Friday, 28 February 2014

एक शख्स हमारी नज़र में है

कृतज्ञ हो । तो सभी आयाम में होश साध सकते हैं । सभी के प्रति कृतज्ञ होओ । क्योंकि सभी तुम्हारे रूपांतरण के लिए अवसर बना रहे हैं । वे भी । जो लगता है कि तुम्हारे लिए अवरोध पैदा कर रहे हैं । वे भी । जिनके बारे में तुम सोचते हो कि - वे तुम्हारे दुश्मन हैं । तुम्हारे मित्र । तुम्हारे दुश्मन । भले लोग और बुरे लोग । अनुकूल माहौल । प्रतिकूल माहौल । सभी मिलकर परिस्थिति निर्मित कर रहे हैं । जिससे तुम रूपांतरित हो सको । और बुद्ध बन सको । सभी के प्रति कृतज्ञ होओ । उनके प्रति जिन्होंने मदद की । उनके प्रति जिन्होंने व्यवधान पैदा किया । उनके प्रति जो खिलाफ रहे । सभी के प्रति कृतज्ञ होओ । क्योंकि ये सब मिलकर ऐसी परिस्थिति पैदा कर रहे हैं । जहां बुद्ध पैदा हो सके । जहां तुम बुद्ध बन सको ।
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नानक ने परमात्मा को गा गाकर पाया l  गीतों से पटा है मार्ग नानक का l  इसलिए नानक की खोज बड़ी भिन्न है l पहली बात समझ लेनी जरुरी है कि नानक ने योग नहीं किया । तप नहीं किया । ध्यान नहीं किया l नानक ने सिर्फ गाया l और गाकर ही पा लिया l लेकिन गाया उन्होंने इतने पूरे प्राण से कि गीत ही ध्यान हो गया । गीत ही योग बन गया । गीत ही तप हो गया l ओशो । बोदा नशा शराब का उतर जाय परभात । नाम खुमारी नानका चङी रहे दिन रात ।
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बहुत समय पहले की बात है । 1 बार 1 गुरुजी गंगा किनारे स्थित किसी गाँव में अपने शिष्यों के साथ स्नान कर रहे थे । तभी 1 राहगीर आया । और उनसे पूछा - महाराज, इस गाँव में कैसे लोग रहते हैं ? दरअसल मैं अपने मौजूदा निवास स्थान से कहीं और जाना चाहता हूँ ? गुरुजी बोले - जहाँ तुम अभी रहते हो वहां किस प्रकार के लोग रहते हैं ?
- मत पूछिए महाराज ! वहां तो 1 से 1 कपटी, दुष्ट और बुरे लोग बसे हुए हैं । राहगीर बोला ।
गुरुजी बोले - इस गाँव में भी बिलकुल उसी तरह के लोग रहते हैं । कपटी, दुष्ट, बुरे । और इतना सुनकर राहगीर आगे बढ़ गया ।
कुछ समय बाद 1 दूसरा राहगीर वहां से गुजरा । उसने भी गुरुजी से वही प्रश्न पूछा - मुझे किसी नयी जगह जाना है । क्या आप बता सकते हैं कि इस गाँव में कैसे लोग रहते हैं ?
- जहाँ तुम अभी निवास करते हो । वहां किस प्रकार के लोग रहते हैं ?  गुरुजी ने इस राहगीर से भी वही प्रश्न पूछा ।
- जी वहां तो बड़े सभ्य, सुलझे और अच्छे लोग रहते हैं । राहगीर बोला ।
- तुम्हे बिलकुल उसी प्रकार के लोग यहाँ भी मिलेंगे । सभ्य, सुलझे और अच्छे । गुरुजी ने अपनी बात पूर्ण की । और दैनिक कार्यों में लग गए । पर उनके शिष्य ये सब देख रहे थे । और राहगीर के जाते ही उन्होंने पूछा - क्षमा कीजियेगा गुरुजी । पर आपने दोनों राहगीरों को 1 ही स्थान के बारे में अलग अलग बातें क्यों बतायी ?
गुरुजी गंभीरता से बोले - शिष्यों आमतौर पर हम चीजों को वैसे नहीं दखते । जैसी वे हैं । बल्कि उन्हें हम ऐसे देखते हैं । जैसे कि हम खुद हैं । हर जगह हर प्रकार के लोग होते हैं । यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस तरह के लोगों को देखना चाहते हैं ।
शिष्य उनकी बात समझ चुके थे । और आगे से उन्होंने जीवन में सिर्फ अच्छाईयों पर ही ध्यान केन्द्रित करने का निश्चय किया । कोई न काहू सुख दुख कर दाता । निज कर कर्म भोग सब भ्राता ।
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मंदिर न मैकदे में न मस्जिद न घर में है । 
जो शख्स मुद्द्तों से हमारी नज़र में है । 

हालांकि अब सफ़र की थकन भी उतर गई । 
लेकिन हमारा ज़ेहन अभी तक सफ़र में है । 
उड़ते परिंदे देखे तो एहसास ये हुआ । 
कितनी कमी अभी भी हमारे सफ़र में है । 
पत्तों को छोड़ देता है अक्सर खिज़ां के वक़्त । 
खुदग़रज़ी ही कुछ ऐसी यहाँ हर शजर में है । 
तख्लीक़ जिसने देखी वो दीवाना हो गया । 
जादू ज़रूर कोई तुम्हारे हुनर में है । 
कोशिश के मोजिज़ा है तमाशा के हादसा । 
तेरा जो ज़िक्र रोज़ की ताज़ा खबर में है । 
बातें तरह तरह की बनाने लगे हैं लोग । 
जिस दिन से एक शख्स हमारी नज़र में है ।
Eva Hollyer, American  1965 - 1948 
THE NOVEL 
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It is becoming more and more difficult to understand people, because such thick, dense indifference surrounds everybody that even if you shout you can’t be heard, or they hear something which you have not said at all. They hear that which they want to hear or they hear that which they CAN hear. They hear not what is said but what their mind interprets. OSHO
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Hidden inside a woman in the every woman but often  people see the outside woman
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Who i am ?  I am not body I have a body & i live in body . I am not mind i am beyond the mind . I am consciousness ( soul ) Know this understand this Realize this from deeper meditation or awareness & that is self realization 
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MASTURBATION WITH MEDITATION
Telling to a fourteen or fifteen-year-young boy that celibacy is a virtue, that he has to remain celibate until he has come from the university and he gets married, you are simply asking the impossible.
At the age of eighteen man has the most sexual power. After eighteen he starts declining. It is at the age of eighteen that he comes to the peak of his sexual energy, and he can have tremendously significant orgasms. And he is capable of having three, four, five orgasms in one night. 
When he was able to have orgasms, he was told to remain celibate. He repressed his energy, or he became a pervert. He became a homosexual or he started masturbating.
But in all the countries even doctors go on telling people that masturbation will make you crazy, will make you mad. This is sheer nonsense. 
In fact, to get rid of sexual energy which is too much, masturbation is the most hygienic method. 
And at the age of eighteen, if you can be taught masturbation with meditation, your whole life will be a totally different life. Not a life of misery, suffering, sadness, frustration, but a life of sheer dance and song.
That's what I will teach people. When they are at the peak of their sexual energy, that is the moment when they can have orgasm very easily. And now the Pill is available, so there is no problem. Boys and girls should be living in the same hostels. They should be making love. The fear of getting pregnant is no more there. Now love is, for the first time, pure fun. And joined with meditation it becomes sacred fun.
No prayer, no church-going can help you to understand what I am saying. No HOLY BIBLE can give you the insight.
But if the girl is not available, then help people with masturbation. Teach them how you have to be meditative. And when you come to a peak and you explode into an orgasmic joy, watch. Be alert. 
This is absolutely medical, scientific, and to me, spiritual. OSHO
STRUGGLING FOR THE NEW MAN
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In essence, if we want to direct our lives, we must take control of our consistent actions. It's not what we do once in a while that shapes our lives, but what we do consistently. 
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˚˚ ˚⁀˚⋆.‿.   Love  
˚⋆.‿.⋆˚⁀˚ (¯`v´¯) ˚⁀˚⋆.‿.⋆˚
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┊ | ┊ | ┊ | ┊ | ┊ HAPPY FRIDAY ┊ | ┊ | ┊ | ┊ | ┊
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We learn .... from our mistakes ....
Each mistake is like a lesson of life 
Sometimes we could forget these lessons of life  
Do not could be life without mistakes ! Sure, Sure 
0,00000 Killers 

Thursday, 27 February 2014

खुदा तू न होता तो मैं मर जाता

आयो देर से गिरधारी । तू आयो देर से गिरधारी । 
तेरी पाछी ले ज्या गाठड़ी । तू मोड़े आयो गिरधारी । 
और सगा ने महल मालिया । सुंदर महल अटारी । 
नरसी भगत ने टूटेडी टपरी । बा भी गाँव से न्यारी । 
और सगा ने लाडू जलेबी । सत पकवान मिठाई ।
नरसी भगत ने बासी खिचड़ी । बा भी लूण से खारी ।
और सगा ने हिंगलू ढोलिया । गादी गिन्डवा न्यारा ।
नरसी भगत ने फतेदी गुदड़ी । बभी चूहा से फाड़ी ।
कह नरसिलो सुन रे सांवरा । आनो है तो आ ज्या ।
नानी बाई को भर के मायरो  । पाछा सुरग सिधारो ।
छप्पन करोड़ को ल्यायो मायरो । न्याय करो प्रभु त्यारो ।
छिन्तरमल नरसी कि लज्जा । रखे बंसी वालो ।
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जिसे सुख चाहिए हो । वह तुलना छोड़ दे । तुलना का त्याग कर दे । दूसरे से अपने को तौले ही नहीं । तौलने की दृष्टि ही भ्रांति है । अपने को ही देखे । दूसरे से तौलना छोड़ दे । तो संतोष का जन्म होता है । अपरिसीम संतोष का जन्म होता है । क्योंकि तब न कोई कुरूप है । तब न कोई बुद्धिमान है । तब न कोई मूढ़ है । तब न कोई सुंदर है । क्योंकि ये सारी की सारी चीजें विपरीत से जुड़ती हैं । ओशो
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ऐ मेरे खुदा ऐ मेरे खुदा तू न होता तो मैं मर जाता ।
किसी हसीना के प्यार में जमाने से बगावत कर जाता ।
तूने संभाला है बहुत मुझको तेरी गहराई में उतरने दिया ।
अब पता चला है मुझको मैं तो वो जोगी हूँ ।
बस तेरे नाम पे चलने वाला अलख निरंजन मैं तो हूँ । 
दाता को चाहने वाला ।
ऐ मेरे खुदा ऐ मेरे खुदा तू न होता तो मैं मर जाता ।
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Wishing you a wonderful year ahead .•*•♪ღ♪•*
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On your birthday, special one, I wish that all your dreams come true.
May your day be filled with joy, Wonderful gifts and goodies, too.
On your day I wish for you Loving smiles and caring looks I wish you happily ever after! HapPy birthday Wishing showers of blessings and loads of happiness for you. Happy birthday to you.
बहुत बहुत शुभकामनायें आपके जन्मदिन पर । जीवन प्रतिपल शांति और आनंद की वर्षा से भीगता रहे । आपको आपके जन्मदिन पर बधाई । और हार्दिक शुभकामनाएं । आने वाला प्रत्येक नया दिन । आपके जीवन में अनेकानेक सफलताएं एवं अपार खुशियां लेकर आये । इस अवसर पर ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वह वैभव, ऐश्वर्य, उन्नति, प्रगति, आदर्श, स्वास्थ्य, प्रसिद्धि और समृद्धि के साथ आजीवन आपको जीवन पथ पर गतिमान रखे ।

