Sunday 6 March 2011

आज ब्लॉग एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है ।

व्यक्ति के मन में एक जज़्बा होता है कि हम भी समाज के लिए कुछ योगदान कर सकें । कुछ जागरूकता ला सकें । विसंगतियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करके समाज में कुछ सकारात्मक बदलाव ला सकें ।
कुछ वर्ष पहले तक ऐसी कोई सुविधा नहीं थी । जहाँ हम विचार रख सकते हों । विमर्श कर सकते हों । लेकिन आज ब्लॉग एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है । जिसके द्वारा हम लोग आपस में विचार विमर्श कर सकते हैं । तथा अपने विचारों एवं आक्रोश को समाज तक पहुंचा सकते हैं । बहुत से लोग जो ब्लाग्स पढ़ते हैं । चाहे सरसरी तौर पर ही पढ़ें । लेकिन निरंतर उठने वाली आवाजें उनके अंतर्मन को कहीं न कहीं कचोटती या झकझोरती तो होंगी ही । शायद उनके दिल में भी वो आवाज़ बुलंद होती होगी । और फिर उनके माध्यम से ये लहर आगे भी बढती होगी ।
मेरे मन में ये प्रश्न है कि क्या वास्तव में हमारी आवाज़ जनता के अंतर्मन को influence करने में सक्षम है ? क्या हमारी आवाज़ एक बहुत छोटे दायरे तक तो सीमित नहीं है । क्या हम ब्लागर्स की आवाज़  विशाल समुद्र में मात्र एक बूँद के सामान है ? क्या हमारे प्रयत्न व्यर्थ हैं ? क्या हमारे अथक परिश्रम की कोई सार्थकता नहीं है ?
मेरी एक पाठक राधिका ने कहा । दिव्या तुम्हारी आवाज़ एक छोटे दायरे तक सीमित है । तुम अपनी शक्ति को अनायास ही व्यय कर रही हो । तुम्हारे प्रयासों से समाज में कोई बदलाव आने वाला नहीं है ।
उसकी बात से मन में उपजे इस प्रश्न को आपके सामने रख रही हूँ ।
मेरे विचार से जो लोग मेरे सामाजिक लेखों को पढ़ रहे हैं । और कहीं न कहीं सकारात्मक रूप में प्रभावित अथवा सहमत हो रहे हैं । उनके द्वारा ये विचार चार अन्य लोगों तक पहुंचेगा । फिर उन चारों के द्वारा 16 तक । और इस प्रकार geometrical progression में विचार फैलेगा । और लोगों में कहीं न कहीं जागरूकता लाएगा ही । दृढ विश्वास है कि बिंदु बिंदु से ही सिन्धु बना है । मेरी पहुँच बहुत सीमित हैं । लेकिन मेरे पास बेहतर विकल्प भी तो नहीं हैं । इसलिए अपनी शक्ति और सामर्थ्य के साथ कर्म जारी है ।
इस विषय पर आपके क्या विचार हैं । और क्या सुझाव हैं ? उनका स्वागत है । आभार ।

साभार । डा. दिव्या जी के ब्लाग " जील " से । आपके उत्तम विचारों के लिये धन्यवाद दिव्या जी ।

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