Sunday 16 September 2012

मैं अपनी सास का बलि का बकरा कैसे बना ?


यात्रा वृतांत- श्री अमरनाथ गुफा की यात्रा
जब से मैंने अमरनाथ यात्रा के बारे में सुना । वहॉं के छाया चित्रों को देखा । त‍बसे अमरनाथ यात्रा जाने का मैंने मन में निश्‍चय कर लिया । मई 2011 में अमरनाथ श्राइन बोर्ड के तरफ से यह सूचना आम भारतीयों को दी गई कि - 29 जून से लेकर 13 अगस्‍त तक अमरनाथ के पवित्र गुफा में बाबा बर्फानी के दर्शन का मार्ग खुलेगा । अर्थात दर्शन सुलभ हो पाएगा ।
यात्रा से पहले श्राइन बोर्ड के तरफ से कुछ औपचारिकताएँ पूरी करनी होती है । जिसमें श्राइन बोर्ड के तरफ से 2 फार्म भर कर J & K बैंक अथवा अन्‍य बैंकों में जमा करना होता है । पहला फार्म - A एक आवेदन के रूप में होता है । जिस पर 1 पासपोर्ट आकार का रंगीन फोटो लगाना होता है । और दूसरा फार्म यात्रा परमिट का होता है । जिसमें 3 भाग होते हैं । उन तीनों पर भी पासपोर्ट आकार के फोटो लगाने होते हैं । इसका 1 भाग चंदनवारी प्रवेश द्वार पर । दूसरा पवित्र गुफा के प्रवेश द्वार पर । तथा तीसरा भाग पूरी यात्रा के दौरान अपने पास पहचान पत्र के रूप में रखना होता है । आजकल इंटरनेट की सुविधा होने के कारण ये औपचारिकताएं भी ऑन 

लाइन संभव है । औपचारिकताएं पूरी होने के बाद मैं सफर की तैयारी में लगा । सर्वप्रथम 1 जोड़ी जूता खरीदा । 4 से 5 किमी चलने का अभ्‍यास रोजाना शुरू किया । तथा कुछ आवश्‍यक सामाग्री की व्‍यवस्‍था भी करनी शुरू की । जिनकी जरूरत यात्रा के दौरान पड़नी थी । जैसे - टार्च । चश्‍मा । बरसाती । गर्म ट्रैक शूट । पैजामी । बनियान । 1 जोड़ी कपड़ा दर्शन हेतु । दस्‍ताना । सनस्‍क्रीन लोशन । वैसलीन । कोल्‍ड क्रीम । ग्‍लूकोज । काली मिर्च पाउडर । काला नमक । भूने चने । ड्राई फ्रुट । चाकलेट । नींबू । कुछ जरूरी दवाएं । जैसे - बुखार । उल्‍टी । दस्‍त । चक्‍कर । घबराहट आदि के उपचार हेतु ।
यह मेरा सौभाग्‍य था कि रेल कोच फैक्‍टरी कपूरथला से यात्रियों का 1 जत्‍था 9 july को बस से जाने का तय हुआ । और इस जत्‍थे का 1 सदस्‍य मैं भी बना । यात्रा की शुरूआत यहॉं के शिव मंदिर में पूजा अर्चना के बाद 

कारखाने के मुख्‍य यांत्रिक अभियंता श्री आलोक दवे जी के हाथों यात्रियों को माला पहना कर व लड्डू खिलाकर रात के 8 बजे हुई । हर हर महादेव के जयघोष के साथ मैं अपने सहयात्रियों के साथ यहॉं से रवाना हुआ ।
यात्रियों के लिए लंगरों की व्‍यवस्‍था पंजाब से ही शुरू थी । हम लोग रात्रि 10.15 बजे दसुहा के 1 मंदिर पर रूके । जहॉं लंगर की व्‍यवस्‍था थी । वहीं हम सब यात्रियों ने भोजन किया । व अल्‍प विराम लेकर यात्रा के लिए बस में सवार हो गए ।
बस जम्‍मू । उधमपुर । पटनीटॉप । रामबन । बनीहाल । काजीकुंड । अनंतनाग होते हुए पहलगाम से 3 किमी