मान मिले सम्मान मिले । खुशियों का वरदान मिले ।
क़दम क़दम पर मिले सफलता । डगर डगर उत्थान मिले ।
सूरज रोज संवारे दिन को । चाँद मधुर सपने ले आये ।
हर पल समय दुलारे तुमको । सदियों तक पहचान मिले ।
इसी स्नेह के साथ ।
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पर कतर के फिर कहा सैयाद ने । पिंजरा खोलो और उड़ तू आजाद है ।
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अंगम गलितम पलितम मुंडम । दशन विहीनं जातम तुन्दम ।
तदपि न मुञ्चति आशा सत्यम । भज गोविन्दम भज गोविन्दम ।
गोविन्दम भज मूढ़ मते ।
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शिव कोई पुरोहित नहीं हैं । शिव तीर्थंकर हैं । शिव अवतार हैं । शिव क्रांतिद्रष्टा हैं । पैगंबर हैं । वे जो भी कहेंगे । वह आग है । अगर तुम जलने को तैयार हो । तो ही उनके पास आना । अगर तुम मिटने को तैयार हो । तो ही उनके निमंत्रण को स्वीकार करना । क्योंकि तुम मिटोगे । तो ही नये का जन्म होगा । तुम्हारी राख पर ही नये जीवन की शुरुआत है । ओशो 
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the doors of love only open for the person who is prepared to let his ego go. To surrender one's ego for someone else is love - to surrender one's ego for all is devine love. osho

meditation is not a method but a process

Meditation is not an Indian method; it is not simply a technique. You cannot learn it. It is a growth: a growth of your total living, out of your total living. Meditation is not something that can be added to you as you are. It can come to you only through a basic transformation, a mutation. It is a flowering, a growth. Growth is always out of the total; it is not an addition. You must grow toward meditation.
This total flowering of the personality must be understood correctly. Otherwise one can play games with oneself, one can occupy oneself with mental tricks. And there are so many tricks! Not only can you be fooled by them, not only will you not gain anything, but in a real sense you will be harmed.
The very attitude that there is some trick to meditation - to conceive of meditation in terms of method - is basically wrong. And when one begins to play with mental tricks, the very quality of the mind begins to deteriorate.
As mind exists, it is not meditative. The total mind must change before meditation can happen. Then what is the mind as it now exists ? How does it function ? The mind is always verbalizing. You can know words, you can know language, you can know the conceptual structure of thinking, but that is not thinking. On the contrary, it is an escape from thinking. You see a flower and you verbalize it; you see a man crossing the street and you verbalize it. The mind can transform every existential thing into words. Then the words become a barrier, an imprisonment. This constant transformation of things into words, of existence into words, is the obstacle to a meditative mind.
So the first requirement toward a meditative mind is to be aware of your constant verbalizing and to be able to stop it. Just see things; do not verbalize. Be aware of their presence, but do not change them into words. Let things be, without language; let persons be, without language; let situations be, without language. It is not impossible; it is natural. It is the situation as it now exists that is artificial, but we have become so habituated to it, it has become so mechanical, that we are not even aware that we are constantly transforming experience into words.
The sunrise is there. You are never aware of the gap between seeing it and verbalizing. You see the sun, you feel it, and immediately you verbalize it. The gap between seeing and verbalizing is lost. One must become aware of the fact that the sunrise is not a word. It is a fact, a presence. The mind automatically changes experiences into words. These words then come between you and the experience. Meditation means living without words, living nonlinguistically. Sometimes it happens spontaneously.

When you are in love, presence is felt, not language. Whenever two lovers are intimate with one another they become silent. It is not that there is nothing to express. On the contrary, there is an overwhelming amount to be expressed. But words are never there; they cannot be. They come only when love has gone.
If two lovers are never silent, it is an indication that love has died. Now they are filling the gap with words. When love is alive, words are not there because the very existence of love is so overwhelming, so penetrating, that the barrier of language and words is crossed. And ordinarily, it is only crossed in love.
Meditation is the culmination of love: love not for a single person, but for the total existence. To me, meditation is a living relationship with the total existence that surrounds you. If you can be in love with any situation, then you are in meditation.
And this is not a mental trick. It is not a method of stilling the mind. Rather, it requires a deep understanding of the mechanism of the mind. The moment you understand your mechanical habit of verbalization, of changing existence into words, a gap is created. It comes spontaneously. It follows understanding like a shadow. The real problem is not how to be in meditation, but to know why you are not in meditation. The very process of meditation is negative. It is not adding something to you; it is negating something that has already been added.
Society cannot exist without language; it needs language. But existence does not need it. I am not saying that you should exist without language. You will have to use it. But you must be able to turn the mechanism of verbalization on and off. When you are existing as a social being, the mechanism of language is needed; but when you are alone with existence, you must be able to turn it off. If you can't turn it off - if it goes on and on, and you are incapable of stopping it - then you have become a slave to it. Mind must be an instrument, not the master.
When mind is the master, a non-meditative state exists. When you are the master, your consciousness is the master, a meditative state exists. So meditation means becoming a master of the mechanism of the mind.
Mind, and the linguistic functioning of the mind, is not the ultimate. You are beyond it; existence is beyond it. Consciousness is beyond linguistics; existence is beyond linguistics. When consciousness and existence are one, they are in communion. This communion is meditation.
Language must be dropped. I don't mean that you have to suppress it or eliminate it. I only mean that it does not have to be a twenty-four-hour-a-day habit for you. When you walk, you need to move your legs. But if they go on moving when you are sitting, then you are mad. You must be able to turn them off. In the same way, when you are not talking with anyone, language must not be there. It is a technique to communicate. When you are not communicating with anybody it should not be there.
If you are able to do this, you can grow into meditation. Meditation is a growing process, not a technique. A technique is always dead, so it can be added to you, but a process is always alive. It grows, it expands.

