Tuesday, 15 November 2011

नेट पर अपनी तरह का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला ब्लॉग - हिंदीज़ेन

हिंदीज़ेन इंटरनेट पर अपनी तरह का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला हिंदी ब्लॉग है । यह जीवन में शांति । प्रसन्नता । आध्यात्मिकता । कर्मशुद्धि । अच्छी आदतें विकसित करना । उद्देश्यों की प्राप्ति । उत्पादकता । परिवेश में सुव्यवस्था का निर्माण । कर्मठता । प्रेरणा । सरलीकरण । सहजता । और मिनिमलिस्म आदि पर सर्वश्रेष्ठ सामग्री प्राप्त करने का स्रोत बन गया है ।
संक्षेप में कहें । तो हिंदीज़ेन सरल सहज ज्ञान अथवा जानकारी को प्राप्त करने और उसे हमारे जटिल जीवन में उतारने के सूत्र उपलब्ध कराता है । पिछले 2 वर्षों में हिंदीज़ेन शांति और प्रसन्नता की युक्तियाँ सहेजने वाले अग्रणी जालपृष्ठ के रूप में उभरा है । और इतने कम समय में  इस पर 3 लाख से ज्यादा आगंतुकों ने आमद दर्ज कराई है । हिंदी ब्लागों के लिए यह संख्या भी बड़ी उपलब्धि है
मैं निशांत मिश्र हिंदीज़ेन का संस्थापक/प्रशासक हूँ । और नई दिल्ली में अनुवादक पद पर कार्यरत हूँ । यह जालपृष्ठ पहले blogger पर था । may 2009 में यह wordpress.com पर स्थापित हो गया । ( july  2011 तक ) इसमें 500 से भी अधिक पोस्ट प्रकाशित हो चुकी हैं । इन पोस्ट में आपको उत्तम प्रेरक प्रसंग । लेख । ज़ेन । ताओ । सूफी बोध । नैतिक कथाएं । कवितायें । गीत । प्रसिद्ध व्यक्तियों के संस्मरण । बच्चों के लिए ज्ञानवर्धक कहानियां । लोक कथाएं । और अंग्रेजी के कुछ प्रसिद्ध ब्लागरों के लेख आदि के अनुवाद पढ़ने को मिलेंगे ।
july 2011 में मैंने हिंदीज़ेन को समूह ब्लॉग में परिवर्तित कर दिया है । और आशा है कि अब इसमें प्रकाशित होने वाली सामग्री में विविधता आयेगी । ब्लॉग के अन्य लेखकों अनुवादकों का विवरण साइडबार में मिलेगा ।
हिंदीज़ेन पर प्रकाशित होने वाली सभी पोस्ट पब्लिक डोमेन में हैं । यदि आप इनका प्रयोग अन्यत्र करें । तो ब्लॉग का लिंक दें । अथवा मुझे सूचित करें । इस बारे में यहाँ भी पढ़ लें ।
ब्लॉग में छपने वाली नई पोस्टों को पढ़ने के लिए आप email अथवा फ़ीड रीडर पर इसकी सदस्यता ले सकते हैं । यदि आप face book पर हैं । तो कृपया इसे like या FOLLOW  करें । आपको नई पोस्ट की जानकारी फेसबुक वाल पर मिल जायेगी ।
मेरा ईमेल है: the.mishnish@gmail.com
निशांत जी अपने बारे में और अपने विचार बताते हैं -
मैं मध्यवय की ओर बढ़ रहा व्यक्ति हूँ । मेरी आंतरिक प्रेरणा और उन्नति का संबंध इस ब्लॉग से है । यह देखकर हर्ष आश्चर्य होता है कि हिंदीज़ेन मेरे लिए जड़ नास्तिकता से समर्पित आध्यात्मिकता तक की यात्रा का माध्यम बना । इस ब्लॉग की स्थापना से पहले अनेक वर्षों तक मैं अंतर्दृष्टि खोजने के प्रयास करता रहा । जो मुझे तब उपलब्ध हुई । जब मैंने उसे पाने के प्रयास बंद कर दिए । और सहजता सजगता से अपने जीवन में व्यवस्था और मूल्यों को आधार दिया । इस लंबी यात्रा में मुझे कुछ चीज़ें सही और कुछ गलत दिखीं । मैंने सही को अपनाया । पर गलत का तिरस्कार नहीं किया । जब मुझे सकारात्मकता और मूल्यों पर आधारित संयमित जीवन जीने के लाभ दिखे । तब मैंने शुभ विचारों को प्रसारित करने का दृण निश्चय किय । जिसका परिणाम सामने है ।
मैं अनुवादक हूँ । मुझे पढ़ना लिखना अच्छा लगता है । अपने छात्र जीवन का लगभग अधिकांश समय मैंने महाकाय पुस्तकों को पढ़ने में बिताया । लेकिन मैंने दोस्ती यारी और आवारागर्दी भी बखूबी की । मुझे संगीत । चित्रकला । फोटोग्राफी । भारतीय जापानी दर्शन । इंटरनेट । और अपने परिवार के साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता है । मैं फ़िल्में बहुत देखता था । पर अब उस पर विराम लग चुका है । मुझमें बहुत ऐब भी थे । जिनमें से कई से मैं उबर चुका हूँ । अब कुछ ही ऐसी चीज़ें बची हैं । जिनको मैं खुद से निकालना चाहता हूँ । वे हैं - क्रोध । झुंझलाहट । टालमटोल । लिस्ट अभी भी लंबी है
मुझे लगता है । हम में से अधिकांश लोग ऐसे होते हैं । हम सभी को भले प्रतीत न हों । पर अपने मूल रूप में हम बुरे नहीं हैं । हमारी कमजोरियां और ताकत बहुत बड़ी नहीं है । हम चाहें तो उन दोनों को थोड़े से प्रयास से कम ज्यादा कर सकते हैं ।
इस ब्लॉग की कुछ पोस्ट और इसकी साज सज्जा आदि देखकर कुछ पाठकों को लगता है कि मैं बौद्ध धर्मावलंबी हूं । मैंने ब्लॉग पर बौद्ध जापानी दर्शन के ऊपर बहुत कुछ लिखा है । लेकिन मैं बुद्ध की उपासना नहीं करता । मैं बौद्ध धर्म या किसी अन्य धर्म दर्शन का पारंपरिक अर्थ में अनुयायी नहीं हूं । मैं अज्ञेयवादी हूँ । लेकिन मैंने विश्व के श्रेष्ठ विचारों में से आत्म उन्नति के मोती चुने हैं । मैं वेदांत । सूफ़ी । ताओ । थेरवाद । विपश्यना । अष्टांग योग । ज़ेन आदि में श्रेय के सूत्र पाता हूं ।
मुझे लगता है कि हम किसी 1 परमेश्वर के अस्तित्व पर चर्चा नहीं कर सकते । क्योंकि उसकी ऐसी कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है । जिस पर सभी सहमत हों । और ऐसा कभी होने की उम्मीद भी नहीं है । मैं किसी गृन्थ या शास्त्र को देववाणी के रूप में नहीं मानता । और उन पर चर्चा भी नहीं करता । मेरे अनुसार वे केवल जीवन के लिए मार्गदर्शन उपलब्ध कराते हैं । या विद्वेष कायम रखने के तर्क देते हैं ।
हमें किसी की भी आस्था को चोट पहुंचाने का अधिकार नहीं है । क्योंकि आस्था बहुत मूल्यवान है । अधिकांश मामलों में किसी व्यक्ति की आस्था उसकी व्यावहारिक बुद्धि । करुणा । और मैत्री भाव आदि से जुड़ी होती है । और हमें यह अधिकार नहीं कि हम उसकी आस्था को खंडित कर दें । क्योंकि हम उसे इतने ही उत्तम विचार उपलब्ध नहीं करा सकते । जिन व्यक्तियों के भीतर इन विचारों का संग्रह हैं । उन्हें चाहिए कि वे इन्हें अपने तक ही रखें । और तब तक इनकी चर्चा न करें । जब तक उनसे पूछा न जाए ।
किसी अन्य व्यक्ति को अपने धर्म या मत का अनुयायी बनाने का प्रयास करना अहंकार की पराकाष्ठा है । हांलांकि ऐसा करने वालों के विचार बड़े ही रोचक लगते हैं । क्योंकि वे अक्सर ही पारलौकिक सत्ताओं या सुख के बारे में बड़ी गहराई से आँखें चमकाते हुए बताते हैं । स्थापित धर्मों या मत आदि से मेरा कोई मतभेद नहीं है । लेकिन मैं उनके पुरोहितों और जड़ उपासकों की कभी कभी आलोचना करता हूँ । मेरा जन्म ऐसे हिन्दू परिवार में हुआ । जहाँ मुझे धर्म और पूजा की ओर कभी धकेला नहीं गया । मुझे अन्य धर्म या दर्शन की पुस्तकें पढ़ने से रोका नहीं गया । ऐसा होना भी नहीं चाहिए ।
यदि किसी भी धर्म या मत को माननेवाले व्यक्ति की आस्था उसे उत्तरोत्तर मानवीय और सद्गुणी बनाती है । तो विश्व के लिए इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता । यही धर्म और दर्शन आदि की उपादेयता है । लेकिन जब धर्म ऐसा नहीं कर पाता है । तो वह उतना ही अनुपयोगी सिद्ध होता है । जितना कोई हानिकारक अंधविश्वास होता है । ऐसे में उसके अनुयाइयों को गंभीर मानसिक आत्मिक क्षति पहुँचती है । क्योंकि वे इसे सर्वथा शुद्ध मानकर ही चलते हैं । धर्म अरबों मनुष्यों को किसी न किसी रूप में संबल देता है । लेकिन यह उन व्यक्तियों के लालच का भी पोषण करता है । जो इसे अपने स्वार्थ के लिए तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत करते हैं । जड़ धार्मिक विचारों के कारण ही पिछले कुछ दशकों में करोड़ों मनुष्यों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा है । इतिहास गवाह है कि स्वयं को कट्टर धार्मिक मानने वालों ने दुध मुंहे बच्चों की गर्दनों पर गंडासे चलाये हैं ।
मैं धार्मिक संस्थानों में वरीयता पदानुकृम पर भी विश्वास नहीं करता । स्वयं को ऊंची और शक्ति संपन्न पदवी पर विराजमान करने की अभिलाषा बुराइयों को जन्म देती है । हजारों वर्षों की सभ्यता और संस्कृति ने मनुष्यों को बहुत से सद्गुण दिए हैं । जिनके पालन से सबका हित है । यदि कोई इन सद्गुणों को अपने मन में दूसरे से अधिक श्रेष्ठ होने की भावना रखकर अभिमान परक चिंतन करेगा । तो यही सद्गुण मनुष्यता को नीचे गिरा देंगे ।
मैं बहुत से आध्यात्मिक गुरुजनों आदि से मिला हूँ । उनके जीवन का अवलोकन करने के बाद मेरी यह स्थापना है कि किसी भी व्यक्ति को ऐसे ही गुरु का शिष्य बनना चाहिए । जो अपने अनुयायिओं से किसी भी प्रकार का लाभ न उठाता हो । जो उनसे दान की अपेक्षा न करता हो । और न ही उन्हें कोई सामग्री आदि खरीदने के लिए विवश करता हो । आध्यात्मिकता का संबंध किसी भी प्रकार का दान चंदा देने । सीडी । पुस्तक । या सात्विक अगरबत्ती । साबुन आदि की खरीद करने से नहीं है । कुछ लोगों को यह करने से मानसिक शांति मिलती है । इसलिए मैं इन बातों को गलत नहीं मानता । पर मुझे लगता है कि ऐसे व्यवहार के मूल में कहीं अर्थशास्त्र के नियम कार्य करते हैं । यदि कोई किसी मंदिर या आश्रम को बनवाने के लिए प्रयासरत है । तो मैं उनसे यही कहता हूँ कि हमें इनसे भी अधिक उपयोगी आश्रयों की ज़रुरत है । कृष्ण । ईसा मसीह । और बुद्ध ने हमें सदैव किसी नदी । सागरतट । पर्वत । या किसी वृक्ष के नीचे ही ज्ञान दिया । किसी भी अनुयायी के लिए केवल सामान्य बैठक ही पर्याप्त है । बड़े बड़े मंदिर और आश्रम आदि केवल हमारे अहंकार की तुष्टि ही करते हैं ।
कृष्ण । महावीर । बुद्ध । ईसामसीह । कबीर । और अन्य महात्माओं से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं । लेकिन उनके उपदेशों को कुशलता पूर्वक समझकर उनके मार्ग पर चलने वाले बहुत कम हैं । मैं नहीं मानता कि वे किसी पारलौकिक सत्ता का अवतार थे । जो यह मानता हो । वह ऐसा मानने के लिए स्वतन्त्र है । उनमें पारलौकिक या मानवीय गुणों के आरोपण से उनका महत्व कम नहीं होता ।
मैं नैतिकता या नीति में नहीं । बल्कि सदगुणों में विश्वास करता हूँ । नैतिकता या नीति का विश्लेषण हर व्यक्ति भिन्न भिन्न दृष्टि से करता है । जबकि सद्गुण सदैव सभी के लिए समान रहते हैं । ऐसा कोई 1 स्वर्णिम नियम नहीं है । जो सभी के लिए स्वीकार्य हो । यदि वह हो भी । तो उसकी व्याख्या करनी पड़ती है । जबकि सद्गुओं को व्याख्या की ज़रुरत नहीं है । प्रेम । करुणा । ईमानदारी । सहजता की कैसी व्याख्या ? ये सभी सहज । सरल । और वास्तविक हैं । वास्तविक मैत्रीभाव । सहज दान । सरल प्रेम । विश्व बंधुत्व  इनका कोई विकल्प नहीं है । 1 और बात है । जो महत्वपूर्ण है । हम दूसरों को वह करने की स्वतंत्रता दें । जो वे करना चाहते हैं । बशर्ते इससे हमें कोई परेशानी न हो ।
अनुत्तरित प्रश्न केवल अनुत्तरित प्रश्नों के अस्तित्व को ही सिद्ध करते हैं । उचित व्याख्या की अनुपस्थिति को प्रमाण नहीं माना जा सकता । स्वयं की । परिजनों की । और अपने पड़ोसियों की सुख शांति की कामना और उसकी प्राप्ति की दिशा में कार्य करना ही मनुष्य जीवन का उद्देश्य है । लेकिन ऐसा करते समय हमें ज्यादातर अपने काम से मतलब रखना चाहिए । अनावश्यक दूसरों के जीवन में हस्तक्षेप ठीक नहीं । स्वयं की रक्षा करना भी ज़रूरी है । और इसके लिए कभी कभी हठ एवं बल प्रयोग ज़रूरी होता है । लेकिन हमारी सीमा हमारे हाथों के विस्तार तक ही है । उससे अधिक नहीं । हिंसा को कभी कभी अनावश्यक अनिवार्यता के रूप में देखा जाता है । पर उस स्थिति में यह वैसा ही है । जैसे किसी छोटी बुराई से लड़ने के लिए बड़ी बुराई को जन्म देना । हिंसा तभी उचित है । जब यह व्यापक जनहित के परिप्रेक्ष्य में हो । आक्रामकता में दोष है । और 2 बुराइयों के योग से अच्छाई जन्म नहीं लेती । यद्यपि उनका संयोग विरल परिस्थितियों में बुराई को बढ़ने से रोक भी सकता है ।
मैं नहीं मानता कि अपने मूल रूप में मनुष्य में अच्छाई निहित रहती है । हम सब अक्सर वे काम ही करते हैं । जिनसे हमारा हित सधता हो । हम लोगों में से वे व्यक्ति जो किन्हीं क्षणों में स्थिरता पा लेते हैं । वे विश्व को उसकी गति से चलने देते हैं । उसमें हस्तक्षेप नहीं करते । जो “ बस  बहुत हो गया ” के सिद्धांत को नहीं समझते । या इसे नज़रंदाज़ करते हैं । वे दुखों के चंगुल में फंसते हैं । मैं मानता हूँ कि हमारा कर्त्तव्य है कि हम ऐसे अनियंत्रित और अकुशल व्यक्तियों को किसी भी प्रकार सही मार्ग पर लाने के लिए कर्म करें । यह कर्म हमें सदभावना से करना होगा ।
सफ़ेद और काला सिर्फ फोटोग्राफी में ही चलता है । लेकिन उसमें भी भूरी धूसर छवियाँ ही आकर्षक दिखती हैं । मन में शुद्ध भावना रखने वाले सदाशय व्यक्तियों सी भी बड़ी गलतियाँ हो सकती हैं । और ऐसे में अन्य सदाशय व्यक्तियों के ऊपर आचरण शुद्ध रखने का भार बढ़ जाता है ।
और अंत में - मुझे यह लगता है कि दुनिया की तमाम परेशानियों और समस्याओं के लिए हमारा स्वार्थ उत्तरदायी है । विश्व के संकुचित होने के साथ ही हम भी सिकुड़ गए हैं । हम अब बहुत इंसटेंट में जीते हैं । हम यांत्रिक और संवेदनहीन होते जा रहे हैं । हम पुराने का तिरस्कार करते हैं । और नए से ताल नहीं मिला पा रहे । यदि हम अपनी जड़ों की ओर नहीं लौटेंगे । तो हमें इस जीवन से कुछ भी नहीं मिलेगा । हम अपना जीवन परिपूर्णता से व्यतीत नहीं  कर पायेंगे । हर व्यक्ति जीवन को पूर्णता से जी सकता है ।
यदि आप मेरे किन्हीं विचारों से सहमत नहीं हैं । तो मेरी मंशा आपको असहमत करने की भी नहीं है । मुझे आपके विचार जानकर प्रसन्नता होगी । निशांत मिश्र ।
****************
चित्र और लेख साभार - हिन्दीजेन ब्लाग से ।