पहले नुनवान पहुँचे । रास्‍ते में प्राकृतिक दृश्‍यों का आनंद उठाते हुए जब जवाहर सुरंग पहुँचे । तो सभी यात्रियों का मन पुलकित हो उठा । और सभी ने जयकारा लगाना शुरू कर दिया । जवाहर सुरंग की लम्‍बाई 2.5 किमी है । यह सुरंग कश्‍मीर का प्रवेश द्वार है । यहॉं 1 नहीं बल्कि 2 सुरंग बराबर लम्‍बाई के है । जो जर्मन इंजीनियर के सहयोग से 22 dec 1956 में शुरू हुआ । उस समय यह सुरंग एशिया का सबसे लम्‍बा सुरंग था । पीर पुंजाल के पहाड़ों के तलहटी में बना सुरंग बनिहाल को काजीगुंड से जोड़ता है । यहीं सुरंग कश्‍मीर को पूरे भारत से जोड़ता है ।
ऐसे तो यात्रा शुरू से आनंदमय थी । पर जैसे जैसे बस पटनीटॉप से होते हुए आगे को बढ़ रही थी । मौसम के मिजाज भी बदल रहे थे । मौसम के ठंडी और खुशनुमा एहसास ने यात्रियों को गर्मी से निजात दिलाई । रास्‍ते में जगह जगह पर सुरक्षा के कड़े प्रबंध थे । सैनिक गश्‍त लगा रहे थे । नुनवान पहुँचने

पर तो हम यात्रियों के मन में आनंद की जो लहर दौड़ रही थी । वो पहाड़ों की तलहटी पर लिद्दर नदी की बलखाती चाल को देख और भी अधिक हो गई । सभी की थकान भी प्रसन्‍नता के कारण मिट चुकी थी ।
नुनवान में हम सभी यात्रियों ने अपने अपने सामानों के साथ चेक पोस्‍ट से गुजर कर अमरनाथ के श्राइन बोर्ड के कैंप के भी चेक पोस्‍ट से होते हुए रात के 11 बजे कैंप पहुँचे । जहॉं हम सभी ने हट किराए पर लिया । वैसे वहॉं हटों के अलावा टेंट भी किराए पर मिलते हैं । हम सभी ने सामान वहीं रखा । और लंगर में खाना खाने पहुँचे ।
मैंने पंजाब के बहुत से लंगरों में खाना खाया था । परंतु वहॉं का नजारा अदभुत था । कतार में करीब लंगर के 20 खेमे लगे थे । जो अलग अलग शहरों के थे । सभी खेमों में तरह तरह के पकवान सजे हुए थे । और वहॉं के सेवादार भाई बड़े प्‍यार और आदर भाव से सभी को भोजन करा रहे थे । वहॉं समयानुसार चाय  नाश्ते एवं खाने का प्रबंध रहता है । देश के लगभग सभी व्‍यंजन यहॉं पर अमरनाथ यात्रा के दौरान 

उपलब्‍ध होते है । वृत के लिए फलाहार एवं मधुमेह के रोगियों के लिए भी शुगर फ्री खाने का प्रबंध वहॉं पर था । हम सब लोग स्‍वेच्‍छा पूर्वक भोजन कर अपने हटों में गए । और रात्रि विश्राम किया । 
सुबह 4 बजे से हमारे सहयात्री भाई बहन चंदनबारी जाने को तैयार होने लगे । एवं 5 बजे तक वो सभी हमें एवं हमारे साथ के लगभग 10 यात्रियों को छोड़कर पहलगाम से रवाना हो गए । पहलगाम से चंदनवारी 16 किमी है । वहॉं तक की यात्रा जम्‍मू कश्मीर ट्रांसपोर्ट के मिनी बसों से की जाती है ।
अब चंदनवारी से आगे का रास्‍ता यात्री अपने इच्‍छानुसार पैदल । घोड़ा । पिट्ठू । पालकी आदि से करते है । चंदवारी से पिस्‍सु टॉप की चढ़ाई बहुत खड़ी है । जो कि लगभग 3 किमी है । इसके आगे की चढ़ाई थोड़ी सुगम परन्तु लंबी है । पिस्‍सु टॉप से जोजीबल फिर नागकोटी अंत में पहला पड़ाव शेषनाग है । जिसकी कुल दूरी 9 किमी  है । शेषनाग जो कि यात्रियों के पहले दिन का पड़ाव स्‍थल है । जो चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा है । जिसके कारण यहॉं पर ऑक्‍सीजन की कमी होती है । और यात्रियों को थोड़ी बहुत परेशानी सॉंस लेने में आती है । जो सामान्‍यत: प्राथमिक उपचार से दूर हो जाती है । रास्‍ते में मेडीकल की सुविधाएं उपलब्‍ध हैं ।
शेषनाग में 7 पहाड़ों की चोटियॉं हैं । यहॉं पर शेषनाग झील भी है । यहॉं से यात्रियों का जत्‍था दूसरे दिन खड़ी 