Language is needed, but you must not always remain in it. There must be moments when there is no verbalizing, when you just exist. It is not that you are just vegetating. Consciousness is there.
And it is more acute, more alive, because language dulls it. Language is bound to be repetitive so it creates boredom. The more important language is to you, the more bored you will be.
Existence is never repetitive. Every rose is a new rose, altogether new. It has never been and it will never be again. But when we call it a rose, the word 'rose' is a repetition. It has always been there; it will always be there. You have killed the new with an old word.
Existence is always young, and language is always old. Through language, you escape existence, you escape life, because language is dead. The more involved you are with language, the more deadened you will be by it. A pundit is completely dead because he is nothing but language, words.
Sartre has called his autobiography 'Words'. We live in words. That is, we don't live. In the end there is only a series of accumulated words and nothing else. Words are like photographs. You see something that is alive and you take a picture of it. The picture is dead. Then you make an album of dead pictures. A person who has not lived in meditation is like a dead album. Only verbal pictures are there, only memories. Nothing has been lived; everything has just been verbalized.
Meditation means living totally, but you can live totally only when you are silent. By being silent I do not mean unconscious. You can be silent and unconscious but it is not a living silence. Again, you have missed.
Through mantras you can autohypnotize yourself. By simply repeating a word you can create so much boredom in the mind that the mind will go to sleep. You drop into sleep, drop into the unconscious. If you go on chanting "Ram Ram Ram" the mind will fall asleep. Then the barrier of language is not there, but you are unconscious.
Meditation means that language must not be there, but you must be conscious. Otherwise there is no communion with existence, with all that is. No mantra can help, no chanting can help. Autohypnosis is not meditation. On the contrary, to be in an autohypnotic state is a regression. It is not going beyond language; it is falling below it. So drop all mantras, drop all these techniques. Allow moments to exist where words are not there. You cannot get rid of words with a mantra because the very process uses words. You cannot eliminate language with words; it is impossible.
So what is to be done? In fact, you cannot do anything at all except to understand. Whatever you are able to do can only come from where you are. You are confused, you are not in meditation, your mind is not silent, so anything that comes out of you will only create more confusion. All that can be done right now is to begin to be aware of how the mind functions. That's all - just be aware.
Awareness has nothing to do with words. It is an existential act, not a mental act.
So the first thing is to be aware. Be aware of your mental processes, how your mind works. The moment you become aware of the functioning of your mind, you are not the mind. The very awareness means that you are beyond: aloof, a witness. And the more aware you become, the more you will be able to see the gaps between the experience and the words. Gaps are there, but you are so unaware that they are never seen.
Between two words there is always a gap, however imperceptible, however small. Otherwise the two words cannot remain two; they will become one. Between two notes of music there is always a gap, a silence. Two words or two notes cannot be two unless there is an interval between them. A silence is always there but one has to be really aware, really attentive, to feel it.
The more aware you become, the slower the mind becomes. It is always relative. The less aware you are, the faster the mind is; the more aware you are, the slower the process of the mind is. When you are more aware of the mind, the mind slows down and the gaps between thoughts widen. Then you can see them.
It is just like a film. When a projector is run in slow motion, you see the gaps. If I raise my hand, this has to be shot in a thousand parts. Each part will be a single photograph. If these thousands of single photographs pass before your eyes so fast that you cannot see the gaps, then you see the hand raised as a process. But in slow motion, the gaps can be seen.
Mind is just like a film. Gaps are there. The more attentive you are to your mind, the more you will see them. It is just like a gestalt picture: a picture that contains two distinct images at the same time.
One image can be seen or the other can be seen, but you cannot see both simultaneously. It can be a picture of an old lady, and at the same time a picture of a young lady. But if you are focused on one, you will not see the other; and when you are focused on the other, the first is lost. Even if you know perfectly well that you have seen both images, you cannot see them simultaneously.
The same thing happens with the mind. If you see the words you cannot see the gaps, and if you see the gaps you cannot see the words. Every word is followed by a gap and every gap is followed by a word, but you cannot see both simultaneously. If you are focused on the gaps, words will be lost and you will be thrown into meditation.
A consciousness that is focused only on words is non-meditative and a consciousness that is focused only on gaps is meditative. Whenever you become aware of the gaps, the words will be lost. If you observe carefully, you will not find words; you will only find a gap. You can feel the difference between two words, but you cannot feel the difference between two gaps. Words are always plural and the gap is always singular: "the" gap. They merge and become one. Meditation is a focusing on the gap. Then, the whole gestalt changes.
Another thing is to be understood. If you are looking at the gestalt picture and your concentration is focused on the old lady, you cannot see the other picture. But if you continue to concentrate on the old lady - if you go on focusing on her, if you become totally attentive to her - a moment will come when the focus changes and suddenly the old lady has disappeared and the other picture is there.
Why does this happen ? It happens because the mind cannot be focused continuously for a long time. It has to change or it will go to sleep. These are the only two possibilities. If you go on concentrating on one thing, the mind will fall asleep. It cannot remain fixed; it is a living process. If you let it become bored it will go to sleep in order to escape from the stagnancy of your focus. Then it can continue living, in dreams.
This is meditation Maharishi Mahesh Yogi style. It's peaceful, refreshing, it can help your physical health and mental equilibrium, but it is not meditation. The same thing can be done by autohypnosis.
The Indian word 'mantra' means suggestion, nothing else. To take this as meditation is a serious mistake. It is not. And if you think of it as meditation, you will never search for authentic meditation.
That is the real harm that is done by such practices and propagandists of such practices. It is just drugging yourself psychologically.
So don't use any mantra to push words out of the way. Just become aware of the words and the focus of your mind will change automatically to the gaps.
If you identify with words, you will go on jumping from one word to another and you will miss the gap. Another word is something new to focus on. The mind goes on changing; the focus changes.
But if you are not identified with words, if you are just a witness - aloof, just watching the words as they go by in a procession - then the whole focus will change and you will become aware of the gap.
It is just as if you are on the street, watching people as they pass by. One person has passed and another has not yet come. There is a gap; the street is vacant. If you are watching, then you will know the gap.
And once you know the gap, you are in it; you have jumped into it. It is an abyss - so peace-giving, so consciousness-creating. It is meditation to be in the gap; it is transformation. Now language is not needed; you will drop it. It is a conscious dropping. You are conscious of the silence, the infinite silence. You are part of it, one with it. You are not conscious of the abyss as the other; you are conscious of the abyss as yourself. You know, but now you are the knowing. You observe the gap, but now the observer is the observed.
As far as words and thoughts are concerned, you are a witness, separate, and words are the other.
But when there are no words, you are the gap - yet still conscious that you are. Between you and the gap, between consciousness and existence, there is no barrier now. Only words are the barrier.
Now you are in an existential situation. This is meditation: to be one with existence, to be totally in it and still conscious. This is the contradiction, this is the paradox. Now you have known a situation in which you were conscious, and yet one with it.
Ordinarily, when we are conscious of anything, the thing becomes the other. If we are identified with something, then it is not the other, but then we are not conscious - as in anger, in sex. We become one only when we are unconscious.
Sex has so much appeal because in sex you become one for a moment. But in that moment, you are unconscious. You seek the unconsciousness because you seek the oneness. But the more you seek it, the more conscious you become. Then you will not feel the bliss of sex, because the bliss was coming from the unconsciousness.
You could become unconscious in a moment of passion. Your consciousness dropped. For a single moment you were in the abyss - but unconscious. But the more you seek it, the more it is lost. Finally a moment comes when you are in sex and the moment of unconsciousness no longer happens. The abyss is lost, the bliss is lost. Then the act becomes stupid. It is just a mechanical release; there is nothing spiritual about it.
We have known only unconscious oneness; we have never known conscious oneness. Meditation is conscious oneness. It is the other pole of sexuality. Sex is one pole, unconscious oneness; meditation is the other pole, conscious oneness. Sex is the lowest point of oneness and meditation is the peak, the highest peak of oneness. The difference is a difference of consciousness.
The Western mind is thinking about meditation now because the appeal of sex has been lost.
Whenever a society becomes nonsuppressive sexually, meditation will follow, because uninhibited sex will kill the charm and romance of sex; it will kill the spiritual side of it. Much sex is there, but you cannot continue to be unconscious in it.
A sexually suppressed society can remain sexual, but a nonsuppressive, uninhibited society cannot remain with sexuality forever. It will have to be transcended. So if a society is sexual, meditation will follow. To me, a sexually free society is the first step toward seeking, searching.But of course, because the search is there, it can be exploited. It is being exploited by the East.
Gurus can be supplied; they can be exported. And they are being exported. But only tricks can be learned through these gurus. Understanding comes through life, through living. It cannot be given, transferred.
you will have to pass through many frustrations. But only through failures, errors, frustrations, only through the encounter of real living, will you come to meditation. That is why I say it is a growth. Something can be understood, but understanding that comes through another can never be more than intellectual. That is why Krishnamurti demands the impossible. He says, "Do not understand me intellectually - but nothing except intellectual understanding can come from someone else. That is why Krishnamurti's effort has been absurd. What he is saying is authentic, but when he demands more than intellectual understanding from the listener, it is impossible. Nothing more can come from someone else, nothing more can be delivered. But intellectual understanding can be enough. If you can understand what I am saying intellectually, you can also understand what has not been said. You can also understand the gaps: what I am not saying, what I cannot say. The first understanding is bound to be intellectual, because the intellect is the door. It can never be spiritual. Spirituality is the inner shrine.
I can only communicate to you intellectually. If you can really understand it, then what has not been said can be felt. I cannot communicate without words, but when I am using words I am also using silences. You will have to be aware of both. If only words are being understood then it is a communication; but if you can be aware of the gaps also, then it is a communion.
One has to begin somewhere. Every beginning is bound to be a false beginning, but one has to begin. Through the false, through the groping, the door is found. One who thinks that he will begin only when the right beginning is there will never begin at all. Even a false step is a step in the right direction because it is a step, a beginning. You begin to grope in the dark and, through groping, the door is found.
That is why I said to be aware of the linguistic process - the process of words - and to seek an awareness of the gaps, the intervals. There will be moments when there will be no conscious effort on your part and you will become aware of the gaps. That is the encounter with the divine, the encounter with the existential. Whenever there is an encounter, do not escape from it. Be with it.
It will be fearful at first; it is bound to be. Whenever the unknown is encountered, fear is created because to us the unknown is death. So whenever there is a gap, you will feel death coming to you.
Then be dead! Just be in it, and die completely in the gap. And you will be resurrected. By dying your death in silence, life is resurrected. You are alive for the first time, really alive.
So to me, meditation is not a method but a process; meditation is not a technique but an understanding. It cannot be taught; it can only be indicated. You cannot be informed about it because no information is really information. It is from the outside, and meditation comes from your own inner depths.
So search, be a seeker, and do not be a disciple. Then you will not be a disciple of some guru, but a disciple of the total life. Then you will not just be learning words. Spiritual learning cannot come from words but from the gaps, the silences that are always surrounding you. They are there even in the crowd, in the market, in the bazaar. Seek the silences, seek the gaps within and without, and one day you will find that you are in meditation.
Meditation comes to you. It always comes; you cannot bring it. But one has to be in search of it, because only when you are in search will you be open to it, vulnerable to it. You are a host to it.
Meditation is a guest. You can invite it and wait for it. It comes to Buddha, it comes to Jesus, it comes to everybody who is ready, who is open and seeking.But do not learn it from somewhere; otherwise you will be tricked. The mind is always searching for something easier. This becomes the source for exploitation. Then there are gurus and gurudoms, and spiritual life is poisoned.The most dangerous person is the one who exploits someone's spiritual urge. If someone robs you of your wealth it is not so serious, if someone fails you it is not so serious, but if someone tricks you and kills, or even postpones, your urge toward meditation, toward the divine, toward ecstasy, then the sin is great and unforgivable.
But that is being done. So be aware of it, and don't ask anybody, What is meditation? How do I meditate ? Instead, ask what the hindrances are, what the obstacles are. Ask why we aren't always in meditation, where the growth has been stopped, where we have been crippled. And do not seek a guru because gurus are crippling. Anyone who gives you ready-made formulas is not a friend but an enemy.
Grope in the dark. Nothing else can be done. The very groping will become the understanding that will liberate you from darkness. Jesus said: "Truth is freedom. Understand this freedom. Truth is always through understanding. It is not something that you meet and encounter; it is something you grow into. So be in search of understanding, because the more understanding you become, the nearer you will be to truth. And in some unknown, expected, unpredictable moment, when understanding comes to a peak, you are in the abyss. You are no more, and meditation is.
When you are no more, you are in meditation. Meditation is not more of you; it is always beyond you. When you are in the abyss, meditation is there. Then the ego is not; then you are not. Then the being is. That is what religions mean by God: the ultimate being. It is the essence of all religions, all searches, but it is not to be found anywhere ready-made. So be aware of anyone who makes claims about it. Go on groping and don't be afraid of failure. Admit failures, but do not commit the same failures again.Once is all; that is enough. The person who goes on erring in the search for truth is always forgiven. It is a promise from the very depths of existence.
https://www.facebook.com/yogayatan1