Friday, 30 September 2011

but seems quite impossible - पूजा

आईये । पूजा जी के बारे में कुछ जानते हैं -
मध्यप्रदेश । भारत की रहने वाली Non-Profit कार्यों से जुङी पूजा जी के विचार खासे दिलचस्प हैं । उत्साहवर्धक हैं । किसी पक्षी की तरह उन्मुक्त आकाश में परवाज करते हैं । इनके ब्लाग का नाम ही Desires है । जाहिर है । यहाँ जिन्दगी की हताशा निराशा को कोई स्थान नहीं है । पूजा जी संगीत सुनने की भी काफ़ी शौकीन हैं । और संभवतः हमेशा खुश रहने में विश्वास रखती हैं । पूजा जी अपने बारे में कहती है - M AN AQUARIAN... so think a lot, n sometimes want to stop my mind to run n imaginations to fly, but seems quite impossible. I love my pen n that empty paper which always encourages me to put all the garbage n thoughts of my mind on to it. Love to listen music, actually it is so soothing n calm... Can't tell much about my feelings so stay cool, I found the way to write... That's it for now..Do you believe that forks are evolved from spoons? no.. they are evolved from fingers.इनका ब्लाग -Desires
और ये पढिये । पूजा जी की कविता -


आज न तो कोई कविता न ही कोई लेख । बल्कि एक गुज़ारिश । एक नया पत्ता खेला है । नया हाथ आज़माया है । आपमें से कुछ को परेशान कर चुकी हूँ । कुछ को परेशान करना बाकी था । कुछ को सुना दिया । कुछ के कान खाना बाकी था । क्या है न । आज तक सिर्फ दिमाग खाती आयी हूँ सबका ।
और बताया भी कि कुछ नया try किया है । इसीलिए सोचा कि अब कान खाऊँ । पर प्लीज़ बताईयेगा ज़रूर..कि लगा कैसा ? हाँ । इसमें ऋषि, प्रतिभा और के.के. का बहुत बड़ा हाँथ है । इसमें जो कुछ, मिठास है । वो सिर्फ ऋषि और प्रतिभा के कारण... और सुन्दरता के.के के कारण । और जी ।
सभी विवरण पूजा जी के ब्लाग से साभार । ब्लाग पर जाने हेतु क्लिक कीजिये ।