ढलान को पार करते हुए वारबल एवं महागुनास टॉप की खड़ी चढ़ाई भी चढ़ते हैं ( जो कि इस सफर का सबसे ऊँचा स्‍थान है । जिसकी ऊँचाई समुद्र तल से करीब 14500 फीट है ) फिर पविबल होते हुए दूसरे दिन के पड़ाव स्‍थल पंचतरणी पहुँचते है । रास्‍ते के मनोरम प्राकृतिक दृश्‍यों । झरनों । झील व पहाड़ आदि यात्रियों की थकान मिटाने में सहायक होते हैं । शेषनाग से पंचतरिणी की दूरी लगभग 14 किमी है । पंचतरिणी में रात्रि विश्राम कर श्रद्धालु सुबह से ही पवित्र गुफा की ओर बाबा बर्फानी के दर्शनों को चल देते हैं । जो कि लगभग 6 किमी का रास्‍ता है । बर्फ के बने रास्‍तों पर डंडे के सहारे चलना एक अलग ही आनंद का एहसास कराता है । पवित्र गुफा के दर्शन के पश्‍चात श्रद्धालु वापिस बालटाल के लिए रवाना होते हैं । जो कि लगभग 14 किमी है ।
नुनवान । शेषनाग व पंचतरिणी में रात्रि विश्राम के लिए टेंट भाड़े पर मिलता है । जिसका किराया 100 रू से लेकर 250 रू प्रति व्‍यक्ति तक लेते हैं । जिसमें कंबल एवं विछावन का भी किराया शामिल होता है । रास्‍ते में छोटी मोटी जरूरत का सामान जैसे - मिनरल वाटर । चाकलेट । जूस । कोल्‍ड ड्रिंक्‍स । नमकीन । बिस्‍कुट । नीबू पानी आदि थोड़ी थोड़ी दूरी पर छोटी छोटी दुकानों में उपलब्‍ध होती है । जिनकी कीमत अधिकतम खुदरा मुल्‍य से 2 

गुनी होती है । लंगरों में खाने पीने की वस्‍तुएं व रास्‍तें में मेडिकल की सुविधाएं दी जाती है । जो कि निशुल्‍क होती है ।
मेरे साथ मेरी बेटी जो कि छोटी है । बेटा व पत्‍नी भी थे । अत: मैंने अपने मित्र व उसकी पत्‍नी एवं एक मित्र के भाई के साथ बालटाल के रास्‍ते पवित्र गुफा के दर्शन करने का निश्‍चय किया था । हम लोगों ने अपने सहयात्रियों को नुनवान से विदा करने के बाद पहलगाम घूमने निकल पड़े । चारों तरफ पहाड़ों से घिरा एवं सड़क के किनारे लिद्दर नदी बलखाती हुई पहलगाम के सुंदरता में चार चांद लगाती है । यहॉं के बाजारों में बहुत रौनक थी । एवं अच्‍छे अच्‍छे होटल भी थे । हम लोगों ने प्राकृतिक नजारों का भरपूर आनंद उठाते हुए वहॉं के पार्कों में जाकर फोटोग्राफी की । एवं बाजारों में घूमते हुए वापस नुनवान पहुँचे । दिन का खाना लंगरों में खाने के पश्‍चात बालटाल के लिए अपने बस में बैठ गए । अनमने मन से हम लोगों ने यात्रा शुरू की । लेकिन जब बस श्रीनगर पहुँची । तो वहॉं के स्‍थानीय पुलिस ने बस को सुरक्षा की दृष्टि से आगे जाने से रोक दिया । 3 घंटों के इंतजार के बाद बस बालटाल के लिए फिर रवाना हुई । करीब 15 मिनट पश्‍चात मुगल गार्डेन । निशांत बाग का चलती बस से दर्शन हुए । हम सब उत्‍सुकता से देखे जा रहे थे । और हमारी बस डल झील के 