Wednesday, 26 February 2014

उडती चिडिया को पहचाने

खूबसूरत क्या कह दिया उनको । वो हमको छोड़कर शीशे के हो गए ।
तराशा नहीं था तो पत्थर थे । तराश दिया तो खुदा हो गए ।
**********
महा शिवरात्रि ।
गंग भंग 2 बहन है । रहत सदा शिव संग ।
मुर्दा तारण गंग है । जिन्दा तारण भंग ।
सबेरे फिर छनेगी भंग ।
पहले पहरे जो कोई छाने । वाको लम्बी दीख ।
उडती चिडिया को पहिचाने । गिरा सड़क के बीच । 
सबेरे फिर छनेगी भंग ।
दूजे पहरे जो कोई छाने । वाको लंबो कान ।
तवा कडाही बेच के भैया । धर लोटे पे ध्यान ।
सबेरे फिर छनेगी भंग ।
***********
सर झुकाओगे तो । पत्थर देवता हो जायेगा ।
इतना मत चाहो उसे । वो बेवफा हो जायेगा ।
*********
मैं जानता हूँ कि दुनियां तुझे बदल देगी ।
मैं मानता हूँ कि ऐसा नही बजाहिर तू ।
हंसी ख़ुशी से बिछड़ जा । अगर बिछड़ना है ।
यह हर मुकाम पे । क्या सोचता है आखिर तू ।
उसे कहना किताबों में रखे सूखे हुए कुछ फूल ।
उसके लौट आने का यकीं अब तक दिलाते हैं ।
********
लोग कहते हैं पिये बैठा हूँ मैं । खुद को मदहोश किये बैठा हूँ मैं ।
जान बाकी है वो भी ले लीजिये । दिल तो पहले ही दिये बैठा हूँ मैं ।
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वक़्त ने हमें ना कोई मरहम दिया ।
जिसने भी पूछा हाल । एक नया जख्म दिया ।
ए शराबी तू पीता जा । तेरे पैमाने मे आज दरिया है ।
असर तेरे नशे का देखेंगे हम । तेरे पीने का क्या नज़रिया है ।
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कभी न कभी तो कोई टुकड़ा तेरे कदमोँ को छुयेगा ।
मैँ टूट के तेरी गली मेँ बिखरना चाहता हूँ ।
*********
आज सवेरे सवेरे अख़बार में । शोक समाचार के कालम में ।
अपनी फ़ोटो को देख हैरान था । आश्चर्य, क्या मैं मर गया हूँ ?
या किसी मसखरे का शिकार हो गया हूँ ?
रुको, थोड़ा सोचता हूँ । 
पिछली रात ही तो, मेरे सीने में भारी दर्द उठा था ।
और मैं पसीने से तरबतर हो गया था ।
फिर मुझे कुछ याद नही । मैं शायद गहरी नींद में सो गया था ।
और अब सुबह के 8 बज चुके हैं । बिना काफ़ी मेरी आँख नहीं खुलती ।
आज आफ़िस में फिर लेट होने वाला हूँ ।
चिढचिढे बास का फिर भाषण सुनने वाला हूँ ।
पर ये क्या ? क्यों मेरे घर मे भीड़ हो रही है ।
सारी भीड़ क्यूं रो रही है ? यहाँ बरामदे मे क्यूं हाहाकार मचा पड़ा है ।
मेरा शरीर सफ़ेद कपड़ों में लिपटा, ज़मीन पर क्यूं पड़ा है ?
मैं यहाँ हूँ - मैं चिल्लाता हूँ । कोई इधर देखो, सुनो, मैं यहाँ हूँ ।
न कोई ध्यान देता है । न कोई सुन पाता है ।
हर कोई कातर नज़र से बस मेरे शरीर को निहारता है ।
मैं अपने कमरे में वापस आ जाता हूँ ।
बाहर कोहराम मचा है । ये क्या मेरी बीबी रो रही है ।
बहुत दुखी और उजडी सी दिख रही है ।
मेरे बेटे को शायद नही कुछ एहसास है ।
वह केवल इसलिये रो रहा है कि, उसकी माँ बदहवास है ।
लगता है मैं मर गया हूँ ?
मैं कैसे मर सकता हूँ ? अपने बेटे से कहे बगैर ।
कि मैं उसे सच बहुत प्यार करता हूँ ।
मैं उसका बेहद ख़्याल रखता हूँ ।
मैं कैसे मर सकता हूँ ? अपनी बीबी से कहे बग़ैर ।
कि वह दूनिया की सबसे ख़ूबसूरत । और ख़्याल रखने वाली बीबी है ।
कैसे मर सकता हूँ ? माँ बाप से कहे बग़ैर । कि वे है तो ही मैं हूँ ।
कैसे मर सकता हूँ ? अपने दोस्तों से कहे बग़ैर कि ।
वे मेरे जीवन के सारे ग़लत फ़ैसलों पर भी मेरे साथ थे ।
पर मैं ही अधिकांशत: मैं वहाँ स्वयं नहीं पहुँच पाया था ।
जब उन्हें मेरी सबसे ज़्यादा ज़रूरत का वास्ता था ।
और वे ज़्यादा ज़रूरतमन्द थे ।
मैं 1 बन्दे को देख रहा हूँ ।
जो कोने में खड़ा आँसू छिपाने की कोशिश कर रहा है ।
कभी हम अति प्रिय अभिन्न मित्र थे ।
छोटी सी ग़लतफ़हमी ने हमें जुदा कर दिया ।
उन दिनों हम ईगो की पराकाष्ठा में थे ।
हमने कभी एक दूसरे को माफ़ नहीं किया ।
मैं उसके पास जाता हूँ । अपने दोंनों हाथों को आगे बढ़ाता हूँ ।
दोस्त ! मैं अपनी ग़लतियों के लिये क्षमा माँगता हूँ ।
हम आज भी अच्छे दोस्त हैं । मुझे माफ कर दो ।
ये क्या ? उसके तरफ़ से कोई रिसपांस ही नहीं मिलता ।
क्या वह आज भी उसी ईगो में है ?
मैं जबकि माफ़ी माँग रहा हूँ । फिर भी, उसका मिज़ाज नहीं मिलता ।
पर वह निरन्तर रोता जा रहा है ।
पर 1 सेकेण्ड । शायद वह मुझे और मेरे हाथ को नहीं देख पा रहा है । तो क्या मैं सच में मर गया हूँ ?
ज़मीन पर लेटे मैं अपने शरीर के पास बैठ जाता हूँ ।
क्या करूँ कैसे करुँ किसे पुकारूँ ? कुछ समझ नहीं पाता हूँ ?
दिल करता है कि मैं फूट फूट के रोऊँ ।
एकदम से हुई इस अनहोनी पर । कहाँ अपना सिर धुनूं और फोड़ूँ ।
हे भगवान ! मुझे कुछ समय और दो ।
मैं अपने बेटे बीबी माँ बाप दोस्तों को ।
बताना चाहता हू कि - मैं उनसे कितना प्यार करता हूँ ।
मेरी बीबी कमरे में आती है ।
तुम बहुत सुन्दर हो - मैं प्यार से बार बार दोहराता हूँ ।
वह मेरे शब्दों को नहीं सुन पाती है ।
सच ये है कि जीवन मे उसने ये शब्द ।
मेरे मुँह से कभी सुनें ही नहीं । हाँ मैंने कभी कहा भी तो नहीं ।
हे भगवान ! मुझे थोड़े दिन और दे । केवल 1 बार । क्योंकि ।
मैं अपने बेटे को अपने सीने से लगाना चाहता हूँ ।
अपनी माँ को मुस्कुराते देखना चाहता हूँ ।
अपने पिता को अपने ऊपर गर्व करवाना चाहता हूँ ।
केवल 1 बार बस 1 बार अपने दोस्तों को सारी कहना चाहता हूँ ।
मैं तो उन्हें कभी समय नहीं दे पाया । पर आज भी वे मेरे साथ हैं ।
इसका धन्यवाद देना चाहता हूँ ।
मैंने ऊपर देखा । मैं चिल्लाया - भगवान ! केवल 1 मौक़ा और ।
तुम सपने में चिल्ला रहे हो । उठो, क्या तुमने कोई बुरा सपना देखा ?
मेरी बीबी ने मुझे थपथपाया । मेरा बेटा मेरी बग़ल में था ।
मेरी बीबी वही थी । वह मुझे सुन सकती थी । 
मैंने लम्बी साँस ली । उसे गले लगाया । और कहा -
तुम मेरा ख़याल रखने वाली । दुनिया की सबसे हसीन बीबी हो ।
मैं सच तुमसे बहुत प्यार करता हूँ ।
उसकी आँखों की नमी और चेहरे पे आई प्यारी मुस्कान ।
इस मोहक मुस्कान को मैं ही समझ सकता था ।
भगवान ! इस दूसरे मौक़े के लिये धन्यवाद । मैंने मन ही मन दोहराया । कापी पेस्ट ।
Friends,,still it's not late..forget your egos,past.and express your love to others, be friendly keep smiling for ever, because we don't get second chance, don't regret after the things happen, always show your love to every one  ( thanks to each one of you,,for every thing )

Tuesday, 25 February 2014

मृत्यु पर विजय पाने वाला महा मृत्युंजय मंत्र

महा मृत्युञ्जय मंत्र यजुर्वेद के रूद्र अध्याय स्थित 1 मंत्र है । इसमें शिव की स्तुति की गयी है । शिव को मृत्यु को जीतने वाला माना जाता है । मंत्र इस प्रकार है ।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम । 
उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ।
शिव को मृत्युंजय के रूप में समर्पित महान मंत्र ऋग्वेद में पाया जाता है । इसे मृत्यु पर विजय पाने वाला महा मृत्युंजय मंत्र कहा जाता है । इस मंत्र के कई नाम और रूप हैं । इसे शिव के उग्र पहलू की ओर संकेत करते हुए रुद्र मंत्र कहा जाता है । शिव के 3 आँखों की ओर इशारा करते हुए त्रयंबकम मंत्र, और इसे कभी कभी मृत संजीवनी मंत्र के रूप में जाना जाता है । क्योंकि यह कठोर तपस्या पूरी करने के बाद पुरातन ऋषि शुक्र को प्रदान की गई " जीवन बहाल " करने वाली विद्या का 1 घटक है । ऋषि मुनियों ने महा मृत्युंजय मंत्र को वेद का ह्रदय कहा है । चिंतन और ध्यान के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अनेक मंत्रों में गायत्री मंत्र के साथ इस मंत्र का सर्वोच्च स्थान है ।
महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरशः अर्थ ।
त्रयंबकम = त्रि - नेत्रों वाला ( कर्मकारक )
यजामहे = हम पूजते हैं । सम्मान करते हैं । हमारे श्रद्देय ।
सुगंधिम = मीठी महक वाला । सुगंधित ( कर्मकारक )
पुष्टि = 1 सुपोषित स्थिति । फलने फूलने वाली । समृद्ध जीवन की परिपूर्णता ।

वर्धनम = वह जो पोषण करता है । शक्ति देता है । ( स्वास्थ्य, धन, सुख में ) वृद्धिकारक । जो हर्षित करता है । आनन्दित करता है । और स्वास्थ्य प्रदान करता है । 1 अच्छा माली ।
उर्वारुकम = ककड़ी ( कर्मकारक )
इव = जैसे । इस तरह ।
बंधना = तना ( लौकी का ) ( " तने से " पंचम विभक्ति - वास्तव में समाप्ति -द से अधिक लंबी है । जो संधि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती है )
मृत्युर = मृत्यु से ।
मुक्षिया = हमें स्वतंत्र करें । मुक्ति दें ।
मा = न
अमृतात = अमरता । मोक्ष ।
Acharya Anupam Jolly
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आत्मा की खोज में तत्पर मनुष्य अनंत आत्मा को जान ही लेता है । और जब वह आत्मा को जान लेता है । तो परमात्मा को भी जान लेता है । ईश्वर, परमात्मा, खुदा और आत्मा सब ऊर्जा के भिन्न भिन्न नाम रूप हैं । इन नाम को संसार के मनुष्य जानते, मानते रहते हैं । जबकि ऊर्जा को मूल रूप से देखें । तो जानेगे कि - ऊर्जा का कोई नाम नहीं होता । नाद ब्रम्ह ध्यान योग धाम आश्रम इन्दौर म.प्र.
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विषयों में भटका मन मोरा । कबहु न अघानो ।
मैं मैं करता फिरे रे संतो । मन संसार में भरमायो ।

चंचल मन मेरा चारो जहाँ में फिरे । जब तक पांचों थिर न होवा ।
इन सब मिल मन मेरा ले भागे । दिन रात दुःख भोगा ।
जो बोया है सो काटेगा । इसमें कोई हेर न फेर ।
सब छोड़ हरी चरण में आजा । सब मिटे करम धरम का फेर ।
जो रंग राम नाम संग लागा । और रंग न सुहावा ।
जो हरी नाम रंग लागा । सब छुटे तब सब कुछ पावा । संत रैदास
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लिखा है सबका नसीब उस खुदा ने । हम सब उसकी पनाह में हैं ।
अब जो हो - सो हो । हम सब उसकी निगाह में हैं ।
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ओम हैं होमें नहीं इक शब्द ये ।
ओंकार । रा-रनकार । सो-हम । 
कहो चाहे - अनल हक़ । अनल हक़ । त्तत्वमसि । 
श्वेत केतु मीरा संग चैतन्य देखो । 
वो अब लगे हैं रोने ओम है होमें ।
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खुद ही बने अमीर तू खुद ही रहे गरीब ।
ईश्वर अपने हाथ से, लिखता नही नसीब ।
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वह ऊर्जा भी नहीं । चेतन भी नहीं । बल्कि जो है । सो - है । परम । शाश्वत हाँ ये कहा जा सकता है । प्रथम चेतन फ़िर ऊर्जा रूप भी वही है । वही है सबका - साहेब ।
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Nobody is superior, nobody is inferior, but nobody is equal either. People are simply unique, incomparable.You are you, I am I. I have to contribute my potential to life; you have to contribute your potential to life. I have to discover my own being; you have to discover your own being. OSHO
*************
Husband asks - Do you know the meaning of WIFE ?
It means - Without Information Fighting  Everytime!
WIFE satys No - it means - With Idiot for Ever
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मकान मालिक - 500  रुपए किराया होगा ।
किरायेदार - ठीक है । लेकिन आपके मकान में तो चूहे नाच रहे हैं ।
मकान मालिक - तो क्या 500  रुपए में मुन्नी और शीला नाचेगी ?

