Thursday, 12 April 2012

प्यार की खुशबू को सीने में छुपा सकते नहीं

अंतर्जाल के मकङजाल में किसी चित्र पहेली के भूलभुलैया रास्तों सा इधर उधर भटकते हुये अपना प्लेन मुम्बई के शशि जी के ब्लाग स्पाट पर लैण्ड हुआ । शशि जी कविताओं गजलों के शौकीन हैं । इनका ब्लाग - कवितायें मायाजाल विभिन्न प्रसिद्ध गजल गीतकारों की रचनाओं का संग्रह है । और इनके ही दूसरे ब्लाग - शशि की कवितायें में इनकी खुद की रचनायें प्रकाशित हैं । अगर आप भी कविताओं गजलों गीतों के शौकीन हैं । तो इनके ब्लाग पर तशरीफ़ ले जा सकते हैं ।  पर क्या है इनके ब्लाग का पता ? खोजिये इसी पेज पर छुपा है । बस माउस से क्लिक करना होगा ।
इनका शुभ नाम है - Shashiprakash Saini और इनकी Industry है - Student और इनकी Location है - mumbai, Maharashtra, India बस इससे ज्यादा इनके बारे में कुछ पता नहीं । क्योंकि इन्होंने लिखा ही नहीं । अच्छे खासे कविता शायरी का शौक रखते हैं शशि जी । पर जाने क्यों अपने बारे में कुछ कहा ही नहीं । खैर..अपने बारे में न कहा । न ही सही । पर शशि जी की कविता । क्या खूब कही । क्या खूब कही । आप भी पढिये । और इनके ब्लाग की तरफ़ बढिये - वो ठंडी पवन का झोंका था । जो तूने हमको रोका था । वो सावन की बरसातें थी । सोंधी सोंधी सी बाते थी । छोटी मोटी जो अनबन 


थी । बिजली की फिर जो गर्जन थी । तेरा बाहों में आ जाना । नज़रों का जो वो टकराना । अब तक यादो में ताज़ी है । होठों का जो था टकराना । बाहों में आना । घुलते जाना । अब तक यादे ताज़ी है । तेरा आना तेरा जाना । आँखों में जो प्यार भरा । लफ्जों से कर इज़हार जरा । सब कुछ मैंने अब बोल दिया । तू भी कुछ बतला जाना । अब तू इतना तरसा ना । या तो आना । या तो जाना । ओ बादल बूंदें बरसाना ।
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त'अर्रुफ़ - मजाज़ लखनवी
ख़ूब पहचान लो असरार हूँ मैं । जिन्स ए उल्फ़त का तलबग़ार हूँ मैं ।
इश्क़ ही इश्क़ है दुनिया मेरी । फ़ितना ए अक़्ल से बेज़ार हूँ मैं ।
छेड़ती है जिसे मिज़राब ए अलम । साज़ ए फ़ितरत का वही तार हूँ मैं ।
ऐब जो हाफ़िज़ ओ ख़य्याम में था । हाँ कुछ इसका भी गुनहगार हूँ मैं ।
ज़िन्दगी क्या है गुनाह ए आदम । ज़िन्दगी है तो गुनहगार हूँ मैं ।


मेरी बातों में मसीहाई है । लोग कहते हैं कि बीमार हूँ मैं ।
एक लपकता हुआ शोला हूँ मैं । एक चलती हुई तलवार हूँ मैं ।
साथ चलते आ रहे हैं पास आ सकते नहीं । इक नदी के दो किनारों को मिला सकते नहीं ।
देने वाले ने दिया सब कुछ अजब अंदाज से । सामने दुनिया पड़ी है और उठा सकते नहीं ।
इसकी भी मजबूरियाँ हैं, मेरी भी मजबूरियाँ हैं । रोज मिलते हैं मगर घर में बता सकते नहीं ।
आदमी क्या है गुजरते वक्त की तसवीर है । जाने वाले को सदा देकर बुला सकते नहीं ।
किसने किसका नाम ईंट पे लिखा है खून से । इश्तिहारों से ये दीवारें छुपा सकते नहीं ।
उसकी यादों से महकने लगता है सारा बदन । प्यार की खुशबू को सीने में छुपा सकते नहीं ।
राज जब सीने से बाहर हो गया अपना कहाँ । रेत पे बिखरे हुए आँसू उठा सकते नहीं ।
शहर में रहते हुए हमको जमाना हो गया । कौन रहता है कहाँ कुछ भी बता सकते नहीं ।
पत्थरों के बर्तनों में आँसू को क्या रखें । फूल को लफ्जों के गमलों में खिला सकते नहीं ।
- सभी जानकारी और सामग्री शशिप्रकाश सैनी जी के ब्लाग से साभार । इनके ब्लाग पर जाने हेतु इसी लाइन पर क्लिक करें ।

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