पतिदेव ने लिखने को बहुत प्रोत्साहित किया - स्वाति

आईये स्वाति जी के बारे में कुछ जानते हैं -
नागपुर । महाराष्ट्र । भारत की रहने वाली स्वाति जी सरकारी स्तर पर hindi translator कार्य कर रही हैं । स्वाति जी अपने बारे में कहती हैं - मेरा नाम श्रीमती स्वाति ऋषि चड्ढा ( विवाह से पहले स्वाति कपूर ) है ।  मध्यप्रदेश के सिवनी शहर में पली बढ़ी और नागपुर में स्थापित एक भावुक इंसान हूँ । बचपन से ही लिखने और पढ़ने का बहुत शौक रहा । मम्मी की प्रेरणा से मैंने 8 वी कक्षा में पहली कविता लिखी । और प्रकाशन के लिए समाचार पत्र में भेज दी । जो शीघ्र ही प्रकाशित हुई । इस तरह लेखन का सफर धीरे धीरे शुरू हुआ । लेकिन फ़िर भी थोडी हिचक थी । विवाह के पश्चात पतिदेव ने लिखने को बहुत प्रोत्साहित किया ( वे स्वयं तकनीकी क्षेत्र से सम्बंधित हैं । और हिन्दी साहित्य लेखन से एकदम अनजान ) उन्हीं की प्रेरणा से लिखती रही । और फ़िर नवभारत की पत्रिकाओं में सह संपादक का कार्य करने का मौका मिला । इसके साथ साथ अनुवाद । प्रूफ़ रीडिंग । शिक्षण कार्य भी करती रही । वर्तमान में केंद्र सरकार के प्रोद्योगिकी संसथान में राजभाषा हिन्दी से सम्बंधित पद पर हूँ । इनका ब्लाग - मेरे अहसास भाव
और ये पढिये । स्वाति जी की कविता -
कलियों की कोमल पंखुरियों में । रंगों की फुलवारी सजाए । प्यारी भीनी खुशबू से जो । मन को आनंदित 


कर जाए । शीतल मंद समीरों संग । झूम झूमकर राग सुनाये । एक फूल के खिलने में भी । नियति के अनेक राज है । कोमलता विनमृता प्यार खूबसूरती । ये सब उसके साज हैं । कितने प्यारे  कितने अनोखे । प्रकृति के निराले अंदाज है ।
सभी विवरण स्वाति जी के ब्लाग से साभार । ब्लाग पर जाने हेतु क्लिक कीजिये ।

दो बदन नहीं एक रूह एक जान हैं हम - पूनम

आईये पूनम जी के बारे में कुछ जानते हैं -
पूनम जी अपने बारे में कहती हैं - पुराने पन्नों से मेरी हर कविता हर नज़्म तुम्हीं से शुरू और तुम पर ही ख़त्म होती है । कभी मेरे ख्यालों से दूर जाओ । तो कुछ और भी लिखने की सोचूँ ? जब मैंने लिखना शुरू किया । यही पहली कुछ लाइनें थी मेरी । तब नहीं सोचा कि इतना कुछ लिखने लगूँगी । तबसे अब तक अच्छा बुरा जो लिखा । प्रत्यक्ष और परोक्ष में वो मौजूद है । मेरे साथ । मेरे पास । उसे हर समय । हर जगह महसूस किया । अच्छे बुरे हर समय वो मेरे साथ था । तब भी । और आज भी । ज़िन्दगी में जो भी पाया । उसी ने दिया । आज जैसी भी हूँ । पूरी की पूरी उसी की creation हूँ । कच्ची उम्र की रचनाएँ शायद कच्ची ही थीं । जो उमृ समय और परिस्थितियों के साथ परिपक्व होती गईं । शायद ये मेरा अपना ख्याल हो सकता है । पर सबकी सब मेरे दिल के बहुत नज़दीक हैं । हकीकत की तरह । जिस दिन लिखना शुरू किया था । उस दिन भी बस यूँ ही लिखना शुरू कर दिया था । जब ब्लॉग पर लिखना शुरू किया । उस दिन भी बस यूँ ही लिखना शुरू कर दिया । शायद इसीलिए..इनका ब्लाग - तुम्हारे लिये
और ये पढिये । पूनम जी की कविता -
ढाये चाहत ने सितम हम पे हैं । कुछ इस तरह । रोते रोते भी हँस दिए हैं । हम कुछ इस तरह ।
चाहा कि तुझको  छुपा लूँ मैं । कहीं  इस तरह । मैं ही मैं देखूं । जमाने से छुपाकर इस तरह ।
तू था खुशबू की तरह बिखरा । जो फिर छुप न सका । बस मेरे दिल में रहे । ये भी तो तुझसे हो न सका ।
रूह से अपनी जुदा । सोचा कभी कर दूँ तुझे । बन हया चमका जो । नजरों में मेरी छुप न सका ।
चाह बन करके मेरी । ये चाह कभी रह न सकी । गुफ्तगू तुझसे की । जो चाहा छुपे छुप न सकी ।
तेरे सीने पे सिर रखकर । कभी मैं रो न सकी । तेरे आगोश में आकर । कभी मैं सो न सकी ।
आज है वो रात । मैं हूँ कहाँ । और तू है कहाँ । बदले  हालात हैं और । बदल गए दोनों जहाँ ।
साथ न रह के भी तू । साथ मेरे मेरे सनम । दो बदन हम नहीं । एक रूह हैं । एक जान हैं हम ।
सभी विवरण पूनम जी के ब्लाग से साभार । ब्लाग पर जाने हेतु क्लिक कीजिये ।

मेरे बुलाने पर चौंक कर पलटी थी तुम - रचना


आईये  रचना जी के बारे में कुछ जानते हैं -
Ardmore । OK । United States में रहने वाली रचना जी Freelance writer and Poet हैं ।
जन्म 5 Sept । लखनऊ UP । शिक्षा  B Sc, M A ( हिन्दी ) B ed सृजन । कविता । कहानी आदि लिखने की प्रेरणा बाबा स्व रामचरित्र पाण्डेय माँ श्रीमती विद्यावती पिता श्री रमाकांत से मिली । भारत और डैलस ( अमेरिका ) की बहुत सी कवि गोष्ठियों में भाग । और डैलास में मंच संचालन । अभिनय में अनेक पुरस्कार और स्वर्ण पदक । वाद विवाद प्रतियोगिता में पुरस्कार । लोक संगीत । न्रृत्य में पुरुस्कार । रेडियो फन एशिया । सलाम नमस्ते ( डैलस ) मनोरंजन ( फ्लोरिडा ) संगीत ( हियूस्टन ) में कविता पाठ । कृत्या । साहित्य कुञ्ज । अनुभूति । अभिव्यक्ति । सृजन गाथा । लेखनी । रचनाकार । हिंदयुग्म । हिन्दी नेस्ट । गवाक्ष । हिन्दी पुष्प । स्वर्ग विभा । हिन्दी मीडिया । हिन्दी हाइकु । हिन्दी गौरव । लघुकथा डॉट कॉंम इत्यादि में लेख । कहानियाँ । कविताएँ । लघुकथाएँ । बाल कथाएँ प्रकाशित । चन्दनमन । और ‘कुछ ऐसा हो’ संकलनों में हाइकु प्रकाशित । हिन्दयुग्म के 2008 Sept के यूनिपाठक तथा  2008 Dec के यूनिकवि सम्मान से सम्मानित । इनका ब्लाग - मेरी कवितायें
और ये पढिये । इनकी कविता -


ईद मेले में मै । हरी चूड़ियाँ बनके बिका । तुम आयीं । और लाल चूड़ियाँ खरीद कर चली गईं ।
तुमको तो हरा रंग पसंद था न ?
मूँदकर  मेरी आँखे । पूछा था तुमने । बताओ कौन हूँ मै ? उन यादों के पल । आज भी । मेरी अलमारी में सजे हैं । तुम कभी आओ । तो दिखाऊँगा ।
अचानक मेरे बुलाने पर । चौंक कर पलटी थी तुम । और तुम्हारे मेहँदी भरे हाथ । लग गए थे मेरी कमीज़ पर ।
अब हर ईद पर । मैं उसको गले लगाता हूँ आज भी । इनसे गीली मेंहदी की खुशबू आती है ।
बादल  के परदे हटा के । झाँका जो  चाँद ने । मुबारक मुबारक । के शोर से सिमट गया सोचा । निकलता तो रोज ही हूँ पर आज । उसे क्या मालूम कि वो ईद का चाँद है ।
तुमने । उस रोज । मेरे कानों में हौले से कहा था । ईद मुबारक । अब । जब भी देखती हूँ  । ईद का चाँद । खुद ही कह लेती हूँ -  ईद मुबारक ।
मैने अब्बा के आगे बढाया । जो ईदी के लिए हाथ । गर्म मोती की दो बूंदों गिरीं । और हथेली भर गई ।
आज भी हर ईद पर । गीली हो जाती है हथेली ।
सेवईयाँ लाने गया था । बाजार वो । और ब्रेकिंग न्यूज बन गया । अब इस घर में । कभी सेवईंयाँ नहीं बनती ।
सभी विवरण रचना जी के ब्लाग से साभार । ब्लाग पर जाने हेतु क्लिक कीजिये ।