मन के आगे इन्द्रियाँ कार्य करती हैं

देखा ना बीर हनुमान जैसा ।
तीरथ ना देखा प्रयाग जैसा । नाग नहीं कोई शेषनाग जैसा ।
चिन्ह नहीं कोई सुहाग जैसा । तेज नहीं कोई भी आग जैसा । 
जल नहीं कोई गंगाजल जैसा । फूल नहीं कोई कमल जैसा ।
कङुआ ना कोई करेले जैसा । आज नहीं दिन देखा कल जैसा ।
जान लिया मान लिया । सबको पहिचान लिया ।
चन्दा भी देखा और तारे भी देखे । देखा बड़ा आसमान ऐसा ।
माली भी देखा सुमाली भी देखा । पर देखा ना बीर हनुमान जैसा ।
पूरब से सूरज निकलता । नभ लालीमा से लज्जाये ।
लाल जोड़े में जैसे दुल्हनिया । घूंघट में शरमाए ।
अवतारी नहीं कोई राम जैसा । पित्र भक्त नहीं परशुराम जैसा ।
छलिया नहीं घनश्याम जैसा । धाम नहीं विष्णु के धाम जैसा ।
जान लिया मान लिया । सबको पहचान लिया ।
रावण भी देखा अहिरावण भी देखा । पर दानी करण ना महान जैसा ।
धर्मी भी देखे अधर्मी भी देखे । पर देखा न वीर हनुमान जैसा ।
चक्र सुदर्शन को दबाकर । मान तरुण का घटाया ।
युद्ध किया शंकर से भारी । राम से राड़ मचाया ।
व्रत नहीं कोई निराहार जैसा । प्यार नहीं माता के प्यार जैसा ।
शस्त्र नहीं कोई तलवार जैसा । पुत्र नहीं श्रवण कुमार जैसा ।
जान लिया मान लिया । सबको पहचान लिया ।
पण्डे भी देखे इनके झंडे भी देखे । झंडो पे देखा निशान ऐसा ।
अपने भी देखे पराये भी देखे । पर देखा न बीर हनुमान जैसा ।
है ग्यारवे रूद्र बजरंग । जब जन्म पृथ्वी पे पाया ।
बाली अवस्था में रवि को । फल समझकर खाया ।
नारा नहीं सत्यमेव जैसा । देव नहीं कोई महादेव जैसा । 
धर्म नहीं कोई कृष्ण धर्म जैसा । कर्म नहीं कोई सत्कर्म जैसा ।
जान लिया मान लिया । सबको पहचान लिया ।
स्वर भी देखे स्वर वाले भी देखे । पर स्वर ना कोयल की तान जैसा ।
अच्छे भी देखे मवाली भी देखे । देखा न बीर हनुमान जैसा ।
पर देखा ना बीर हनुमान जैसा ।
************
है भाव कीमती शब्दों से । शब्दों में नहीं उलझ जाना ।
है ब्रह्म कीमती माया से । माया में नहीं उलझ जाना ।
है आग धुएं से मूल्यवान । शब्दों से व्यक्ति है महान ।

Truth, sincerity, honesty, totality, compassion, service, meditation, these should be the real concerns of morality - because these are things which transform your life, these are things which bring you closer to God.Osho
ALL ARE GODS 
There is one truth . That truth is - ONE
There is one universal truth . That truth is - UNIVERSAL
There is one truth . That  truth is - OUR OWN SELF
There is one truth . That  truth is - NOW, HERE
There is one truth . That - EVERYTHING IS FOREVER
There is one great truth . That  truth is very - GREAT
There is another great truth .That - EVERYTHING IS MEANINGFUL
Then, there is the greatest truth . That - ALL BEING ARE GODS.

मन के विचरने का नाम अविद्या है । जब मन का आत्मा की ओर विचरना होता है । तब अविद्या नष्ट हो जाती है । जैसे राजा के आगे मन्त्री और सिपाही कार्य करते हैं । वैसे ही मन के आगे इन्द्रियाँ कार्य करती हैं । ! बाह्य के विषय पदार्थों की भावना छोड़कर तुम भीतर आत्मा की भावना करो । तब आत्मपद को प्राप्त होगे । जिन पुरुषों ने अन्तःकरण में आत्मा की भावना का यत्न किया है । वे शान्ति को प्राप्त हुए हैं । जो पदार्थ आदि में नहीं होता । वह अन्त में भी नहीं रहता । इससे जो कुछ लगता हैं । वह सब ब्रह्म सत्ता है । उससे कुछ भिन्न नही है । वह कल्पना मात्र है । हमारा निर्विकार आदि अन्त से रहित ब्रह्म तत्त्व है । हम क्यों शोक करते हैं ? अपना पुरुषार्थ करके संसार की भोग वासना को मूल से उखाड़ो । और आत्म पद का अभ्यास करो । तो दृश्य भ्रम मिट जावे ।
There is no future if you don't create it! And whatsoever is going to be tomorrow is going to be your creation. And it has to be done today, now - because out of today, today's womb, tomorrow will be born. Take the responsibility totally on yourselves - that's my message to you. This is my experience: the day I took my whole responsibility on myself, I found the doors of freedom opening to me. They go together.
Everybody wants freedom.Nobody wants responsibility.
You will never have freedom, you will remain a slave. Remember, remaining a slave is also your responsibility. You have chosen it, it has not been forced upon you- Osho

http://www.youtube.com/watch?v=rbdt4aR9nig
http://www.youtube.com/watch?v=kVplAxu79N8

Monday, 24 February 2014

अगर आपको कुत्ता काट ले

कम्प्यूटर रोमांस
फेसबुक सा फेस है तेरा । गूगल सी हैं आँखें ।
एंटर करके सर्च करूँ । तो बस मुझको ही ताकें ।
रेडिफ जैसे लाल गाल । तेरे हाटमेल से होंठ ।
बल खा के चलती है जब तू । लगे जिगर पे चोट ।
सुराहीदार गर्दन तेरी । लगती ज्यों जी-मेल ।
अपने दिल के इंटरनेट पर । पढ़ मेरा ई-मेल ।
मैंने अपने प्यार का । फारम कर दिया है अपलोड ।
लव का माउस क्लिक कर । जानम कर इसे डाउनलोड ।
हुआ मैं तेरे प्यार में जोगी । तू बन जा मेरी जोगिन ।
अपने दिल की वेबसाइट पर । कर ले मुझको लोग इन ।
तेरे दिल की हार्डडिस्क में । और कोई न आये ।
करे कोई कोशिश भी तो । पासवर्ड इनवैलिड बतलाये ।
गली मोहल्ले के वायरस । जो तुझ पर डोरे डालें ।
एंटी वायरस सा मैं बनकर । नाकाम कर दूँ सब चालें ।
अपने मन की मेमोरी में । सेव तुझे रखूँगा ।
तेरी यादों की पैन ड्राइव को । दिल के पास रखूँगा ।
तेरे रूप के मॉनिटर को । बुझने कभी न दूँगा ।
बन के तेरा यू पी एस मैं । निर्बाधित पावर दूँगा ।
भेज रहा हूँ तुम्हें निमंत्रण । फेसबुक पर आने का ।
तोतों को मिलता है जहाँ । मौका चोंच लड़ाने का ।
फेसबुक की आनलाइन पर । बत्ती हरी जलाएंगे ।
फेसबुक जो हुआ फेल । तो याहू पर पींग बढ़ायेंगे ।
एक दूजे के दिल का डाटा । आपस में शेयर करायेंगे ।
फिर हम दोनों दूर के पंछी । एक डाल के हो जायेंगे ।
की बोर्ड और उँगलियों जैसा । होगा हमारा प्यार ।
बिन तेरे मैं बिना मेरे तू । होगी बस बेकार ।
फिर हम आजाद पंछी शादी के । सी पी यू में बन्ध जायेंगे ।
इस दुनिया से दूर । डिजिटल की धरती पे घर बनाएँगे ।
फिर हम दोनों प्यासे प्रेमी । नजदीक से नजदीकतर आते जायेंगे ।
जुड़े हुए थे अब तक सॉफ्टवेयर से । अब हार्डवेयर से जुड़ जायेंगे ।
तेरे तन के मदरबोर्ड पर । जब हम दोनों के बिट टकराएँगे ।
बिट से बाइटस, फिर मेगा बाइटस । फिर गीगा बाइटस बन जायेंगे ।
ऐसी आधुनिक तकनीक युक्त बच्चे । जब इस धरती पर आयेंगे ।
सच कहता हूँ आते ही । इस दुनिया में धूम मचाएंगे ।
डाक्टर और नर्स सभी । दांतों तले उंगली दबाएंगे ।
होगे हमारे 3g बच्चे । और याहू याहू चिल्लायेंगे ।
*************
आज का ज्ञान । अच्छा लगे । तो औरों को भी लाभान्वित करें ।
1 अगर आपको कुत्ता काट ले । तो आप उसे काट ले । हिसाब बराबर ।
2 दूध फट जाए । तो सफ़ेद धागे से सिल लें । किसी को पता नहीं चलेगा ।
3 अगर आपके बाल गिरते हों । तो मुंडन करवा लें । फिर नहीं गिरेंगे ।
4 अगर रंग गोरा करना हो । तो मछली खाकर दूध पी लें । सफ़ेद हो जाओगे ।
5 अगर गले में दर्द हो । तो किसी से गला दबवा लें । फिर कभी दर्द नहीं होगा ।
6 अगर आपके पांवों की एड़ियां फट जाएं । और कोई क्रीम असर न करे । तो आप सुई धागा लेकर सिल लें ।
7 अगर आपके हाथ में बहुत दर्द है । तो 1 मज़बूत हथौड़ी लें । और ज़ोर से पांव पे मारें । यक़ीन करें । आप हाथ का दर्द भूल जाएंगे ।
8 अगर आपके दांत में कीड़ा लग जाए । तो 1-2 हफ्ते तक कुछ न खाएं । कीड़ा अंदर ही भूखा मर जाएगा ।
9 अगर आपको रात में नींद नहीं आती । तो दिन में सो जाएं ।
नुस्खों से फायदा हो । तो दुआओं में याद रखना । वर्ना खुश तो मैं वैसे भी हूं । कापी पेस्ट ।
************
नोट असली है । या नकली ? जांचने के लिए ये करें । नोट को 4 बार फोल्ड करें । नोट को मजबूत जगह पर रखें । हथोडी या पत्थर से नोट पर 5 चोट मजबूती से मारें । नोट को सीधा करें । गाँधी के चश्मे को ध्यान से देखें । अगर चश्मा टूट गया हो । तो नोट नकली है । कापी पेस्ट ।

Sunday, 23 February 2014

symbol of fortune and well-being

HE MYSTERIOUS ADITI or LAJJA GAURI
There is an iconographically striking form of the Devi whose images can be found distributed almost evenly throughout India. This mysterious, lotus-headed Goddess - who is almost always portrayed with Her legs open and raised in a manner suggesting either birthing, self-display, or sexual receptivity - is most frequently referred to today as Lajja Gauri, though She is also known as Adya Shakti, Matangi, Renuka, and many other names.
- The abundance of names may be due to regional replacements of a lost original name,” suggests Carol Radcliffe Bolon, assistant curator of South and Southeast Asian Art at the Sackler and Freer Galleries in Washington, D.C. I have asked a few experienced upasakas whether they knew of any mantric or yantric representations of Lajja Gauri - they did not - You see ! one of them told me - Lajja is Aditi, the primordial mother. She is unimaginably ancient.
Monier-Williams’ Sanskrit- English Dictionary assigns to the name Aditi the concepts of “boundlessness, immensity, inexhaustible abundance, unimpaired condition, perfection, creative power”; as a proper noun, it defines Her as “one of the most ancient of the Indian goddesses (  her name implying] ‘Infinity’ or the ‘Eternal and Infinite Expanse’ )  This same Aditi is referenced in the Rig Veda in terms that perfectly express Lajja Gauri’s iconography:
devAnAm yuge prathame.asataH sadajAyata
tadAśA anvajAyanta taduttAnapadas pari 
bhUrjajNa uttAnapado bhuva AśA ajAyanta 
aditerdakSHoajAyata dakSHAd vaditiH pari 
In the first age of the gods, existence was born from nonexistence. The quarters of the sky were born from Her who crouched with legs spread. The Earth was born from Her who crouched with legs spread, And from the Earth the quarters of the sky were born. (Rg Veda, X.72.3-4)

