ  सकती  हूँ ।  तुम्हारी  चाहतें । मेरी  लगन  दे  सकती  है ।  मन  को  राहतें । कठिन  लक्ष्यों  में ।  उमंग  भरा  दूँ  साथ । डगमगाते क़दमों  को ।  विश्वास  भरा  हाथ । तुम्हारे  स्नेह  में ।  होता  है  छल ।  रिश्ते  तोड़ने  में ।  नहीं  गंवाते  पल । बता  देते  हो ।  छोटी छोटी  कमी ।  स्वयँ  पर  नजर ।  न  डालते  कभी । हाँ  है चाल ।  तुम्हारी  सबल सक्षम । पर  नहीं  मिला ।  पाते  मुझसे  कदम । तुम्हारे  व्यंग्य  तोड़ते  हैं ।  विश्वास  दृणता  मेरी ।  भरती  है  विश्वास । कहो  मुझसे । कब  रुकता  है  जीवन ? सोचो ।  तुम । कहाँ  रोकते  हो  जीवन ? है  नहीं  क्या  सस्नेह  अपनापन ? क्या  सच  है ।  मुझमें  अधूरापन ?
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