किनारे से होती हुई आगे बढ़ रही थी । शाम होने वाली थी । जिससे की सूर्यास्‍त का नजारा डल झील में देखते ही बन रही थी । डल झील के सतह पर सूर्यास्‍त की लालिमा । डल झील को अदभूत सौंदर्य प्रदान कर रही थी ।
रास्‍ते में सोनमर्ग होते हुए करीब रात्रि 11 बजे हम लोग बालटाल पहुँचे । वहॉं 2 बस स्‍टैंड है । 1 तो हेलीपैड के पास है । जहॉं से थोड़ी दूर पर गेट नं. 1 है । जहॉं लंगर एवं यात्रियों के रहने के लिए टेंट व क्‍लाक रूम की व्‍यवस्‍था है । दूसरा बस स्‍टैंड गेट नं 1 से 2 किमी दूरी पर है ।
हम सभी यात्रियों ने रात्रि विश्राम के पश्‍चात सुबह नित्‍य क्रिया से निवृत हो पैदल यात्रा शुरू की । बालटाल में भी सुबह का नाजारा बड़ा ही मनोरम था । हेलीकॉप्‍टर सुबह से ही उड़ाने भरने लगे थे । हेलीकॉप्‍टर बालटाल से पंचतरिणी के लिए है । फिर पंचतरिणी से 6 किमी पवित्र गुफा है । जिसका जिक्र ऊपर कर चुका हूँ ।
हम लोग बालटाल से 2 किमी चलने के बाद दो मेल पहुँचे । जहॉं की यात्रा परमिट चेक होते है । फिर आगे की

यात्रा बरारी टॉप तक खड़ी चढ़ाई है । जिसकी दूरी करीब 5 किमी है । यह रास्‍ता धूल भरा है । पोनी वालों के कारण धूल ज्‍यादा उड़ती है । अत: नाक पर मास्‍क लगाना जरूरी होता है । दो मेल से पवित्र गुफा तक पोनीवाले 1200 से 2000 रू तक लेते हैं । हम लोग सपरिवार अपने सहयोगियों के साथ पैदल चले । 2 किमी चलने पर पहला लंगर मिला । वहॉं पर थोड़ा विश्राम कर खाना खाया । फिर यात्रा आगे बढ़ी । कुछ दूर चलने पर ऑक्‍सीजन की कमी व धूल से परेशान हो बेटी घबराने लगी । अत: बरारी टॉप तक के लिए पोनी रु 700 में किया । बेटा पैदल जाने की जिद पर था । अत: पत्‍नी व मेरे मित्र सभी पैदल चलने लगे । जब हम लोग बरारी टॉप की ओर बढ़ रहे थे । तो बाबा बर्फानी की कृपा मानों रिमझिम फुहार के रूप में यात्रियों पर बरस रही थी । जिसके कारण धूल उड़ना बंद हो गया । और सफर सुहाना हो गया । रास्‍ते का सौंदर्य बयान करना शब्‍दों से परे है

। हॉं इतना कह सकते हैं कि प्राकृतिक नजारा देखकर हृदय के अंदर आनन्‍द का संचार हो रहा था ।
जब मैं बरारी टॉप पहुँचा । तो वहॉं का नजारा अव्‍यवस्‍थाओं से भरा था । रास्‍ता सकरा होने के कारण आने जाने वाले श्रद्वालुओं की भीड़ जमा हो चुकी थी । भीड़ अनियंत्रित थी । जिसके कारण ऐसा लग रहा था कि मानों कोई दुर्घटना हो जाएगी । कुछ समय बाद सुरक्षा कर्मी आये । और व्‍यवस्‍था को संभालने की कोशिश करने लगे । फलस्‍वरूप थोड़े समय के पश्‍चात भीड़ छँटने लगी । और भोलेनाथ की कृपा से कोई दुर्घटना नहीं हुई । मैं वही पर बेटी के साथ अपने सहयात्रियों एवं पत्‍नी व बेटे का इंतजार कर रहा था । कुछ समय बाद मित्र उनकी पत्‍नी व मित्र का छोटा भाई तो मिले । पर पत्‍नी व मेरे बेटे दोनों कब आगे निकल गये । पता ही नहीं चला । इंतजार करते करते शाम होने लगी । और ठंड बढ़ने के कारण हम लोगों ने यात्रा आगे बढ़ाने का निश्‍चय लिया । बरारी से संगम की दूरी 4 किमी है । रास्‍ता ढलान वाला था । अभी थोड़ी दूर ही बढ़े थे कि दर्शन कर वापस आ रहे हमारे 1 मित्र जो हमारे साथ कोच फैक्‍टरी से आये थे । वो मिल गए । और उन्‍हीं के द्वारा हमें अपनी पत्‍नी व बेटा की कुशलता की सूचना मिली । उन्‍होंने बताया कि अगले लंगर पर वो हम लोगों का इंतजार कर रहे हैं । तब जाकर मन को राहत मिली । रास्‍ते में ग्‍लेशियर मिला । और आगे मार्ग में थोड़ी दूरी पर ग्‍लेशियर फटने के कारण रास्‍ता काफी दुर्गम हो गया था । परन्‍तु मिलन की आस में बेटी और हमारे साथी आराम से रास्‍ता पार कर गए ।