The scholar Wendy Doniger O’Flaherty identifies Aditi as “the female principle of creation or infinity,” whose designation uttAnapad refers to “a position associated both with yoga and with a woman giving birth, as the Mother Goddess is often depicted in early sculpture: literally, with feet stretched forward, more particularly with knees drawn up and legs spread wide.
Bhattacharyya, in his “History of the Sakta Religion”, refers to “a seal unearthed at Harappa [a Saraswati Culture site], showing a nude female figure, head downwards and legs stretched upwards, with a plant issuing out of Her womb, which may be a proto-Aditi/Lajja Gauri figure. Similar images, some sculpted as recently as the 19th century, can still be found in Rajasthan, part of the region where the Saraswati Civilization once flourished. 
In discussing the Harappan seal, Bhattacharyya posits that “in the pre-Vedic religion of India, a great Mother Goddess, the personification of all the reproductive energies of nature, was worshiped.  The Harappan Magna Mater [ Great Mother ] was probably reflected in the [ later, Vedic ] conception of Aditi, the mother of the gods, thought to be a goddess of yore even in the Rig Veda itself. And here is where we find the Vedic rishis’ understanding of this Goddess, who was apparently as old as human consciousness itself: 
aditirdyaur aditirantarikSHam aditirmAtA sa pitA sa putraH .
viśve devA aditiH paNca janA aditirjAtam aditirjanitvam .
Aditi is the sky - Aditi is the air - Aditi is all the gods - Aditi is the Mother, the Father, and Son - Aditi is whatever shall be born.
(Rg Veda, I.89.10)
Aditi, Bhattacharyya concludes - was the most ancient Mother of the Gods, whose original features [had become] obscure even in the Vedic age.” Despite Her extreme antiquity, Lajja Gauri is still actively worshiped even today as a “fertility goddess” in some remote, rural locales. But we mustn’t let that obscure the totality of Her original (and eternal) significance. 
During the 6th to 12th centuries CE - a period in which “ Tantric kingdoms ” flourished across India (as detailed by David Gordon White in his 2003 study - The Kiss of the Yogini  ) the cult of Aditi/Lajja Gauri grew prodigiously. Her images proliferated, especially in central India - both in small terra cotta figures for use in home shrines, and in large ( even lifesize ) stone sculptures for richly endowed temples.
By the 13th century, however, She had begun a long slide into obscurity. Scholars partially attribute the decline to India’s Muslim and later British Christian rulers and their intolerance toward portrayals of human (and particularly female) nudity and sexuality. Another possible factor was the continued evolution of the Tantric systems, which developed ever more subtle and abstract ways of depicting the primal, creative force of the Divine Feminine.
LAJJA GAURI AND HER SYMBOLISM
Several myths exist concerning Lajja Gauri, but most scholars consider them to be inauthentic, late attempts to replace the Goddess’s original, forgotten lore. Many of these tales involve a dominant Lord Shiva testing his wife’s modesty by publicly disrobing Her, whereupon Her head either falls off or sinks into Her body from shame, thereby proving Her purity – and providing a more Shiva-centric explanation of how such a boldly self-displaying Goddess got a name like Lajja Gauri; literally, “Modest Parvati” or “ Ashamed Parvati ” ( or more interestingly - Innocent Parvati ) More useful clues to Lajja’s actual meaning may be found in the oral folktales that still circulate about Her in rural India.
For example, as noted above, She is sometimes referred to as Matangi, the “ outcaste ” form of Parvati, who is known for ignoring and flaunting society’s rules, hierarchies and conventions. Elsewhere, She is called Renuka – another outcaste woman, beheaded by a high-caste man. Rather than dying, Renuka grew a lotus in place of Her head and became a Goddess. These stories -both involving the deification of an outcaste woman - seem, among many other implications of course, to suggest the irrepressibility of the Feminine Principle. And lest we underestimate the primal persistence and importance of this archetype to the human psyche, recall that the oldest known sculpture made by a human being -  the so-called Willendorf Goddess or “ Venus ” created some 30,000 to 40,000 years ago - also depicts a nude female with sexual organs emphasized, and a flower for a head.
Whatever Lajja Gauri’s ultimate origins, She is clearly a very auspicious Goddess. Everything about Her suggests life, creativity, and abundance. Her images are almost always associated with springs, waterfalls and other sources of running water - vivid symbols of life-giving sustenance. Her belly usually protrudes, suggesting fullness and/or pregnancy; in earlier renderings, Her torso was often portrayed as an actual pUrna kumbha (brimming pot), another ancient symbol of wealth and abundance. Lajja Gauri’s head is usually a lotus flower, an extremely powerful, elemental symbol of both material and spiritual well-being. ( Interestingly, today’s images of Lakshmi - patroness of wealth and material fulfillment - are also rife with water, pots and lotuses. )
The often vine-like portrayal of Lajja Gauri’s limbs suggests a further creative association - the life-giving sap of the plant world; She is vegetative as well as human abundance. Her images are virtually always prone, laying at or below floor level in Her characteristic uttAnapad posture, as though rising from the Earth itself, a manifestation of the primordial Yoni from which all life springs. Indeed, Her birthing/sexual posture unambiguously denotes fertility and reproductive power. This is Devi as the Creator, as Mother of the Universe, as the Life-Giving Force of Nature. The late scholar David Kinsley, author of several respected studies of the Goddess in India, noted:
“Some very ancient examples have been discovered in India of nude goddesses squatting or with their thighs spread . The arresting iconographic feature of these images is their sexual organs, which are openly displayed. These figures often have their arms raised above their bodies and are headless or faceless. Most likely, the headlessness of the figures [ is intended to ] focus attention on their physiology, [ placing the ] emphasis on sexual vigor, life, and nourishment [ rather than an individual persona ].
Joshi has even drawn some tentative lines of association with the later Tantric Mahavidya ( Wisdom Goddess ) known as Chinnamasta, the self-decapitating Goddess. Bolon, for her part, judges that the artistically finest Lajja Gauri sculpture still in existence is a life-sized c. 650-700 CE murthi, originally worshiped at the Naganatha Temple in Naganathakolla, Bijapur District, Karnataka. That sculpture ( upon which this painting was based  ) is now housed at the Badami Museum. Of Her image, Bolon writes
- The modeling of the female figure is supple and sensitive. The suggestion of soft, sagging stomach flesh, like the slackening of a woman’s abdomen after childbirth, is masterly. The breasts are firm with folds of flesh beneath them. The arms and shoulders are delicate and feminine. The legs, in uttanapad, are spread more naturally than in other [ Lajja Gauri ] images; with the knees up, the feet are flexed with soles up, and the toes are tensed. The nude body is ornamented with necklace, channavira [ body-encompassing jewelry that hangs from the neck, crosses between the breasts, passes around the waist and up the back], girdle, bracelets, and armlets that are like a vine tendril wrapping around the arms and actually ending in a leaf. Tassels of the anklets also seem plantlike. There is a cloth woven through the thighs.” 
In place of a head, a “half-open lotus flower, sits like a ruff on [ Her ] shoulders,  turned three-quarters toward the viewer. The goddess holds, to either side of Her lotus head, a half-open, smaller lotus flower, the stalk of which winds around Her hand. The fingers themselves have a tentril-like quality. The fingers of the right hand seem to form a svastika, symbol of fortune and well-being. No doubt, the suggestion of Her relation to vegetation is intended. ... This image is a masterpiece of fluid modeling and conscious symbol-making.
As with the first artistic expressions of human consciousness in the Upper Paleolithic era, the primordial antiquity of the image does nothing to diminish the subtle elegance and refinement of Her beauty - both in the conception and in the physical representation. For those of us on the path of Srividya, She is a reminder of both the ultimate simplicity and the overwhelming antiquity of the teachings that we follow.
https://www.facebook.com/SriLalitaTripuraSundari/photos/a.233189086778551.47847.233162373447889/534846589946131/?type=1&theater

feeling is pleasant

दिमाग से सम्बंन्धित रोचक तथ्य - हमारा दिमाग विचारों की 1 विचित्र फैकट्री है । इस फैकट्री के द्वारा ही हम बंदर से मनुष्य बन पाए । गुफाओं से पक्के घरों सें रहने लायक हुए । और कई वैज्ञानिक खोजे भी की । आईए इस विचित्र फैकट्री के बारे में कुछ रोचक तथ्य जानते हैं । जब आप जाग रहे होते हैं । तब आपका दिमाग 10 से 23 वाट तक की बिजली उर्जा छोड़ता है । जो कि 1 बिजली के बल्ब को भी चला सकती है । मनुष्य के दिमाग में दर्द की कोई भी नस नहीं होती । इसलिए वह कोई दर्द नहीं महसूस नहीं करता । हमारा दिमाग 75% से ज्यादा पानी से बना होता है । आपका दिमाग 5 साल की उम्र तक 95% बढ़ता है । और 18 तक पहुँचते पहुँचते 100% विकसित हो जाता है । ओर उसके बाद बढ़ना रूक जाता है । 1 गर्भवती महिला के दिमाग के न्यूरांज की गिनती 2  50   000 न्यूरान प्रति मिनट के हिसाब से बढ़ती है । आप अपने दिमाग में न्यूरांज की गिनती दिमागी क्रियाएं करके बढ़ा सकते हैं । क्योंकि शरीर के जिस भी भाग की हम ज्यादा उपयोग करते है । वह और विकसित होता जाता हैं । पढ़ने और बोलने से 1 बच्चो का दिमागी विकास ज्यादा होता है । जब आप 1 आदमी का चेहरा गौर से देखते हैं । तो आप अपने दिमाग का दायां भाग उपयोग करते है । हमारे शरीर के भिन्न हिस्सों से सूचना भिन्न रफ़्तार से और भिन्न न्यूरान के द्वारा हमारे दिमाग तक पहुँचती है । सारे न्यूरान 1 जैसे नहीं होते । कई ऐसे न्यूरान भी होते हैं । जो सूचना को 5 मीटर प्रति सैकेंड की रफ़्तार से दिमाग तक पहुँचाते हैं । और कई ऐसे भी होते हैं । जो सूचना को 120 मीटर प्रति सैकेंड की रफ़्तार से दिमाग तक पहुँचाते हैं । आपके दिमाग की Right side आपकी body के left side को जबकि दिमाग की left side आपकी body के Right side को कंट्रोल करती है । जो बच्चे 5 साल का होने से पहले 2 भाषाएं सीखते हैं । उनके दिमाग की संरचना थोड़ी सी बदल जाती है । आपके दिमाग में हर दिन औसतन 60,000 विचार आते हैं ।
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Take a Deep Breath - Then Rolfing will be good. Through Rolfing breathing will become natural, and then you can continue it.
Breathing is one of the things to be looked after because it is one of the most important things.  If you are not breathing fully, you cannot live fully. Then almost everywhere you will be withholding something, even in love. In talking even, you will be withholding. You will not communicate completely; something will always remain incomplete.
Once breathing is perfect everything else falls into line. Breathing is life. But people ignore it, they don’t worry about it at all, they don’t pay it any attention. And every change that is going to happen is going to happen through the change in your breathing.
If for many years you have been breathing wrongly, shallow breathing, then your musculature becomes fixed. Then it is not just a question of your will It is as if somebody has not moved for years: legs have gone dead, the muscles have shrunk, blood flows no more. Suddenly the person decides one day to go for a long walk – it is beautiful, a sunset. But he cannot move; just by thinking it is not going to happen. Now much effort will be needed to bring those dead legs to life again.
The breathing passage has a certain musculature around it, and if you have been breathing wrongly - and almost everybody is - then the musculature has become fixed. Now it will take many years to change it by your own effort, and it will be an unnecessary waste of time. Through deep massage, particularly through Rolfing, those muscles relax and then you can start again. But after Rolfing, once you start breathing well don’t fall into the old habit again.
Everybody breathes wrongly because the whole society is based on very wrong conditions, notions, attitudes. For example, a small child is weeping and the mother says not to cry. What will the child do ? - because crying is coming, and the mother says not to cry. He will start holding his breath because that is the only way to stop it. If you hold your breath everything stops- crying, tears, everything. Then by and by that becomes a fixed thing - don’t be angry, don’t cry, don’t do this, don’t do that.
The child learns that if he breathes shallowly then he remains in control. If he breathes perfectly and totally as every child is born breathing, then he becomes wild. So he cripples himself.
Every child, boy or girl, starts playing with the genital organs because the feeling is pleasant. The child is completely unaware of the social taboos and nonsense, but if the mother or father or somebody sees you playing with your genitals they tell you to stop it immediately. And such condemnation is in their eyes you become shocked, and you become afraid of breathing deeply, because if you breathe deeply it massages your genital organs from within. That becomes troublesome, so you don’t breathe deeply; just shallow breathing so you are cut off from the genital organs.
All societies that are sex-repressive are bound to be shallow-breathing societies. Only primitive people who don’t have any repressive attitude about sex breathe perfectly. Their breathing is beautiful, it is complete and whole. They breathe like animals, they breathe like children. So many things are involved....
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Possesive love is not true love. It is so tiny it suffocates itself and it suffocates the other person too. But this has been the case up to now - love has never been inclusive. You have been taught exclusive love. But love can be inclusive. You can love the whole world.

समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित

शिवलिंग का अर्थ Meaning of Shivling - क्या आप जानते हैं कि शिवलिंग का मतलब क्या होता है ? और शिवलिंग किस चीज का प्रतिनिधित्व करता है ? दरअसल कुछ मूर्ख और कूढ़मगज किस्म के
प्राणियों ने परम पवित्र शिवलिंग को जननांग समझ कर पता नहीं क्या
क्या और कपोल कल्पित अवधारणाएं फैला रखी हैं । परन्तु शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि ब्रह्माण्ड गतिमान है ) का अक्स/धुरी axis ही लिंग है ।
The whole universe rotates through a shaft called shiva lingam.
दरअसल ये गलतफहमी भाषा के रूपांतरण और मलेच्छों द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने तथा अंग्रेजों द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ हो सकता है ।
खैर..जैसा कि हम सभी जानते हैं कि 1 ही शब्द के विभिन्न भाषाओँ में अलग अलग अर्थ निकलते हैं । उदाहरण के लिए यदि हम हिंदी के 1 शब्द " सूत्र '' को ही ले लें । तो सूत्र मतलब डोरी/धागा गणितीय
सूत्र कोई भाष्य अथवा लेखन भी हो सकता है । जैसे कि नासदीय
सूत्र ब्रह्म सूत्र इत्यादि उसी प्रकार " अर्थ " शब्द का भावार्थ सम्पत्ति भी हो सकता है । और मतलब ( मीनिंग ) भी । ठीक बिलकुल उसी प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से अभिप्राय - चिह्न, निशानी, गुण,
व्यवहार या प्रतीक है । ध्यान देने योग्य बात है कि " लिंग " 1
संस्कृत का शब्द है । जिसके निम्न अर्थ है -
त आकाशे न विधन्ते -  वै । अ 2 । आ 1 । सू 5
अर्थात रूप, रस, गंध और स्पर्श । ये लक्षण आकाश में नही है । किन्तु शब्द ही आकाश का गुण है ।
निष्क्रमणम प्रवेशनमित्याकशस्य लिंगम - वै । अ 2 । आ 1 । सू 2 0
अर्थात जिसमे प्रवेश करना व निकलना होता है । वह आकाश का लिंग है । अर्थात ये आकाश के गुण है ।
अपरस्मिन्नपरं युगपच्चिरं क्षिप्रमिति काललिङ्गानि । - वै । अ 2 । आ 2 । सू 6
अर्थात जिसमे अपर, पर ( युगपत ) 1 वर ( चिरम ) विलम्ब, क्षिप्रम शीघ्र इत्यादि प्रयोग होते है । इसे काल कहते है । और ये काल के लिंग है ।
इत इदमिति यतस्यद्दिश्यं लिंगम । - वै । अ 2 । आ 2 । सू 1 0
अर्थात जिसमे पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊपर व नीचे का व्यवहार
होता है । उसी को दिशा कहते है । मतलब कि ये सभी दिशा के लिंग है । इच्छाद्वेषप्रयत्नसुखदुःखज्ञाना न्यात्मनो लिंगमिति - न्याय अ 1 । आ 1 । सू 0 1 0
अर्थात जिसमे ( इच्छा ) राग ( द्वेष ) वैर ( प्रयत्न ) पुरुषार्थ, सुख, दुःख ( ज्ञान ) जानना आदि गुण हों । वो जीवात्मा है । और ये सभी जीवात्मा के लिंग अर्थात कर्म व गुण हैं ।
इसीलिए शून्य 0 आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परम पुरुष का प्रतीक होने के कारण इसे लिंग कहा गया है ।
स्कन्दपुराण में स्पष्ट कहा है कि - आकाश स्वयं लिंग है । एवं धरती उसका पीठ या आधार है । और ब्रह्माण्ड का हर चीज अनन्त शून्य 0 से पैदा होकर अंततः उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है ।
यही कारण है कि इसे कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है । जैसे कि - प्रकाश स्तंभ/लिंग । अग्नि स्तंभ/लिंग । उर्जा स्तंभ/ लिंग । ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग cosmic pillar/lingam इत्यादि ।
यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है कि - इस ब्रह्माण्ड में 2 ही चीजे हैं -ऊर्जा और पदार्थ । इसमें से हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है । जबकि आत्मा 1 ऊर्जा है ? ठीक इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बनकर शिवलिंग कहलाते हैं । क्योंकि ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है । अगर इसे धार्मिक अथवा आध्यात्म की दृष्टि से बोलने की जगह शुद्ध वैज्ञानिक भाषा में बोला जाए । तो हम कह सकते हैं कि शिवलिंग और कुछ नहीं । बल्कि हमारे ब्रह्मांड की आकृति है. The universe is a sign of Shiva Lingam.
और अगर इसे धार्मिक अथवा आध्यात्म की भाषा में बोला जाए । तो शिवलिंग शिव और देवी शक्ति ( पार्वती ) का आदि अनादि एकल रूप है । तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतीक है । अर्थात शिवलिंग हमें बताता है कि इस संसार में न केवल पुरुष का और न ही केवल
प्रकृति ( स्त्री ) का वर्चस्व है । बल्कि दोनों 1 दूसरे के पूरक हैं । और दोनों ही समान हैं । शिवलिंग की पूजा को ठीक से समझने के लिए
आप जरा आइंस्टीन का वो सूत्र याद करें । जिसके आधार पर उसने परमाणु बम बनाया था । क्योंकि उस सूत्र ने ही परमाणु के अन्दर
छिपी अनंत ऊर्जा की 1 झलक दिखाई । जो कितनी विध्वंसक थी । ये सर्वविदित है । और परमाणु बम का वो सूत्र था ।
e/c = m c { e=mc^2 }
अब ध्यान दें कि ये सूत्र 1 सिद्धांत है । जिसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतया ऊर्जा में बदला जा सकता है । अर्थात पदार्थ और उर्जा 2 अलग अलग चीज नहीं । बल्कि 1 ही चीज हैं । परन्तु वे 2 अलग अलग चीज बनकर ही सृष्टि का निर्माण करते हैं । और जिस बात तो आइंस्टीन ने अभी बताया । उस रहस्य को तो हमारे ऋषियों ने हजारों लाखों साल पहले ही ख़ोज लिया था । यह सर्वविदित है कि हमारे संतों/ऋषियों ने हमें वेदों और उपनिषदों का ज्ञान लिखित रूप में प्रदान किया है । परन्तु उन्होंने कभी यह दावा नहीं किया कि यह उनका काम है । बल्कि उन्होंने हर काम के अंत में स्वीकार किया कि वे हमें वही बता रहे हैं । जो उन्हें अपने पूर्वजों द्वारा कहा गया है । और लगभग 13.7 खरब वर्ष पुराना सार्वभौमिक ज्ञान हमें तमिल और संस्कृत जैसी महान भाषाओँ में उपलब्ध होता है । और भावार्थ बदल जाने के कारण इसे किसी अन्य भाषा में पूर्णतया exact अनुवाद नहीं किया जा सकता । कम से कम अंग्रेजी जैसी कमजोर भाषा में तो बिलकुल नही । इसके लिए 1 बहुत ही छोटा सा उदाहरण देना ही पर्याप्त होगा कि आज " गूगल ट्रांसलेटर " में लगभग सभी भाषाओँ का समावेश है । परन्तु संस्कृत का नहीं । क्योंकि संस्कृत का व्याकरण विशाल तथा दुर्लभ है । अति मूर्ख प्राणी नासा वाली बात का सबूत नासा के लिंक पर देख सकते हैं । हुआ दरअसल कुछ ऐसा है कि जब कालांतर में ज्ञान के स्तर में गिरावट आई । तब पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने वेदों/उपनिषदों तथा पुराणों आदि को समझने में मूर्खता की । क्योंकि उनकी बुद्धिमत्ता वेदों में निहित प्रकाश से साक्षात्कार करने योग्य नही थी । और ऐसा उदहारण तो हम हमारे दैनिक जीवन में भी हमेशा देखते ही रहते हैं कि जैसे परीक्षा के दिनों में अध्ययन करते समय जब कोई टापिक हमें समझ न आये । तो हम कह दिया करते हैं कि - ये टापिक तो बेकार है । जबकि असल में वह टापिक बेकार नहीं । अपितु उस टापिक में निहित ज्ञान का प्रकाश हमारी बुद्धिमत्ता से अधिक है । इसे ज्यादा सरल भाषा में इस तरह भी समझ सकते हैं कि बैटरी चालित 12 वोल्ट धारण कर सकने वाले विद्युत बल्ब में अगर घरों में आने वाले वोल्ट ( 240 ) प्रवाहित कर दिया जाये । तो उस बल्ब की क्या दुर्गति होगी ? जाहिर सी बात है कि उसका फिलामेंट तत्क्षण अविलम्ब उड़ जायेगा । यही उन बेचारे वैज्ञानिकों के साथ हुआ । और वेद जैसे गूढ़ ग्रन्थ पढ़कर उनका भी फिलामेंट उड़ गया । और मैक्स मूलर जैसे गधे के औलादों ने तो वेदों को काल्पनिक तक बता दिया ।
खैर.. फिर शिवलिंग पर आते हैं । शिवलिंग का प्रकृति में बनना । हम अपने दैनिक जीवन में भी देख सकते हैं । जबकि किसी स्थान पर अकस्मात उर्जा का उत्सर्जन होता है । तो उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर अग्रसर होता है । अर्थात दसों दिशाओं ( आठों दिशों की प्रत्येक डिग्री ( 360 डिग्री ) + ऊपर व नीचे ) होता है । जिसके फलस्वरूप 1 क्षणिक
शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है । उसी प्रकार बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप एवं शांत जल में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग ( उर्जा ) का प्रतिरूप भी शिवलिंग का निर्माण करते हैं । दरअसल सृष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट के पश्चात उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर हुआ । फलस्वरूप 1 महा शिवलिंग का प्राकटय हुआ । जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में इस प्रकार मिलता है कि - आरम्भ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल ( अनंत ) तथा की देवता आदि मिलकर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शाश्वत अंत न पा सके । हमारे पुराणों में कहा गया है कि - प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में समाहित ( लय ) होता है । तथा इसी से पुनः सृजन होता है । इस तरह सामान्य भाषा में कहा जाए । तो उसी आदिशक्ति के आदिस्वरुप ( शिवलिंग )
से इस समस्त संसार की उत्पति हुई । तथा उसका यह
गोलाकार/सर्पिलाकार स्वरुप प्रत्यक्ष अथवा प्ररोक्ष तथा प्राकृतिक अथवा कृत्रिम रूप से हमारे चारों और स्थित है । और शिवलिंग का प्रतिरूप ब्रह्माण्ड के हर जगह मौजूद है । जैसे कि 1 हमारी आकाश गंगा, हमारी पडोसी अन्य आकाश गंगाएँ ( 5 -7 -10 नही, अनंत है ) ग्रहों, उल्काओं आदि की गति ( पथ ) ब्लैक होल की रचना, संपूर्ण पृथ्वी पर पाए गये सर्पिलाकार चिन्ह ( जो अभी तक रहस्य बने हए हैं । और हजारों की संख्या में हैं । तथा जिनमें से अधिकतर पिरामिडों से भी पुराने हैं । ) समुद्री तूफान, मानव DNA परमाणु की संरचना इत्यादि । इसीलिए तो शिव को शाश्वत एवं अनादि, अनंत, निरंतर भी कहा जाता है । याद रखो हिन्दुओं । सही ज्ञान ही आधुनिक युग का सबसे बड़ा हथियार है । देश और धर्म के दुश्मनों के खिलाफ । प्राचीन समृद्ध भारत ।
ब्रह्ममुरारी सुरार्चित लिंगं, बुद्धी विवरधन कारण लिंगं ।
संचित पाप विनाशन लिंगं, दिनकर कोटी प्रभाकर लिंगं ।
तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं । 1

देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गम कामदहम करुणाकर लिङ्गम ।
रावणदर्पविनाशनलिङ्गम तत प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम । 2
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गम बुद्धिविवर्धनका रणलिङ्गम ।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम । 3
कनकमहामणिभूषितलिङ्गम फनिपतिवेष्टित शोभित लिङ्गम ।
दक्षसुयज्ञ विनाशन लिङ्गम तत प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम । 4
कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गम पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम ।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गम तत प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम । 5
देवगणार्चित सेवितलिङ्गम भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम ।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गम तत प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम । 6
अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गम सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम ।
अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गम तत प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम । 7
सुरगुरुसुरवरपूजित लिङ्गम सुरवनपुष्प सदार्चित लिङ्गम ।
परात्परं परमात्मक लिङ्गम तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम । 8
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत शिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते । 9
जयति पुण्य सनातन संस्कृति, जयति पुण्य भूमि भारत

Thursday, 20 February 2014

मेरी बुद्धि को क्या हो गया

पत्नी पूजा स्तोत्र - जो भक्त पत्नी पूजा पद्धति का पाठ करते हैं । इसके
पाठ मात्र से स्त्री के देवी रूप रहस्यों के सम्बन्ध में पति के सभी जन्म जन्मान्तरो के भ्रम का निवारण हो जाता है । तथा वह देह त्यागने के पश्चात स्त्री लोकवासी बनकर अनंत काल तक सुखों का भोग करता है । लेकिन इसके लिए इहलोक में पत्नीचर्या का कठोर व्रत करना होता है ।
सर्वप्रथम प्रातः उठकर नित्यक्रिया से फारिग होकर विवाह कराने
वाले अगुवा ( मध्यस्थ ) कों स्मरण कर लें । उन्हें मानसिक रूप से अभिनन्दन करने के पश्चात अपने स्वसुर व सासजी को नमस्कार
करके ही इसका पाठ करना श्रेयस्कर है ।
अथ पत्नी पूजा स्तोत्र
अगर ईश्वर पर विश्वास ना हो । और उससे फ़ल की आस ना हो ।
तो अरे नास्तिको घर बैठे । साकार ब्रह्म को पहचानो ।
पत्नी को परमेश्वर मानो । ये अन्नपूर्णा जगजननी ।
माया है इनको अपनाओ । ये शिवा भवानी चन्डी है ।
तुम भक्ति करो कुछ भय खाओ । सीख़ो पत्नी - पूजन पद्धति ।
पत्नी चर्या पत्नी अर्चन । पत्नी व्रत पालन करे जाओ ।
पत्नीवत शास्त्र पढे जाओ । अब कृष्णचन्द्र के युग बीते ।
राधा के दिन बढती के है । यह सदी इक्कीसवी है भाई ।
नारी के ग्रह चढती के है । तुम उनसे पहले उठा करो ।
उठते ही चाय तैयार करो । उनके कमरे के कभी अचानक ।
खोला नहीं किवाड करो । उनकी पसन्द के कार्य करो ।
उनकी रूचियो को पहचानो । पत्नी को …………………।
तुन उनके प्यारे कुत्ते को । बस चूमो चाटो प्यार करो ।
तुम उनको टी वी देखने दो । आओ कुछ घर का काम करो ।
वे अगर इधर आ जाये कहीं । तो कहो - प्रिये आराम करो ।
उनकी भौंहे सिग्नल समझो । वे चढी कहीं तो खैर नही ।
तुम उन्हें नहीं डिस्टर्व करो । यूं हटो बजाने दो प्यानो ।
पत्नी को परमेश्वर मानो । तुम आफ़िस से आ गये ठीक  ।
उनको क्लब मे जाने दो । वे अगर देर से आती हैं ।
तो मत शंका को आने दो । तुम समझो एटीकेट सदा ।
उनके मित्रो से प्रेम करो । वे कहाँ किसलिये जाती हैं ?
कुछ मत पूछो शेम करो । पत्नी को परमेश्वर मानो ।
तुम समझ उन्हे स्टीम गैस । अपने डिब्बों को जोड चलो ।
जो छोटे स्टेशन आये तुम । उन सबको पीछे छोड चलो ।
जो सम्भल कदम तुम चले चलो । तो हिन्दू सदगति पाओगे ।
मरते ही हूरे घेरेंगी । तुम चूको नही मुसलमानों ।
पत्नी को परमेश्वर मानो ।
प्रेम से बोलिए - गृह लक्ष्मी की जय । साभार - श्री चक्रपाणि त्रिपाठी जी की वाल से ।
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महावीर को 1 तरफ तीर्थंकर का सम्मान मिलता है । वह भी सारे सुखों का इकट्ठा अनुभव है । और दूसरी तरफ असह्य पीड़ा भी झेलनी पड़ती है । वह भी सारे दुखों का इकट्ठा संघात है । रमण को 1 तरफ हजारों हजारों लोगों के मन में अपरिसीम सम्मान है । वह सारा सुख इकट्ठा हो गया । और फिर कैंसर जैसी बीमारी है । सारा दुख इकट्ठा हो गया । समय थोड़ा है । सब संगृहीत और जल्दी और शीघ्रता में पूरा होता है । इसलिए ऐसे व्यक्ति परम सुख और परम दुख दोनों को 1 साथ भोग लेते हैं । समय कम होने से सभी चीजें संगृहीत और एकाग्र हो जाती हैं । लेकिन भोगनी पड़ती हैं । भोगने के सिवाय कोई उपाय नहीं है ।
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मैं 1 घर में अभी मेहमान था । रात लौटा । तो घर के बच्चे मोनोपाली खेल रहे थे । व्यापार खेल रहे थे । बच्चे हैं । बूढ़े भी व्यापार खेलते हैं । तो बच्चे खेलते हों । तो हर्ज क्या है ? मैं जब पहुंचा । तो बड़ा तेज तनाव था वहाँ । किसी ने किसी का स्टेशन चालबाजी से ले लिया था । अब बड़े बड़े ले रहें है स्टेशन चालबाजियों से । तो छोटो की क्या । बड़ा तनाव था । बड़ा झगड़ा था । एक दूसरे पर लांछन लगाया जा रहा था । बच्चे बड़े नाराज थे । मैं जब वहां पहुंचा । तो मुझे देखकर वे थोड़े सहम गए । फिर कोई हंसा । फिर दूसरा हंसने लगा । मैंने कहा - बात क्या है ? तुम बड़े क्रोध में थे । तुम बड़े नाराज थे । तुम हंसने क्यों लगे ? उन्होंने कहा कि - आप आए । तो हमें ख़याल आया कि अरे, खेल में और इतने परेशान हुए जा रहे हैं । फिर उन्होंने वे सब गिर गए । और उन्होंने सब बंद करके जल्दी से डब्बा बंद कर दिया । मैंने उनसे कहा - इतनी जल्दी ? तुम इतने नाराज थे । इतने परेशान थे । इतना धोखाधड़ी का इल्जाम लगा रहे थे । ऐसा लग रहा था कि कोई भरी झगड़ा हो गया है । उन्होंने कहा - नहीं । कुछ भी नहीं । हम बस खेल रहे थे - ओशो
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रामकृष्ण भी मरते वक्त कैंसर से मरे । गले का कैंसर था । पानी भी भीतर जाना मुश्किल हो गया । भोजन भी जाना मुश्किल हो गया । तो विवेकानंद ने 1 दिन रामकृष्ण को कहा कि - आप, आप कह क्यों नहीं देते काली को । मां को ? 1 क्षण की बात है । आप कह दें । और गला ठीक हो जाएगा । तो रामकृष्ण हंसते । कुछ बोलते नहीं । 1 दिन बहुत आग्रह किया । तो रामकृष्ण ने कहा - तू समझता नहीं । जो अपना किया है । उसका निपटारा कर लेना जरूरी है । नहीं तो उसके निपटारे के लिए फिर आना पड़ेगा । तो जो हो रहा है । उसे हो जाने देना उचित है । उसमें कोई भी बाधा डालनी उचित नहीं है । तो विवेकानंद ने कहा कि - न इतना कहें । इतना ही कह दें कम से कम कि गला इस योग्य तो रहे जीते जी कि पानी जा सके । भोजन जा सके । हमें बड़ा असह्य कष्ट होता है । तो रामकृष्ण ने कहा - आज मैं कहूंगा । और सुबह जब वे उठे । तो बहुत हंसने लगे । और उन्होंने कहा -  बड़ी मजाक रही । मैंने मां को कहा । तो मां ने कहा कि - इसी गले से कोई ठेका है ? दूसरों के गलों से भोजन करने में तुझे क्या तकलीफ है ? तो रामकृष्ण ने कहा कि तेरी बात में आकर मुझे तक बुद्धू बनना पड़ा है । नाहक तू मेरे पीछे पड़ा था । और यह बात सच है । जाहिर है । इसी गले का क्या ठेका है ? तो आज से जब तू भोजन करे । समझना कि मैं तेरे गले से भोजन कर रहा हूं । फिर रामकृष्ण बहुत हंसते थे उस दिन । दिन भर । डाक्टर आए । और उन्होंने कहा - आप हंस रहे हैं ? और शरीर की अवस्था ऐसी है कि इससे ज्यादा पीड़ा की स्थिति नहीं हो सकती । रामकृष्ण ने कहा - हंस रहा हूं इससे कि मेरी बुद्धि को क्या हो गया कि मुझे खुद खयाल न आया कि सभी गले अपने हैं । सभी गलों से अब मैं भोजन करूंगा । अब इस 1 गले की क्या जिद करनी है ।
व्यक्ति कैसी ही परम स्थिति को उपलब्ध हो जाए । शरीर के साथ अतीत बंधा हुआ है । वह पूरा होगा । सुख दुख आते रहेंगे । लेकिन जीवन मुक्त जानेगा । वह प्रारब्ध है । और ऐसा जानकर उनसे भी दूर खड़ा रहेगा । और उसके साक्षीपन में उनसे कोई अंतर नहीं पड़ेगा । उसका साक्षी भाव थिर है । और जिस प्रकार जग जाने से स्वप्न की क्रिया नाश को प्राप्त होती है । वैसे ही मैं ब्रह्म हूं । ऐसा ज्ञान होने से करोड़ों और अरबों जन्मों से इकट्ठा किया हुआ संचित कर्म नाश पाता है ।
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अब गधे इंसान की भूख मिटा रहे हैं । चीन में गधे के मांस की मांग देखते हुए कीनिया में पहली बार बूचड़खाना खोला गया है । पढ़िए क्या होगा इस बूचड़खाने में
http://bbc.in/NcWpMF

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