Sunday, 16 September 2012

मोहब्बत है तुझसे हम तुमको बता देते


ब्लागर परिचय की श्रंखला में आज आपका परिचय श्री राकेश जी से कराते हैं । तो मिलिये राकेश जी से ।
नेट पर ब्लागिंग की दुनियाँ में ब्लाग बारबार मिलते हैं । एक खोजो हजार मिलते हैं । कुछ बेकार मिलते हैं । तो कुछ खुशगवार मिलते हैं । ये दुनियाँ है लिखने वालों की । कोशिश इनकी है । भीङ से अलग दिखने वालों की । इसलिये नेट पर हर रोज कुछ नया दिखता है । और बंधुओ ! जो दिखता है । वही तो बिकता है । खैर..कविताओं के ब्लाग पढ पढकर मेरे अन्दर भी कवित्व प्रवाह उमङने लगा । कवियों का परिचय कराते कराते । अब मैं भी कविता लिखने लगा । तो चलिये आज मिलते हैं । कवि ह्रदय श्री राकेश कुमार जी से । इन्होंने भी अपने परिचय में बस इतना ही बताया है - मैं Works at Indian Railways में करता हूँ । और Attended जिला स्कूल मोतिहारी हूँ । और अभी Lives in KAPURTHALA हूँ । राकेश जी ने अपनी कविताओं में एक अतिरिक्त सुविधा दी है । यदि आप कविता का मूल भाव न समझ पायें । तो उन्होंने " पृष्ठभूमि " शीर्षक से उसके मर्म का खुलासा कर दिया । फ़िर भी आप न समझ पाओ । तब इससे ज्यादा भी कोई क्या कर सकता है ? और इनके ब्लाग का नाम है -  राकेश की रचनायें । ब्लाग पर जाने हेतु इसी नाम पर क्लिक कर दें ।



और ये हैं । इनके ब्लाग से कुछ रचनायें -

तुम
तुमको इतना याद किये कि खुद को भूले हम । तेरी हँसी में मेरी ख़ुशी । आँसू में मेरे ग़म ।
दिया मुश्किलों में साथ ऐसा कि आँखें हो गई नम । तूने प्यार से नजरें झुकाई फासले हो गए कम ।
तेरी साँसों की सरगम ऐसी कि भूले खुद को हम । बाँहें ऐसे फैलाई कि दूरियाँ हो गई कम ।
तुमको इतना याद...                       
पृष्ठभूमि - ये जीवन की त्रासदी है कि पति या पत्नी एक ही घर के छत के नीचे रहते हुए अलग अलग सपनों के साथ जीते है । और ता उमृ एक दुसरे से असंतुष्ट रहते हुए तनहाई का जीवन जीते है ।
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ख्वाहिश
गुनगुनाने की चाह अपने घर में और । रोने को मुझको एक कोना न मिला ।
कई सपनें देखे अपने मन में और । सपनों को सच करने का आसरा न मिला ।

मातम से घिरा रहता हूँ अपने ही घर में और । महफ़िल ए रंग जमाते हुए मैं सबको मिला ।
अपनापन ढूंढ़ने लगा बेगानों में और । खुल कर हँस सकूँ ऐसा मौका न मिला ।
कोई मुझे अपने घर में जिन्दा कर दो । मुर्दा पड़ा हूँ मुझे सुपुर्द ए खाक न मिला ।
पृष्ठभूमि - लड़का एवं लड़की के परिवारों के बीच मधुर संबंधो के कारण वे एक दुसरे प्रति अपना  प्यार या भावनाएं प्रगट नहीं कर पाते । और अलग अलग जीवन  जीने को मजबूर होते हैं ।
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प्रेम गीत   
काश हम अजनबी तेरे लिए होते । इजहारे मोहब्बत सरेआम किये होते ।
काश तुम ..
जब से ये जाना मोहब्बत का नाम । मोहब्बत को दे दिया तेरा ही नाम ।
मोहब्बत का पैगाम कब का पेश कर दिए होते । काश तुम ...
मेरे होठ सिले के सिले रह गए । इजहारे मोहब्बत न हम कर सके ।
मोहब्बत है तुझसे हम तुमको बता देते । काश तुम ......