हम लोग जैसे जैसे आगे बढ़े । तो उधर से आ रहे अजनबी यात्री लोग भी मुझसे मेरी पत्‍नी की कुशलता के बारे में बताते जा रहे थे । क्‍योंकि पत्‍नी ने मेरी एवं बेटी का हुलिया बता कर संदेश देने की मिन्‍नत सबसे की थी । मेरा मन रामायण काल में विचरने लगा था । दुर्गम रास्‍ता एवं राम की तरह व्‍याकुल मन से पत्‍नी रूपी सीता को ढूढ़ रहा था । और रास्‍ते में जैसे जैसे पत्‍नी की कुशल क्षेम का पता चला । मिलन के लिए मन और व्‍याकुल हो रहा था । खैर..आखिरकार वो पल भी आ गया । जब हम सब रात 10 बजे आपस में मिलें । वहॉं रहने का उचित प्रबंध नहीं था । अत: हम सब आगे संगम की ओर बढ़ने लगे । संगम पर सी आर पी एफ का बेस कैंप है । जहॉं दो सैनिक सुरक्षा के लिए गस्‍त लगा रहे थे । उन्‍होंने हमें रोककर पूछताछ की । और आगे रात्रि में यात्रा न करने की सलाह देते हुए हम सबको रात्रि विश्राम वहीं करने को कहा ।
महिलाओं का कैंप अलग और पुरुषों का अलग कैंप था । जहॉं उन्‍होंने हमें स्‍लीप बैग लाकर दिया । और हम

सबने रात्रि विश्राम कर सुबह 4:30 बजे अपनी शेष यात्रा गुफा तक की शुरू की । संगम में अमरावती एवं पंचतरणी नदी का संगम है । पंचतरणी में भैरव पहाड़ी के तलहटी में 5 नदियॉं बहती हैं । जो भगवान शिव के जटाओं से निकलती है । ऐसी मान्‍यता है । पूरे रास्‍ते छोटे झरने । जल प्रपात का दृश्‍य नयनाभिराम लगते हैं । संगम से गुफा का रास्‍ता भी काफी खड़ी चढ़ाई है । जो कि लगभग 1 कि‍मी है । उसके बाद ढलान है । जिसमें बर्फ का रास्‍ता शुरू हो जाता है । बर्फ पर डंडो के सहारे चलने का मेरा पहला अनुभव था । जो कि बेहद रोमांचकारी रहा । 1.5 किमी चलने के बाद छोटे छोटे रंग बिरंगे टेंटों में दुकानें सजी हुई थी । और दुकानदार प्‍यार से यात्रियों को बुला रहे थे । वहॉं नहाने के लिए नदी के पानी को गर्म कर दुकानदार प्रति बाल्‍टी 50 रुपये में दे रहे थे । रुकने व सामान रखने के लिए कोई शुल्‍क नहीं लगता है । एक दुकान जो कि अमरावती नदी के किनारे पर था । हम सभी वहॉं रुके । सुबह के 7 बजे थे । हम सभी ने वहीं नदी के गर्म पानी से स्‍नान किया । और बड़े उत्‍साह के साथ पवित्र गुफा के दर्शन हेतु निकल पड़े । जब हम सबने बाबा बर्फानी के दर्शन के साथ 

साथ वहॉं विराजमान 2 कबूतरों को जिन्‍हें अमर कबूतर कहा गया है । देखा तो दिल में उमंग उल्‍लास की जो लहर दौड़ी । उसका वर्णन शब्‍दों में बयान करना नामुमकिन सा लग रहा है । ये अनुभव तो आप वहॉं जाकर महसूस कर सकते हैं । बर्फ से बने शिव लिंग का दर्शन बड़े सुकून के साथ हुआ । फिर प्रसाद प्राप्‍त कर हर्षित मन से भोले की अदभुत शिवलिंग की छवि मन में लिए वापस बालटाल आने को चल दिये । दर्शन के पश्‍चात सफर की सारी थकान मानों गायब सी हो गई ।
रात्रि बालटाल में श्री मणी महेश सेवा मण्‍डल कपूरथला द्वारा लगाया गये पंडाल में विश्राम एवं शयन किया । और सुबह वहीं लंगर में नाश्ता चाय कर वापस अपने बसों में रेल कोच फैक्‍टरी आने के लिए सवार हो गये ।
वापसी रास्‍ते में सोनमर्ग में सुबह का नजारा बहुत ही खूबसूरत लग रहा था । पूरे रास्‍ते नदी । पहाड़ एवं झरनों का अद्भुत नजारा था । श्री नगर में भी कुछ घंटे के लिए रुके । वहॉं निशात बाग एवं डल झील में शिकारें में सैर किया । कश्‍मीर दर्शन करने पर पता चला कि यूं ही लोग कश्‍मीर को दूसरा स्‍वर्ग नहीं कहते । यह सच है कि - अगर 