अगर हम चाहें तो कुछ भी असंभव नहीं - मीनाक्षी पन्त

अब आईये । मीनाक्षी जी के बारे में कुछ जानें -
दिल्ली । भारत की रहने वालीं मीनाक्षी पन्त जी का ख्याल अपने विचारों की खुशबू द्वारा सबको प्रेरित करना ही है । उनका लिखने का उद्देश्य अपने लिये कुछ नहीं है । उनका मानना है । लेखन में कोई न कोई सामाजिक संदेश निहित होना ही चाहिये । तभी लेखन उद्देश्य पूर्ण और सार्थकता युक्त होता है । वास्तव में उनके ब्लाग नाम के अनुसार - दुनियाँ रंग रंगीली ही है । तब सभी के जीवन में खुशियों के रंग बिखेरने का ही प्रयास होना चाहिये । बिलकुल मीनाक्षी जी आपका सोचना एकदम सही है । और मेरे ख्याल से हरेक को ही ऐसा सोचना चाहिये । मीनाक्षी जी अपने बारे में कहती हैं - मेरा अपना परिचय आप सबसे है । जो जितना समझ पायेगा । वो उसी नाम से पुकारेगा । हाँ मेरा उद्देश्य अपने लिए कुछ नहीं । बस मेरे द्वारा लिखी बात से कोई न कोई सन्देश देते रहना है कि ज्यादा नहीं । तो कम से कम किसी एक को तो सोचने पर मजबूर कर सके कि हाँ अगर हम चाहें । तो कुछ भी कर पाना असंभव नहीं । और मेरा लिखना सफल हो जायेगा कि मेरे प्रयत्न और उसके हौसले ने इसे सच कर दिखाया । इनका ब्लाग - दुनियाँ रंग रंगीली
सभी विवरण मीनाक्षी जी के ब्लाग से साभार । ब्लाग पर जाने हेतु क्लिक कीजिये ।

मैं समझ सकती हूँ तुम्हारी चाहतें - प्रीती

आईये प्रीती जी के बारे में जानते हैं -
देहरादून और दिल्ली । भारत की रहने वाली प्रीति स्नेह जी बहुत बङी बात को आसानी से कहती हैं । ह्रदय के भावों को शब्दों द्वारा व्यक्त करना बहुत बङी जरूरत ही है । इनकी कवितायें भी नारी ह्रदय की कोमलता और मजबूती दोनों को मिश्रित अंदाज में प्रतिबिम्बित करती हैं । देखिये इन चुनौती देते शब्दों को - तुम्हारे स्नेह में । होता है छल । रिश्ते तोड़ने में । नहीं  गंवाते पल । बता देते हो । छोटी छोटी कमी ।  स्वयँ पर नजर । न डालते कभी । हाँ है चाल । तुम्हारी सबल सक्षम । पर नहीं मिला पाते । मुझसे कदम । तुम्हारे व्यंग्य तोड़ते हैं । विश्वास दृणता मेरी । ऐसे ही सशक्त विचारों से अपनी जुझारू उपस्थिति महसूस कराने वालीं प्रीति जी अपने बारे में कहती हैं - ह्रदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना । शायद ह्रदय की ही आवश्यकता है । Giving words to heart felt is the need of felt-heart . A simple down to earth individual trying to be 'Human' always. Feet firmly on ground but looking at the rainbow in the sky, soaring in the skies while keeping an eye on the ground. इनका ब्लाग - प्रीति
और ये पढिये । प्रीति जी की कविता -
अधूरापन - मेरा अधूरापन


हाँ  नहीं  दौड़  सकती । पकड़ने  तितली ।  चढ़  नहीं  सकती । पहाड़ी  पगडण्डी । नहीं  लगा  सकती ।  मैं  लम्बी  छलांगें ।  कूदकर  पकड़  न  सकूँ । तरु  की  ऊँची  बाहें । पर  समझ  सकती  हूँ ।  तुम्हारी  चाहतें । मेरी  लगन  दे  सकती  है ।  मन  को  राहतें । कठिन  लक्ष्यों  में ।  उमंग  भरा  दूँ  साथ । डगमगाते क़दमों  को ।  विश्वास  भरा  हाथ । तुम्हारे  स्नेह  में ।  होता  है  छल ।  रिश्ते  तोड़ने  में ।  नहीं  गंवाते  पल । बता  देते  हो ।  छोटी छोटी  कमी ।  स्वयँ  पर  नजर ।  न  डालते  कभी । हाँ  है चाल ।  तुम्हारी  सबल सक्षम । पर  नहीं  मिला ।  पाते  मुझसे  कदम । तुम्हारे  व्यंग्य  तोड़ते  हैं ।  विश्वास  दृणता  मेरी ।  भरती  है  विश्वास । कहो  मुझसे । कब  रुकता  है  जीवन ? सोचो ।  तुम । कहाँ  रोकते  हो  जीवन ? है  नहीं  क्या  सस्नेह  अपनापन ? क्या  सच  है ।  मुझमें  अधूरापन ?
सभी विवरण प्रीती जी के ब्लाग से साभार । ब्लाग पर जाने हेतु क्लिक कीजिये ।

Thursday, 29 September 2011

क्यूँ है तू यूँ तन्हा सी ? अंजू चौधरी

वास्तव में यदि पुरुष अपनी जगह सही हो । और स्त्री की भावनाओं को दिली तौर पर महसूस करने वाला हो । सम्मान देने वाला हो । उसके सुख दुख में । जीवन के उतार चङाव में । हर कदम पर सहभागी हो । तो कोई वजह नहीं । प्रत्येक स्त्री ऐसे पुरुष को पूर्ण समर्पित होती है । उसकी पूरी जिन्दगी का अरमान और लक्ष्य ही यही है । मेरा अनुभव तो यही कहता है । कोई भी स्त्री पुरुष की बराबरी नहीं करना चाहती । उसे टक्कर नहीं देना चाहती । उसके कन्धे से कन्धा मिलाकर खङी नहीं होना चाहती । ये सब परिस्थितियोंवश उत्पन्न हुयी मिथ्या बातें हैं । जिन्होंने पुरुष द्वारा स्त्री की कदम कदम पर उपेक्षा । और समर्पित स्त्री के प्रति भी कुटिलता पूर्ण बेबफ़ाई से आकार लिया है । वास्तव में न तो कोई स्त्री नौकरी करना चाहती है । न युद्ध लङना चाहती है । वह तो बस अपने फ़ूल से बच्चों और प्रेमी रूप पति के आगे समर्पित हुयी अपनी जीवन बगिया को सदा महकाये रखना चाहती है । यही उसकी सबसे बङी अभिलाषा । पूजा और धर्म कर्म है । अगर मेरे ये अनुभवजन्य ख्यालात सही है । तो शायद घर और समाज में स्त्री पुरुष का सबसे विकृत रूप इसी समय देखने में आ रहा है ।
खैर..ये मेरे निजी विचार थे । आईये मिलते हैं । करनाल हरियाणा की अनु जी से । और जानते हैं । उनके विचार ।
करनाल । हरियाणा । भारत में रह रहीं अनु जी उर्फ़ अंजू चौधरी house wife हैं । और इनके ब्लाग का बङा सुन्दर सा नाम - अपनों का साथ .. है । इस ब्लाग जगत में आकर मैंने दो बातें

स्पष्ट महसूस की कि परिपक्व लेखिकायें जिनकी किताबें बङे बङे प्रकाशनों से प्रकाशित होती हैं । उनकी तुलना में अपरिपक्व महिलायें अपने दिल की बात सीधे सरल शब्दों में स्पष्ट तरीके से बयान करती हैं । उसमें गोलमाल बात या शब्दों की बाजीगरी नहीं होती । और ये अति महत्वपूर्ण चीज कम से कम मुझे सिर्फ़ ब्लागों पर ही मिली । क्योंकि आमतौर पर प्रकाशक संपादक क्लिष्टता पूर्ण लेखन को ही प्रमुखता देते हैं । जिससे नारी के मधुर भावों की अभिव्यक्ति कहीं खो जाती है । और तब हम नारी के वास्तविक ह्रदय उदगार को नहीं जान पाते । और यही बात मैंने अनु जी के भावों में महसूस की । अनु जी अपने बारे में कहती हैं - दुनिया की इस भीड़ में । मैं अकेली सी । खुद को तलाशती सी । पर नहीं मिला कोई भी ऐसा । जो कहे मुझसे आकर कि क्यूँ है तू यूँ तन्हा सी ? रिश्तों की इस भीड़ में । मैं...मैं को तलाशती सी । अनु @ अंजू चौधरी । इनका ब्लाग - अपनों का साथ


और " कुछ दिल की बातें " शीर्षक से लिखी गजल में आप भी पढिये । अनु जी के दिल की बातें ।
कुछ दिल की बातें -
दिल की गहराइयों में इतना दर्द सा क्यूँ है । बेबसी बेताबी और बेचैनी का आलम क्यूँ है ।
अपना सा हर शख्स । परछाईं सा पराया क्यूँ है । जिसको भी माना अपना । वही इतना बेगाना सा क्यूँ है ।
इस दुनिया की रीत में इतनी । तपिश सी क्यूँ है । हर कोई अपने ही वास्ते । इस रिश्ते को जीता क्यूँ है ।
आज हर घर में रिश्तों का गुलशन सा । क्यूँ नहीं है । जो बाँध सके सबको गुलदस्ते में । वो माली क्यूँ नहीं है ।
अपने घर के आँगन में । माँगी थी धूप छाँव जीवन की । पर हर कोई बाहर की आँधियों से । लिपटा सा क्यूँ है ।
जिन राहों पर बिछने थे । गुलशन के फूल कलियाँ । उन राहों से चुन चुन के कांटे । मै हटा रही क्यूँ हूँ ।
मुश्किल से मैंने खुद को । मुश्किल से निकाला था । आगे की मुश्किलों से मै । दामन बचा रही सी क्यूँ हूँ ।
अनु जी का चित्र । गजल । और विवरण उनके ब्लाग - अपनों का साथ.. से साभार । ब्लाग पर जाने हेतु क्लिक करें ।