तेरा नाम लेके मै जीती रही । तेरा नाम लेके मैं मरती रही ।
तुम करते हो प्यार मुझसे । काश पहले  ही बता देते ।
काश हम दोनों एक दुसरे को बता देते । काश हम अजनबी तेरे लिए होते ।
इजहारे मोहब्बत सरेआम किये होते ।
पृष्ठभूमि - स्त्री पुरुष परस्पर पति पत्नी के संबंध में जीवन के बहुमूल्य समय व्यतीत करते है । पत्नी अपनी पुराने सभी संबंधो को भुलाकर । नए संबंधो को आत्मसात करने में शेष जीवन गुजार देती है । विडंबना  यह है कि उसके जीवन के अंतिम समय में केवल उसका पति ही उसके होने या खोने का अर्थ जान पाता है ।
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जीवन साथी
मेरे अंधेरे जीवन में । तुम हो सूरज की पहली किरण ।
जब भी गमों ने घेरा है । तुम ही लाई हो ख़ुशी के क्षण ।
मैं भटका हूँ पथ से कभी । तुमने दिखाया है मुझको दर्पण ।
जब भी माँगा साथ तुम्हारा । सदा दिया है मुझको समर्थन ।
मेरे जीवन में खुशियों की खातिर । तुमने किया है जीवन अर्पण ।
अब तुम नहीं हो नश्वर जगत में । कैसे आओगी खुश करने मेरा मन ।
मैं तो कठोर अभिमानी था । तेरा मर्म न जान  सका ।
मुझको तुम तो माफ ही करना । मैं तो हूँ अब तेरी शरण ।
पृष्ठभूमि - नायक अपनी नायिका को छोड़ कर किसी विशेष कार्य हेतु रेलगाड़ी से लम्बी यात्रा पर निकलता है । 

और विरह की आग में जल रहा है । इस जलन को कम करने लिए नायक नायिका को याद करते  हुए अपने मनोभाव को व्यक्त करता है ।
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सफ़र 
तुझे छोड़ कर मै । सफ़र कर रहा हूँ । मगर मेरे साथ । सदा चल रही है ।
सुबह मै चला था । तू मेरे संग थी । तेरी यादों में खोया । दिन भर चला हूँ ।
शाम हो रही है । सूरज ढल चुका है । मगर तू मेरे संग । चली जा रही है ।
तेरे ख्यालों में । जिए जा रहा हूँ । कभी हँस रहा हूँ । कभी मुस्करांऊँ ।
मुझे देख कर । लोग कर रहे इशारे । मैं हो गया दीवाना । ये समझा रहे हैं ।
चाँद आ गया । मगर तू वहीं है । चाँद में भी बस । तुम्ही नजर आ रही हो ।
तुझे भूलने की । जतन मैंने की है । सम्पूर्ण क्षितिज पर । तू छा गई है ।
आँखें मूंदकर मैं । अब सोने लगा हूँ । तेरी याद और भी । गहरा गई है ।
अब मैं सो रहा हूँ । नींद आ गई है । सपनों  में । तुम्हारी याद आ रही है ।
सुबह हो गई है । मैं जग गया हूँ । चादर के सलवटों पे । तुझे ढूंढ़ रहा हूँ ।

अभी तू कहीं है । मगर मेरे दिल में । मेरे साथ तू भी । सफ़र कर रही है ।
तेरी याद न जाएगी । तू कहीं भी चली जा । तेरी याद के बगैर । मैं जी न सकूँगा ।
तुझे भूलाने का अब । जतन  न करूँगा । तुझे छोड़ कर । अब सफ़र न करूँगा ।
पृष्ठभूमि - नायक अपनी नायिका को ग्रीष्म ऋतु में याद कर रहा  है । और विरह की आग में जल रहा है ।
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तपिश
तपिश दे रहा है । सूरज अभी भी । तू आ जाए तो । चैन आ जाए ।
तेरी राह में मैं हूँ । पलकें बिछाए । मगर तू न आए । जिया भी न जाए ।
कैसे जिऊँ अब । तेरे बगैर मैं । चाँद आ जाए तो । चैन आ जाए ।
शान ए फलक पे । तू मुस्कुराए । तू आ जाए तो । चैन आ जाए ।
जिए जा रहा हूँ  । पर तू तो न  आए । चाँद आ जाए तो । चैन आ जाए ।
डूबने की चाहत है । तेरी चांदनी में । तू आ जाए तो । चैन आ जाए ।
-  सभी जानकारी और रचनायें राकेश जी के ब्लाग से साभार । ब्लाग पर जाने हेतु क्लिक करें ।

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