Sunday, 6 March 2011

विकृत मानसिकता वाले ब्लाग भाई -- कृपया सावधान रहिये इनसे.

समाज में एक प्रतिशत पुरुष ऐसे भी हैं । जो सोचते हैं कि किसी स्त्री को बहन कहकर certificate पा लेंगे शराफत का । या फिर वो अन्य पुरुषों से बेहतर बन जायेंगे । उन्हें लगता है कि उनकी विकृत मानसिकता छुप जायेगी । बहनरुपी कवच के नीचे । और वो भाई नाम का लाईसेन्स इस्तेमाल करते फिरेंगे खुलेआम ।
लेकिन नहीं जनाब । हर ऐरा गैरा भाई बनने का हक़दार नहीं हो सकता । आभासी दुनिया हो । या फिर वास्तविक दुनिया । लोग ऐसे रिश्ते सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए बनाते हैं । जब किसी crisis में इनकी जरूरत होती है । तो ये लोग शराफत का जामा पहने अपने दुःखदर्द निपटाने में व्यस्त होते हैं । या फिर तमाशबीन बने मदारी का खेल देखते हैं । या फिर मेल लिखकर उपदेश देंगे कि ऐसे लोगों से दूर रहो । अरे भाई कोई पीछे लगा है इनके । जो दूर रहे । इसलिए ये भाई कम उपदेशक ज्यादा होते हैं ।
दूसरे प्रकार के भाई । अपनी बहनों के रूप पर ही मोहित होते रहते हैं । और उन्हें मेनका की उपाधि से विभूषित करते हैं । लेकिन दुखद बात तो ये है कि अनवर जमाल टाइप भाई को जब मेनका और गार्गी जैसी बहनें घास नहीं डालतीं । तो ये विचलित होकर अपनी बहनों के खिलाफ अपने ब्लॉग पर पोस्ट लिखकर भाड़े के टट्टुओं [ अमरेन्द्र त्रिपाठी ] जैसे सस्ते भड़ासियों को आमंत्रित करते हैं । अपनी बहनों को अपमानित करने के लिए । और ये चवन्नी में बिके हुए आलोचक अपनी लेखनी का भरपूर प्रयोग करते हैं । एक स्त्री को जलील करने में ।
कुछ महान हस्तियाँ मेरे ब्लॉग पर आकर आग में घी डालती हैं । और उनके उकसाने पर जब दोषी को खरी खोटी सुना दी । तो ये महानुभाव मेरी भाषा पर आपत्ति दर्ज करा के खुद शरीफ होने का दम भरने लगे । धन्य है । ऐसे दोयम चरित्र वाले उपदेशक भी । कमीने को कमीना न कहा जाए । तो क्या आरती उतारी जाए ? सिर्फ राजनेताओं और गद्दारों और घोटालों के खिलाफ कलम चलाई जाए ? ब्लॉग पर भटकते भड़ासियों को खुले सांड की तरह छोड़ दिया जाए ? नहीं भाई । आप लोग रिश्तेदारी निभाइए । टिप्पणीकार जुटाइये । और सोशल नेटवर्किंग कीजिये । मुझे फर्जी भाई और भाड़े के भड़ासियों से बहुत भय लगता है ।
अब अनवर जमाल के प्रश्न का उत्तर -
प्रश्न एक - आपको और लोगों ने भी तो बहन कहा । लेकिन आपने आपत्ति क्यूँ नहीं जताई ?
उत्तर - जनाब अनवर जमाल । बहुतेरे फर्जी भाई मिले । यहाँ ब्लॉगजगत में । लेकिन पतझड़ के मौसम में गिरते पत्तों की तरह उनका नकली नकाब स्वतः ही गिर गया । और उनका भ्रातृप्रेम सूखे पत्तों की तरह सूखकर बिखर गया । हाँ एक अंतर जरूर है आप में और अन्य भाइयों में कि उन्होंने मुझे जलील करने के लिए लेख लिखकर भाड़े के टट्टू नहीं बुलवाए । मुझे अपमानित करने के लिए । शायद उनमें आपसे ज्यादा शराफत है ।
प्रश्न दो - आपने अरविन्द मिश्रा के खिलाफ विचार क्यूँ नहीं रखे मेरी पोस्ट पर ?
उत्तर- मैं भाड़े का टट्टू नहीं हूँ । जो अपनी भड़ास निकालूंगी । किसी की पोस्ट पर । इस काम के लिए अमरेन्द्र त्रिपाठी ही बेहतर है । रही बात अरविन्द मिश्रा की । तो वह एक निम्न मानसिकता वाला पुरुष है । जो महिला ब्लागर्स को कुतिया और अन्य विशेषणों से नवाजता है । ऐसे व्यक्ति समाज में कलंक हैं । और मैं ऐसे लोगों से दूर रहती हूँ ।
अब अनवर जमाल से कुछ विनम्र निवेदन --
1 कृपया मझे मेल लिखकर भीख म़त माँगा करें कि आकर आपकी पोस्ट पर कुछ लिखूं ।
2 आपने अपनी ही पोस्ट पर फर्जी नामों से और anonymous ID से मुझे भद्दी गालियाँ दीं । बाज आइये ऐसी छुदृ मानसिकता से । बचकानी हरकतें हैं ये सब । बुजुर्गों पर शोभा नहीं देती ।
3 मेरे खिलाफ लेख लिखने वाले बहुतेरे आये । और चले गए । इसलिए आप इस मन भरोसे में मत रहियेगा कि आप इन टुटपुंजिया हरकतों से मुझे किसी प्रकार की क्षति पहुंचा सकते हैं ।
4 किसी को बहन तभी कहिये । जब उसका अपमान देखकर आपका खून खौल जाए । न कि मदारियों की तरह मजे लीजिये । स्त्री का अपमान होते देखकर । Blood is thicker than water
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साभार । डा. दिव्या जी के ब्लाग " जील " से । आपके उत्तम विचारों के लिये धन्यवाद दिव्या जी ।

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