हर अक्स को खुद में समा लूँ । उस दर्पण की तरह हूँ मैं - कनु

बङी अजीव चीज है । ये ब्लागिंग भी । फ़िर मुझे तो ये किसी लाइब्रेरी । किसी मूबी । किसी बुक । किसी प्रत्यक्ष मेलजोल से बढकर लगती है । कभी मन नहीं लगता । तब कोई ब्लाग खोलता हूँ । फ़िर टिप्पणी प्रोफ़ायल से कभी इस ब्लाग कभी उस ब्लाग एक उदासीन सैर सपाटा सा होता है । तब ऐसे लम्हों में कोई ब्लाग अचानक आकर्षित करता है । फ़िर हम उसे पढते ही चले जाते हैं । नये विचार । नयी भावनायें । तब इससे आगे जिज्ञासा होती है । उस ब्लागर इंसान को जानने की । पूरी साफ़गोई से कहूँ । तो मेरे साथ यही होता है ।  इसीलिये मैंने ब्लागिंग को सबसे अजीव कहा है । क्योंकि हम दूसरे को जान रहे होते हैं । और तब वह हमसे अनभिज्ञ होता है । अब अजीव वाली बात यूँ है कि तुरन्त ही हम कमेंट या मेल से अपनी भावना विचार शेयर कर सकते हैं । हालांकि सोशल नेटवर्किंग की फ़ेसबुक जैसी साइटों पर भी ये संभव है । पर वहाँ ब्लाग की तरह विस्त्रत विचार नहीं हो सकते । अपने ऐसे ही सफ़र में मेरी अप्रत्यक्ष मुलाकात दिलचस्प कनु जी से हुयी ।
और ये है कनु जी का परिचय -
भोपाल । मध्यप्रदेश । भारत की रहने वालीं और मुम्बई से भी संबन्धित कनु जी की सरलता का क्या कहना । एकदम सादगी से सरल और साफ़ शब्दों में ऐसी बात । जो सीधी किसी के भी दिल को छू जाये । वास्तव में मुझे लगता है । कविता कभी लिखी नहीं जा सकती । ये जब निकलती है । दिल की भावनाओं को सुन्दर शब्दों द्वारा मूर्त रूप देती हुयी निकलती है । और किसी भी व्यक्तित्व के आंतरिक स्वरूप का साकार चित्रण करती हैं । कनु जी अपने वारे में कहती हैं - क्या 


लिखूँ । अपने विषय में । शब्द कैसे मैं चुनूँ ? मैं कनु....।  कुछ वर्षों पहले कॉलेज की रेगिंग में ये अपने बारे में कविता लिखने को बोला गया था । और तभी ये मेरी कविता की पहली पंक्ति थी । और आज भी यही आलम है । क्या लिखूँ ? लिखने का शौक है मुझे । और इसी शौक ने मुझे ब्लॉग लिखने के लिए प्रेरित किया । जब जब मन करता है । अपने मन के कोने से कुछ भावनाओं को यहाँ उकेर देती हूँ । शब्दों की चित्रकारी से प्यार है मुझे । पर अभी मेरे शब्द चित्रकारी जैसे दिल को लगने वाले नहीं बन पड़ते । बस इसी अनंत प्रयास में हूँ कि कुछ अच्छा पढने लायक लिख सकूँ । इनके ब्लाग -  पोरवाल चौपाल । परवाज
और ये पढिये । कनु जी की पहली कविता । जिसमें सादगी और सरलता की खुशबू आपको भी निसंदेह महसूस होगी ।
मैं क्या हूँ ? बस कनु हूँ ।
बहते हुये सागर की लहर की तरह हूँ । मस्ताने से मौसम में सहर की तरह हूँ ।
जितना दर्द दोगे उतनी ज्यादा महकूँगी । फ़ूलों के बिखरे हुये परिमल की तरह हूँ ।
जिन्दगी में नये नये दौर से गुजरकर । हर मोङ पर जैसे किसी पत्थर की तरह हूँ ।
अपनी खूबियों और खामियों के हिसाब से ही पाओगे मुझसे ।
सागर मंथन में निकले अमृत और गरल की तरह हूँ मैं ।
खुद का चेहरा मुझमें देखना चाहो तो देख लो । हर अक्स को खुद में समा लूँ । उस दर्पण की तरह हूँ मैं ।

Monday, 26 September 2011

विवाह के बाद के प्रेम में कितना सुख छिपा होता है - लीना मल्होत्रा

मैं अपने जीवन में बहुत कम महिलाओं से प्रभावित हुआ हूँ । जहाँ मुझे महिलाओं का खामखाह की झाँसी की रानी बन जाना भी रुचिकर नहीं लगता । वहीं उनका अवला या दुखियारी रूप कतई नापसन्द है । इसके बजाय परिस्थितियों से जूझती हुयी पुरुष के झूठे अहम को टक्कर देकर चूर चूर करती हुयी हौसलामन्द नारी मुझे हमेशा विभिन्न रूपों में आकर्षित करती रही है । लीना जी ( मल्होत्रा ) उन्हीं में से एक हैं । इनकी एक ही कविता मानों सभी पुरुषों को चुनौती दे रही हैं । और ये सर्वकालिक है । यानी ये चुनौती सतयुग त्रेता द्वापर कलियुग में समान रूप से एक नारी के स्तर से उसकी आवाज है । जो कर्तव्य से भागे हुये मिथ्या अभिमानी पुरुषों को ललकार रही है ।  और सदियों से नारी स्वाभिमान की अखण्ड मशाल जलाये खङी है । ये कविता स्त्री पुरुष दोनों के लिये सबक है । जिन्दगी की शिक्षा है । बस और क्या कहूँ । ये कविता स्वयँ ही बहुत कुछ कह रही है । आप भी पढिये -
ओह बहुरूपिये पुरुष ! पति । एक दिन । तुम्हारा ही अनुगमन करते हुए । मैं उन घटाटोप अँधेरे रास्तो पर भटक गई । निष्ठा के गहरे गहवर  में छिपे आकर्षण के सांप ने मुझे भी डस लिया था । उसके  विष का गुणधर्म  वैसा ही था । जो पति पत्नी के बीच विरक्ति पैदा कर दे । इतनी । कि दोनों एक दूसरे के मरने की कामना करने लगें । तभी जान पाई मै कि क्या अर्थ होता है ज़ायका बदल लेने का । और विवाह के बाद के प्रेम में कितना सुख 


छिपा होता है । और तुम क्यों और कहाँ चले जाते हो बार बार मुझे छोड़कर
मैं तुम्हारे बच्चो की माँ थी । कुल बढ़ाने वाली बेल । और अर्धांगिनी । तुम लौट आये भीगे नैनों से हाथ जोड़ खड़े रहे द्वार । तुम जानते थे तुम्हारा लौटना मेरे लिए वरदान होगा । और मैं इसी की प्रतीक्षा में खड़ी मिलूँगी । मेरे और तुम्हारे बीच । फन फैलाये खड़ा था कालिया नाग । और इस बार । मैं चख चुकी थी स्वाद उसके विष का । यह जानने के  बाद ।
तुम । थे पशु । मैं वैश्या दुराचारिणी । ओ प्रेमी !
भटकते हुए जब मैं पहुंची तुम्हारे द्वार । तुमने फेंका फंदा । वृन्दावन की संकरी  गलियों के मोहपाश का । जिनकी आत्मीयता में  खोकर । मैंने  सपनो के  निधिवन को बस जाने दिया था घर की देहरी के बाहर । गर्वीली नई  धरती पर प्यार  की  फसलों का वैभव  फूट रहा था । तुमने कहा । राधा ! राधा ही  हो तुम । और । प्रेम पाप नही । जब जब । पति से प्रेमी बनता है  पुरुष । पाप पुन्य की परिभाषा बदल जाती है । देह आत्मा । और । स्त्री । वैश्या से राधा बन जाती है ।.. लीना मल्होत्रा ।
और ये है । लीना जी का परिचय -
हौजखास । दिल्ली । भारत में रह रही सरकारी नौकरी में सेवारत लीना मल्होत्रा जी का खास और बेबाक अन्दाज है । उनकी कविताओं में कल्पनाओं की मधुर उङान नहीं । बल्कि भोगा हुआ यथार्थ है । जो मानवीय दैहिक रिश्तों स्त्री पुरुष के सम्बन्धों में पैदा हुयी तल्खी का सटीक सचित्र

अहसास कराता है । देखिये इन मार्मिक पंक्तियों को - तभी जान पाई मै कि क्या अर्थ होता है ज़ायका बदल लेने का । और विवाह के बाद के प्रेम में कितना सुख छिपा होता है ।.. वैसे अक्सर मैं ब्लागर कवियों कवियित्रियों की कविता झेल नहीं पाता । और कविता में मेरी विशेष रुचि नहीं है । पर लीना जी की इस कविता को मैंने तीन बार पढा । ऐसा लगा । एक स्त्री को अवला का झूठा बनाबटी चोला । जो उसे जबरन पहनाया गया है को उतारकर एक चुनौती सी देती हुयी झूठे अहंकारी पुरुष को उसकी असली औकात बता रही हो । वास्तव में लीना जी की अभिव्यक्ति लाजबाब है । लीना जी अपने बारे में कहती हैं - संवेदनायें ही मेरी धरोहर हैं । और कविता मेरे लिए कोई चर्चा का विषय नहीं । बल्कि अनुभूतियाँ हैं । जो मेरी रूह में बसती हैं । इनका ब्लाग - अस्मिता