धरती पर स्‍वर्ग कहीं है । तो वह कश्‍मीर में ही है ।
स्‍थानीय प्रशासन के सुरक्षा कारणों से हम लोगों को एक रात मीर बाजार में गुजारनी पड़ी । और दूसरे रात यानि 16.07.2011 को सुबह 2 बजे हम सब रेल कोच फैक्‍टरी कपूरथला पहुँचे । जहॉं के शिव मंदिर से हमारी यात्रा प्रारम्‍भ हुई थी ।
हमारी यात्रा का समापन अगले रविवार को भगवान भोले के रुद्राभिषेक के साथ आर सी एफ के शिव मंदिर में ही हुई । जहॉं सभी यात्रियों ने बढ़ चढ़ कर हिस्‍सा लिया ।
अंत में अमरनाथ की अमर कथा संक्षेप में - जब पार्वती ने शंकर से अमरत्‍व का रहस्‍य बताने को कहा । तो शिव ने अपना नंदी बैल को पहलगाम ( बैलग्राम ) में । चंदनवाड़ी में चॉंद । शेषनाग में गले का सर्प । महागुनाश में अपने बेटे गणेश को । और पंचतत्‍व ( पृथ्‍वी । आकाश । पानी । हवा और अग्‍नि ) जिससे मानव बना है को पंचतरणी में छोड़ा । और पवित्र गुफा में विराज कर कालाग्‍नी के द्वारा सभी जीवित जीव को नष्‍ट कर मॉं पार्वती को अमर कथा सुनायी । जो सौभाग्‍य से अंडे से बना कबूतर ने सुना । और अमर हो गया । आज भी वह अमर कबूतर भक्‍तों को दर्शन देता है ।
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सास पुराण
सास का ख्‍याल आते ही मैं कॉंपने लगता था । मेरी सॉंसें उखड़ने लगती थीं । हालांकि मैं अपनी पत्‍नी से डरता नहीं हूँ । फिर भी आपसे अनुरोध है कि कृपया इस रचना को मेरी पत्‍नी को पढ़ने के लिए नहीं दीजियेगा । क्‍योंकि इस रचना को अगर मेरी पत्‍नी ने पढ़ लिया । तो वह मेरी ऐसी हालत कर देगी कि मैं आपके लिए दूसरी

रचना पेश करुँ । ऐसी स्थिति नहीं रहेगी । तो आईये । मैं बजरंग बली का नाम लेकर आपको यह बताऊँ कि - मैं अपनी सास का बलि का बकरा कैसे बना ?
यह मेरा दुर्भाग्‍य है कि मेरे कुंआरे जीवन की कोई भी रात ऐसी नहीं बीती । जिसमें एक भयानक चेहरा मेरे सपनों में न आया हो । और वह भयानक चेहरा किसका हो सकता है ? यह आप अनुमान लगा लें । वैसे मैं बजरंग बली का भक्‍त हूँ । और भूत प्रेत से डरता नहीं हूँ ।
बात उन दिनों की है । जब मैं कुंआरा था । और मेरी नई नई नौकरी भी लगी थी । मेरे मित्र जो शादीशुदा थे । वे अक्‍सर मेरे यहॉं बैठ कर गप्‍पें मारते । और अपनी अपनी सास पुराण सुनाते । मित्रों की बातें सुन कर मेरी आत्‍मा कांप उठती । कुंआरे जीवन में जो काल्‍पनिक रंगीन स्‍वपनों वाली रातें होनी चाहिए थी । वे इन मित्रों की वजह से भयानक स्‍वपनों वाली रातों में बदलने लगी । रामसे प्रोडक्शन फिल्‍म की तरह मेरे सपने भी भयानक हो गए । सपने की प्रथम दो रीलों में प्रेमिका के साथ छेड़छाड़ । फिर शादी । और शादी के बाद सास से मुलाकात । पहले तो मेरी सास सौम्‍य लगती । परन्‍तु हारर फिल्‍म की तरह कुछ ही देर में उनके चेहरे पर दो दॉंत उग आते । उनका चेहरा कुरुप हो जाता । और वे मुझे तरह तरह की यातनाएं देती । यह यातना भरी स्‍वपन 15 रील चलती । आप समझ सकते हैं कि - मेरी रातें फिर कैसे घुटन भरी हो गई । इस स्‍वपन से छुटकारा पाने की मैंने बहुत कोशिश की । मगर 