Tuesday, 9 August 2011

ब्लाग बन्द होने का क्या कारण है - राजीव कुलश्रेष्ठ

अक्सर मैंने कई बार कई ब्लाग्स पर जाकर देखा है । बहुत से ब्लागर बङे उत्साह से ब्लाग शुरू करते हैं । उसमें स्तरीय और महत्वपूर्ण पोस्ट भी लगाते हैं ।
और चार छह महीने तक अच्छा लेखन भी करते हैं । पर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया न प्राप्त होने से धीरे धीरे उनका उत्साह क्षीण हो जाता है । और वे लिखना बहुत कम कर देते हैं । या फ़िर बन्द ही कर देते हैं । 
और इस तरह बहुत उम्मीद के साथ शुरू हुआ ब्लाग घोर निराशा के साथ बन्द हो जाता है ।
क्या हैं इसके कारण - मुझे इसकी कुछ वजह लगी ।
एक तो शायद ऐसे ब्लागर इंटरनेट का सही सिस्टम नहीं समझ पाते । और वे सोचते हैं कि पाठक अपने आप चला आयेगा ।
जबकि ऐसा बहुत कम भाग्यशाली लोगों के साथ होता है कि उनके बिना प्रयास या मामूली प्रयास के ब्लागिंग में पहचान बनी हो । कारण यही है । इंटरनेट एक विशाल सागर के समान है । और इसके किसी कोने में बहुत से लोगों का आपके खुद बिना परिचय दिये पहुँचना असंभव है । इसलिये नये ब्लागर को हमेशा लिखने के साथ साथ अधिकाधिक सारगर्भित शालीन टिप्पणी द्वारा अपना परिचय ब्लाग जगत को खुद देना चाहिये
विभिन्न एग्रीगेटर्स में ब्लाग को सबमिट करना चाहिये । सर्च इंजन में ब्लाग को सबमिट करना चाहिये ( विभिन्न

सर्च इंजन की जानकारी के लिये इसी ब्लाग में पोस्ट देखें )
टेक्नीकल ब्लागरों के ब्लाग पढने चाहिये । इससे ब्लागिंग से संबन्धित तमाम पहलू और समस्याओं का समाधान मिलेगा । ( टेक्नीकल ब्लागरों की जानकारी के लिये इसी ब्लाग में पोस्ट देखें )
सफ़ल ब्लागिंग के और भी बहुत से तत्व हैं । जो आपको टेक्नीकल ब्लागरों के लेखों में तथा कुछ सामान्य ब्लागरों के लेखों में अक्सर मिलेंगे । और इसको खोजना भी बहुत आसान है । आप सफ़ल ब्लागर कैसे बनें । ब्लागिंग के रहस्य । जानकारियाँ आदि जैसे शब्द ब्लाग शब्द के साथ जोङकर ( मगर सिर्फ़ हिन्दी में ) गूगल में सर्च कर लें । आपको हल मिल जायेगा । इंगलिश वाले इंगलिश में कर सकते हैं ।
खैर..इतने से ही भगवान आपका भला करेगा । ऐसी आशा के साथ कुछ ऐसे ही ब्लाग्स का परिचय दे रहा हूँ । जिनका

जिक्र मैंने ऊपर किया है ।
1 - वाराणसी की फ़्रीलांसर रितु जी का ब्लाग - जरा सोचिये ( यहाँ क्लिक करें )
2 - ये गुमनाम नाम पता का अच्छा ब्लाग - DJJS अखण्ड ग्यान ( यहाँ क्लिक करें )
3 - ये किन्ही पूजा माल्ही जी का ब्लाग - डिवाइन नालेज Divine Knowledge ( यहाँ क्लिक करें )
4 - ये gopilangeri जी का ब्लाग - गाड इज वन God is One ( यहाँ क्लिक करें
gopilangeri जी का कहना है - MYSELF GOPI LANGERI I AM WRITER FROM LANDOFTIGERS,,, I BELEIVE IN GOD BECAUSE I KNOW WHAT IS GOD AND WHERE IS IT
5 - ये पुष्कर साहू जी का ब्लाग - आर सी एम मिशन । RCM जिन्दगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी ( यहाँ क्लिक करें )

Sunday, 17 April 2011

आपके ब्लाग पर कुम्भ मेला जैसी भीङभाङ ?

मयंक भाई ! यार क्यों हम छोटे मोटे बाबाओं का धन्धा खराब करने पर तुले हो । आप सीक्रेट दे दनादन स्टायल में बता रहे हो । फ़िर हम बाबा लोग कौन से ग्यान के बूते रुतबा झाङेंगे । गलत बात है । भाई ।
आप तो सबको सयाना बनाने पर तुल गये हो ।

इंटरनेट पर जब भी आपको कोई खोज या जानकारी करनी होती है । तो सबसे पहले गूगल बाबाजी या किसी अन्य सर्च इंजन का ही विचार आता है ।
 सर्च इंजन से ही लोगबाग । भाईसाहब । भाभीजी । अंकल जी । आँटीजी वगैरा वगैरा आपके ब्लॉग या वेबसाईट तक जा पाते हैं ।
खोज इंजन ही वो खास साधन है । जो आपकी वेबसाइट या ब्लॉग पर नाटकीय रूप से ( कुम्भ मेला की तरह ) या बाबा रामदेव के योग शिविर की तरह.. आपकी साइट के लिए प्यारे कमेंट देने वाले । गाली देने वाले बन्धुओं की मात्रा बढ़ा सकता है ।
अगर आप डिस्कबरी इंजन में अपनी साइट और ब्लॉग को चिपका ( सबमिट कर ) दोगे । तो कोई भी भूला भटका बन्दा आपके ब्लॉग तक यूँ ( अरे भाई चुटकी बजाकर ) पहुँच सकता है ।

 आज मैं  ( हमारे मयंक भाई साहब । वही कम्प्यूटर दुनियाँ वाले ) आपको ऐसे ही कुछ साईट के लिंक दे दनादन दे रहा हु ।
जिस पर आप क्लीक करके ( मतलब माउस भाई यानी चूहे राजा से ) अपने ब्लॉग या वेबसाईट को सबमिट ( यार ! क्यों ये सीक्रेट बताकर हमारे ब्लाग के ग्राहक काटना चाहते हो ) कर सकते हैं ।
और अपने ब्लॉग या वेबसाईट को लोगों तक पंहुँचा सकते हो । ( नहीं मानते । तो क्लिक करके देख लो । मयंक जी ने इस बार बहुत तगङा अप्रेल फ़ूल बनाया है । एक भी क्लिक खुलने वाली नहीं है । )

1 - गूगल बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करें ।

2 -बिंगों बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करें

3 -शम्मी कपूर उर्फ़ याहू बाबा । मैं झट यमला पगला दीवाना । ओ रब्बा । डाल दे । ब्लाग । मेरी झोली में ।

4 - रेडिफ़ आँटी जी । मेरा ब्लाग भी स्वीकार करें ।.. डाल दे बच्चा ।

5 - ये पता नहीं कौन से साधु बाबा हैं । इनका पूरा मिशन ही फ़्री सेवा देता हैं । यहाँ आपके ब्लाग को आशीर्वाद देने के लिये कई बाबाजी हैं । वो भी एक बार के सबमिट में ।

साभार मयंक भाईजान के कम्प्यूटर दुनियाँ से ये मेहनत उन्हीं की है

Tuesday, 12 April 2011

हिन्दी में शुद्ध टायप कैसे करें ?

1 - हु के बजाय -  हूँ लिखने के लिये । hoo इससे हू लिख जायेगा । इसके बाद shift बटन दबाये रखकर  ऊपर सबसे कोने में  esc की के ठीक नीचे वाली की  ( ‘ ~) दबा दें । इससे इस तरह ( हू~ ) का लिखा दिखाई देगा । इसके बाद shift से बस उंगली उठाकर । फ़िर से shift  दबाकर m दबायें । हूँ लिख जायेगा ।
2 - अक्सर लोग बङे ऊ की मात्रा नहीं लगा पाते । और पूछना की जगह पुछना लिख देते हैं । यह बहुत आसान हैं । pu की बजाय poo लिखें । या p लिखने की बाद shift दबाये रखकर U दबा दें । पू लिख जायेगा ।
3 - मै या मे पर । या कहीं ( जैसे इस कहीं में ही लगी है ) भी बिन्दी लगाने के लिये mai = मै । इसके  बाद  वही shift दबाये रखकर m दबा दें । मैं लिख जायेगा ।
4 - सबसे महत्वपूर्ण बात लोग पूर्ण विराम लगाना नहीं जानते । और इसकी जगह डाट (  . ) का प्रयोग कर देते हैं । ये भी आसान है । इसके लिये बस shift की दबाये रखकर enter के ठीक ऊपर ( \ ) इस निशान वाली की दबा दें । पूर्ण विराम ( । ) लग जायेगा ।
5 - ॐ लिखने के लिये - सीधा सीधा oum लिखें ।
6 - ऋ लिखने के लिये - shift दबाकर r । इसके बाद shift छोङकर u दबा दें ।
7 - क्ष लिखने के लिये - पहले k इसके बाद shift दबाकर s । इसके बाद सादा ही यानी shift छोङकर h दबायें ।
8 - छ लिखने के लिये - सीधा सीधा shift दबाये रखकर c दबा दें ।
9 - ई लिखने के लिये - shift दबाये रखकर i दबा दें ।
10 - किसी भी शब्द में  ँ ( चन्द्र बिन्दी ) लगाने के लिये shift दबाये रखकर esc के ठीक नीचे ( ~ ‘ ) निशान वाली की दबायें । इसके बाद shift से उँगली उठाकर फ़िर से shift दबाये रखकर m दबा दें ।
11 - ङ न लिख पाने के कारण लोग ड लिख देते हैं । इसके लिये shift दबाये रखकर esc के ठीक नीचे ( ~ ‘ ) इस निशान वाली की दबायें । इसके बाद shift छोङकर g  दबा दें । ङ लिख जायेगा ।
12 - ढ लिखने के लिये shift दबाये रखकर d उसके बाद shift छोङकर सादा h दबायें ।
13 - लेंग्वेज बदलने के लिये । यानी इंगलिश से हिन्दी । हिन्दी से इंगलिश के लिये ।  मेरे साफ़्टवेयर " बाराह पैड " में F11 की का इस्तेमाल होता है । हिन्दी में टायप करते हुये जब मुझे english शब्द लिखने की आवश्यकता होती है । तो मैं F11 की दबा देता हूँ । इसके बाद फ़िर हिन्दी करने के लिये पुनः F11  की दबा देता हूँ ।
14 - ध्यान दें । जब आपका हिन्दी टूल एक्टिव होगा तो पूर्ण विराम ( । ) इस तरह लगेगा । और कुछ लोग गलती से इंगलिश टूल एक्टिव ( टूल से मतलब आप कौन सी भाषा में टायप कर रहे हैं ) स्थिति में पूर्ण विराम लगाते है । वह कुछ इस तरह का ( | )  लगेगा ।
15 - ओ लिखने के लिये सीधा सीधा o दबायें ।
16 - औ लिखने के लिये ou दबायें । औ की मात्रा के लिये भी अक्षर के बाद ou  दबायें । जैसे कौन में k के बाद ou ।
17 - ण लिखने के लिये shift दबाये रखकर n दबा दें । ण लिख जायेगा ।
18 - द्ध - युद्ध क्रुद्ध आदि शब्दों में इस तरह का द्ध का अक्षर जोङने के लिये ddh दबायें ।
19 - वृ - अक्सर अच्छे अच्छे लोग इस  ( बृ ) र को नहीं लगा पाते । और इसकी जगह ब्र या व्र या क्र इस तरह अशुद्ध लिखते हैं । इसके लिये जिस अक्षर में ये र लगाना है । उसको लिखकर । उसके बाद shift दबाये रखकर r और उसके बाद सादा u दबायें ।
20 - ष लिखने के लिये shift दबाये रखकर s और उसके बाद h दबा दें । ष लिख जायेगा ।
21 - हिन्दी टायपिंग में shift का बेहद महत्व और उपयोग है । इसलिये टायपिंग में स्पीड बङाने के लिये । शुद्ध लिखने के लिये । shift दबाये रखकर सभी की को दबाकर देखें । क्या बदलाव होता है ।
22 - द्वार आदि में ऐसा व जोङने के लिये dw यानी द्व । kw यानी क्व आदि लिखते हैं ।

विशेष - ये लेख अभी पूर्ण न समझें । मुझे तो क्योंकि हिन्दी टायप अच्छी तरह से आती है । अतः मुझे अन्दाजा नहीं हो पाता कि आपको कौन से शब्द लिखने में दिक्कत आती है ? अतः आपके द्वारा कमेंट में पूछी गयी बात । और आपके ई मेल आदि से अशुद्धियों कठिनाईयों को जानकर । वो जानकारी मैं इसी लेख में जोङता रहूँगा ।


जिन पाठकों ने अभी भी " बाराह हिन्दी पैड " डाउनलोड नहीं किया । वो निम्न तरीके से कर सकते हैं ।
अपने कम्प्यूटर में " बाराह हिन्दी पैड " BARAHA HINDI PAID मुफ़्त साफ़टवेयर डाउनलोड कर लें । इसके लिये आप गूगल सर्च में BARAH HINDI PAID टायप करें । और सही साईट सिलेक्ट करके ये साफ़टवेयर डाउनलोड कर लें ।
या इस साफ़्टवेयर को डाउनलोड करने के लिये यहाँ पर क्लिक करें । और ध्यान रहे । फ़्री वाला ही चुनें । BUY NOW वाला नहीं । वैसे साइट और पेज का पता यह है । http://www.baraha.com/download.htm
इस पर भी यहीं से क्लिक करके सीधे वहाँ जा सकते हो ।
 इससे आपका " THEEK ISEE TARAH.. ठीक इसी तरह "  लिखा मैटर हिन्दी में बदल जायेगा । मतलव आप पेज में rajeev ye bataaiye लिखोगे । तो वह अपने आप बदलकर " राजीव ये बताईये " ही लिखेगा

Friday, 25 March 2011

कुछ महत्वपूर्ण लिंक और परिचय

इस चित्र को ध्यान से देखिये
अक्सर इंटरनेट कम्प्यूटर यूजर ब्लागर्स को सर्फ़िंग या कोई कार्य करते समय कुछ परेशानियाँ आ जाती हैं ।
किसी साफ़्टवेयर की आवश्यकता होती है । किसी जानकारी की आवश्यकता होती है । तब समस्या आती है  कि अब क्या किया जाय ? आईये आपको इन सभी समस्याओं से निबटने हेतु कुछ महत्वपूर्ण लिंक और परिचय कराते हैं ..राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ ।

श्री रविशंकर श्रीवास्तव जी Industry: Engineering Occupation: Technical Consultant, Tech Translator Location: Bhopal : M.P. : India
Aren't papier mache cuts the worst ? Is there GOD ? If yes, who created Him ?
ब्लाग..रचनाकार..छींटे और बौछार

श्री आशीष खण्डेलवाल जी Ashish Khandelwal...I am a blogger, and and and...
Industry: Communications or Media Occupation: Journalism Location: जयपुर : राजस्थान : India
ब्लाग..हिन्दी ब्लाग टिप्स

भिलाई इस्पात संयंत्र में सेवारत श्री बी एस पाबला जी Industry: Telecommunications Occupation: नौकरी Service Location: भिलाई Bhilai : छत्तीसगढ़ : India
ब्लाग..ब्लाग बुखार

श्री नवीन प्रकाश जी । Location: खरोरा, रायपुर : छत्तीसगढ़ : India
बस एक कोशिश है । जो थोडी बहुत जानकारियां मुझे हैं । चाहता हूँ कि आप सभी के साथ बाँटी जाए । आप मुझे मेल भी कर सकते हैं । hinditechblog@gmail.com पर .
वेवसाइट..हिन्दी 2 टेक..Hindi Tech - तकनीक हिंदी में

श्री योगेन्द्र पाल जी Industry: Technology Occupation: Software Professional Location: Agra : U.P. : India
ब्लाग..योगेन्द्र पाल की सूचना प्रौद्योगिकी डायरी

श्री मयंक भारद्वाज जी  Location: Haridwar : Uttarakhand : India
मेरे ब्लाग में आपका स्वागत है । इंटरनेट एक ऐसी दुनिया है । जहॉ सब कुछ मिलता है । मैं अपने ब्लाग में आपको इसी दुनिया से कुछ ऐसी वेबसाइटो पर लेकर चलूँगा । जो आपके काम आ सकती है । और कम्पयूटर की थोडी बहुत जानकारी देने की कोशिश करूँगा । जितना मुझे पता है ।
ब्लाग..कम्यूटर दुनियाँ


श्री संजीव तिवारी जी .. Sanjeeva Tiwari..Industry: Law..Occupation: Advocate..Location: Durg - Bhilai : Chhattisgarh : India
छत्‍तीसगढ की कला, संस्‍कृति, भाषा व साहित्‍य के प्रति आत्‍ममुग्‍ध एक गवंइहा मन ...
ब्लाग..आरम्भ

Sunday, 20 March 2011

कुछ बेहतरीन लिंक्स आपके लिये ।

इसमें ज्यादातर लिंक्स फ़िल्मी साइटस और ब्लाग्स के हैं । जिनमें फ़िल्मों से संबन्धित हर तरह की भरपूर जानकारी है । 

सेन्स आफ़ सिनेमा
विस्फ़ोट काम
हिन्दी सीखें ।
भारत एक खोज
इंडियन बायस्कोप
चित्रपट
यायावर की फ़िल्मी डायरी
विदाउट बाक्स
स्क्रीन रिसर्च
सत्यम शाट
rogerebert
भारत सरकार प्रकाशन विभाग
पी पीसीसी
फ़िलिस फ़ी उम्स
मूवी देट मेक यू थिंक
 मेमसाब
THE INDIAN MOVIES INDEX
filmiholic
फ़िल्मी गीक
फ़िल्म सिनेमा
दिलीप के दिल से
Digital Library of India
chomsky
बालीवुड स्प्रिट
बालीवुड दीवाना

bollywhat
BOLLYWOOD MEANINGS
bethlovesbollywood
MediaArchive
amazingpics4you
1000petals
filmsite org
फ़ायट क्लब
फ़िल्म स्टडीज फ़ार फ़्री
uk/film
 प्रियंका चौपङा
Blog Directory



आईये आपको कुछ फ़िल्म स्टार्स से मिलायें ।


आईये आपको कुछ फ़िल्म स्टार्स से मिलायें । जिससे मिलना चाहें । उसी पर क्लिक कर दें बस ।

शिल्पा शेट्टी के फ़ेन्स के लिये ।
रणवीर कपूर के चाहने वालों के लिये
रामगोपाल वर्मा के कदरदानों के लिये ।
प्रियंका चौपङा से मिलिये ।
प्रेम नाम है मेरा । प्रेम चौपङा ।
खलनायक प्राण के हालचाल जानिये ।
कवीर बेदी से मिलिये ।
क्या आप जान इब्राहिम के फ़ैन है ।
बिल्लो रानी कहो तो अपनी जाँ दे दे । बिल्लो रानी यानी बिपाशा बसु । यानी बिप्स ।

रिश्ते में तो हम अभिषेक के बाप लगते हैं । नाम है । अमिताभ बच्चन ।
काजोल हसबेंड यानी अजय देवगन ।
और ये हैं । आमिर खान जी ।

Friday, 18 March 2011

आ गया ब्लॉगस्पॉट का एक नया नवेला मजेदार विज़ेट

ब्लॉगर ने अभी अभी एक नया विजेट उपलब्ध कराया है । जिससे आपके ब्लाग के पाठक अपना ई-मेल भर कर उस ब्लॉग की नई जानकारियाँ अपने ईमेल में प्राप्त कर सकता है । ये विजेट इस ब्लाग पर लगा हुआ है । तिरंगे के नीचे देखें ।
मूल तौर पर यह फीडबर्नर की ईमेल सेवा का ही दूसरा स्वरूप है । बस इतना सा काम ब्लागस्पाट ने किया है कि इसे सीधे एक विजेट के रूप में पेश कर दिया है । क्योंकि फीडबर्नर, गूगल की ही सेवा है ।

अगर आपने फीडबर्नर का खाता बनाया हुआ है तो ठीक । अन्यथा इसका उपयोग करने के लिए उस पर एक खाता तो बनाना ही पडेगा । खाता कैसे बनेगा यहाँ देखिये ।