कामयाब न हो सका । आप यकीन नहीं करेंगे कि मेरी उमृ 24 साल से 30 साल की हो गई । मगर यह स्‍वपन बिना नागा किए प्रत्‍येक रात आता । और जब चीख मार मैं सुबह उठता । तो पसीने से अपने आपको तर पाता । शुरु शुरु में पड़ोसी दौड़ पड़ते । और मुझे तरह तरह सांत्‍वना देते । मगर मेरी चीख बाद में उन लोगों के लिए मुर्गे की बॉंग की तरह हो गई । अब मेरे पड़ोस में अलार्म घड़ी लगा कर कोई न सोता । अब वे लोग मेरी चीख सुन कर उठते ।
जिसकी कल्‍पना मात्र से ही इतना डर लगता हो । वह हकीकत में कितनी मुश्किल करेगी । यह सोचकर मैंने फ़ैसला कर लिया कि - अब मैं शादी नहीं करुँगा । मगर हाय रे समाज ! वह कब किसी को चैन से मरने देता है । सभी मुझे सलाह देने लगे । शादी कर लो । अब नहीं करोगे । तो कब करोगे ? जब किसी पार्टी में जाता । तो सभी मित्र सपत्‍नीक होते । तो उनके लिए मैं ही आकर्षण का केंद्र होता । वह मुझे ऐसे घूरते । मानो वे किसी पार्टी में नहीं । वरन किसी चिडि़याघर में मुझ जैसे निराले अविवाहित लाचार प्राणी को देखने आए हों । अपने मित्रों को अपनी अपनी पत्‍नी के साथ मुस्‍कराते देख मेरे दिल में कोमल भावनाओं का प्रबल आवेश आया । और मैंने शादी करने का फैसला कर लिया । मगर अब शादी का पता चलता है कि पति पत्‍नी के साथ खास कर पार्टियों में पति क्‍यों मुस्‍कराता रहता है । क्‍योंकि मेरी पत्‍नी 

किसी भी पार्टी में जाने से पहले । एक हिदायत मुझे अवश्‍य देती है - देखो जी ! पार्टी में मुँह लटका कर मत बैठना । 
खैर.. तो मैंने शादी के लिए लड़की तलाशना शरु कर दिया । मगर सास का खौफ अभी भी मेरे दिलो दिमाग में छाया हुआ था । अत: मैंने फैसला किया कि लड़की चाहे कैसी भी हो । चलेगा । लेकिन उसकी मॉं नहीं होनी चाहिए । अर्थात ऐसी लड़की जिसके पिता विधुर हों । बहुत खोजबीन की । परन्‍तु ऐसा कोई पुरुष न मिला । जो शाति पूर्वक बिना पत्‍नी के जीवन बिता रहा हो । अलबत्ता ऐसी कितनी ही औरतें मिली । जो बिना पति के मजे से जिंदगी बसर कर रही थी । तब मुझे पता चला कि - ससुर बिना सास का मिलना कठिन ही नहीं । बल्कि असंभव सा है । इधर मित्रों की पत्नियॉं मुझ पर दबाव डालने लगी कि ये क्‍या शर्त हुई । और अंत में मुझे नारी दबाव के आगे झुकना पड़ा । एवं उन्‍हीं लोंगों की पसंद

से मेरी शादी मेरी श्रीमती जी से हो गई । दुर्भाग्‍य से या सौभाग्‍य से कह लीजिए कि - मेरी पत्‍नी की एक मात्र संबंधी उनकी मॉं ही थीं । सुनकर थोड़ा सुकून मिला कि - चलो साला । साली । एवं ससुर से तो छुट्टी मिली । तो साहब ! धड़कते दिल से शादी के लिए घोड़ी पर बैठा । और अपनी भावी सास की कल्‍पना करता रहा । फरवरी का महीना । और मैं पसीने से लथपथ । सभी दोस्‍त नाच करते हुए लड़की वालों के दरवाजे पर पहँचे । पहुँचते ही मेरी सास से परिचय करावाया गया । लगा स्‍वपन हकीकत बन गई । वही चेहरा । मैंने मन ही मन कहा – भगवान ! अब तुम ही बचाना ।
जब विदाई की घड़ी आई । तो मेरी सासु जी ने कहा – बेटा जब भी तुम्‍हें मेरी जरूरत हो । तो पत्र लिख देना । मैं आ जाऊँगी । मैंने मन ही मन में कहा – वाह री बुढि़या । मुझे चारा डाल रही है । पर मैं कच्चा खिलाड़ी नहीं था । मैंने भी कहा - क्‍यों नहीं मॉं जी ! जरुर खत लिखूँगा । मेरी तो इच्‍छा थी कि आप भी मेरे साथ चलती । लेकिन क्‍या करुँ । जहॉं मैं रहता हूँ । व मकान एक कमरे का ही सेट है । अत: आपको बुला नहीं सकता । जैसे ही बड़े मकान की