यदि आप इसका उपयोग करना चाहते हैं तो

अपने ब्लॉगर खाते में लॉग-इन करें ।
डिजाईन के अंतर्गत बेसिक पर जाएं ।
गैजेट जोड़ें । पर क्लिक करें ।

दी गई सूची में । ई-मेल से अनुसरण करें । वाल़े विजेट का चुनाव करें ।
सहेजें ।
डेशबोर्ड>डिजायन>एड ए गैजेट> फ़ालो बाई ईमेल न्यू ( सबसे ऊपर ही आता है )>+( पर क्लिक करें )> सेव करें >
सीमित तकनीकी ज्ञान वाले उपयोगकर्ता के लिए यहाँ काफी लाभदायक प्रक्रिया है ।
कुछ मेरी एडिंग के साथ साभार पाबला जी के ब्लाग..ब्लाग बुखार से । आपका धन्यवाद पाबला जी ।

Wednesday, 16 March 2011

मैं गीतों की एक कड़ी हूँ । रश्मिप्रभा । परिचय पोस्ट



एक लड़की..
क्या गरीब । क्या अमीर ।
 चंगुल में आ जाये ।
 तो कोई फर्क नहीं होता ।
उसमें और मेमने में..।

शब्दों की यात्रा में शब्दों के अनगिनत यात्री मिलते हैं । शब्दों के आदान प्रदान से भावनाओं का अनजाना रिश्ता बनता है ।
 गर शब्दों के असली मोती भावनाओं की आंच से तपे हैं ।
 तो यकीनन गुलमर्ग  यहीं हैं ।
सिहरते मन को शब्दों से तुम सजाओ । 
हम भी सजायें । यात्रा को सार्थक करें । 

मेरे एहसास इस मंदिर में अंकित हैं । जीवन के हर सत्य को मैंने इसमे स्थापित करने की कोशिश की है । जब भी आपके एहसास दम तोड़ने लगे । तो मेरे इस मंदिर मे आपके एहसासों को जीवन मिले । यही मेरा अथक प्रयास है । मेरी कामयाबी आपकी आलोचना समालोचना में ही निहित है । आपके हर सुझाव मेरा मार्गदर्शन करेंगे । इसलिए इस मंदिर मे आकर जो भी कहना आप उचित समझें । कहें..। ताकि मेरे शब्दों को नए आयाम, नए अर्थ मिल सकें..। रश्मिप्रभा

वास्तव में ईमानदारी से कहूँ । तो मैं रश्मिप्रभा जी से एकदम अपरिचित ही था । पर इनके ब्लाग पर इनकी पसंद । कलात्मकता पूर्ण अभिरुचि । अन्य विचार आदि से चकित ही रह गया । वास्तव में जिन्हें बचपन से ही ऐसी महान हस्तियों का सानिंध्य । सरंक्षण मिला हो । उनके बारे में कुछ भी कहने के लिये थोङे शब्दों से काम नहीं चल सकता । अतः आप खुद ही देखिये रश्मिप्रभा जी क्या कह रहीं हैं । राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ ।
रश्मिप्रभा..मैं गीतों की एक कड़ी हूँ । जो तुमने नहीं कहा । जो उसने नहीं कहा । वो सब कहना चाहती हूँ । गाना चाहती हूँ । मैं अपनी पिटारी के सारे ख्याल तुम्हें देना चाहती हूँ ।..कागजों में 31 अगस्त ।
अमृता का जन्मदिन होता है । मुहब्बत में हर रोज़ । अमृता का जन्मदिन होता है ।

सौभाग्य मेरा कि मैं कवि पन्त की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद की बेटी हूँ । और मेरा नामकरण स्व सुमित्रानंदन पन्त ने किया । और मेरे नाम के साथ अपनी स्वरचित पंक्तियाँ मेरे नाम की..। " सुन्दर जीवन का क्रम रे । सुन्दर सुन्दर जग जीवन ".. शब्दों की पांडुलिपि मुझे विरासत मे मिली है । अगर शब्दों की धनी मैं ना होती । तो मेरा मन । मेरे विचार मेरे अन्दर दम तोड़ देते । मेरा मन जहाँ तक जाता है । मेरे शब्द उसके अभिव्यक्ति बन जाते हैं । यकीनन ये शब्द ही मेरा सुकून हैं । Industry । Business Services । Occupation । Business । Location । पटना । बिहार ।

साभार सभी चित्र सामग्री रश्मिप्रभा जी के ब्लाग्स से आपका बहुत बहुत आभार रश्मिप्रभा जी ।


Blogger Mukesh Kumar Sinha said...
Rashmi di...ko kahin bhi dekh kar khushhi milti hai...:)
13 February 2011 20:57
Delete
Blogger रश्मि प्रभा... said...
मेरा परिचय और आपकी कलम ... इस सम्मान के लिए मैं शुक्रगुज़ार हूँ
13 February 2011 21:01
Delete
Blogger सदा said...
रश्मि दी के लिये जितना भी कहा जाये कम है ...ब्‍लाग जगत में आपकी स्‍नेहिल छवि हो या मेरी भावनायें पर प्रस्‍तुत आपकी कवितायें जीवन को एक नई दिशा देती आपके सवालों का जवाब कब बन जाती हैं आप स्‍वयं ही नहीं जान पाते, आपके लेखन की बात हो या वटवृक्ष के संचालन की आत्‍मचिंतन पर आपके विचारों की कडि़या जीवन का एक सच कहती सी लगती हैं आपका बहुत-बहुत आभार इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये और रश्मि दी को बधाई ।
13 February 2011 21:03
Delete
Blogger Meenu Khare said...
बहुत बहुत बधाइयाँ.बड़ी प्यारी तस्वीर आई है.मज़ा आ गया पढ़ कर. --- मीनू
13 February 2011 22:32
Delete
Blogger Meenu Khare said...
pl include my blogs also having following addresses: http://meenukhare.blogspot.com/ http://entertainingscience.blogspot.com/
13 February 2011 22:37
Delete
Blogger mridula pradhan said...
bahut achcha laga rashmi jee ke baare men padhkar.
13 February 2011 22:43
Delete
Blogger Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...
जबसे ब्लॉग जगत में सक्रिय हुआ हूँ, रश्मिदी की रचनाओं का लुत्फ़ उठा रहा हूँ ... जीवन में कई संघर्षों का सामना करके भी उनमें जीवट की कमी नहीं है ... आपका आभार कि आप अपने इस मंच पर अच्छे रचनाकारों को स्थान दे रहे हैं ...
13 February 2011 23:03
Delete
Blogger नरेन्द्र व्यास said...
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने रश्मि दी के बारे में. जब मैंने आखर कलश शुरू किया तो सर्वप्रथम जो स्नेह, मार्गदर्शन और हौसला दीदी से मिला, मैं कभी भुला नहीं पाऊंगा. दीदी की सबसे बड़ी खूबी है कि इतनी बड़ी शक्शियत होने के बाद भी वे इतनी सहज और स्नेहिल है कि मन स्वतः उनके प्रति श्रद्धा में अपना सर झुका देता है. वर्तमान दौर में जब हर कोई सिर्फ और सिर्फ अपने को ही भुनाने में लगा है ऐसे दौर में सिर्फ एक ही नाम मिला जिसकी वात्सल्य रश्मियों से समूचा ब्लॉग जगत रोशन हो रहा है, और वो नाम है- रश्मि प्रभा ! कितना सही नाम दिया है कविवर पन्त जी ने 'रश्मि प्रभा' यथा नाम तथा गुण. जिस प्रकार सूरज की स्वर्णिम रश्मियाँ बिना किसी भेदभाव के सभी सभी का मार्ग प्रशस्त करती है ठीक उसी प्रकार दीदी भी अपने स्नेहिल सानिध्य से हम सभी का मार्ग प्रशस्त करने के साथ-साथ हौसला भी बढ़ाती हैं. दीदी की कविताओं से काफी कुछ सीखा है मैंने. कई नए आयाम मिले हैं, पहचान मिली है. पन्त जी का अलौकिक प्रेम, माँ सरस्वती की कृपा और संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. समूचा साहित्य और हिंदी ब्लॉग जगत आपके वृहद् व्यक्तित्व और कृतित्व का सदा ऋणी रहेगा. हम आपको नमन करतके हैं..!
13 February 2011 23:57
Delete
Blogger संगीता स्वरुप ( गीत ) said...
रश्मि जी को पढ़ना हमेशा सुकून देता है ...
14 February 2011 01:57
Delete
Blogger दर्शन कौर धनोए said...
रश्मि जी से मेरा परिचय कुछ दिनों का ही हे --हम साथ साथ प्यारी माँ के लिए लिखते हे --राजीव जी की पांचवीं पोस्ट के लिए उन्हें ढेर सारी बधाइयाँ |
14 February 2011 01:57
Delete
Blogger ZEAL said...
Rashmi ji is a sweet and loving person.
14 February 2011 02:49
Delete
Blogger Patali-The-Village said...
सही नाम दिया है कविवर पन्त जी ने 'रश्मि प्रभा' यथा नाम तथा गुण|पन्त जी का अलौकिक प्रेम, माँ सरस्वती की कृपा और संस्कार आपको विरासत में मिले हैं|बाकी रश्मि जी के बारे में जितना कहा जाए काम है|आभार इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये|
14 February 2011 11:08
Delete
Blogger रजनी मल्होत्रा नैय्यर said...
Rashmi didi ko padhna kafi achha lagta hai .....aur unki tippnai se prerna bhi....
22 February 2011 00:31
Delete

आवश्यक सूचना

इस ब्लाग में जनहितार्थ बहुत सामग्री अन्य बेवपेज से भी प्रकाशित की गयी है, जो अक्सर फ़ेसबुक जैसी सोशल साइट पर साझा हुयी हो । अतः अक्सर मूल लेखक का नाम या लिंक कभी पता नहीं होता । ऐसे में किसी को कोई आपत्ति हो तो कृपया सूचित करें । उचित कार्यवाही कर दी जायेगी ।