व्‍यवस्‍था हो जाएगी । वैसे ही आपको बुला लूँगा । यह सुन कर उसका चेहरा थोड़ा लटक सा गया । परन्‍तु थोड़ा संभलते हुए बोली - कोई बात नहीं बेटा । मुझे बुढि़या को यात्रा करने में भी बहुत तकलीफ होती है । किसी तरह से हमेशा के लिए बला टली । मैं अपनी पत्‍नी के साथ मधुर जीवन व्‍यतीत करने लगा । इसी बीच मुझे पुत्र रत्‍न की प्राप्ति भी हुई । सास ने पत्र के द्वारा अपने आने की मंशा जाहिर की । ताकि नाती का मुंह देख सके । लेकिन मैंने तुरन्‍त सूचना भेज दी कि - जब भी फुरसत मिलेगी । हम लोग मिलने जरुर आऍंगे ।
एक दिन मैं अपने पूरे परिवार के साथ स्‍कूटर से बाजार जा रहा था कि - रास्‍ते में मेरे स्‍कूटर की टक्‍कर सामने से आ रही कार से हो गई । सपरिवार हम लोग अस्‍पताल कब पहुँच गए । पता ही नहीं चला । जब होश आया । तो अपनी सास को अपने सामने बैठा पाया । 

शादी के बाद दूसरी बार अपनी सास को देख रहा था । परन्‍तु आज सासू मॉं कल्‍पना वाली नहीं थी । उनके चहने पर ममता से ओत प्रोत भाव थे । मेरी ऑंखें उनसे मिलते ही । वे फफक कर रो पड़ी । और ममता भरा एक ही शब्‍द उनके मुँह से निकला - बेटा ! और मेरे सीने पर सर रखकर सुबकने लगी । मैं भी अपने ऑंसुओं को रोक न सका । उस स्‍नेहमयी सास की हकीकत से वाकिफ होने लगा । असल में मेरे मॉं बाप बचपन में ही गुजर गए थे । मन उस ममता भरी आवाज बेटा के स्‍वर लहरी में हिलोरों लेने लगा ।
हम लोग अस्‍पताल से अपने एक कमरे के सेट वाले मकान में आ गए । मेरी पत्‍नी को एक महीने का बेड रेस्‍ट था । एक महीना मेरी सास हम लोगों के साथ रहीं । उन्‍होंने हम लोगों को मानसिक शारीरिक एवं आर्थिक सभी तरह से मदद की । जब मैं ऑफिस जाने लायक हुआ । तो उन्‍होंने अपने घर जाने की तैयारी कर ली । मैंने उन्‍हें बहुत रोकने की कोशिश की । मगर उन्‍होंने मुस्‍कराते हुए कहा - बेटा ! यहॉं तुम्‍हारे पास मात्र एक ही कमरा है । यह सुन कर मैं पानी पानी हो गया ।
खैर.. मेरी सासू मॉं की मधुर याद हमेशा ही आती है । अब समस्‍या यह है कि स्‍वपन में सास से छुटकारा पा तो लिया । परन्‍तु उनकी उत्तराधिकारी अर्थात मेरी पत्‍नी ने मेरे स्‍वप्‍नों में प्रवेश कर लिया । अब मेरे सपने में मेरी पत्‍नी का चेहरा ही भयानक लगता है । पहले चीखें मार

कर उठ जाता था । परन्तु अब चीख हलक के अंदर ही रह जाती है । मैं बिस्‍तर पर छटपटाता रहता हूँ । ऑंखें तभी खुलती हैं । जब मेरी धर्म पत्‍नी साक्षात दुर्गा का रूप लिए हाथ में झाडू लेकर झकझोर कर बोलती है - क्‍या बंदरों की तरह बिस्‍तर पर पलटी मार रहे हो ?
तो अपने पढ़ा कि - किस तरह एक निर्मूल समस्‍या को लेकर मैं परेशान था । मगर जो वास्‍तविक समस्‍या थी । उसे - प्रेम । प्‍यार । विश्‍वास और पता नहीं । मन में क्‍या क्‍या सोच रहा था । मौका मिला । तो मैं अपनी पत्‍नी पुराण । जो हकीकत है । उसको बयान करुँगा । आज्ञा दें ।
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